dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

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मंगलवार, 31 जनवरी 2017

सरस्वती वन्दना

सरस्वती वन्दना 

विद्याक     देवी ,   हमर  अछि प्रणाम  । 
 अहाँ  तेजि  जैयो  नञि  मिथिलाक धाम ॥ 
               अहाँ  तेजि --- विद्याक  देवी-
  गंगा  आ  कोशी , कमला गंडक बहैत अई  ।
  घर - घर  में  वेद   गीता  पोथी  रहैत अइ  ॥  
जतयक   बेटी  सीता   ने  ने अयली राम  । 
           अहाँ  तेजि --- विद्याक  देवी- --
चिनुआर  पर  गोसाउनिक  पीरी  रहैत अई । 
जिनकर अपार महिमा  घर - घर गबैत अई ॥ 
गोवर   सँ   नीपल  , आ  अड़िपन ललाम  । 
                   अहाँ  तेजि --- विद्याक  देवी- -
भोजन आ  भेष  वाणी  ,अमृत जतयक अई ।
सेबा अतिथि स्वागत ,स्वीकृति  जतयक अई ॥
जतय   आबि   भोला   बनल   छथि  गुलाम  ।
                 अहाँ  तेजि --- विद्याक  देवी- -
बिसरि  गेल   मिथिला   में  एकबेर  आऊ ।
"रमण " मैथिलीक  गीत  वीण  पर बजाऊ ॥
एकबेर    जगमग   अपन  करू   नाम  ।
                    अहाँ  तेजि --- विद्याक  देवी-
रचना कार - 
रेवती रमण झा " रमण "
ग्राम - पोस्ट - जोगियारा पतोर
आनन्दपुर , दरभंगा  ,मिथिला
मो 09997313751

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

ई शीश धरब बलिदान रे


॥  ई शीश  धरब  बलिदान  रे  ॥ 
परम  स्वतन्त्र  हमर भारत अछि
हक़  अछि    एक    समान   रे  ।
हम   सब  निज  अधिकार   हेतु
 ई  शीश    धरब    बलिदान   रे  ॥
                हम   सब --- ई  शीश --

लहरय     झंड़ा   , आइ    तिरंगा
पागल        पवन     - पतंग   रे ।
केसरिया    बल  , बांग    हरित
अरु  स्वेत   सत्य  केर   रंग  रे ॥
माँ  भारत  के  चरण  पखारल
गंगा     केर    तूफान      रे  ।
                  हम   सब --- ई  शीश --

भारत   माता   केर    सपूतक  
सपना    थिक   साकार    रे  ।
देश    भक्त वर  वीर सुभाषक
कीर्ति     विदित    संसार   रे  ॥
 गाँधी    लकुटि   लगोंटी   धारी
देश      रत्न     भगवन      रे ।
        हम  सब --- ई शीश -- ॥

समर -  सिन्धु    तूफान मध्य
सँ  किस्ती  आनल  जीत  रे  ।
"रमण " देश  के बिलटायब  नञि
भारत    भूमि सँ    प्रीत    रे  ॥
भारत    हमर , हम   छी  वाशी
दखल     करात   के   आन   रे  ।
   हम   सब --- ई  शीश --

रचना कार - 
रेवती रमण झा " रमण "
ग्राम - पोस्ट - जोगियारा पतोर
आनन्दपुर , दरभंगा  ,मिथिला
मो 09997313751

॥   देश के  जँ  बचायब  पिया  ॥


सीथक सिन्दूर हमर , होयत  तखनेटा अमर
देश के जँ बचायब  पिया , उछलि  गँगा  सन जायत हीया

स्वर्ण   पट   पर   सुभाषक  अमर जिंदगी
गाँधी   नेहरू   आ  वीर   कुँवर   जिंदगी ,

धन्य   माइयो  ओकर , पुत्र  वीरो जकर
धन्य  पत्नी ,  जकर  हो पिया  ॥ उछलि  गँगा --

देश  प्रेमी  सँ  मिलिते  रहब  सब  दिन
कर्म भूमि पर  खिलिते  रहब सब दिन

सुधि  बिसरि  कउ  हमर , जायब दुष्टक डगर
    मारब दुश्मन के , पाइनो  पिया  ॥  उछलि  गँगा ---

