dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

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शुक्रवार, 28 जून 2019

EE SIKHU MITHILA MAITHILÎ HETU



🙏मैथिली मे फकरा – कहावत केर कमी नहि। अहाँ सेहो एहि संकलन मे अपना तरफ सँ जोड़ि सकैत छि। आउ अपन मीठ भाषा मैथिली केर समृद्धि लेल आरो एहेन महत्वपूर्ण कहनी सब केँ संकलन करी।
१. अनेर-धुनेर के राम रखवार😃😃
२. अपना लेल लल, गोइठा बीछय चल🙂🙂
३. अन्हा गांव मे कन्हा राजा😎🤓
४. अनकर धन पाबी त अस्सी मौन तौलाबि😂😂
५. ओझा लेखे गाम बताह, गामक लेखे ओझा बताह😝😝😝😝
६. अघायल बक के पोठी तीत🐟🐟
७. कनियाँ बरक झगड़ा,👊👊 पंच भेल लबरा🙃🙃
८. कोढिया उठला त भैर घर तमला⛏⛏
९. खस्सी के जान जाय🔪🔪, खेबैया के स्वादे नय😋
१०. खीरा खा क पेनी तीत😉😉
११. घर आंगन भौजी के छलछल करै ननदो😅😅
१२. माय करै कुटान-पीसान🙍, बेटा कें नाम दुर्गादत्त😎😎
१३. चलयनय आबय त अंगना टेड़🏃🏃
१४. करनी देखियौन मरनी बेर😞😞
१५. चोरक मुंह चान सन🌝🌝🌝
१६. चालनि दूसलैन सूप के जिनका सहस्त्र टा छेद😜😜😜
१७. जखन नंगटे नहायब.😒 तय गाड़ब की😠😠
१८. जिदगर कनियां के भैंसुर लोकनिया😬😬😬😬😬
१९. पेट बिगेराय मुरही घर बिगारेय बुरही😳😳😳
२०. भोज नै भात, हर हर गीत🎼
२१. राजा दुःखी प्रजा दुःखी,जोगी के दुःख दूना😏😟😭
२२. पहिरने ओढने कनियाँ-वर, निपने-पोतने आंगन-घर😂😂
२३. तीन तिरहुतिया तेरह पाक, ककरो चुड़ा दही ककरो भात😆😆
२४. नर न झर पेटपफूला दिओर😂😂
२५. भुसकौल विद्यार्थी के गत्ता मोट🤓
२६. सरल गाय बाभन के दान😏😏
२७. सोनरा के सेवने कान दूनू सोन, बनिया के सेवने छजल भरि नून
२८. हरबरी बियाह, कनपट्टी सेनुर😂😂
२९. बहिरा नाचे अपने ताले💃
३०. हर बहय से खर खाय, बकरी खाय अचार🦄
३१. सैंया सँ छुटटी नहि, दिओर मांगे चुम्मा☺☺
३२. सब सखी झुमैर खेलै, लूल्ही कहैय हमहूं😁😁
३३. बहैय बरद आ हकमैय कुक्कुर😤
३४. धोबी के कुकुर न घर के न घाट कें🐺
३५. बियाह सं विध् भारी💅👄
३६. जेकर बड़की जिलाही तकर छोटकी भारे लागल खाय😂😂
३७. सरलौ भुन्ना त रहू के दुन्ना🐟🐋
२८. सस्ता गहूम, घर घर पूजा🙏🙏🙏
३९. माय मरइहैं ध्यिा लेल, ध्यिा मरिहहै ब्याहता सांय ले😨😨
४०. ककरो बोर-बोरे नून , ककरो रोटियो पर आपफत😁😁
४१. बाप छल पेट में, पूत गेल गया😳
४२. बाप जनमल अनड़ियाँ मे, बेटा नाम पावर हाउस😂😂
४३. बाप के नाम लत्ती फत्ती, बेटा के नाम कदीमा😉😉😉🎃🎃
४४. भुखले मुन परे कोबरक खिड़🙊🙊
४५. सभ धन बाइस पसेरी🙃
४६. नय मारि माछ ने, नय उपछी खत्ता😀😀😀
४७. मूर्खक लाठी, बिच्चे कपार😖😖
४८. पैसा नय कौड़ी आ बीच बजार मे दौड़ा-दौड़ी🏃🏃
४९. जुड़ै मियाँ के माँड नैय, माँगय मियाँ ताड़ी😝😝
५०. हम चराबी दिल्ली दिल्ली आ हमरा चरबय घरक बिल्ली🐱🐱
मैथिली भाषा ओना तऽ ७ करोड़ लोकक भाषा थीक, लेकिन अफसोस जे एतेक समृद्ध भाषाक भाषाभाषी हमरा लोकनि अपनहि भाषा केँ छोड़ि अनकर भाषा मे बेसी मस्त होइत छी। तैँ आउ, शपथ ली जे अपना भाषाक लेल एकटा काज जरुर करब।।

मंगलवार, 25 जून 2019

गजल ।। मेरा चाँद

                                "गजल"
                        ||   मेरा चाँद  ||

      एक चाँद उतरा है
      जो  मेरे  सामने ।
      मेरे लिये भेजा है
      मेरे राम ने ।।   एक चाँद.....

      जिसने सवाँरा हे मेरी तकदीर को
      जो तोर के आई सभी जंजीर को

      क्या करिश्मा कर दिया
      मेरे राम ने ।।  एक चाँद.....

      लड़की है , या तू जन्नत की हूर है
      स्वर्ग किस्मत से नही अब दूर है

      मन चाहा मुझे दे दिया
      मेरे राम ने ।।   एक चाँद.....

      अब किसे देखूँ , देखा जब तुझे
      ऐसी  सूरत मिलगई है अब  मुझे

      दो दिल का संगम 
      हुआ मेरे सामने ।।  एक चाँद....

             गीतकार
        रेवती रमण झा "रमण"
                 

बुधवार, 19 जून 2019

हे शंकर ! गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

                             || नचारी ||
              हे शंकर !  आयल  शरण  हम  तोर
              कतेक करूण हम विनय सुनाओल
              करि - करि आहाँक निहोर ।।  हे शंकर....

              बालापन   नित   खेलि   गमाओल
              यौवन साँझहि सोय ।
              आयल    बुढ़ापा     निन्दन    टूटय
              यथपि भय गेल भोर ।।     हे शंकर....
          
              घर  अछि  दूर  कठिन  पथ  आगाँ
              स्थूल भेल शरीर ।
              लुकझुक  किरण   संग  नहि  पाथे
              भूखक ज्वाला जोर ।।     हे शंकर....

              कठिन - कठिन दुःख कतेक के भोला
              कयलहुँ पल में त्राण ।
             "रमण" शरण  में  आबि  चुकल अछि
               छोरत नाहि पछोर ।।      हे शंकर....

                                  गीतकार
                         रेवती रमण झा "रमण"
                                       

|| केहन काज करै छी || गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

                     || केहन काज करै छी ||

                                        

             
                   जन्म द क करै छी जवान बाबू
                   हमर बेचैछी देहक ई चाम बाबू
                   केहन काज करै छी
                    हम त लाजे मरै छी

                   आहाँ त लेब बाबू नमरी हजारी
                   माय के थारी लोटा पौती पेटारी

                  होयत हमर त जिनगी जियान बाबू ।।
                                                 केहन काज.....
                  दहेजक   बोझ   तर   बेटी   कनैया
                  बरागत   कसैया     सबटा   जनैया

                  बन्द  करियौ बेटा  के  दुकान  बाबू
                                                केहन काज.....
                  सारि  सरहोजि  सब  मारैया  ताना
                  आहाँ  छी  बाबू   टका  के  दीवाना

                   कन्यागत  के  छुटल  परान बाबू ।।
                                               केहन काज.....
                   करिया पाथर सनक अछि काया
                 "रमण" मन मंदिर में बैसल  माया

                   जिनगी के कटिगेल चलान बाबू ।।
                                              केहन काज.....

                                  गीतकार
                        रेवती रमण झा "रमण"
                                       

बुधवार, 12 जून 2019

समदाउन ।। गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

                            || समदाउन ||
                                       

       
             कथी केर फूल कुम्हलाय गेल गै बहिना
             कौने जल गेल सुखाय ।
             कौने  वन  कुहुकई  कारी रे  कोयलिया
             कौने दाई खसली झमाय ।।

             कमलक फूल  कुम्हलाय गेल गै बहिना
             सरोवर  गेल   सुखाय ।
             विजुवन कुहुकइ कारी रे कोयलिया
             सीता दाई खसली झमाय ।।

             सीता के सुरति देखि विकल गे बहिना
             आइ सीता भेली विरान ।
             विधि के विवश भय सोचथि जनक जी
             बेटी धन होइत अछि आन ।।

