dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

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गुरुवार, 30 जून 2022

जाने ‘भगवा ध्वज’ को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गुरु क्यों बनाया?

  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कभी व्यक्ति प्रधान को प्राथमिकता नहीं देता है क्योंकि व्यक्ति में कही न कही छल-कपट, लाभ-हानि की प्रवृत्ति होती ही हैं. संघ के संस्थापक परम् पूजनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जब 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर रहे थे तो उनके मन में ये प्रशन उठा था. कुछ स्वयंसेवक ने उन्हें ही गुरु बनने की सलाह भी दे दिया था. लेकिन राष्ट्र के प्रति समर्पित डॉ. केशवराव बलिराम ने भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसके पीछे मूल भाव यह था कि व्यक्ति पतित हो सकता है पर विचार और पावन प्रतीक नहीं। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन गुरु रूप में इसी भगवा ध्वज को नमन करता है।

पर्वों, त्योहारों और संस्कारों की भारतभूमि पर गुरु का परम महत्व माना गया है। गुरु शिष्य की ऊर्जा को पहचानकर उसके संपूर्ण सामर्थ्य को विकसित करने में सहायक होता है। गुरु नश्वर सत्ता का नहीं, चैतन्य विचारों का प्रतिरूप होता है। रा. स्व. संघ के आरम्भ से ही भगवा ध्वज गुरु के रूप में प्रतिष्ठित है।

भारतभूमि के कण-कण में चैतन्य स्पंदन विद्यमान है। पर्वों, त्योहारों और संस्कारों की जीवंत परम्पराएं इसको प्राणवान बनाती हैं। तत्वदर्शी ऋषियों की इस जागृत धरा का ऐसा ही एक पावन पर्व है गुरु पूर्णिमा। हमारे यहां ‘अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं…तस्मै श्री गुरुवे नम:’ कह कर गुरु की अभ्यर्थना एक चिरंतन सत्ता के रूप में की गई है। भारत की सनातन संस्कृति में गुरु को परम भाव माना गया है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता, इसीलिए गुरु को व्यक्ति नहीं अपितु विचार की संज्ञा दी गई है। इसी दिव्य भाव ने हमारे राष्ट्र को जगद्गुरु की पदवी से विभूषित किया। गुरु को नमन का ही पावन पर्व है गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा)।

ज्ञान दीप है सद्गुरु

गुरु’ स्वयं में पूर्ण है और जो खुद पूरा है वही तो दूसरों को पूर्णता का बोध करवा सकता है। हमारे अंतस में संस्कारों का परिशोधन, गुणों का संवर्द्धन एवं दुर्भावनाओं का विनाश करके गुरु हमारे जीवन को सन्मार्ग पर ले जाता है। गुरु कौन व कैसा हो, इस विषय में श्रुति बहुत सुंदर व्याख्या करती है-‘विशारदं ब्रह्मनिष्ठं श्रोत्रियं…’ अर्थात् जो ज्ञानी हो, शब्द ब्रह्म का ज्ञाता हो, आचरण से श्रेष्ठ ब्राह्मण जैसा और ब्रह्म में निवास करने वाला हो तथा अपनी शरण में आये शिष्य को स्वयं के समान सामर्थ्यवान बनाने की क्षमता रखता हो। वही गुरु है। जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य की ‘श्तश्लोकी’ के पहले श्लोक में सद्गुुरु की परिभाषा है-तीनों लोकों में सद्गुरु की उपमा किसी से नहीं दी जा सकती।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध ने सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपने प्रथम पांच शिष्यों को उपदेश दिया था। इसीलिए बौद्ध धर्म के अनुयायी भी पूरी श्रद्धा से गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाते हैं। सिख इतिहास में गुरुओं का विशेष स्थान रहा है। जरूरी नहीं कि किसी देहधारी को ही गुरु माना जाये। मन में सच्ची लगन एवं श्रद्धा हो तो गुरु को किसी भी रूप में पाया जा सकता है। एकलव्य ने मिट्टी की प्रतिमा में गुरु को ढूंढा और महान धनुर्धर बना। दत्तात्रेय महाराज ने 24 गुरु बनाये थे।

भगवा ध्वज है भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक

चाणक्य जैसे गुरु ने चन्द्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाया और समर्थ गुरु रामदास ने छत्रपति शिवाजी के भीतर बर्बर मुस्लिम आक्रमणकारियों से राष्ट्र रक्षा की सामर्थ्य विकसित की। मगर इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि बीती सदी में हमारी गौरवशाली गुरु-शिष्य परंपरा में कई विसंगतियां आ गयीं। इस परिवर्तन को लक्षित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के समय भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसके पीछे मूल भाव यह था कि व्यक्ति पतित हो सकता है पर विचार और पावन प्रतीक नहीं। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन गुरु रूप में इसी भगवा ध्वज को नमन करता है। गुरु पूर्णिमा के दिन संघ के स्वयंसेवक गुरु दक्षिणा के रूप में इसी भगवा ध्वज के समक्ष राष्ट्र के प्रति अपना समर्पण व श्रद्धा निवेदित करते हैं। उल्लेखनीय है कि इस भगवा ध्वज को गुरु की मान्यता यूं ही नहीं मिली है। यह ध्वज तपोमय व ज्ञाननिष्ठ भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक सशक्त व पुरातन प्रतीक है। उगते हुये सूर्य के समान इसका भगवा रंग भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा, पराक्रमी परंपरा एवं विजय भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। संघ ने उसी परम पवित्र भगवा ध्वज को गुरु के प्रतीक रूप में स्वीकार किया है जो कि हजारों वर्षों से राष्ट्र और धर्म का ध्वज था।

गुरु शब्द का महत्व इसके अक्षरों में ही निहित है। देववाणी संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ का अर्थ हटाने वाला। यानी जो अज्ञान के अंधकार से मुक्ति दिलाये वह ही गुरु है। माता-पिता हमारे जीवन के प्रथम गुरु होते हैं। प्राचीनकाल में शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुलों की व्यवस्था थी। आज उनके स्थान पर स्कूल-कॉलेज हैं।

अनुपम धरोहर: गुरु-शिष्य परम्परा

गुरु-शिष्य परम्परा भारतीय संस्कृति की ऐसी अनुपम धरोहर है जिसकी मिसाल दुनियाभर में दी जाती है। यही परम्परा आदिकाल से ज्ञान संपदा का संरक्षण कर उसे श्रुति के रूप में क्रमबद्ध संरक्षित करती आयी है। गुरु-शिष्य के महान संबंधों एवं समर्पण भाव से अपने अहंकार को गलाकर गुरु कृपा प्राप्त करने के तमाम विवरण हमारे शास्त्रों में हैं। कठोपनिषद् में पंचाग्नि विद्या के रूप में व्याख्यायित यम-नचिकेता का पारस्परिक संवाद गुरु-शिष्य परम्परा का विलक्षण उदाहरण है। जरा विचार कीजिए! पिता के अन्याय का विरोध करने पर एक पांच साल के बालक नचिकेता को क्रोध में भरे अहंकारी पिता द्वारा घर से निकाल दिया जाता है। पर वह झुकता नहीं और अपने प्रश्नों की जिज्ञासा शांत करने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के दरवाजे पर जा खड़ा होता है। तीन दिन तक भूखा-प्यासा रहता है। अंतत: यमराज उसकी जिज्ञासा, पात्रता और दृढ़ता को परख कर गुरु रूप में उसे जीवन तत्व का मूल ज्ञान देते हैं। यम-नचिकेता का यह वार्तालाप भारतीय ज्ञान सम्पदा की अमूल्य निधि है। हमारे समक्ष ऐसे अनेक पौराणिक व ऐतिहासिक उदाहरण उपलब्ध हैं जो इस गौरवशाली परम्परा का गुणगान करते हैं। गुरुकृपा शिष्य का परम सौभाग्य है। गुरुकृपा से कायाकल्प के अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं।

बुधवार, 29 जून 2022

भारतीय सेना में मुस्लिम रेजीमेंट क्यों नहीं है

 : आपको जानकर हैरानी होगी कि 1965 तक मुस्लिम रेजीमेंट थी। दो बड़ी घटनाएं हैं जिन्होंने सेना को उन्हें हटाने पर मजबूर कर दिया।

 1. 15/अक्टूबर/1947 को जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पठानों ने भारत पर हमला किया, तो पूरी सोई हुई बहादुर गोरखा कंपनी को अपनी ही बटालियन के साथी मुस्लिम भाई सैनिकों ने मार डाला। कंपनी कमांडर प्रेम सिंह सबसे पहले शिकार बने। 2 गोरखा जेसीओ 30 के साथ अगले दिन मेजर नसरुल्ला खान मुस्लिम सैनिकों को थारोछी किले में ले गए, जहां गैरीसन ने आनंदपूर्वक उन्हें प्राप्त किया। रात के विकास से अनजान और जल्द ही उन पर क्या होने वाला था। रात में, एक भयानक दोहराव वाले प्रदर्शन में सभी गोरखाओं की हत्या कर दी गई थी। उनके कमांडर कप्तान रघुबीर सिंह थापा को "मौत की आग में जला दिया गया था। पीएम नेहरू ने मामले को दबा दिया। यह सब "पाकिस्तान की सैन्य दुर्दशा" पुस्तक में वर्णित है।