सीथ    सिन्दूर  सबटा  , ई  झरि  जायत जँ
सउख  हमर सुहागक  ,  ई जरि  जायत जँ

नोर झारब  नञि  हम , शोक डारब नञि हम
रक्त  के हम करब  बिन्दिया  ॥   उछलि  गँगा ---

भाग्य   अवसर  जे  सेवाक  भेँट  गेल  अइ
स्वर्ग   पथ   आब   जेवाक  भेँट  गेल  अइ

"रमण " नर तन  अते , पायब युग - युग  कते
जिन्दगी  ने  करू  , ऐछीया  ॥ उछलि  गँगा ---
रचना कार - 
रेवती रमण झा " रमण "
ग्राम - पोस्ट - जोगियारा पतोर
आनन्दपुर , दरभंगा  ,मिथिला

मो 09997313751

मंगलवार, 17 जनवरी 2017

नवसाल के - नवका बात

नवसाल  के- नबका बात 
सुनू  यो  मैथिल  , सुनू यौ तात 
 नाव  साल   के   नवका   बात  । 
नवल  चेतना  जागि  उठल नव 
अहाँ  सब छी , कियक  एकात ॥ 
            सुनू  यौ  --- नाव   --
कतबौ    लड़लौं ,   कतबौ   लरु 
मुदा  एकहि  ठाँ  सब किछू  धरू । 
सब    फदकैया   संग    रहैया 
जहिना  टोकना  केर यौ भात  ॥ 
  सुनू  यौ  --- नाव   --
कियो नञि  दुरजन , सब छथि सज्जन 
जौं  दुरजन  त   हमहीं   दुरजन  । 
अप्पन -  अप्पन  ठीक  करु  मन 
एक  लाख   में  एकटा   बात  ॥ 
              सुनू  यौ  --- नाव   --
उठू   यौ   मैथिल  सव  कियो जागू 
सब ठाँ   मैथिल   पहुँचल   आगू  । 
सभतरि मिथिला चमकि उठल अछि 
अपन     गाम  -   अपन   बात  ॥ 
                  सुनू  यौ  --- नाव   --
रचैता -
 रेवती रमण झा  "रमण "

शनिवार, 14 जनवरी 2017

तिला संक्राइत - मिथिला लेल तिल-चाउर बहब

प्रवीण चौधरी ‘किशोर-


तिला संक्राइत - मिथिला लेल तिल-चाउर बहब!

मकर संक्रान्तिके शुभ अवसरपर समस्त जनमानस लेल शुभकामना!
      
मकर संक्रान्ति के त्योहार मोक्ष लेल प्रतिबद्धता हेतु होइछ - निःस्वार्थ सेवा - निष्काम कर्म करैत मुक्ति पाबैक लेल शपथ-ग्रहण - संकल्प हेतु एहि पावनिक महत्त्व छैक।

जेना माय के हाथ तिल-चाउर खाइत हम सभ मैथिल माय के ई पुछला पर जे ‘तिल-चाउर बहमें ने..?’ हम सभ इ कहैत गछैत छी जे ‘हाँ माय! बहबौ!’ आ इ क्रम तीन बेर दोहराबैत छी - एकर बहुत पैघ महत्त्व होइछ। पृथ्वीपर तिनू दृश्य स्वरूप जल, थल ओ नभ जे प्रत्यक्ष अछि, एहि तिनूमें हम सभ अपन माय के वचन दैत तिल-चाउर ग्रहण करैत छी। एक-एक तिल आ एक-एक चाउरके कणमें हमरा लोकनिक इ शपथ-प्रण युगों-युगोंतक हमरा लोकनिक आत्म-रूपके संग रहैछ। बेसी जीवन आ बेसी दार्शनिक बात छोड़ू... कम से कम एहि जीवनमें माय के समक्ष जे प्रण लेलहुँ तेकरा कम से कम पूरा करी, पूरा करय लेल जरुर प्रतिबद्ध बनी।

आउ, एहि शुभ दिनक किछु आध्यात्मिक महत्त्वपर मनन करी:  
१. मकर संक्रान्ति मानव जीवन के असल उद्देश्य के पुनर्स्मरण हेतु होइछ जाहि सँ मानव लेल समुचित मार्गपर अग्रसर होयबाक प्रेरणा के पुनर्संचरण हेतु सेहो होइछ। धर्म, अर्थ, काम आ मोक्ष के पुरुषार्थ कहल गेल अछि - जे जीवन केर आधारभूत मौलिक माँग या आवश्यकता केर द्योतक होइछ। एहि सभमें मोक्ष या मुक्ति सर्वोच्च पुरुषार्थ होइछ। श्रीकृष्ण गीताके ८.२४ आ ८.२५ में दू मुख्य मार्गकेर चर्चा केने छथि - उत्तरायण मार्ग आ दक्षिणायण मार्ग। एहि दू मार्गकेँ क्रमशः ईशकेर मार्ग आ पितरकेर मार्ग सेहो कहल गेल छैक। अन्य नाम अर्चिरादि मार्ग आ धुम्रादि मार्ग अर्थात्‌ प्रकाशगामिनी आ अंधकारगामिनी मार्ग क्रमशः सेहो कहल जैछ।
    उत्तरायण मार्ग ओहि आत्माके गमन लेल कहल गेल छैक जे निष्काम कर्म करैत अपन शरीर केर उपयोग कयने रहैछ। तहिना जे काम्य-कर्म में अपन शरीरकेँ लगबैछ, ताहि आत्माकेँ शरीर परित्याग उपरान्त दक्षिणायण मार्ग सऽ गमनकेर माहात्म्य छैक। उत्तरायण मार्गमे गमन केँ मतलब ईश्वर-परमात्मामे विलीन होयब, जखन कि दक्षिणायणमे गमन केँ मतलब कर्म-बन्धनकेर चलते पुनः जीवनमे प्रविष्टि सँ होइछ। मकर संक्रान्ति एहि मुक्तिक मार्ग जे श्रीकृष्ण द्वारा गीतामे व्याख्या कैल गेल अछि ताहि केँ पुनर्स्मरण कराबय लेल होइछ।  
२. सूर्यक उत्तरगामी होयब शुरु करयवाला दिन - जेकरा उत्तरायण कहल जैछ। अन्य लोकक लेल ६ महीना उत्तरायण आ बाकीक ६ महीना दक्षिणायण कहैछ।
३. पुराण के मुताबिक, एहि दिन सूर्य अपन पुत्र शनिदेवकेर घर प्रवेश करैत छथि, जे मकर राशिक स्वामी छथि। चूँकि पिता आ पुत्र केँ अन्य समय ढंग सऽ भेंटघांट नहि भऽ सकल रहैत छन्हि, तैं पिता सूर्य औझका दिन विशेष रूप सऽ अपन पुत्र शनिदेव सऽ भेटय लेल निर्धारित केने छथि। ओ वास्तवमें एक मास के लेल पुत्र शनिदेवके गृह में प्रवेश करैत छथि। अतः यैह दिन विशेष रूप सऽ स्मरण कैल जैछ पिता-पुत्रके मिलन लेल।
    माहात्म्य: सूर्यदेव कर्म केर परिचायक आधिदेवता छथि, तऽ शनिदेव कर्मफल केर परिचायक आधिदेवता! मकर संक्रान्ति एहेन दिवसकेर रूपमे होइछ जहिया हम सभ निर्णय करैत छी हमरा सभकेँ कोन मार्ग पर चलबाक अछि - सूर्य-देव द्वारा प्रतिनिधित्व कैल निष्काम-कर्म (प्रकाशगामिनी) या फेर शनि-देव द्वारा प्रतिनिधित्व कैल काम्य-कर्म (अन्धकारगामिनी)।

४. यैह दिन भगवान्‌ विष्णु सदाक लेल असुरक बढल त्रासकेँ ओकरा सभकेँ मारिकय खत्म कयलाह आ सभक मुण्डकेँ मंदार पर्वतमे गाड़ि देलाह।
    माहात्म्य: नकारात्मकताक अन्त हेतु एहि दिनकेर विशेष महत्त्व होइछ आ तदोपरान्त सकारात्मकताक संग जीवनक प्रतिवर्ष एक नव शुरुआत देबाक दिवस थीक मकर संक्रान्ति।

