dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

apani bhasha me dekhe / Translate

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

जे छल सपना - रेवती रमन झा " रमण "

||  जे छल सपना  || 


सुन - सुन  उगना  , 
कंठ सुखल मोर  जलक बिना  | 
सुन - सुन  उगना  ||  
                    कंठ  सुखल -----
नञि  अच्छी घर कतौ  !
नञि अंगना 
नञि  अछि  पोखैर कतौ 
नञि  झरना  | 
सुन - सुन  उगना  ||
                   कंठ  सुखल -----
अतबे  सुनैत  जे 
चलल   उगना  
झट दय  जटा  सँ 
लेलक  झरना  | 
सुन - सुन  उगना  ||
                   कंठ  सुखल -----
निर्मल  सुरसरि  के  
केलनि  वर्णा  |
 कह - कह  कतय सँ 
लय   लें  उगना  || 
सुन - सुन  उगना  ||
             कंठ  सुखल -- 
अतबे  सुनैत  फँसी  गेल  उगना 
"रमण " दिगम्बर  जे 
त्रिभुवनमा  -
सुन - सुन  उगना  ||
                   कंठ  सुखल -----


गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

हमहू पढ़बै (बाल कविता)

😊हमहू पढ़बै (बाल कविता)

हमहू पढ़बै
जानू ने

पाटी कीनि के
आनू ने
पैसा नै अइछ
कानू नै
हमहुँ पढ़बै
जानू ने।

सब बच्चा 
गेलै स्कूल
ई सभ ते
पुरना छै "रूल"।
हमहुँ पढ़बै
आगू बढ़बै
बाबू आब नै
करबै भूल।

गरमीक
मौसम छै बाबू
छाता कीनि के
आनू ने
हमहुँ पढ़बै
जानू ने।

खेल खेल में
पढ़बै बाबू
छुट्टी में हम
खेलवै बाबू
अहाँक कोरा
कान्हा चढ़ि के
मेला देख'
चलबै बाबू।

रंग -बिरंगक
फुकना किनबै
हमर बात 
अकानू ने
हमहुँ पढ़बै
जानू ने।

स्वाती शाकम्भरी
सहरसा

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

श्रधेय राजकमल के प्रति काव्यांजलि

||  श्रधेय राजकमल के प्रति काव्यांजलि || 

धरती सँ
मुक्त आकाश धरि
अहाँक साहित्यिक उच्चता
समुद्र सन 
तकर गंभीरता
जीवन सन सत्यता
मृत्यु सन यथार्थता
अहाँक साहित्यिक
इएह मूलभूत
उत्स थीक
अहाँक शब्द में
विशाल भावक
परिकल्पना
इएह तें
दर्शन थीक।
छान्हि नै
बान्हि नै
प्रवहमान भाव अछि
छाँटल नै
काढल नै
परम्पराक साँच पर
गढल नै
थाहि थाहि
चढल नै।
जिनक सहजहिं
स्वभाव अछि
दल दल मे
जे नै धँसल
सएह भेलखिन
राजकमल।
 

स्वाती शाकम्भरी
(Swati Shakambhari)
सहरसा।

सोमवार, 11 दिसंबर 2017

भगवान

हे "भगवान", करू कल्याण
नाम'क जल्दी हो समाधान


'मिथिला' पेंटिंग हमर शान
'मधुबनी' सँ अछि पहचान
दुनु अछि मैथिल केर आन
फेर किया भेल छि परेशान
हे "भगवान", करू कल्याण

जँ इच्छा बढि जाय सम्मान
त'अ एतबे राखै जाऊ ध्यान
हरेक बाजार में होई 'दुकान'
"पेंटिंग" भेटए जाहि 'स्थान'
हे "भगवान", करू कल्याण

मुदा छोरि क ओकर ध्यान
नाम के ल करि खींचातान
सब अपने छी कोई नै आन
मिल बढाबि 'मिथिला' मान
हे "भगवान", करू कल्याण

"देव"क अछि अनुपम बरदान
'पेंटिंग' केर विश्व स्तर पहचान
हमरा सबहक अछि अरमान
सबके घर में ई होइ बिद्यमान
हे "भगवान", करू 'कल्याण'
रचनाकार -

Mahadev Mandal
11/12/2017

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

हमर मिथिला



|| हमर  मिथिला || 



हम  त  मैथिल  छी , मिथिला लय जान दैत  छी  | 
एहि   अन्हरिया   में  , पूनम   के  चान  दैत   छी || 
जागू - जागू  यौ   मैथिल  भोर  भय गेल 
 हमर मिथिला केहन अछि  शोर भय गेल 
सूतल      संध्या   के    जागल   विहान     दैत   छी |
हम   त  मैथिल  छी , मिथिला लय  जान दैत  छी  ||
एहि बातक  गुमान , हमर मिथिला  धाम
जतय  के  बेटी  सीता , लेने  अयली  राम
मिथिला    नव     जाग्रति   अभियान   दैत      छी  |
हम   त  मैथिल  छी , मिथिला लय  जान दैत  छी  ||
जतय   सीनूर   पीठारे     ढोरल  अड़िपन
गीत गाओल  गोसाउनिक  मुदित भेल मन
शुभ     मंडप       में     पागे    चुमान    दैत       छी  |
हम   त  मैथिल  छी , मिथिला  लय  जान दैत  छी  ||
कवि  कोकिल  विद्यापति  चंदा झा छलैथ
गार्गी   मंडन   लखिमा    अनेको       भेलैथ
"रमण  " पग  - पग पर  पाने  मखान  दैत  छी  |
हम   त  मैथिल  छी , मिथिला लय  जान दैत  छी  ||
रचनाकार -
रेवती रमन झा "रमण "
मो -  9997313751 