             आबि गेल डोलिया कि चारु रे कहरिया
             चारु सखी देल अरियाति ।
             सुन  भेल  "रमण"  हे  जनक  नगरिया
             चली गेली सीता ससुरारि ।।

                                  गीतकार
                         रेवती रमण झा "रमण"
                                       



   

सोमवार, 10 जून 2019


उत्तरदायी हुए निरुत्तर, क्या ये नैतिक हार नही है।
थाना चौकी सुनें न क्योंकि, ढंग का चौकीदार नही है ।
अपराधी को बेदम कर दे, क्यों ऐसा दमदार नही है ।
पीतल ही पीतल पहरा दे, ऐसा पहरेदार नही है ।
राम राज्य है तब भी राघव, दो की दूनी चार नही है ।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
अब ना हंसी ठिठोली चलती।
खूंखारों की टोली चलती।
सहनशीलता गई मायके,
बात-बात पर गोली चलती।
माफी लिए माफिया घूमें उन में हाहाकार नहीं है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
खुलेआम दहशतगर्दी है।
चुप लाचार विवश वर्दी है।
शांतिदूत को खुश रखने हित,
ठीक नहीं यह नामर्दी है।
जितनी पुलिस दिखा करती है, उतनी भी लाचार नहीं है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
आखिर में मजबूरी क्या है।
ट्विंकल तक की दूरी क्या है।
पूरा  देश  प्रतीक्षा रत  है,
सबसे प्रथम जरूरी क्या है।
योगी तेरे भंडारण में क्या कोई हथियार नहीं है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
अब ना पोषण भरण करो तुम।
और न तुष्टीकरण करो तुम।
चीन रूस जापान तथा
इसराइल का अनुसरण करो तुम।
जो धर्मांध नीच हैं उनको रहने का हकदार नही है।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
कैसे कह दूँ भाई है ये।
सच में बडे कसाई हैं ये।
हद से हद शायद दस फीसद,
बापू के अनुयाई हैं ये ।
जो जिन्ना को बाप मानता, क्या कह दूँ गद्दार नही है ।
कभी कभी ऐसा लगता है सूबे में सरकार नहीं है।
मनोज मिश्रा ' कप्तान '

गुरुवार, 6 जून 2019

TRUE FACT



जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई,
एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।
दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।
जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।
टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए।
" ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।"
कह टीसी आगे चला गया।
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।
सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे।
बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे।
लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे।
" साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।"
टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी।देश में बुलेट ट्रेन जो आ रही है।एक लाख करोड़ का खर्च है।कहाँ से आयेगा इतना पैसा ? रसीद बना-बनाकर ही तो जमा करना है।ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।"
इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो।
पास ही खड़े दो यात्री बतिया रहे थे।
" ये बुलेट ट्रेन क्या बला है ? "
" बला नहीं जादू है जादू।बिना पासपोर्ट के जापान की सैर। जमीन पर चलने वाला हवाई जहाज है, और इसका किराया भी हबाई सफ़र के बराबर होगा, बिना रिजर्वेशन उसे देख भी लो तो चालान हो जाएगा। एक लाख करोड़ का प्रोजेक्ट है। राजा हरिश्चंद्र को भी ठेका मिले तो बिना एक पैसा खाये खाते में करोड़ों जमा हो जाए।
सुना है, "अच्छे दिन " इसी ट्रेन में बैठकर आनेवाले हैं। "
उनकी इन बातों पर आसपास के लोग मजा ले रहे थे। मगर वे दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे
ऐसे बैठे थे ,मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके शोक में जा रहे हो।
कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए?
क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा?
नहीं-नहीं।
आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।"
पत्नी के कहा।
" मगर मुन्ने के कम करना....""
और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "
कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-
" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-"
इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।"
उसकी आँख फिर छलक पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें
मोदीजी को वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत।
(विनम्र प्रार्थना है जो भी इस कहानी को पढ़ चूका है उसे इस घटना से शायद ही इत्तिफ़ाक़ हो पर अगर ये कहानी शेयर करे ,कॉपी पेस्ट करे ,पर रुकने न दे शायद रेल मंत्रालय जनरल बोगी की भी परिस्थितियों को समझ सके। उसमे सफर करने वाला एक गरीब तबका है जिसका शोषण चिर कालीन से होता आया है।)

मंगलवार, 4 जून 2019

|| इतना निष्ठुर बनो ना माता || गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

                    ||  इतना निष्ठुर बनो ना माता ||
                                   
                                        
             
