dahej mukt mithila

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शनिवार, 14 दिसंबर 2019

मोर ललना परम सुकमार ।। गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

       !! हजमा गीत !!



धीरे धीरे छूरिया चलबि है
नै बौआ के कनबि हैं रे ।
मोर ललना परम सुकमार
तू बौआ के बचबि है रे ।।

बौआक दीदी सुभग वर
लागै सुहनगरा रे ।
हजमा रे ताही संग देबौ दुशाला
कि धोती कुरता तोरे देबौ रे ।।

गाबू हे मंगल गीत कि परम पुनीत
जे शुभ दिन आओल हे ।
ललना रे धन धन बाबा के भाग
कि नेग लुटाओल हे ।।

चारु कात नीपल आँगन
अडिपन ढेयौरल हे ।
ललना रे छाओल विमल बसंत
"रमण" मन नाचल हे ।।

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

#श्री_बद्री_नाथ_राय_अमात्य’क एगो नव काव्य- #मैथिल_के?


#श्री_बद्री_नाथ_राय_अमात्य’क एगो नव काव्य-  
#मैथिल_के? 





माछी मैथिल 
मच्छर मैथिल 
मैथिल मिथिलाक पवन वसात..।  
घास-पात सेहो अछि मैथिल 
काँटक सहित मखानक पात..।। 

चूरा-दही चिन्नियोँ अछि मैथिल 
तरुआ आ तिलकोरक पात। 
अँमट अँचार सेहो अछि मैथिल 
तुलसीफूल गमकौआ भात।। 

पौरुष-पाग मैथिल मिथिलाक 
मैथिल मिथिलाक अन्न जजात। 
चोटी चानन दाढ़ी मैथिल 
मिथिलानीकेँ मिलन-मिलाय।। 

चौरचन मैथिल अदरा मैथिल 
मरुआ मैथिल पान-मखान। 
हमर विवाहक पद्धति मैथिल 
विद्यापति केर गीतक तान।। 

लगनी मैथिल झिझिआ मैथिल 
मैथिल मिथिलाक कन्यादान। 
बाट चलैत बटगवनी मैथिल 
मैथिल उगल कोजगरा चान।। 

मुङ्गरी माछक महँको मैथिल 
मैथिल हमर बलचनमा।   
ललचनमा सेहो अछि मैथिल  
मैथिल हमर ललनामाँ।। 

धनिकलाल मण्डलक मिथिला 
मिथिला अछि सलहेसक। 
सभसँ सुन्दर, रसगर 
मीठगर भाषा हमरे देशक।। 

संस्कार संस्कृति मैथिल 
मैथिल हमर प्रकृति। 
हमर रजोखैर पोखैर मैथिल 
हमर महीपक कृति।। 

माछी मैथिल 
मच्छर मैथिल 
मैथिल मिथिलाक पवन वसात..।  
घास-पात सेहो अछि मैथिल 
काँटक सहित मखानक पात..।।  

© बद्री नाथ राय ‘अमात्य’ 
ग्राम+पोस्ट : करमौली 
भाया : कलुआही 
जिला : मधुबनी (बिहार) 
मो. ७६३१६३८१८५






                   


गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

चोर-उचक्का मुखिया भेल ।।। रचनाकार - बद्रीनाथ राय

 


       #कवि_बद्री_नाथ_राय_अमात्य


हेहर, थेथर, आँकड़, पाथर
चोर-उचक्का मुखिया भेल
सुगरक खूरकेँ पूजा होइए
कुकुरक मुँह गमकौआ तेल।

कनहा कुत्ता प्रतिनीधि अछि
गिद्ध बिलाइ विचारक
हरियर-हरियर फसल चरैए
साँढ़ समाज सुधारक।

ने पौरुष आ ने पग पथपर
राजनीति अछि स्तर हीन
सत्ता सुन्दरी विलासितामे
भाँग खा सुतल अछि नीन।