मंगलवार, 28 नवंबर 2017

विद्यापति के गाम बौआ

        ।। विद्यापति के गाम बौआ ।।   

    


                    
  इहय  ग्राम  विसपी,   विद्यापति  के  गाम  बौआ ।
               
  एहि माटि के तिलक करु,छूबि क प्रणाम बौआ ।।
                
   एहि   ठाम गीतक  त्रिवेणीक  धारा
                   
सम्पत्ति मध्य मात्र बाँसक पिटारा
                  
 हिनकहि  चरण जे छूबि लेली गंगा
                
 अतय  शम्भू- उगना  बनल   छथि  गुलाम  बौआ।
                 
  इहय  ग्राम  विसपी,  विद्यापति  के  गाम  बौआ ।।
                 
एहि पूण्य माटि सँ  सीया बहरयली
               
  राजा  जनक केर   कन्या कहयली
                 
इहय पवित्र भूमि, इ थीक मिथिला
       
    एहिठाम   दशरथ   के    पुत्र   एला  राम   बौआ ।
              
 इहय  ग्राम  विसपी,  विद्यापति  के  गाम बौआ ।।
                 

बिना याचना   केर अयाचीक  जीवन
                
  अतय छली लखिमा,अतय छला मंडन
                 
अपूर्ण पाँच बर्षहि में पूर्ण भेला शंकर
           
  कविवर   चन्दाक  देखू   पूण्य -  धाम   बौआ ।
             
  इहय ग्राम विसपी,  विद्यापति के गाम बौआ ।।
                 
साँझ  में  संझा , आ  प्रात   पराती
                  
माटिक  पातिल  में , चौमुख  बाती
                  
मंगल  कलश  पर  आमक  पल्लव
         
गोवर  सँ  नीपल  आ  अडिपन  ललाम बौआ ।
       
     इहय  ग्राम विसपी, विद्यापति  के गाम बौआ ।।
                      
         
       
  " रचनाकार "
         रेवती रमण झा " रमण "
     09997313751
                               








शनिवार, 25 नवंबर 2017

मउहक गीत

|| मउहक  गीत || 
                                              रचित - रेवती रमण झा "रमण "

 खीर   खैयौ  , नञि  दूल्हा लजैयौ  ऐना  | 
सारि छथि सोंझा , सरहोजि नव साजलि 
वर      विधकरी     आगाँ   में     बैसलि  
चहुँ     नव  - नव लोक    भरल  अंगना | 
   खीर   खैयौ  , नञि  दूल्हा  लजैयौ  ऐना  ||   
 एकटा    हमर   बात   मानू   यौ    रघुवर  
आजुक    खीर , नञि   करियौ   अनादर 
पुनि   मउहक   के  थारी होयत  सपना | 
 खीर   खैयौ  , नञि  दूल्हा लजैयौ  ऐना  || 
" रमण " सासुर केर  मान  आइ  रखियौ 
सासुरक  सौरभ  ई  खीर  आइ  चखियौ 
बाजू - बाजू    यौ  दुहा  मनाबू  कोना  | 
 खीर   खैयौ  , नञि  दूल्हा लजैयौ  ऐना  | 
:-

मउहक  गीत - 2
 खैयौ ,  खैयौ   खीर   यौ   पाहुन  
 की   छी  गारि  सुनैलय  बैसल  |  
सोझ  करैलय   हमर  धिया  यौ 
अहाँक     घर       में      पैसल || 
                  खैयौ ,  खैयौ  ------
  सभ्य ग्राम  केर  उत्तम कुल सँ 
निकहि        बापक          बेटा 
जे - जे     मंगलौ  , देलौ  सबटा 
बेचि     कय       थारी     लोटा  
मान - मनौती  अतिसय कयलौं 
तनिक    विवेक  नञि जागल  || 
                 खैयौ ,  खैयौ  -----
सुभग  नैन   नक्स  वर  ओझा   
कीय     मति     के      बकलोल  
सबटा  ब्यंजन   छोरी -छोरी कय 
माय         खुऔलथि         ओल  
   सब   कियो  घर में सान्त स्वरूपहि 
कियक    अहाँ     छी      चंचल  || 
                      खैयौ ,  खैयौ  ------
जानू  "रमण " खीर  केर  महिमा 
ई      मिथिला        केर        रीत 
सुमधुर गीत  गाबथि   मिथिलानी 
पावन           परम            पुनीत 
तिरहुत    देश     हमर  ई     देखु , 
आइ        हँसैया      खल - खल 
                   खैयौ ,  खैयौ   -----

लेखक : -
रेवती रमण झा ''रमण "
मो - 91  9997313751





शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

मैथिली संस्कृति अथवा मिथिलामक अवयव

                                                                डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
मैथिली संस्कृति अथवा मिथिलामक अवयव  