५. महाराज भागिरथ यैह दिन अत्यन्त कठोर तपसँ गंगाजीकेँ पृथ्वीपर अवतरित करैत अपन पुरखा ६०,००० महाराज सगरक पुत्र जिनका कपिल मुनिक आश्रमपर श्रापक चलतबे भस्म कय देल गेल छलन्हि - तिनकर शापविमोचन एवं मोक्ष हेतु मकर-संक्रान्तिक दिन गंगाजल सँ आजुक गंगासागर जतय अछि ताहि ठामपर तर्पण केने छलाह आ हिनक तपस्याकेँ फलित कयलाक बाद गंगाजी सागरमें समाहित भऽ गेल छलीह। गंगाजी पाताललोक तक भागिरथकेर तपस्याक फलस्वरूप हुनकर पुरुखाकेँ तृप्तिक लेल जाइत अन्ततः सागरमें समाहित भेल छलीह। आइयो एहि जगह गंगासागरमे आजुक दिन विशाल मेला लगैछ, जाहिठाम गंगाजी सागरमे विलीन होइत छथि, हजारों हिन्दू पवित्र सागरमे डुबकी लगाबैछ आ अपन पुरुखाकेँ तृप्ति-मुक्ति हेतु तर्पण करैछ।
       माहात्म्य: भागिरथ केर प्रयास आध्यात्मिक संघर्षक द्योतक अछि। गंगा ज्ञानक धाराक द्योतक छथि। नहि ज्ञानेन सदृशम्‌ पवित्रमिह उद्यते! पुरुखाक पीढी-दर-पीढी मुक्ति पबैत छथि जखन एक व्यक्ति अथक प्रयास, आध्यात्मिक चेतना एवं तपस्या सऽ ज्ञान प्राप्त करैछ।

६. आजुक दिनकेर एक आरो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ भेटैछ जखन महाभारतक सुप्रतिष्ठित भीष्म पितामह एहि दिवस अपन इच्छा-मृत्युक वरदान पूरा करय लेल इच्छा व्यक्त कयलाह। हुनक पिता हुनका इच्छामृत्युकेर वरदान देने छलखिन, ओ एहि पुण्य दिवस तक स्वयंकेँ तीरकेर शय्यापर रखलाह आ मकर संक्रान्तिकेँ आगमनपर अपन पार्थिव शरीर छोड़ि स्वर्गारोहण कयलाह। कहल जैछ जे उत्तरायणमें शरीर त्याग करैछ ओ पुनर्जन्मकेर बंधन सँ मुक्ति पबैछ। अतः आजुक दिन विशेष मानल जैछ अन्य दुनिया-गमन करबाक लेल।

माहात्म्य: मृत्यु उत्तरायणके राह अंगीकार कयलापर होयबाक चाही - मुक्ति मार्गमें। ओहि सऽ पहिले नहि! आत्माकेर स्वतंत्रता लेल ई जरुरी अछि। एहिठाम उत्तरायणक तात्पर्य अन्तर्ज्योतिक जागरण सऽ अछि - प्रकाशगामिनी होयबाक सऽ अछि।

एहि शुभ दिनक अनेको तरहक आन-आन माहात्म्य सब अछि आ एहि लेल विशेष रुचि राखनिहार लेल स्वाध्याय समान महत्त्वपूर्ण साधन सेहो यैह संसारमे एखनहु उपलब्ध अछि। केवल शुभकामना - लाइ-मुरही-चुल्लौड़-तिलवा आ तदोपरान्त खिच्चैड़-चोखा-घी-अचाड़-पापड़-दही-तरुआ-बघरुआक भौतिकवादी दुनिया मे डुबकी लगबैत रहब तऽ मिथिलाक महत्ता अवश्य दिन-प्रति-दिन घटैत जायत आ पुनः दोसर मदनोपाध्याय या लक्ष्मीनाथ गोसाईंक पदार्पण संभव नहि भऽ सकत।