सोलह सिंगार कुतिया मुख मण्डल
आँखिमे काजर लाली ठोर
अंग प्रदर्शन करैत चलैए
ऐंठ नगरमे पहीरि पटोर।

साँढ़ पहिरने खादी कुर्ता
कुम्भकरण सन ठेकैर रहल अछि
जिन्दा पर अधिकार ओकर छै
मुर्दा खाकऽ अकैर रहल अछि।

कौआ-मेना शिक्षक भेल अछि
गद्ध सियार अधिकारी
शिक्षा क्षेत्रकेँ चरलक सभटा
भ्रष्ट साँढ़ सरकारी।

अर्थेटा सँ छैन अपेक्षा
कहबै छैथ छैथ अध्यापक
जान अधुरा बॉंटि रहल छैथ
नहि विचार छैन व्यापक।

चोटी चानव हकन कनैए
दाढ़ी बैसल कोरामे
राम रहिमक राजनीति अछि
लागल लोक निहोरामे।

मुक्ताचारी गगन विहारी
वाहन व्योम बिहारमे
भ्रष्ट शिरोमणि ऊँच्चासनपर
बैसल अछि सरकारमे।।

जाति धर्म और भाषा क्षेत्रक
जन-जनपर अधिकार जमौने
कारण एतबे हम मूर्ख छी
प्रतिनीधि परिवेश घिनौने।

प्रतिनिधि पतित बनि बैसल
आँखिमे हुनका मोतियाबिन्द
नैतिकताकेँ बेचि खेने छैथ
सुतल छैथ कुम्भकर्णक नीन।

चौसठ आवरण अंग प्रदर्शन
विषवला सन बनि घुमैए
प्रणय घड़ीमे प्रणय निमंत्रण
कुत्ताकेँ ललकारैत घुमैए।

मन्दिर-मस्जिद केर झगड़ामे
विद्या-वैभव भेल समाप्त
भ्रष्टाचारक मेघ लगैए
सगरो अछि अन्हारे व्याप्त।

अन्हरिया केर जन्मल बालक
अन्धकारमे करैए खेल
अन्हरियाकेँ पूजा होइए
बिनु बाती दीपक ओ तेल।

अर्थप्रतिष्ठित अर्थक भूखल
पौरुषकेँ ललकार दैत अछि
हम यदि किछु बाजए चाही
नहि बाजक अधिकार दैत अछि।

जनम-जनमक भूखल-प्यासल
प्रतिनीधि और पंच बनैए
नंगा ओ भीखमंगा मिलिकऽ
बाढ़िमे व्योम बिहार करैए।

हमर घर अन्हारक राजमे
अछि इजोतक आशा
कहिया देखब पूर्ण चन्द्रमा
एतबे अछि अभिलाषा।

 
संपर्क  : ग्राम+पोस्ट- करमौली, भया : कलुआह, जिला- मधुबनी (बिहार)

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

हजमाक गीत ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

         
                                !! हजमाक गीत !!

   

                             कडरिक बीर सन पातर
                             कुसुम रंगि तोरे देबौ रे ।
                             हजमा बौआ के काटै नामी केस
                             पीयर धोती तोरे देबौ रे ।।

                             हजमा रे चिन्ह क लीहैं रे
                             गोरे - गोरे कनियाँ लीहैं रे

                             हजमा रे कमलक फूल सन मामी
                             बौआ के सबटा तोरे देबौ रे ।। कडरिक....

                              मधुरे  भोजन  देबौ  रे
                              भरि भरि थारी देबौ रे

                               हजमा रे व्यंजन तरि तिलकोर
                               पडोरे तरि तोरे देबौ रे ।।  कडरिक....

                              आँगन नीपि ढेयोरि अडिपन
                               मंगल गाओल हे

                               "रमण" हे युग युग जीबू मोर लाल
                                बधाई सब तोरे देबौ रे ।।  कडरिक.....