                                
   इतनी  परीक्षा  मत  लो  अम्बे , और  नही  सहपाउँगा ।
   तुम भी मुझसे मुख मोड़ोगी,तो मै किस दर पे जाऊँगा ।

   इतना   निष्ठुर  बनो   न   माता , एक   है   तेरी  आश
   ना  तो  तुझसे  उठ  जाएगा  ,   भक्तो  का  विशवास

   गम खाकर हर अश्क पिया अब और नही पी पाउँगा ।।
                                                                  इतनी.....
   सच  का  साथी  कोई  नही  है  बसी  झूठ  की  नगरी
   कब  मारोगी  महिषासुर   को   भरी  पाप  की  गगड़ी

   तुम्ही निन्द से ना जागोगी  ,  तो मै किसे जगाऊँगा ।।
                                                               इतनी......
   कितना  निर्मल  कितना  पावन  माँ  बेटे  का  नाता
   पूत  कपूत  सुना  है  जग  में  ,  होती  नही  कुमाता

   निर्मोही बन जाओगी तुम , दुखड़ा किसे सुनाऊँगा ।।
                                                                इतनी.....
   खडग शूल खप्पर धारी  ,  कर शंखचक्र और ढाल
   आदि  शक्ति  अवतारी  अम्बे  , तेरा  रूप  विशाल 

   श्रिष्टि सजानेवाली मै क्या   ,  तेरा रूप सजाऊँगा
                                                               इतनी.....
   पुष्पांजलि स्वीकार करो माँ,अर्थ विहीन है जीवन
  न्यौछावर कर दिया "रमण",तुम पर अपना जीवन

  भजन भाव का मुखड़ा निस दिन,मैया तुम्हे सुनाऊँगा ।।
                                                               इतनी......

                                    गीतकार
                           रेवती रमण झा "रमण"
                                         



      

|| हनुमन्त पच्चीसी || रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                       || हनुमन्त पच्चीसी ||
                                      

 || दोहा || 
                         संकट   शोक   निकदनहि  ,  दुष्ट  दलन    हनुमान ।
 अविलम्बही    दुख दूर   करू ,बीच  भँवर  में  प्राण ।।
 तिल भरि राम प्रताप बल   रचल कुमति   गति काल ।
 हुलसि कहल हनुमंत चित   तकरहि   चतरल  गाल ।।

|| चौपाई ||
  जन्मे   रावणक    चालि   उदंड ।
  यतन कुटिल  मति  छल प्रचंड ।।
  बसल जकर चित नित पर नारि ।
  जत शिव पुजल,गेल जग हारि ।।
 रंग   -  विरंग    चारु    परकोट ।
  गरिमा   राजमहल   केर  छोट ।।
 बचन   कठोरे  कहल   भवानी ।
               लीखल भाल वृथा नञि  वाणी ।।              
रेखा लखन  जखन सिय पार ।
     वर  विपदा   केर  टूटल  पहार ।।   
  तीरे  तरकस  वर  धनुषही हाथ ।
रने  -  वने   व्याकुल   रघुनाथ ।।
   मन मदान्ध मति गति सूचि राख ।
      नत सीतेहि , अनुचित जुनि भाष ।।
   झामरे  - झुर  नयन  जल  - धार ।
     रचल केहन  विधि  सीय लिलार ।।
    मम  जीवनहि   हे   नाथ  अजूर ।
    नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ।।
  पवन  पूत  कपि  नाथे  गोहारि ।
    तोरी  बंदि    लंका    पगु  धारि ।।
   रचलक   जेहन  ओहन   कपार ।
   दसमुख  जीवन    भेल  बेकार ।।
   रचि  चतुरानन   सभे  अनुकूल ।
    भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ।।
   गालक  जोरगर  करमक  छोट ।
       विपत्ति काल संग नञि एकगोट ।।
   हाय  -  हाय  लंका  जरी  गेल ।
     रहलइ  वैह , जे  धरमक  भेल ।।
     राम  अमोघ  वाण  कपि आबू ।
       भँवर बीच  अछि  प्राण बचाबू ।।
      लीला अगम  अतुल  बलकारी ।
       स्वर्ग  शैल  तन  सुत त्रिपुरारी ।।
      बाल चपल गति गगन बिहारी ।
      ग्रसल भानु मुख सोंटा धारी ।।
      आनल बुटी  लखन देल प्राण ।
        राम ऋणी  छथि  यौ हनुमान ।।
       जाय पताल  मारि अहिरावण ।
        लयलौ राम लखनमन भावन ।।
        जीवन लीला धरम धाम अछि ।
            भक्त्त शिरोमणि देखू नाम अछि ।।
        करू  दूर  दुख  दारुण  मोचन ।
            सतत दरश लय व्याकुल लोचन ।।
       कते  गुहारल  यौ  सुत  शंकर ।
          धर्म ध्वजा कपि काल भयंकर ।।
          जतय अहाँ मंगल जेहि साजल ।
         नामक चहुँदिश  डंका बाजल ।।
         ज्ञानक  सागर  गुण  के आगर ।
          युग  चारि  यश  नाम  उजागर ।।
         "रमण" चरण गहि कहल पुकारि ।
          रूद्र  एकादश   सुत  त्रिपुरारि ।।