अतः हे मैथिल, आजुक एहि पुण्य तिथिपर किऐक नहि हम सभ एक संकल्प ली जे मिथिलाकेँ उत्तरायणमे प्रवेश हेतु हम सभ एकजूट बनब आ अवश्य निष्काम कर्म सऽ मिथिला-मायकेर तिल-चाउरकेँ भार-वहन करबे टा करब। जेना श्री कृष्ण अर्जुन संग कौरवकेर अहं समाप्त करय लेल धर्मयुद्ध वास्ते प्रेरणा देलाह, तहिना मिथिलाक सुन्दर इतिहास, साहित्य, संगीत, शैली, भाषा, विद्वता एवं हर ओ सकारात्मकता जेकरा बदौलत मिथिला कहियो आनो-आनो लेल शिक्षाक गढ छल तेकरा विपन्न होइ सऽ जोगाबी। जीवन भेटल अछि, खेबो करू... मुदा खेलाके बाद बहबो करियौक। मातृभूमि आ मातृभाषाक लेल रक्षक बनू। मिथिला मायकेर तरफ सँ तिल-चाउर हमहुँ खा रहल छी, जा धरि जीवन रहत ता धरि बहब, फेरो जन्म लेबय पड़त सेहो मंजूर - आ फेरो बहब तऽ मिथिलाक लेल बही यैह शुभकामनाक संग, मकर संक्रान्ति सँग जे नव वर्षक शुरुआत आइ भेल अछि ताहि अवसर पर फेर समस्त मैथिल एवं मानव समुदाय लेल मंगलकेर कामना करैत छी।
जय मैथिली! जय मिथिला!

ॐ तत्सत्‌!




मंगलवार, 10 जनवरी 2017

दहेज मुक्त मिथिलाक अन्तर्राष्ट्रीय संयोजक संग साक्षात्कारः सृष्टि दैनिक




हेज मुक्त मिथिला - नेपाल तथा भारत मे संयुक्त रूप सँ कार्यरत मिथिला समाज मे दहेज प्रथाक विरोध मे अभियानरूप मे चलयवला संस्थाक अन्तर्राष्ट्रीय संयोजक प्रवीण नारायण चौधरी संग साक्षात्कारः