 2. पाकिस्तान के साथ 1947 के युद्ध के दौरान नेहरू ने एक और बड़ी बात छिपाई थी कि कई मुसलमानों ने अपने हथियार डाल दिए और भारतीयों से लड़ने के लिए ब्रिटिश प्रमुख जॉन बर्ड के तहत पाकिस्तान में शामिल हो गए, लेकिन बाद के चरण में ब्रिटिश मेजर को निलंबित कर दिया गया। और अगले जहाज पर तुरंत इंग्लैंड ले जाया गया।स्वर्गीय सरदार पटेल इसे सार्वजनिक करना चाहते थे लेकिन गांधी द्वारा ऐसा नहीं करने का आदेश दिया गया था।

 3. 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 30,000 भारतीय सैनिकों की मुस्लिम रेजिमेंट ने न केवल पाकिस्तान के साथ लड़ने से इनकार किया बल्कि उनका समर्थन करने के लिए हथियारों के साथ पाकिस्तान चली गई। इसने भारत को बड़ी मुसीबत में डाल दिया क्योंकि उन्होंने उन पर भरोसा किया। लाल बहादुर शास्त्री को जहर देने से पहले मुस्लिम रेजिमेंट को समाप्त कर दिया।

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शुक्रवार, 17 जून 2022

चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।


 हिन्दू राष्ट्रनिर्माणाय, हिन्दुजनानां एकतायै इदम्।

*सम्राट शांतनु* ने विवाह किया एक *मछवारे की पुत्री सत्यवती* से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।

सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए *भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?*

महाभारत लिखने वाले *वेद व्यास भी मछवारे थे*, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।

*विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे*, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।

*भीम ने वनवासी हिडिम्बा* से विवाह किया।

*श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय* करने वालों के परिवार से थे, 

उनके भाई *बलराम खेती करते थे*, हमेशा हल साथ रखते थे।

*यादव क्षत्रिय* रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्रीकृषण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।

*राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे*।

उनके पुत्र *लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल* में पढ़े जो *वन के वासी थे।

तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।

*वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे*, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।*

प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस *नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे* । 

नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, *बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये*।

उसके बाद *मौर्य वंश* का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत *चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे* और एक *ब्राह्मण चाणक्य ने* उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।

फिर *गुप्त वंश* का राज हुआ, जो कि *घोड़े का अस्तबल चलाते थे* और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।

केवल *पुष्यमित्र शुंग* के 36 साल के राज को छोड़ कर *92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का  रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया*? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।

फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा।

अंत में *मराठों* का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने *गाय चराने वाले गायकवाड़* को गुजरात का राजा बनाया, *चरवाहा जाति के होलकर* को मालवा का राजा बनाया।

*अहिल्या बाई होलकर* खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये। 

*मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे* और *रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद* थे|।

यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।

*मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई* और यहां से *पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह* जैसी चीजें शुरू होती हैं।

*1800-1947 तक अंग्रेजो के शासन* रहा और यहीं से *जातिवाद* शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया। 

अंग्रेज अधिकारी *निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड"* में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।

इन हजारों सालों के इतिहास में *देश में कई विदेशी आये* जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि *मेगास्थनीज* ने इंडिका लिखी, *फाहियान*,  *ह्यू सांग* और *अलबरूनी* जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।

*योगी आदित्यनाथ* जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत  हैं,

*इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्र से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं ।*

*यह पोस्ट ... उन सनातन भाईयों बहनों  को  आपस में जोड़ने में अत्यधिक सहायक ही  सिद्ध होगी जो कि मुगलिया, अंग्रेजी ,  कम्युनिस्टों, नकली  सैक्यलरिज्मो तथाकथित दलित बचाओ जातिवादी सेनाओं , विभाजनकारी तोड़क  संगठनों  और कांग्रेसी षडयंत्र के कारण अपने आपको अलग मानते हैं जिसके हिंदुत्व के और सनातन धर्म के  के महामानवों ,महामनिषियों के  द्वारा  सनातन समाज के लिए  एकता करने के प्रयासों , योजनाओं , गतिविधियों और विजनरी मैघाप्रोजैक्ट्स  में बहुत बड़ी  बाधा उत्पन्न आ रही हैं। जिसके कारण सनातन धर्म अखंड  राष्ट्र बनाने के   लक्ष्य को प्राप्त करने बहुत ही अधिक देरी हो रही है , इसलिए हे समस्त सनातनियों  आप सभी मतभेद , मनमुटावों को भूल कर ,छोड़ कर अपने, सभी सनातनी भाइयों बहनों को भी जोड़ना  है  हम सबको मिलकर एकता के सूत्र में बंध कर के।