      मैथिली संस्कृतिकेँ समग्रतामे मिथिलाम कहल जा सकैत अछि। कुनो सांस्कृतिक क्षेत्र अपन किछु विशेष खानपान, विध बेबहार, गीत संगीत आदिक कारणे विशेष स्थान आ पहिचान रखैत अछि। मैथिली संस्कृति अथवा मिथिलामक सेहो अपन विलक्षण विशेषता छैक। कनिक ओहि विलक्षणता पर विचार करी।
मिथिलाम संक्षिप्त रूपसँ 6 भाग में देखल जा सकैत अछि:
क) खानपान, ख) वस्त्र विन्यास, ग) गीत आ संगीत, घ) वाद्ययंत्र, च) भाषा , छ) धार्मिक संप्रदाय आ परंपरा।
क. खानपान 
खानपान कोनो समाजक संस्कृतिक मूल होइत अछि। 
परम्पराक बात करी त' मैथिल चारि बेर भोजन करैत छथि:

i.  पनपियाइ: किछु आहारग्रहण उपरांत जलग्रहण। 
ii. कलउ/ मँझिनी: मध्याह्न भोजन कायाकल्प तृप्यान्त स्थुल शरीर तृप्त्यार्थ अन्न-फल-जल सँ परिपूरित            भोजन।
iii. बेरहट: दिनक चारिम पहर मे लेल जायवला आहार।
iv. रातुक भोजन। कतेक लोक रातिक हल्लुक आ सुपाच्य आहार लैत छथि जकरा "हलझप्पी" कहल जाइत           अछि।
आब कनि सामग्री आ विन्यासक बात करी:

मिथिला मे खानपान दू दृष्टिकोण सँ देखल जा सकैत अछि। भोजनक मुख्य आ स्थानीय तत्त्व आ दोसर भोजनक सचार। जखन बहुत रासक वस्तुसँ भोजनक थारी अथवा थार सजाएल जाएत अछि त' ई भेल सचार। सचार में कोनो जरुरी नहि जे सब वस्तु अथवा भोज्य सामग्री स्थानीय हो। जखन भोज्य सामग्री के बात करैत छी त मिथिलाक मूल भोज्य सामग्रीक ज्ञान बुझ पडत। 
एक फकड़ा कहल जाइत छैक:--
तिरहुतीयताक भोजन तीन।
कदली    कबकब      मीन।।

आब कनि एकरा देखी:---
      कदली (केरा): केरा गाछक सब चीज़क प्रयोग मिथिला मे होइत अछि। थम्बक भीतरक गुद्दाक तरकारी, कोषाक तरकारी, कांच केराक तरकारी, पाकल केराक विविध रूप मे प्रयोग। कोनो भार बिना केराक पूर्ण नहि अछि। केराक प्रयोग सब बिध, बेबहार, पूजा पाठ, उत्सव, सत्यनारायण कथा आदि मे होइत अछि। कांच केराक तरकारी पथ्य के रूप मे प्रयुक्त अछि। केरा थम्भ के बहुत शुभ कार्य मे प्रयोग होइत अछि। केराक पात पर भोजन करब अदौसँ अबैत परंपरा अछि।

          कबकब: कबकबक अंतर्गत भेल ओल, खमहारु , कौआं पात , ओलक पेंपी, कन्ना पात, अरिकंचक लोढ़हा, आदि। ओल शुद्ध आ सुपाच्य वस्तु अछि। सामूहिक भोज में ओलक सन्ना अनिवार्य रहैत अछि। ओलक तरकारी सेहो खूब चावसँ हमरालोकनि खाइत छी। खमहारुक तरुआ अथवा खमहारुआ मिथिलाक विशेषता अछि। अरिकोंच ओनात' सब खाइत छथि मुदा स्त्रीगनक मध्य ई कनि अधिक प्रिय अछि। कबकब भोज्य पदार्थक विन्यासमे कागजी, ज़मीरी नेबो, कांच आम, आ आमिलक प्रयोग होइत अछि।
एकर अतिरिक्त सुथनी, अरुआ आदि पदार्थक सेहो कबकबक श्रेणी मे राखल जा सकैत अछि।

        मीन : मीनक अर्थ भेल माछ। माछ त अपना सभक भोजनक मुख्य पदार्थ अछि। अनेक तरहक माछ आ माछक संग संग ओहि प्रजातिक अन्य चीज़ जेना कांकोड, डोका, काछु आदि खेबाक परंपरा मिथिला मे अछि।
माछक अनेक तरहेँ उपयोग भोजन विन्यास मे होइत अछि। माछक तरल, माछक झोड़, माछक सन्ना आदि।

       ई त भेल तीन मुख्य तत्त्व। एकरा अतिरिक्त किछु पदार्थ अछि जे मैथिल के बहुत प्रिय छनि। ई सब अछि:
          नाना तरहक साग, जेना केराव, बूट, गेनहारी, बथुआ, ख़ेसारी, करमी आदि। सागक महत्व मिथिला मे बहुत रहल अछि। बसन्त पंचमी लगैत देरी बेटी सगतोरनी भ' जाइत छैक। बूट-केराव आ खेसारीक साग तौला सभमे मह-मह करैत खदकैत रहैत छैक। सामान्य लोक आ सभ जातिक लोक साग-भात भरि इच्छा हरियर मरिचाइ गूडि गूडि सुआद लए लए खाइत अछि। बिना तिलकोरा तरुआकेँ मिथिलाक भोजन बेकार। चाउर पिठारक लेप मे बोरि क' सरिसबक तेल मे तरब। कुर कुर स्वादक अनुभूति सँग खैब मिथिले मे संभव छैक।