१. अपने सभक संस्था समाज सँ दहेज उन्मूलनक लेल कोन ढंग सँ काज कय रहल अछि?
उ. दहेज मुक्त मिथिला मूल रूप सँ सोसल मीडिया सँ आरम्भ भेल एकटा क्रान्ति थीक। एकर लक्ष्य छैक जे वर्तमान शिक्षित युवा पीढी केँ एहि प्रथाक दोष पर बेसी सँ बेसी चर्चा करबाक लेल उकसायल जाय - आर एकर नकारात्मक स्वरूप सँ दूरी बनेबाक लेल प्रेरित कैल जाय। हलांकि आब ई अभियान सोसल मीडिया सँ यथार्थ धरातलपर सेहो उतैर चुकल अछि ठाम-ठामपर। भारतक मुम्बई, दिल्ली, गुआहाटी, मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, पटना, जमशेदपुर, बनारस, कानपूर, राँची सहित अनेको ठाम तथा नेपाल मे विराटनगर, राजविराज, लहान, जनकपुर, बीरगंज, काठमांडु, इनरुवा, भारदह आदि स्थान मे एहि अभियान सँ जुड़ल लोकसब जमीनपर सेहो एकरा उतारलैन अछि। मुख्य रूप सँ "माँगरूपी दहेज केर प्रतिकार" हेतु 'आत्मसंकल्प' लेब एहि अभियानक कार्यरूप होएछ। समाजक हरेक उमेर केर लोक सँ माँगरूपी दहेज नहि लेब नहि देब, न अपन धिया-पुता मे लेब या देब आ नहिये एहेन माँगिकय लेल गेल दहेज केर विवाहोत्सव मे सहभागी बनब - ई संकल्प लियाओल जाएछ। तहिना जे कियो बिना मांगरूपी दहेज केर विवाह करैथ हुनकर यशगान करब, समाज मे हुनकर इज्जत-प्रतिष्ठा बढेबाक लेल समारोहपूर्वक सम्मान देबाक काज सेहो दहेज मुक्त मिथिला द्वारा कैल जाएछ। एकर अतिरिक्त मैथिली भाषा व मिथिलाक धरोहर संरक्षणार्थ आम जागृति करैत अप्रत्यक्ष रूप सँ सेहो दहेज प्रथाक कूरीतिपर प्रकाश दैत पुनः आत्मसंकल्प लेबाक प्रेरणा देल जेबाक काज एहि संस्था-अभियान द्वारा कैल जाएछ।
२. दहेज केँ कोन ढंग सँ परिभाषित करैत अछि?
उ. दहेजक परिभाषा विवाह पूर्व माँग करब, शर्त राखब, जबरदस्ती करब, बेटीवलाक आर्थिक क्षमता सँ बाहर जाय कोनो तरहक विध-व्यवहार पूरा करबाक धौंस देब, आदि केँ मानैत छी। ई सब बात एक्के टा 'माँग' जे वरपक्ष कन्यापक्षपर बलजोरी थोपैत अछि, तेकरे दहेज कहल जाएत छैक। संवैधानिक भाषा मे सेहो दहेजक परिभाषा यैह छैक। बाकी स्वेच्छा सँ कन्यापक्ष अपन कन्याक विवाह लेल केहेन घर-वर करत आर ताहि लेल कतेक खर्च करत, भले नगदे अपन जमाय-बेटी केँ कियैक नहि गानत, कतबो साँठ आ भार - उपहार आदि कियैक नहि साँठत, ई सब दहेज केर रूप मे हम सब नहि गानैत छी। तैँ, कियो टकाक बलपर बेमेल विवाह कराबय, ओतय बेटीवलाक सेहो दोख देखैत छी। लेकिन नीति सँ बान्हल जतय-कतहु स्वेच्छा सँ कोनो तरहक लेन-देन भेल अछि तेकरा हम सब दहेज एकदम नहि मानैत छी आर समाजक नीति-नियतिपर छोड़ि मात्र माँगरूपी दहेजक प्रतिकार लेल जनजागरण हमरा सभक अभियान अछि।
३. एहि संस्थाक सांगठनिक स्वरूप कि छैक?