                                     रचनाकार
                             रेवती रमण झा "रमण"



शनिवार, 7 दिसंबर 2019

वर परिछन ।। गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

                              
                     !! वर परिछन !!
    
                             

   चलू आइ परिछन , वर अयला अली ।
   श्याम सुन्दर के नयना निरेखू भली ।।

   अधर  विम्ब लाली कमल के  कली ।
   वर पयलौ धिया मोर जेहने छली ।।

   गे डनियाँ योगिनियाँ योगिनियाँ सम्हारै टोना
   बिनु हँकारे के अयली हम बाजू कोना ।।

   राति अनुपम सखी चान्द देखू भली ।
   आजु मिथिलानी मिथिला "रमण" कय गेली ।।


                        गीतकार

        रेवती रमण झा "रमण"

सोमवार, 2 दिसंबर 2019

Mithila - Maithili Ke samasya

Manoj shreepati  -                                                                                           मिथिला में सबसे नीक लागे ये "विरोध" के स्वर ।
कखनों मैथिली मंच पर 'भोजपुरी' के विरोध ते , कखनो 'सिनेमा में लालटेन' किये जरल , तकर विरोध । कखनो 'सिनेमा में मैथिली नायिका' किए नहि, तकर विरोध ,ते कखनो हीरो के चचेरा भाई के 'भाषा' पर विरोध । बात ते एतेक तक कहल जायत अछि जे सिनेमा के कहानी में दहेज , विधवा विवाह , किये देखायल जायत अछि , तकर विरोध ।
कखनो कोनो गायक - गायिका के विरोध, ते कखनो नायक नायिका के विरोध ।
कखनो सहरसा से ते, कखनो बेगूसराय से ते कखनो दरभंगा से आवाज अबैत रहे ये जे मिथिला मंच पर, मिथिला उत्सव में या dj पर भोजपुरी किए ?
हम अहं जनता के पसन्द के नही रोकि सके छि । जनता अगर भोजपुरी सुने चाहे छैथ ते अपने किछ ने कय सके छि । अपने कतबो ठीकेदारी कय लियो किछ ने होयत !
सुधार हमरा अहं में करे परत । मिथिला में अधिकतर गायक गायिका कोनो एक टा या दु टा गीत से फेमस छैथ ।
हम करीब 3 साल से मैथिली मंच के प्रोग्राम सोशल मीडिया या सीधा देखैत रहैत छि । बस ओतबे टा गीत # ब्राह्मण बाबू यो.... मंजर में आबि या नही आबि टिकला में जरूर आबि .... कोना के टुटलो मोती के हार .... छोड़ु छोड़ु ने सैया भोर भय गेले .....
मंच पर उदघोषक सब से भी एके रंग , एके तरह के दोहा , खिस्सा पिहानी सुनाय के मिले ये ।
लोकतंत्र में विरोध जरूरी छैक , मुदा हमर विचार वर्तमान गीत संगीत पर कनि अलग अछि ।
पहिलुक गप जे स्थानीय कलाकार के मंच या कोनो भी विधा में, अगर ओ कैपेबल छैथ, ते जरूर जगह मिलबाक चाही ।
दोसर गप जे मंच या विषय के अपने बान्हि के नही रखियो । जनता के पसंद नापसंद के नज़रअंदाज़ नहि करियो ।
बस हमरा अहं के एतबे टा करबाक अछि जे मैथिली में किछ एहेन चीज दी , जे दर्शक या श्रोता आन चीज सुनबे बन्द करि देथ ।
मैथिली में नव प्रयोग बहुत कम भय रहल अछि । ई बात सिर्फ संगीत आ सिनेमा में ही नही छैक , सब विधा में छैक ।
मिथिला मैथिली में हमरा अहं के किछ मौलिक काज करे परत । सफलता या असफलता के चिंता से परे भय के लगातार प्रयास करे के आवश्यकता छे । दर्शक आ श्रोता के तरफ बारीकी से देखय परत ।
अध्ययन जरूरी छैक ।
जय जानकी ।