          गरीब गुरबा सब कुअन्न जेना मड़ुआ, ख़ेसारी, अल्हुआ, कौन, साम, मकई, अल्हुआ, कन्द आदि खाए सेहो अपन गुजड़ करैत छ्ल। आब स्थिति मे सुधार भेलैक अछि आ सब कियोक एक साँझ भात त दोसर साँझ गहुमक सोहारी एकर अतिरिक्त तरकारी, तीमन, दालि अचार आदिक सङ्ग खाइत छथि।

     दही-चूरा, चीनी: समस्त विश्व मे मिथिले एहेन क्षेत्र अछि जतए दही-चूरा-चीनी मुख्य भोजन आ भोज इत्यादि मे सामूहिक भोजनक रूप मे खाएल अछि। अतेक झटदनि तैयार होबए बला फ़ास्ट फ़ूड दुनिया मे बहुत कम थिक।
       आ सब व्यंजन पर भारी पड़ैत अछि अपन मिथिलाक तिलकोरा । सर्वत्र उपलब्ध, ने दाम ने छदाम, आ स्वादक की कहब? छोट पैघ सब मे अपन स्थान रखने अछि। ई एहेन भोज्य पदार्थ अछि जकरा केवल मैथिल खाइत छथि।
           मिथिलाक भोजक सकरौड़ी विलक्षण होइत अछि। एकरा अपन सभक भात दालिक भोजन के डेजर्ट कहि सकैत छी। सकरौड़ी दूध मे ड्राई फ्रूट्स, बुनिया एवं अन्य सामग्री डालि दूध के खूब गाढ़सँ खौलेलाक बाद बनैत छैक। चीनी सबसँ अंत मे देल जाइत छैक। भोज मे लोक चीनी सुरकैत अछि। सकरौड़ीसँ भोजक अंत होइत अछि। 
           दालि भातक भोजक श्रृंगार थिक बर ।   बर सामान्यतया उड़िदक घाटिसँ बनैत अछि। 
मखान: भारतवर्ष मे सबसँ अधिक मखान अपन मिथिला मे होइत अछि आ सबसँ बेसी एकर उपयोग सेहो हमरे लोकनि करैत छी। 
अंततः भोजनक पूर्णता मुखशुद्धि सँ होइत अछि आ मुखशुद्धि पान सुपारी संगे।
ख. वस्त्र विन्यास 
    परंपरागत वस्त्र मिथिलाक पुरुष लेल धोती, गमछा, या मुरेठा आ स्त्रीगण लेल नुआ, आंगी अछि। किछु विशेष वर्गक लोक या त विशेष अवसर पर अथवा ओहुना पाग सेहो धारण करैत छथि। धोती त मिथिलाक मुसलमान सेहो पहिरैत छला। आब मुस्लमानक बाते छोड़ू हिन्दू सब सेहो धोती सँ बप्पा बैर केने जा रहल छथि। पहिने अपना ओत कोकटा बाँग होइत छल जकर प्राकृतिक रंग ऑफ वाइट होइत छलैक। ओही बांग केर धोती के कोकटा धोती कहल जाइत छलैक। 
         प्राचीन समयमे पुरुष गाम गमैत भ्रमण करबा काल धोती, मिर्जई, दुपट्टा, गमछा, आदिक प्रयोग करैत छला। पैर मे खराम पहिरबाक प्रथा हाल तक छल। पाहुन परखक पएर धोबक हेतु खराम देल जेबाक परंपरा एखनो बहुत ठाम अछि। उच्च वर्ण मे खराम पहिरक व्यवस्था उपनयन संग प्रारम्भ भए जाइत छल। किछु लोक खरपा सेहो पहिरैत छला। खरपाक आधार आर्थत तरवा काठक आ ऊपर मे आँगुर लग प्लास्टिक अथवा चाम लागल रहैत छलैक। 
           कालान्तर मे लोक गोल गला सेहो पहिरनाइ प्रारम्भ केलनि। 
मिथिलाक स्त्रीगण सब व्यवहार कएल वस्त्र यथा धोती आ नुआ सँ केथड़ी आ सुजनीक निर्माण सुई ताग सँ करैत छली। केथड़ी मोटगर होइत छैक जकर व्यवहार मोटगर गद्दा जकाँ जारक समय बिछेबाक हेतुकएल जाइत छैक। सुजनी कलात्मक होइत छैक। सुजनी मे अनेक तरहक तागक सुन्नर संयोजनसँ बहुत रास डिजाईन , मोटिफ, वोटिफ, पैटर्न आदि बनेबाक प्रथा मिथिला मे छलैक। सब वर्ग आ जातिक स्त्रीगण एहि कलामे निपुण होइत छली। सुजनीक प्रयोग ओछाइनक चद्दरिक रूप मे होइत छैक। किछु लोक गरीबी मे केथड़ी सेहो ओढ़ैत छथि। 
        पूस मासक जड़काला गोइठा-करसी धरि तापए बला रहैत छैक। ओना त' माघक जाड़ बाघ होइत अछि मुदा पंचमी लगैत देरी घोकचल चाम आ मोचरल अंग साहि लोक सोझ भ' क' ठाढ़ होमय लगैत अछि। मोटकी दुसल्ला चद्दरिक गांती बनहैत अछि। गांतीक अर्थ भेल चद्दरिकेँ माथ सँ झाँपैत गरदनिक पाछा मे गिठह बान्हब। सामान्यतया बच्चा आ बूढ़ गांती बनहैत छथि। घूर लोक अगहन, पूस आ माघ धरि पजबइत अछि आ तपैत अछि।

