|| यावत यौवति तावत मान ||
हे जग सुन्दरि कीयक गुमान ।
यावत यौवति तावत मान ।।
काँटक घात भ्रमर सह पीर ।
भल नहि तुव भल तोहि शरीर ।।
जग स्वारथ् चित रहित विवेक ।
जे भल लाज राख नहि टेक ।।
पवन परस सुख उमरल गात ।
एक दिन कैल विहूनहि पात ।।
जखनहि कुसुम परागक छूछ ।
भल अनभल जग कियो नहि पूछ ।।
पहिलुक मीठ अंत सब तीत ।
स्वारथ पावि " रमण " सं प्रित ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें