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बुधवार, 26 जुलाई 2017

कश्मीर : समस्या और समाधान



 

भारत माता का बॅटवारा है, जिनकी अभिलाषा में,
वे समझेंगे अर्जुन के गांडीव धर्म की भाषा में। 
फूल अमन के नहीं खिलते, कायरता की माटी में,
नेहरू जी श्वेत कबूतर, मरे हुए है घाटी में। 
हिंदुस्तान वालो, अपने मन को बुद्ध करो या कुद्ध करो,
कश्मीर को दान करो या गद्दारो से युद्ध करो। 

         उपरोक्त पंक्तियाँ वर्षो से कश्मीर समस्या रूपी महामारी से त्रस्त हर एक भारतीय के दुखद दिल की व्यथा कथा है। आजादी के बाद  1951 में जब देश में जनगणना हुई  तब भारत की आबादी करीब छत्तीस करोड़ बताई गयी और 2011 के जनगणना के अनुसार तक़रीबन एक अरब इक्कीस करोड़।  तब से लेकर आज तक कितनी सरकार आई और गयी। बीते ६९ सालो में भारत ने करीब-करीब सभी क्षेत्रो में सर्वांगीण विकास सीढियाँ चढ़ते हुए विश्व की सबसे तेज़ गति से उभरती अर्थव्यवस्था  होने का गौरव प्राप्त किया। परन्तु आजादी के बाद इन बीते ६९ सालो में हर एक भारतीय कश्मीर समस्या को जस का तस देख रहा है। कभी एक कदम आगे तो कभी दो कदम पीछे की तर्ज़ पर। 

      अगर हम कश्मीर समस्या के इतिहास की बात करे तो गुलाम भारत को स्वतंत्र करते समय अंग्रेज़ो ने अपनी घटिया कूटनीति से इस 'सोने की चिड़ियाँ ' कहे जाने देश को टुकड़ो में बाँट दिया- एक भारत, दूसरा पाकिस्तान तथा तीसरा राज्यों की स्वतंत्र रियासतें। ब्रिटिश शासन के हटते ही अन्य रियासतों की तरह कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भी कश्मीर को स्वतंत्र घोषित कर दिया। 

       कश्मीर में मुसलमान बहुल आबादी होने के कारण पाकिस्तान को लालच आ गया। मौका पाकर काबलाईयो की मदद से पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर नरेश स्वतंत्र रहना थे, मगर पाकिस्तान के आक्रमण से डरकर भारत में शामिल हो गए। इस तरह से कश्मीर की रक्षा करना भारत का नैतिक कर्त्तव्य हो गया। फलतः भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया। मामला राष्ट्र संघ में गया।  बाद में सयुंक्त राष्ट्र के मध्यस्तता के बाद युद्ध ख़त्म हुआ।  युद्ध समाप्ति के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर में जनमत संग्रह की बात उठाई। भारत ने युद्ध विराम रेखा के आधार पर संधि करके समस्या के निराकरण की बात उठाई थी।  मगर पाकिस्तान ऐसे मानने को तैयार नहीं हुआ।  राष्ट्र संघ में बर्षो तक चर्चा चलती रही।  मगर बाद की चर्चा अंतरराष्ट्रीय गुटबंदी के कारण अधूरी ही रही।  एक तरफ जहाँ भारत को रूस का समर्थन मिलता रहा, वही पाकिस्तान को अमेरिका से लगातार सामरिक सहायता मिलती रही।  इन सभी परिस्तिथियों के बीच पिछले ६९ सालो से कश्मीर की समस्या ज्वलंत बनी हुई है। अभी वर्त्तमान में  कश्मीर के तीन चौथाई भाग पर भारत का और एक चौथाई पर पाकिस्तान का कब्ज़ा है। 

          अब अगर कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करे तो भारत के द्वारा लगातार चार युद्ध हार जाने के बादजूद पाकिस्तान के द्वारा फैलाये गए आतंकबाद के कारण आज तक शायद ही कोई ऐसा महीना रहा  भारतीय जवान ने अपनी शहादत ना दी हो या निर्दोष नागरिको ने अपनी जान की कुर्बानी ना दी हो।  पिछले ६९ सालो में भारत ने कश्मीर को चार लाख करोड़ प्रत्यक्ष सहायता के रूप में दिया है ताकि स्वर्ग जैसा  सुन्दर कश्मीर पर्यटन के पटल पर सितारा बनकर उभर सके। कश्मीर के लोगो को रोजगार मिले।  कश्मीर के लोग खुशहाल हो।  लेकिन वही ढाक के तीन पात। कश्मीर में कश्मीरियो के रूप में रह रहे पाकिस्तानियो ने ऐसा अभी तक होने नहीं दिया है। एक बात हम पिछले कई बर्षो से नहीं समझ सके है कि पहाड़ की ढलान पर या तो हम ऊपर चढ़ते है या स्वतः  फिसल जाते है।  ढलान पर यथास्थिति जैसे कोई बात नहीं होती है। कश्मीर के मामले में भी कमोवेश हमारा यही हाल  हो रहा है। हम यथास्थिति बनाये रखने के चक्कर में नीचे फिसलते जा रहे है। आखिर कब तक  हमारे सैनिक एवं निर्दोष नागरिक अपने प्राण की आहुति देते रहेंगे। 
               
      अतीत में झांक कर  नेहरू, शास्त्री और इंदिरा की बात करे तो उन्होंने वक्त रहते पाकिस्तान की गर्दन ठीक से नहीं मरोड़ा वर्ना पाकिस्तान अभी तक अपना फन उठाने की  स्थिति में नहीं होता। क्योंकि सवाल तो अब भी वही है जस के तस। आज पैलेट गन की आड़ लेकर पूरी दुनिया में कहता फिर रहा है की भारत कश्मीरियों पर जुल्म ढा रहा है तथा मिलिट्री के दम पर वह कश्मीर पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है। 

      मेरे हिसाब से तो कश्मीर समस्या का समाधान थोड़ा मुश्किल जरूर लेकिन सरल है। जैसा कि साफ़ है कि पाकिस्तान आतंकबाद की आड़ में कश्मीर को जलाने का लगातार यत्न करता रहा है। और इससे ज्यादा उनसे कुछ हो भी नहीं सकता है। अतः हमें रणनीति बनाकर कश्मीर में छुपे कश्मीरियों के भेष में जितने पाकिस्तानी बैठे है, उनका मुकाबला करने के लिए पूर्व सैनिको, कश्मीरी पंडितो को तथा अन्य पर्यटन यात्री के रूप में अन्य देशभक्तो को वह बसाना होगा। कहते है कि शांति का मार्ग युद्ध से होकर जाता है और इसके लिए हमें तैयार होकर वह पूर्ण दबंगई दिखलानी होगी। छद्म कश्मीरियों के नाम पर पाकिस्तानियों को जहन्नुम भेजना होगा। कश्मीरी पंडितो सहित अन्य कश्मीरी नागरिको को यह भरोसा दिलाना होगा कि भारत इतना शक्तिशाली है कि वह उनकी रक्षा कर सकता है। 

        जो भी हो, भारत के लिए कश्मीर जीवन-मरण तथा राष्ट्र प्रतिष्ठा का बिषय है। कश्मीर भारत की धर्मनिरपेक्षता की नीति की कसौटी भी है। अतः  भारत किसी भी मूल्य पर कश्मीर का एक  इंच भूभाग भी छोड़ने को तैयार नहीं होगा। भारत का कश्मीर को लेकर विश्व समुदाय तथा पाकिस्तान को सीधा सन्देश है , जिसे मैं इन पंक्तियो के माध्यम से उल्लेखित करना चाहूंगा। 

भारत एक अखंड राष्ट्र है, सवा सौ करोड़ की ताकत है। 
कोई हम पर आँख उठा ले, किसकी भला हिमाकत है। 
धरती, अम्बर और समंदर को, यह भाषा समझा दो। 
 दुनिया के हर पंच सिकंदर को, यह भाषा समझा दो। 
अब खंडित भारत माँ की तस्वीर नहीं होने वाली। 
कश्मीर किसी के अब्बा की जागीर नहीं होने वाली। 

सौजन्य से :-

चन्दन झा 


शनिवार, 22 जुलाई 2017

काँवर गीत , रचित - रेवती रमण झा "रमण"

|| काँवर गीत || 

रचित -
रेवती रमण झा "रमण" 
मभोला     दिगम्बर  जटा   धारी  | 
 वर अढ़रन  ढ़रन   छथि   त्रिपुरारि  || 
  भरि   गंगाजल    लय   कमरथुआ   | 
 सब कियो मिलि कय  गाबै  नचारी  || 
               बमभोला--- वर अढ़रन --
ऑके  -   धथुरा    भाँगक    गोला  | 
प्रेम  सँ   भोग   लगौलनि   भोला  || 
बाघम्बर     तन   माथे    पे   चंदा  |
कंठ     भुजग   उर   विष   धारी  ||
              बमभोला --- वर अढ़रन ---
झर - झर   झहरय  जटा सँ  गंगा  |
भूत   पिशाच  सब  नाचय   नंगा  ||
सोहे   त्रिशूल  वर  मुण्डक  माला  |
हाथ  मेँ   डमरू  बरदक सवारी  ||
               बमभोला--- वर अढ़रन ---