|| माय विनु नेह केकर चित जागल ||
सहि दसमासहुँ वेदन स्वांस धरि
कष्ट असह अवधारल ।
"रमण" सधा नहि सकय तोहर ऋण
माय विनु नेह केकर चित जागल ।
सरबस प्रेम वृथा विनु तोहर
जाहि प्रीत विनु पागल ।। माय.........
मल त्यागल आँचर पर सदिखन
तों हँसि ताहि पखारल ।
कयलहुँ कत अपराध माय तुव
चित दुख सबहि बिसारल ।। माय......
दारा अरु परिवार सकल जन
सब सम्पदा निहारल ।
सब सम्पदा निहारल ।
माय एक तुव अंग निरेखल
हुलसि गोद भरि पारल ।। माय.........
सहि दसमासहुँ वेदन स्वांस धरि
कष्ट असह अवधारल ।
"रमण" सधा नहि सकय तोहर ऋण
पुत्र अधम जग तारल।। माय..........
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
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