*अखंड हिंदू राष्ट्र भारत* 

मंगलवार, 14 जून 2022

इसको कहते हैं "राख के ढेर से महल" खड़ा कर लेना

 *"नेशनल हेराल्ड" केस क्या है आसान शब्दों में जानिए???*

★ नेहरू जी ने नेशनल हेराल्ड नामक अखबार 1930 में शुरू किया *धीरे-धीरे इस अखबार ने 5000 करोड़ रुपए की संपत्ति अर्जित कर ली* आश्चर्य की बात ये है कि इतनी संपत्ति अर्जित करने के बावजूद भी सन् 2000 में यह अखबार घाटे में चला गया *और इस पर 90 करोड़ का कर्जा हो गया*।

*★ "नेशनल हेराल्ड" की तत्कालीन डायरेक्टर्स* सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और मोतीलाल वोरा ने *इस अखबार को यंग इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को बेचने का निर्णय लिया*।

*★ अब मजे की बात जो जानिए* यंग इंडिया के डायरेक्टर्स थे सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, ऑस्कर फर्नांडिस और मोतीलाल वोरा।

★ डील यह थी कि यंग इंडिया,  *नेशनल हेराल्ड के 90 करोड़ के कर्ज को चुकाएगी* और बदले में *5000 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति यंग इंडिया को मिलेगी*।

★ इस डील को फाइनल करने के लिए नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर मोती लाल वोरा ने *"तत्काल" यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा से बात की* क्योंकि वह अकेले ही *दोनों ही कंपनियों के डायरेक्टर्स थे*।

*★ अब यहाँ एक और नया मोड़ आता है* 90 करोड़ का कर्ज चुकाने के लिए *यंग इंडिया ने कांग्रेस पार्टी से 90 करोड़ का लोन माँगा*। 

★ इसके लिये कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग बुलाई जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और  कांग्रेस पार्टी के महासचिव शामिल हुए।

*★ और यह वरिष्ठ लोग कौन थे???*

सोनिया, राहुल, ऑस्कर फर्नांडिस और मोतीलाल वोरा।

★ कांग्रेस पार्टी ने लोन देना स्वीकार कर लिया *और इसको कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने पास भी कर दिया* और *यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा ने ले लिया* और आगे *नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा को दे दिया*।

*★ अभी कुछ और मजा बाकी था >>>*

★ अब कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग और बुलाई जिसमें सोनिया, राहुल, ऑस्कर फर्नांडिस और वोरा साहब सम्मलित हुए। 

★ उन्होंने मिलकर यह तैय किया कि *# नेशनल हेराल्ड ने आजादी की लड़ाई में बहुत सेवा की है* इसलिए उसके ऊपर 90 करोड़ के कर्ज को माफ कर दिया जाए *और इस तरह 90 करोड़ का छोटा सा कर्ज माफ कर दिया गया*।

★ और इस तरह से *# यंग इंडिया जिसमें 36 प्रतिशत शेयर सोनिया और राहुल के हैं* और शेष शेयर ऑस्कर फर्नांडिस और वोरा साहब के हैं *को*, *5000 करोड़ रुपए की संपत्ति मिल गई*।

*★ जिसमें* एक 11 मंजिल बिल्डिंग जो बहादुर शाह जफर मार्ग दिल्ली में और उस बिल्डिंग के कई हिस्सों को अब पासपोर्ट ऑफिस सहित कई ऑफिसेस को किराये पर दे दिया गया है।

*★ इसको कहते हैं "राख के ढेर से महल" खड़ा कर लेना ...*…

*★ राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी इसी* नेशनल हेराल्ड केस में *5000 करोड़ रुपए के घोटाले में जमानत पर है*।

इसे शेयर कर सभी तक पहुंचाये *ताकि इन कांग्रेसियों का फर्जीवाड़ा और चरित्र सभी के सामने आये,

शनिवार, 4 जून 2022

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