    || दोहा ||
रचल  सिन्दूर  सुहाग  सीय ,  मनहि  जानि   कपि  अंग ।
नगर  ढिढोरा    पीटी  केलौ , जीवन     नाथक     संग ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"



सोमवार, 3 जून 2019

वट सावित्री व्रत और कथा

   वट सावित्री व्रत और कथा 

ट सावित्री व्रत सौभाग्य और संतान सुख देने वाला व्रत । इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न - भिन्न मत हैं. स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान बताया गया है तो वहीं निर्णामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है । वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पुराणों में पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी एक विशेष महत्व बताया गया है. वट में ब्रह्मा, विष्णु , महेश तीनों का ही वास है । इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से प्रत्येक मनोकामना पूरी होती है।
           दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध का भी प्रतीक माना गया है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। इस दिन बरगद, वट या पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है । वट वृक्ष के नीचे की मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यम की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करनी चाहिये । पूजा के लिये जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फ़ूल तथा धूप होनी चाहिये। बट की जड़ में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करना चाहिये। कच्चे सूत को हाथ में लेकर वट वृक्ष की बारह परिक्रमा करनी चाहिये। हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाएं और सूत तने पर लपेटती जाएं। इसके पश्चात सत्यवान सावित्री की कथा सुननी चाहिये, जब पूजा समाप्त हो जाये तब ग्यारह चने व वृक्ष की बौड़ी (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलना चाहिये।  
      ऐसा करने का उद्देश्य यह है कि सत्यवान जब तक मरणावस्था में थे तब तक सावित्री को अपनी कोई सुध नहीं थी लेकिन जैसे ही यमराज ने सत्यवान को प्राण दिए, उस समय सत्यवान को पानी पिलाकर सावित्री ने स्वयं वट वृक्ष की बौंडी खाकर पानी पिया था। कहा जाता है सत्यवान अल्पायु थे । नारद को सत्यवान के अल्पायु और मृत्यु का समय ज्ञात था, इसलिए उन्होनें सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी परन्तु सावित्री मन से सत्यवान को पति मान चुकी थी, इसलिए उन्होने सत्यवान से विवाह रचाया।
      विवाह के कुछ दिनों पश्चात सत्यवान की मृत्यु हो गई, और यमराज सत्यवान के प्राण ले चल दिए। ऐसा देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल दी। पीछे आती हुई सावित्री को देखकर यमराज ने उसे लौट जाने का आदेश दिया ।
सावित्री बोली - जहां पति है वहीं पत्नी का रहना धर्म है, यही धर्म है और यही मर्यादा, पति को लिये बिना वह नही जायेगी । सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न हो यमराज ने सावित्री के पति के प्राणों को अपने पाश से मुक्त कर दिया । सावित्री ने यमराज से अपने मृत पति को पुन: जीवित करने का वरदान एक वट वृक्ष के ही नीचे पाया था। तभी से महिलाएं अपने पति के जीवन और अक्षत सौभाग्य के लिए वट सावित्री का व्रत करने लगीं, और तभी से इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है।

एहि पूजा के स्वीकार करू ।। गीतकार - रेवती रमण झा " रमण "

               ||  वरसाइत ||
                                    



                     फल- फूल  लेने  छी  ठाढ़ पिया

                     एहि   पूजा  के    स्वीकार  करू
                     भरि  साल  डाँट  फटकार  देलौ
                     हम सदिखन  दुरव्यवहार केलौ
                     प्राणेश्वर      हे      प्राण     नाथ
                     तन  समर्पित   ,   मन  समर्पित
                     आई    न्यौछावर      केने    छी
                     पावनि साल भरक अछि पीया
                     मूँह   कीयक     लटकयने   छी


                                   रचनाकार

                          रेवती रमण झा "रमण"