उ. ओना तऽ आर संस्था जेकाँ ईहो भारत व नेपाल जतय-जतय मैथिल (मिथिलावासी) समाज रहैत अछि ओहि सब ठाम काज करबाक लेल दिल्ली आ राजविराज दुइ ठाम पंजीकृत रहैत कार्यकारिणी समितिक संग कार्यरत अछि, लेकिन सोसल मीडिया सँ जन्म भेल एहि संस्थाक संगठन सँ बेसी 'अभियान'रूप मे स्थापित होयबाक बात बेसी महत्वपूर्ण छैक। अहाँ कतहु रहू, दहेज मुक्त मिथिलाक अभियान संग जुड़िकय एकर नारा केँ अपनेबाक लेल समाजक हरेक वर्ग, जाति, धर्म, समुदायक लोक केँ प्रेरित कय सकैत छी। एहि वास्ते अहाँ स्वायत्तशासी संगठन अपन क्षेत्र लेल स्वयं गठन कय सकैत छी। सदस्यता बाँटि सकैत छी। समाज मे भऽ रहल दहेज मुक्त विवाह केँ सम्मान देबाक अछि। दहेजक माँग भेल शिकायत भेटलापर माँग कएनिहार पक्ष सँ वार्ता करैत आपस मे बुझारत करा सकैत छी। जरुरत पड़ल तऽ पीड़ित पक्ष लेल न्यायिक प्रक्रिया सेहो चला सकैत छी। लेकिन मुख्य रूप सँ माँगरूपी दहेज विरुद्ध आत्मसंकल्प लियेबाक काज करैत अपन समाजक लोक केँ एहि कूप्रथा सँ दूर करू, दहेज मुक्त मिथिलाक यैह टा आह्वान अछि। फिलहाल, पहिने कहल हरेक स्थान पर एकटा संयोजक, राष्ट्रीय स्तर पर एकटा कार्यकारिणी द्वारा संस्थाक समस्त सरोकार रेख-देख कैल जाएछ।
४. जाहि तरहें समाज मे दहेज कोढी समान खतरनाक चर्मरोग जेकाँ पसैर गेल छैक, तेहेन स्थिति मे एकर अन्तिम निदान संभव बुझा रहल अछि? जँ हँ त कोना?
उ. संसार मे कोनो प्रथा पहिने समाज केँ सही दिशा मे बढेबाक लेल आरम्भ होएत छैक। दहेज प्रथा सेहो बेटीधन प्रति पैतृक संपत्ति सँ प्राकृतिक हक देबाक जेकाँ विधान सँ व्यवहृत होएत देखाएत अछि। माय-बापक अर्जित संपत्ति सँ बेटीक हक केँ मूर्त-सम्पत्तिक रूप मे नहि दय ओकरा दहेजरूपी अमूर्त सम्पत्ति मे देबाक सोच पूर्व मे प्रारंभ कैल गेल जेना हम मानैत छी। शास्त्र सेहो स्त्रीधन केर चर्चा करैत अछि, हलाँकि ओ एतेक न्युन आर गुप्त होएत अछि जे आँटाक लोइया मे नुकाकय देल जेबाक विधान कहल गेल अछि आर एहि पर मात्र कन्याक अधिकार होयबाक बात सेहो उल्लेख अछि। लेकिन कालान्तर मे भौतिकतावादक बढैत असैर सँ आइ ई कोढी समान रोग जेकाँ पसैर गेल अछि। जे दहेज आशीर्वादक रूप मे केकरो बेटा केँ ओकर सासूर सँ भेटैत छलय, जेकरा लोक-समाज केँ हकारिकय देखेबाक चलन-चलती छलय, से आइ एहेन कुरूप अवस्था मे चलि गेल अछि जे कतेको बेटीक बाप केँ साकिम बना देलक, कतेको बेटी स्वयं दहेजक बेदीपर बलि चढा देल गेल, कतेको बेटीक जन्म सँ पहिनहि ओकर भ्रूणहत्या कय दैत अछि, जाहि नारीक नारित्व सँ मानव समाजक सृष्टि चलैत अछि तेकरे आइ एहि दुर्दशा मे राखल जा रहल अछि से हम सब देखि रहल छी। तखन एकर निदान सेहो क्रमशः संभव होएत हम देखि रहल छी। स्वेच्छाचारिताक विकास सँ मात्र ई कूप्रथाक अन्त हम देखि रहल छी। एहेन परिवार मे कथमपि कुटमैती नहि कैल जाय जतय माँगरूपी दहेजक व्यवहार लेल कन्यापक्षपर दबाव देल जाय। कन्यापक्ष केँ सेहो यदि अपन सम्पत्तिक दंभ सँ कोनो वर केँ पैसे-दहेजे बले बियैह देबाक मनसा देखी तऽ ओहेन कन्याक संग कदापि अपन बेटाक कुटमैती तय नहि करी। स्वयं शुद्ध रही, मात्र शुद्ध लोक संग कुटमैती तय करबाक मनोबल संग दुइ आत्मा केँ परिणय सूत्र मे बन्हबाक कठोर संकल्प लेब आवश्यक अछि। दहेज लोभी केँ वा दहेज दंभी केँ दरबज्जा पर प्रवेश तक निषेध करब आवश्यक अछि। स्वेच्छा सँ न्युनतम खर्च मे बिना कोनो बाह्याडंबर विवाह करबाक प्रचलन केँ प्रवर्धन सँ एहि कूप्रथाक अन्त होयत। समाज मे दहेज लेनिहारक प्रशंसा त कोनो हाल मे नहि हो, ओकरा जतेक दूसल-फटकारल जाय ओतेक कम हो, तखनहि लोक केँ एहि कूप्रथा सँ मोहभंग होयत।