ग. गीत संगीत 
        मिथिलाक लोकगीत एक महासागर अछि। एकर संख्या कतेक अछि से कहब असंभव। मैथिली लोकगीतक विशेषता एकर समवेत गायन शैली छैक। लगभग 98 प्रतिशत गीत बिना कोनो वाद्ययंत्र और विशेष रागसँ गाएल जाइत अछि। मुदा गीतक शब्द, भाव, गबैय्याक उत्साह आ समर्पण, विध बेबहारक प्रति ध्यान , ऋतुक संग स्वभाव, क्रियाकलापसँ प्रतिबद्धता, काज मे लगाव, आपसी प्रेम आ प्रकृति सँ अनुराग बिना कोनो वाद्ययंत्र के सेहो मैथिली लोकगीत के अलग संसार मे ल जाइत अछि। विद्यापतिक पदावली, ताहू में उत्सव विशेषक गीत, सोहर, समदाउन, उदासी, साँझ, प्राती आ शिवक गीत मे महेसवानी , नचारी आ कमरथुआ गीत तन-मनकेँ बहुत हर्षित करैत अछि। सीता, राजा सलहेस, कारिख महाराज, दीनाभद्री, आदिक लोकगाथा आ गीत सेहो अपन अलग स्थान रखैत अछि। सब शास्त्रीय गीत मिथिला मे बहार सँ आयातित अछि, यद्यपि ध्रुपद मैथिली लोकशैली संगे तारतम्य बना सकल अछि। बटगबनी, तिरहुत, लगनी तीव्रगति सँ चलैत गीत आ मोन लगबए बला गीत अछि। उदासी संत परंपरा, कबीरपंथी परम्परा, सँ प्रभावित भ रचल गेल अछि। 
       मिथिलाक उच्चवर्ग विशेष रूपसँ ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ अपन महिला के पब्लिक स्पेस मे गायन, वाद्ययंत्र संगे गायन, नृत्य आदिक स्वतंत्रता नहि देने छथि जाहिसँ एहि वर्गक महिला मे नृत्य, नृत्यगीत, नृत्यनाटिका आदिक शैली नहि विकशित भ सकल छनि। अन्य जाति सब मे डोमकच्छ, जटा-जटिन, झ्झिया, आदिक रूप भेटैत अछि। शामा चकेबा मे बहुत साधारण तरहक नृत्य आ उत्साहक स्वतंत्रता देखैत छी।

          मुस्लमान महिला सब ताजिया के समय झिझिया छाती पीट पीट गबैत छथि। हुनकर स्वर आ टोन बहुत हद तक उदासी आ समदाउन सँ मेल खाइत छनि।

घ. वाद्ययंत्र 
       मिथिलाक मूल वाद्ययंत्र रसनचौकी मे प्रयुक्त होइत अछि। दुर्भाग्य सँ एकरा कहियो मिथिलाक तथाकथित विद्वान लोकनि प्रोत्साहित नहि केला। एकरा बारेमे कहल जाइत अछि जे जखन सीता राजा जनक द्वारा हर जोतैत काल स्वर्ण कुम्भसँ धरतीसँ बहार भेली त भगवान स्वर्गसँ प्रसन्न होइत अप्सरा, वाद्ययंत्र आ ओकरा बजबए बला कलाकार सेहो मिथिला पठेला। किछु लोकक कहब छनि जे चूँकि ई वाद्ययंत्र चमार बजबैत छथि ताहि एहि पर विशेष ध्यान नहि देल गेल।
 च. भाषा:
        मैथिली भाषा प्राचीन भाषा अछि। एकर अपन लिपि छैक मुदा आब लोक देवनागरी मे लिखैत छथि। बंगला लिपि मिथिलाक्षर सँ प्रेरित भ बनल अछि। एहि भाषा में विद्यापति, ज्योतिरेश्वर, चंदा झा, लाल दास, हरिमोहन झा आ यात्री सनहक़ साहित्यकार भेल छथि। मैथिली भाषाक अनेक उपभाषा अथवा बोली जेना अंगिका, बज्जिका, मुस्लमानक (कुंजड़ा), सीतामढ़ीक उपभाषा आदि मे देखल जा सकैत अछि।
छ.  धर्म आ संप्रदाय 
        मिथिला मे सब वर्णक लोक, सब धर्मक लोक रहैत छथि। अतए केर हिन्दू पंचोपासक छथि। महादेवक पूजा माटिक महादेव बना अद्भुत ढंग सँ कएल जाइत अछि। बुद्धक भाषा आ चार्यपदकेँ एखनो मैथिली अपना मे आत्मसात केने अछि। तंत्रमे बौद्ध तंत्रक स्पष्ट प्रभाव छैक। सिद्धपीठ आ बज्रयानक तंत्र स्थल मिथिला मे आबि जेना संगम जकाँ एक दिशा मे एक भए बहए लगैत अछि। मुस्लमान सब सेहो अपन धर्मक पालन करैत छथि संगहि किछु लोक परंपराक तत्वक अपना मे समावेश क लेत छथि।