दहेज मुक्त मिथिला हरेक समाज सँ अपील करैत अछि जे बेसी किछु नहि, मात्र एकटा निगरानी समिति बनाबी आर अपन समाज मे भऽ रहल कुटमैतीक तथ्यांक राखी। दहेज मुक्त विवाह कएनिहार केँ सार्वजनिक सभा द्वारा यशगान करी, सम्मान प्रदान करी। एकर सकारात्मक प्रभाव दूरगामी अछि आर कूप्रथा सँ निजात दियाबयवला अछि।
५. नवतुरिया मे दहेजक लेन-देन प्रति केहेन मानसिकता देखैत छियैक?
उ. नवतुरिया मे दहेज प्रतिष्ठाक विषय नहि बनि एकटा कूप्रथाक रूप मे प्रचलित भऽ रहल अछि, ई उत्साहवर्धक अछि। दहेज मुक्त मिथिालक लक्ष्य मे सेहो मात्र नवतुरिया सँ बेसी चर्चा चलेबाक आर संकल्प लियेबाक मूल बात निहित अछि। आइ बेटा आ बेटी केँ लोक समान रूप सँ शिक्षा दय रहलैक अछि। तथापि किछु एहेन वर्ग-समुदाय एखनहु छैक जे बेटी केँ मात्र घरायसी काजक वस्तु बुझि ओकरा शिक्षा सँ वंचित रखैत छैक। ओहि ठाम समस्या एखनहु विकराल छैक।
६. दहेज कूप्रथा उन्मुलन हेतु समाजक अगुआ सब केँ कोन ढंग सँ आगाँ एबाक आवश्यकता छैक?
उ. समाज सब सँ पहिने दहेजक प्रदर्शन देखब बन्द करय। दहेज मे आयल साँठ आ उपहार सब नितान्त व्यक्तिगत थिकैक से बुझि ओहि मे अपना लेल आनन्द आ भोज-भातक लोभ सँ दूर करय। बरियातीक आमंत्रण भेटलोपर कन्यापक्षक बाध्यता आ सीमितता केँ कदर करय। खस्सी केँ जान जाय आ खबैया केँ स्वादे नहि - ई कहबी अनुरूप अपन मानवता केँ बेइज्जती अपने सँ नहि करय।
समाजक अगुआ केँ टोल-समिति आ गाम-समिति केर तर्ज पर वैवाहिक सम्बन्ध कायम होयबाक निगरानी समिति बनेनाय अत्यन्त आवश्यक अछि। समाज जँ चाहत तऽ ओ अपना केँ दहेज मुक्त कय सकैत अछि। पहिने सेहो जे समाजक बात केर अवहेलना करय ओकरा समाज बारि दैत छलय। समाजक दंड विधान सब तरहक मानवीय अपराध केँ अन्त करबाक सर्वसुलभ उपाय होएछ। ई बात समाजक अगुआ बुझय। आइ ई कूप्रथा मात्र आ मात्र समाज केर उल्टा दिशा मे नियम चलेबाक दुष्परिणाम थीक, आर एहि गलती केँ सुधार करय लेल समाजहि केँ आगू आबय पड़त।
७. संस्थाक उद्देश्य प्राप्ति तथा आरो व्यापक बनेबाक लेल आगामी कार्ययोजना कि सब अछि?
उ. युग अनुरूप अपन व्यक्तिगत आवश्यकताक पूर्ति करबाक प्राथमिकता केँ ध्यान दैत बचल समय मात्र हम सब समाज लेल खर्च करैत छी। तथापि, समाज लेल चिन्तन करब हमरा लोकनिक फर्ज थीक आर ताहि सँ ई अभियान संभव भऽ सकल अछि। आगामी समय मे - सामूहिक विवाह करायब, वैवाहिक परिचय सम्मेलन करायब, संगठन केँ मूर्तरूप मे आरो विस्तार देब, गाम-गाम मे निगरानी समिति बनबायब मुख्य रूप सँ ऊपर अछि। बाकी साल भैर मे पैघ-पैघ समारोह, गोष्ठी, सेमिनार, आदि मे जेना दहेज मुक्त मिथिला निर्माणार्थ चर्चा होएत अछि से यथावत् रहत।
अन्त मे एकटा अनुरोध करब, जतेक लोक हमर ई विचार पढलनि अछि ओ तऽ संकल्पित निश्चिते टा होएथ - संगहि जतेक दूर धरि संभव होएन, कृपया एहि अभियान केँ स्वेच्छाचारिताक धर्म अनुरूप प्रसार करैथ। कन्यादान बड पैघ यज्ञ थीक, एहि मे जतेक बेसी संभव होएन ततेक परोपकार करैत अपन जीवनक सार्थकता केँ बढबैथ। आभारी छी अहाँक जे ई अवसर देलहुँ। धन्यवाद।

प्रवीण नारायण चौधरी