सीताकेँ मिथिलाक स्त्री नायिकाक प्रतिनिधि आ राजा सलहेसकेँ पुरुष नायकक प्रतिनिधि कहल जा सकैत अछि।
ज. मिथिला चित्रकला
मिथिला चित्रकला जकरा मधुबनी चित्रकला सेहो कहल जाइत अछि, अपन स्थान आ नाम कला संसार मे नीक जकाँ दर्ज करा लेने अछि। एहि पर बड्ड लिखब अनिवार्य नहि। इंगित भ गेल अतेक काफी अछि।

बुधवार, 22 नवंबर 2017

विवाह - गीत- रेवती रमन झा "रमण "


विवाह पंचमी के मंगल मय  शुभकामना अछि  ,
                                    रेवती रमन झा "रमण "
|| विवाह - गीत || 
बाबा     करियो       कन्या      दान  
बैसल   छथि  , बेदी पर  रघुनन्दन | 
 दशरथ सनक  समधि  छथि आयल 
 हुनकर        करू       अभिनन्दन  ||  
                        बाबा करियो ----
नयनक    अविरल     नोर     पोछु  
ई    अछि      जग    के      रीत  | 
बेटी   पर  घर    केर  अछि   बाबा 
अतबे    दिन  केर   छल    प्रीत  || 
मन  मलान  केर  नञि अवसर  ई 
चलि     कय  करू   गठबन्धन   || 
                     बाबा करियो ----
जेहन   धिया   ओहने  वर  सुन्दर 
जुरल         अनुपम           जोड़ी  |
 स्वपन  सुफल सब  आइ हमर भेल 
बान्धू            प्रीतक            डोरी || 
आजु    सुदिन   दिन   देखू     बाबा 
उतरि    आयल   अछि   आँगन   || 
                  बाबा करियो ----
हुलसि   आउ  सुन्दरि  सब   सजनी 
गाबू                मंगल             चारु | 
 भाग्य        रेख   शुभ रचल   विधाता 
अनुपम            नयन           निहारु  || 
"रमण " कृपा  निज दीय ये गोसाउनि 
कोटि - कोटि  अछि  बन्दन  || 
   बाबा करियो ----

शनिवार, 18 नवंबर 2017

दहेज मुक्त मिथिला के द्वारा शपथ समारोह सम्पन्य

"दहेज मुक्त मिथिला के द्वारा शपथ समारोह सम्पन्य "

      दिनांक 17- 11 -2017 के दरभंगा ज़िला के बिरौल अनुमंडल के नंदकिशोर उच्च विद्यालय सतीघाट हिरनी के प्रांगण में दहेज मुक्त मिथिला के  आयोजन मनोज शर्मा के  अध्यक्षता में कइल गेल जाहि में  भारी संख्या में युवा बच्चे और महिला सब  उपस्थित भेली ,
      सब  कियो शपथ लेला  कि आइ  से नय हम दहेज लेव आ  नय  देंब , अहि  कार्यक्रम में धनंजय झा द्वारा बतायल  गेल  की  हुंकर भाई के बियाह  बिना दहेज के  करबऑल  जा रहल  अच्छी ,  दहेज मुक्त मिथिला के ब्रांड एंबेसडर अंतर्राष्ट्रीय धावक श्री आर० के ०दीपक के द्वारा हुनका  सम्मानित करैक  घोषणा  कइल गेल  आ  साथे - साथ इहो  बतायल गेल की  प्रति माह अहि  कार्यक्रम के  बैठक  कइल जयात ,और सदस्य के  संख्या बढ़ाबै  पर  सेहो जोर देल जाइत ,  श्री मनोज शर्मा द्वारा संचालित कार्यक्रम  के , श्री संजय सिंह प्रकाश चौधरी घनश्याम चौधरी कौशल चौधरी कार्तिक रोशन झा, मनीषा भारती, आशीष मनीष, रंजीत कुमार नुनू आ  अन्य कार्यकर्ता सब मिल संबोधित  केला ,  
       कार्यक्रम में नैना कुमारी के द्वरा दहेज भगाओ बेटी बचाओ पर गीत और कौशल किशोर जी  कविता के माध्यम से लोग सब के  दहेज हमर समाज के लेल  अभिशाप  अछि , सब के  मिलके  अहि  कुप्रथा  के  मिटनैय  के  संकल्प लेबाक  चाहि अहि  कार्यक्रम में 95 वर्षीये राम सिंहासन मंडल जी के  सम्मानित कयल गेलन 


मिथिलाक शान - उज्जवल कुमार झा

दरभंगा अईछ मिथिलाक शान 
    जई मे बसैत अछि हमर प्राण
 स्वर्ग स सुन्दर ग्राम अछि हमर
     जेकरा कहैत मिथिलाक शान
नाम अछि ओकर बसुआरा गाम 
     जई स उखरल उज्जवल नाम
 करैत अहाँ सबके प्रणाम 
     कहू अहाँ किछू कहब की
कहब की हम देखने छी हाँ यो 
       हम बजै छी उज्जवल जी
 ओलक सब्जी खा क रहै छी 
        हमरा लग की बात छोड़ई छी
  अहाँ करी ओल पसंद
       तै नई करैत अछी महिला तंग
  आइब देखू बसुआरा गाम 
             स्वर्ग स सुन्दर अछि ई गाम 
 जई मे होईत अछि राजा आम 
             अहाँ खाईत छी अमावट
   हमरा लग की करब जमावट
            हम करै छी वर्णन शेष
        पूरा मिथिला दिअ संदेश ।।
                           
                            -:-
लेखक -

नाम - उज्जवल कुमार झा 
पिता का नाम- श्री शम्भू नाथ झा 
पता- बसुआरा दरभंगा बिहार 
पुरस्कार-  ऑल इंडिया राइटिंग कम्पीटीशन्स 
(पेन इट टू विन इट जनवरी  2017) 
के विजेता, और  प्रतिभा सम्मान विजेता 

शनिवार, 11 नवंबर 2017

हम मूर्ख समाजक वाणी छी

|| हम  मूर्ख  समाजक वाणी छी || 
हम  मुर्ख समाजक वाणी  छी  | 
ज्ञाता जन छथि सदय कलंकित 
हमहीं  टा    बस   ज्ञानी    छी || 
                     हम  मुर्ख ---  || 
रामचंद्र    के   स्त्री    सीता  
तकरो      कैल    कलंकित  | 
कयलनि डर सं अग्नि परीक्षा 
भेला    ओहो    शसंकित    || 
एक्कहि  ठामे  गना दैत  छी 
सुर   नर   मुनि  जे   ज्ञानी | 
हम कलंकित सब  के कयलहुँ 
देखू      पलटि     कहानी  ||  
बुद्धिक-बल   तन  हीन  भेल 
बस  अपनौने  सैतानी   छी | 
                  हम  मुर्ख ---|| 
बेटा  वी. ए. बैल हमर अछि 
हम   फुइल    कय  तुम्मा  | 
नै  केकरो  सँ  हम  बाजै छी 
बाघ   लगै    छी    गुम्मा  || 
अनकर  बेटा   कतबो बनलै 
 रहलै       त         अधलाहे | 
अगले    दिन उरैलहुँ  हमहीं 
कतेक    पैघ     अफवाहे  || 
अपनहि मोने,अपने उज्ज्वल 
बस   हम   सब  परानी  छी | 
                   हम  मुर्ख ---  ||   
बाहर  के कुकरो  नञि पूछय 
गामक       सिंह       कहाबी  | 
परक    प्रशंसा  पढ़ि  पेपर में 
मूँह    अपन     बिचकावी   || 
सदय इनारक फुलल  बेंग सन 
रहलों        एहन        समाज  |
आनक   टेटर  हेरि  देखय लहुँ 
अप्पन       घोलहुँ       लाज | | 
अधम मंच  पर बैसल हम सब 
पंडित  जन  मन  माणि  छी | 
                        हम  मुर्ख --- ||  
गामक    हाथी  के  लुल्कारी  
जहिना      कुकर     भुकय  | 
बाहर   भले  देखि कय हमर 
प्रभुता    पर   में     थुकय  || 
अतय   सुनैने  हैत ज्ञाण की 
बहिर   छी    कानक     दुनू  |
 कोठी  बिना अन्न केर बैसल 
ओकर     मुँह    की    मुनू  || 
हम  आलोचक   पैघ सब सँ 
हमहीं     टा      अनुमानी  || 
                 हम  मुर्ख --- || 
माली  पैसथि  पुष्प  वाटिका 
सिंचथि        तरुवर       मूल | 
पंडित   पैसथि  पुष्प  वाटिका 
लोढथि       सुन्दर      फूल  | | 
लकरिहार जन  लकड़ी  लाबय 
चूइल्ह       जेमाबय      गामें  |
 सूअर    पैसय    पुष्प  वाटिका 
विष्ठा         पाबय       ठामे  || 
जे अछि  इच्छु  जकर तेहन से 
दृष्टि      ताहि    पर     डारय | 
मूर्खक  हाथ  मणि अछि पाथर 
ज्ञानी       मुकुट      सिधारय  || 
"रमण " वसथु जे एहि समाज में 
मर्दो    बुझू      जनानी      छी  | 
हम   मुर्ख समाजक  वाणी  छी 
                       हम  मुर्ख ---|| 
 रचनाकार -:


रेवती रमन झा "रमण " 
गाम- जोगियारा पतोंर दरभंगा ।
मो - 9997313751 

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

पावन हमर ई मिथिला धाम

|| पावन हमर ई मिथिला धाम || 

हनुमंत  एक    बेर  आबि के   देखियो 
पावन      हमरो    मिथिला    धाम   | 
अपन    सासुर     में  बैसल      छथि 
अहाँक      प्रभु      श्री            राम  || 
                              हनुमंत एक बेर ----
  जनम - जनम तप ऋषि -मुनि कयलनी 
नञि           पुरलनी        अभिलाषा  | 
 चहुँ     दिश   सरहोजि  सारि  घेरि कउ 
कयने           छन्हि          तमसा  ||  
                                हनुमंत एक बेर ----
वर     हास - परीहास    कुसुम - कली 
छाओल           ऋतु         मधुमासे  | 
सात    स्वर्ग - अपवर्ग  कतौ   नञि 
एहन           मधुर           उपहासे  || 
                            हनुमंत एक बेर ----
एकहि    इशारे ,    नाचि रहल छथि 
बनि        कय       जेना      गुलाम |
"रमण "   सुनयना सासु  मुदित मन 
शोभा        निरखि          ललाम ||   
                        हनुमंत एक बेर ----

रचित -
रेवती रमन झा "रमण "
मो - 9997313751 




अगहन मास -

 ।। अगहन मास ।।


आयल    अगहन   सेर   पसेरी
मूँसहुँ         बीयरि       धयने।
     जन  बनि हारक मोनमस्त अछि
    लोरिक      तान         उठौने ।।  

भातक दर्शन पुनि पुनि परसन
होइत        कलौ    बेरहटिया ।
भोरे  कनियाँ  कैल   उसनियाँ 
परल      पथारक     पटिया ।।

   फटकि-फटकि खखड़ा मुसहरनी
खयलक      मुरही        चूड़ा ।
नार पुआरक कथा कोन अछि
वड़द    ने     पूछय     गुड़ा ।।

चारु    कात   धमाधम   उठल
जखनहि    उगल     भुरुकवा ।
 साँझक साँझ परल  मुँह  फुफरी
तकरो      मुँह     उलकुटवा ।।

रचयिता
रेवती रमण झा "रमण"
मो - 9997313751 

शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

सामाक गीत

 || सामाक गीत || 


चिठ्ठीया लीखल  बहिनों  भैया केर हे 
आहे भैया डोली दीय ने पठाय  
सामा  खेलय  आयब  हे  || 
चिठ्ठीया  पढ़ल भैया  डोली लेल हे 
आहे भौजी के कहल  बुझाय 
बहिन  आनय  जायब हे  || 
अतबे  बचन सुनि  भोजी भेली हे 
आहे भेली जे सरिसों  के फूल 
कि  भुइयाँ  भेली झामर हे || 
आयल  में  आयल भैया  डोली लय हे 
आहे ताही  चढ़ि  भेलौ  असवार  
नैहर  हम  आयल  हे || 
पूछल  में पूछल  भोजी कहु कुसल हे 
आहे भोजी  लेलनि  लुलुआय 
कहाँ  नन्दो  आयल  हे || 
जूनी  कानू  जूनि  बाजू  भोजी हमर हे 
आहे खेली सामा  सासुर  जायव  
बहुरि  नञि  आयब   हे  || 
सुनलनि में सुनलनि अतबे फल्लाँ भैया हे 
आहे  मारल मे  मारल खसाय 
कि  फल्लाँ  बहिनो  पाहून हे || 

रचनाकार -
रेवती रमण झा "रमण "

गुरुवार, 2 नवंबर 2017

अपनेक समस्त परिवार सदर आमंत्रित छी

५ नवम्बर २०१७ के होयवाला वर-वधु परिचय सम्मेलन मे आबि मिथिलाक मान- सम्मान बढाबी। 
                                जय मिथिल , जय मिथिला  ।





मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

दिल के कियक कठोर भेलौ

।। दिल के कियक कठोर भेलौ ।।


स्वच्छ धवल मुख चारु चन्द्र सँ, अबितहि घर इजोर केलो ।
प्रस्फुटित कलिए कोमलाङ्गी, मन मधुमासक भोर केलौ ।।
सुभग  सिंह  कटि,कंठ सुराही
पाँडरि  पुट अधर अही के अई
मृग नयनी,पिक वयनी सुमधुर
सुगना   नाक   अही   के  अई
अतेक रास गुण देलनि विधाता,दिल के कीयक कठोर भेलौ।
स्वच्छ  धवल मुख चारु चन्द्र सँ, अबितहि घर इजोर केलौ।।
वक्षस्थल  के  भार  लता  पर
लचक लैत,नयि तनिक सहय
रचि सोलह  -श्रृंगार बत्तीसों-
अभरन, नयि  अनुरूप रहय
ताकू पलटि  चारु  चंचल चित,  हम चितवन के चोर भेलौ।
स्वच्छ धवल मुख चारु चन्द्र सँ,अबितहि घर इजोर केलौ।।
प्रीतक - प्राङ्गण  में  अभिनंदन
प्रणय - पत्र    स्वीकार    करू
"रमण"अपन एक दया दृष्टी सँ
आई    स्वप्न     साकार    करू
घोरघटा   बनि वरसू सुंदरी,    हम   जंगल के मोर भेलौ।
स्वच्छ धरल मुख चारु चंद्र सँ,अबितहि घर इजोर केलौ।।


रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"

मो - 9997313751