dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

मैथिली फिल्म रिलीज होबय जा रहल अछी - अरुण ठाकुर


नया नया मैथिली फिल्म रिलीज होबय जा रहल अछी । सेंसर बोर्ड सार्टिफेकेट जारी केलक मुदा सिनेमा हॉल में जाकय कंजूस मैथिल फिल्म के टिकट खरीदहता  से  शक भ रहल अछी। 

जी   ये है साहसी व्यक्ति C M Jha जी है जो संभवतः अगले महीने बड़े पर्दे पर लेकर आ रहे है मैथिली फिल्म "राजा सलहेस " की कहानी । साहसी व्यक्ति इसलिए की अपने बड़े जमा पूंजी को मैथिली फिल्म में लगाया है जिस मैथिली फिल्म की पूंजी की एक रुपया वापसी की उम्मीद कम ही रहती है क्योंकि मैथिली फिल्म को ना ही अच्छे सिनेमा हॉल में जगह मिल पाती है और ना ही मैथिल पैसा खर्च कर मैथिली फिल्म देखना चाहते है ।

जी हम बात कर रहे है सीएमजे फिल्म्स के वैनर तले बन रही मैथिली फीचर फिल्म राजा सलहेस अगले महीने सिनेमाघरों में आने वाली है। फिल्म को एक साथ सिनेमा हॉल और ओटीटी पर रिलीज किया जाएगा। मिथिला के प्रसिद्ध उद्योगपति और शिक्षाविद चंद्रमोहन झा ने इसे बनाया है। निर्देशन संतोष वादल ने किया है।

प्रमुख कलाकारों में प्रियरंजन सिन्हा, दिव्या गौतम, पूजा ठाकुर, नवीन चौधरी, अमरनाथ झा, नीरज पाठक, विकास कुमार, प्रदीप शर्मा, ममता शर्मा, प्रियंका गिरि, संतोष कुमार, पूजा, अर्जुन राय, मेरे ग्रामीण भतीजा गुंजन श्री, संजीव कुमार विट्ट आदि हैं। फिल्म में संगीत दिया है ज्ञानेश्वर दुबे ने जवकि सिनेमेटोग्राफी की है अनिल मिश्रा ने। फिल्म की कहानी लिखी है अजित आजाद जी ने जिसमें सलहेस को मिथिला के सुपर हीरो की तरह दिखाया गया है। सलहेस के प्रेम-प्रसंग को भी सलीके से उभारा गया है।

फिल्म में चौहरमल और सलहेस के बीच के संबंध को समुचित मर्यादा के साथ फिल्माया गया है। इस मैथिली फिल्म में एक्शन है तो प्रेम और करुणा भी है। युद्ध के दृश्यों में वीएफएक्स का इस्तेमाल प्रभावकारी है।

मेरा मानना ये है की  राजा सलहेश का सबसे ज्यादा मंदिर और फॉलोअर मिथिला में पासवान समाज में है और कही भी फिल्म में ऊनलोगों लोगों के पार्टिसिपेशन को इग्नोर किया गया है । अगर प्रोड्यूसर डायरेक्टर इस फिल्म के लिए चिराग पासवान को किसी भी रोल में एडजस्ट करते तो फिल्म का ग्लैमर काफी रोचक होता । हमारे किराड़ी में भी राजा सलहेश का मंदिर है अतः आपको प्रमोशन के लिए ऐसे जगह हो आना चाहिए ।

फिलहाल मैं बहुत बहुत शुभकामना देता हूं सीएम झा जी के पूरे टीम को की फिल्म जनता में सफल हों ।

 अरुण ठाकुर 

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

पंडित भवनाथ मिश्र उर्फ अयाची मिश्र - KIRTI NARAYAN JHA,

           


   मिथिला आदि कालहि सँ शिक्षा केर क्षेत्र में अपन अग्रणी भूमिका एहि भूमण्डल पर निवाहैत आयल अछि। कवि विद्यापति सँ मंडन मिश्र आदि अनेकों विद्या विशारद एहि धरा के गौरवशाली स्थान प्रदान करैत अयलाह अछि।                                                            एहि क्रम में पंडित भवनाथ मिश्र उर्फ अयाची मिश्र केर नाम अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक लेल जा सकैत अछि। चौदहम शताब्दी केर उत्तरार्द्ध में मिथिला केर पवित्र धरती पर सरिसबपाही गाम में हिनक जन्म भेल छल आ जीवन भरि ककरहु सँ किछु याचना नहिं केलखिन तें ई अयाची केर नाम सँ विख्यात भेलाह।                     हिनक विद्वता केर नाम सूनि क तत्कालीन मिथिला केर नरेश स्वयं हिनका ओहिठाम पहुंच गेलाह। मुदा राजा के देखि हिनका कोनो प्रकार केर व्यवहार में परिवर्तन नहि भेलैन। दोसर दिस महाराज हिनका सभ रूप सँ आर्थिक सहायता करय चाहैत छलखिन। ओ नीक गुरूकुल बना क आचार्य केर उच्च स्थान हुनका देवय चाहैत छलखिन मुदा पंडित जी सभ टा प्रस्ताव के अस्वीकार कय देलखिन कारण ओ भोतिक आ सांसारिक सुख-सुविधा सँ कोनो सम्बन्ध नहि रखैत छलाह।                  कतवो राजा हिनका स्वास्थ्य केर सुरक्षा हेतु गाय महिष इत्यादि केर देवाक प्रयास केलखिन मुदा पंडित जी मना क देलखिन आ कहलखिन जे हमरा तीन टा अनुपम सांसारिक वस्तु अछि पाँच कठ्ठा धानक खेत, धात्री केर गाछ आ तुलसी चौरा। दू चारि मोन धान भ जाइत अछि भरि साल खेवाक लेल। धात्री गाछ सँ नित्य चारि पाँच टा धात्री (आँवला) हम खाइत छी जाहि में छप्पन भोग भोजन केर स्वाद भेटैत अछि आ तुलसी गाछ में नारायण कें नित्य जल चढवैत छी आ चरणामृत प्राप्त करैत छी अकाल मृत्यु हरणम, सर्व व्याधि विनाशनम अर्थात हमरा कोनो प्रकार केर अकाल मृत्यु केर भय अथवा रोग नहिं होइत अछि। कखनो जँ कनेक मोन उननैस बीस होइत अछि त तुलसी केर काढा पीवि लैत छी पुनः अपन अध्यापन कार्य में लागि जाइत छी। भगवान सँ सदिखन मनवैत रहैत छी जे यावत धरि जीवैत छी सतत गरीब सँ गरीब छात्र के निःशुल्क शिक्षा दान करैत रही। हमरा छात्र लोकनि प्रतीक्षा क रहल छैथि तें आदेश देल जाऊ आ ई कहि पंडित जी पुनः अध्यापन कार्य में लागि गेलाह।                                                                           ई थिक मिथिला केर स्वर्ण युग केर इतिहास। किछु लोक के इहो मान्यता छैक जे भगवान शिव स्वयं हिनक बालक शंकर के रूप में अवतार लेने रहैथि। आई मिथिला केर माटि एहन एहन महापुरुष के अपन कोखि सँ जन्म देने अछि आ अपन कोरा में खेलेने अछि...

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

श्रद्धांजलि! प्रो.हरिमोहन झा

 श्रद्धांजलि! प्रो.हरिमोहन झा 

 (18सितम्बर,1908-23फरबरी,1984)

"बसाते तेहन छै जे गोष्ठीमे कवियो

गजल, दादरा आ कब्वाली गबैये

किछु दिनमे इहो देखब  औ बाबू!

जे कवितो संग तबला बजैये।'

       हरिमोहनझा  

अइ कोठीक धान ओइ कोठी:

प्रो. हरिमोहन झा एवं हुनक ‘चर्चरी’

(मैथिली अकादमी पत्रिका,मार्च 1984 एवं अखियासल’, 1995 मे संकलित) 

‘चर्चरी’ नामहिसँ स्पष्ट अछि जे ई कोनो एक विधाक पोथी नहि थिक। जेना चर्चरी एकहि संग विभिन्न व्यञ्जनक सम्मिलित रूप रहितहु, एकटा फूटे स्वाद दैछ, ओहिना प्रो. हरिमोहन झा (1908-23 फरवरी 1984) द्वारा विभिन्न विधामे लिखित रचनाक संग्रह ‘चर्चरी’ सेहो एकटा फूटे स्वाद पाठककेँ दैत अछि। ‘चर्चरी’ मे प्रो. झाक उत्कृष्ट रचनासभ संगृहीत अछि।

‘चर्चरी’ मे विभिन्न उपखण्ड अछि। कथा उपखण्डमे ‘ग्रेजुएट पुतोहु’, ‘मर्यादाक भंग’, ‘ग्राम सेविका’, ‘परिवर्तन’ ‘युगक धर्म’ ‘महारानीक रहस्य’, ‘पाँचपत्र’, ‘सातरंगक देवी’, ‘नौ लाखक गप्प’, ‘तिरहुताम’, 'ब्रह्माक श्राप’, आ ‘तीर्थयात्रा’ अछि। द्वितीय उपखण्डमे ‘अयाची मिश्र’ एवं ‘मंडन मिश्र’ एकांकी अछि। तेसर उपखण्ड अछि छायारूपक। एहिमे अछि- ‘एहि बाटें अबै छथि सुरसरि धार’। चारिम उपखण्ड अछि ‘झाजीक चिट्टी’। एहिमे अछि संगठनक समस्या। पाँचम उपखण्डमे ‘भोलाबाबाक गप्प’, ‘दलान परक गप्प’, चैपाड़ि परक गप्प’ आ ‘पोखरि परक गप्प’ अछि। प्रहसन उपखण्डमे ‘रेलक झगड़ा’ अछि। खट्टर ककाक तरंग उपखण्डमे ‘प्राचीन सभ्यता’, दर्शनशास्त्रक रहस्य’ आ’ मिथिलाक संस्कृति’ अछि।

प्रो. झा गप्प लिखल की कथा, एहिपर वेस विचार आ खण्डन-मण्डन होइत रहल अछि। किछु गोटे प्रो. झाकेँ कथाकार रूपमे मानैत छथि तँ किछु गोटे गप्प विधाक प्रणेता एवं आचार्यक रूपमे। सुधांशु ‘शेखर’ चौधरी प्रो. झाकेँ गप्प-साहित्यक प्रणेता एवं आचार्य मानि लिखैत छथि ‘जाहि वस्तुक आधारपर प्रो. झाक रचनामे कथातत्त्वक हेतु अमर रहताह ओ थिक हिनक गप्प-साहित्य(‘सन्दर्भ’)।’ 

प्रो. श्रीकृष्ण मिश्र प्रो. झाक रचनामे कथातत्त्वक अभाव देखि गप्प-साहित्यक अन्तर्गत मानैत लिखल अछि - ‘प्रो. झा लिखलनि ‘प्रणम्यदेवता’, ‘खट्टर ककाक तरंग’, ‘चर्चरी’, ‘रंगशाला’ - एहि सभमे कथाक अंश बड़ कम अछि। हमरा जनैत ई सभ ने कथा थिक आ ने निबन्ध। ई वास्तवमे गप्प थिक जकरा हरिमोहन बाबू अपन प्रतिभाक बलेँ एक नव साहित्य विधा ( genre) रूपमे प्रचलित कयलनि। हिनक ‘चूड़ा दही चीनी’ वा ‘अलंकार शिक्षा’केँ कथा कहब समुचित नहि बुझना जाइछ। ई रोचक गप्प थिक। ओना जे किछु लिखब तँ ओहिमे सूक्ष्मो रूपमे कथा-वस्तु, चरित्र-चित्रण, घटना, वार्तालाप विचार सभ रहबे करतैक, किन्तु ‘प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति’-  एहि नियमसँ हरिमोहन बाबूक अधिकांश रचना गप्प प्रधान अछि(प्रो. हरिमोहन झा अभिनन्दन ग्रन्थ)।

प्रो. आनन्द मिश्र (मिथिला मिहिर,10 अप्रैल,1977) सेहो प्रो. हरिमोहन झाकेँ कथाकेँ कथासँ बेशी गप्प मानल अछि- ‘हुनक कथा, कथासँ वेशी गप्प अछि, बेस चहटकार, तिक्त, कषाय आदि सभसँ युक्त कोनो चरित्र जावत धरि अतिशय नहि करताह, तावत सन्तोषे नहि होइनि।'

पंरच डा. जयकान्त मिश्र ‘चर्चरी’क एहि कोटिक रचनाकेँ कथा मानैत छथि- Carcari revealed him to be even more successful as a short story writer than as a novelist.' 

प्रो. हरिमोहन झा अपने एहि रचना सभकेँ कथा- साहित्यक अन्तर्गत मानैत लिखैत छथि जे हमर कथा-साहित्यक तेसर मोड़ ‘खट्टर ककासँ प्रारम्भ होइछ।’’ 

पंरच कथा विधाक लेल आवश्यक तत्त्व जखन प्रो. झाक रचनामे तकैत छी जकरा ओ कथा-साहित्यक अन्तर्गत मानल अछि, तँ ओ कथाक अनुरूप नहि भेटैछ। एहि दृष्टिसँ बड़ कम रचना अछि, जकरा कथाक रूपमे अलोचित-विश्लेषित कएल जा सकैछ। इएह स्थिति ‘चर्चरी’क रचनाक संग अछि। किछु केँ बेराए कथाक रूपमे आ शेषकेँ गप्प-साहित्यक रूपमे देखबे विशेष श्रेयस्कर होएत।

प्रो. झा भारतीय वाङमयक प्रखर सर्जनात्मक क्षमता सम्पन्न रचनाकार छथि। एहन प्रखर क्षमता सम्पन्न रचनाकारक लेल बहुत स्वाभाविक छैक जे ओकर अभिव्यक्तिकेँ वहन करबाक क्षमता कोनो प्रचलित विधाकेँ नहि होअए। तखन ओ जे लिखैछ, ओहिसँ कालक्रमेँ स्वतः एकटा नव विधाक जन्म भए जाइछ। ई तँ निर्विवाद अछि जे प्रो. झा पहिल मैथिल रचनाकार छथि जे अपन रचनासँ अधिकाधिक पाठकक निर्माण कएल। हिनक रचनासँ पाठकक एकटा पैघ समुदाय तैआर भए गेल जे सदिखन प्रो. झाक रचनाकेँ पढ़बा लेल उनमुनाइत रहैत छल। एकटा इहो विशेषता प्रो. झामे छल जे ओ हास्य-व्यंग्य प्रिय मैथिल संस्कारक अनुरूप अपन रचनाक धाराकेँ प्रवाहित राखल, अपन पाठकक एहि प्रवाहकेँ अवाधित रखबा लेल ओ हास्यरसक वर्षा करैत रहलाह, पाठककेँ गुदगुदी लगबैत रहलाह, जाहिसँ एक स्वतन्त्र विधाक, गप्प-साहित्यक निर्माण भए गेल।

पूर्वहि लिखल अछि जे मैथिल संस्कारहिसँ हास्य- व्यंग्य प्रिय होइत छथि। मैथिलकेँ ओहन कोनो सामाजिक स्थितिक मोकाविला नहि करय पड़लनि जे लोककेँ संघर्षशील बना दैछ। संघर्षशीतलाक अभाव आ पेटक चिन्तासँ निफिकिर लोकमे गप्पक खेती वेशी होइते छैक। एही स्थितिक प्रतिफल थिक जे एकसँ एक गप्पी मैथिल समाजमे होइत रहलाह अछि। एहन गप्पीक उपस्थितिए सँ वातावरणक जड़ता समाप्त भए जाइत छैक। लोक कान खोलि गप्पक आनन्द लिअ लगैछ। एहन-एहन गप्प सुनि दुखियाक मन बहटारल जाइछ तँ बैसल लोकक हँसी-खुशीमे समय कटि जाइछ। ओ आनन्दित भए कौखन द्विगुणित उत्साहसँ अपन-अपन काजो करए लगैछ। मनोरंजक क्षणक उपयोगसँ थाकल ठेहीआएल मन उत्फुल्ल भए जाइछ। प्रो. झाक गप्प-साहित्य मैथिली साहित्यक पाठककेँ एही प्रकारक आनन्द देलक अछि। स्फूर्ति प्रदान कएलक अछि। समय कटबाक एकटा माध्यम भेल अछि।

प्रो. झाक गप्प-साहित्यक एक खास विशेषता अछि। ई ततेक रोचक आ प्रवाहपूर्ण अछि जे पाठक बिना समाप्त कएने छोड़बा लेल प्रस्तुते नहि रहैछ। हिनक गप्प परी देशक गप्प नहि थिक। ओ जे गप्प कहैत छथि ओ रहैछ मैथिल संस्कृतिक, मिथिलाक समाज आ शास्त्रपुराणक। पाठकक चारूकात पसरल, अथवा घटैत घटनाक संयोजनपूर्ण विनोद आ हास्य व्यंग्ययुक्त प्रभावक शैलीमे रहैत छैक। ‘चर्चरी’मे संगृहीत ‘दलान परक गप्प’, ‘चैपाड़िक गप्प’, ‘घूर परक गप्प’, ‘पोखरि परक गप्प’, ‘प्राचीन सभ्यता’, ‘दर्शनशास्त्रक रहस्य’, ‘मिथिलाक संस्कृति’, ‘सात रंगक देवी’, ‘नौ लाखक गप्प’, ‘महारानीक रहस्य’ आदि एही शैलीमे अछि।

एहि सभ गप्पक माध्यमसँ हरिमोहन बाबू पाठक समुदायकेँ हँसबैत छथि। कौखन तँ ई हँसी हृदय विदारक भए जाइछ। एहि सन्दर्भमे प्रो. जयदेव मिश्र लिखैत छथि जे समाजक जाहि अंगपर श्री हरिमोहन बाबू देखैबाक हेतु हँसैत प्रहार करैत छथिन्ह, ओतय फोंका धरि बहार भए जाइत छैक। एही कारणेँ हिनक हास्य रचना समान रूपसँ सभक हेतु प्रिय नहि बनि सकलन्हि अछि। ई रचना सभ बहुत स्थलपर जीवन विषयक विषमता एवं विद्रूपताक विनोदपूर्ण अध्ययन होएबाक अपेक्षा विद्रूपता, अतिरंजन मात्र प्रतीत होइत छनि। प्रो. हरिमोहन झाक हेतु सभसँ उपर्युक्त प्रसंग तखन अबैत छनि, जखन ओ भोजन अथवा धर्माचरणक प्रसंगकेँ लए केँ लेखनी चलबैत  छथि’ (मिथिलाक हास्य साहित्य, विवेचना, सम्पादकः सुधांशु ‘शेखर’ चौधरी)।  

डा. जयकान्त मिश्रक मत सेहो एही प्रकारक अछि। डा. मिश्रक मतेँ प्रो. झाक कथा-साहित्यमे हँसी तँ उड़ाओल गेल अछि, किन्तु ओही हँसीक माध्यमसँ कोनो बाट देखाइत छैक, से नहि- Harimohan Jha's stories are marred by his obession of finding fault with even some of those things, which form the really noble sublime and good in our culture. While he seeks to shake our confidence in their values, he does not always succeed in offering with any force other alternative values of life.'(History of Maithili Literature, Sahitya Akademi). 

‘चर्चरी’मे प्रो. हरिमोहन झाक सर्वोत्कृष्ट कथा ‘पाँचपत्र’ संगृहीत अछि। पाँच दशकक पति-पत्नीक रागात्मक सम्बन्ध, क्रमशः परिवर्तित होइत दृष्टि आ पारिवारिक दायित्वबोधक जीवन्त कथा थिक ‘पाँच पत्र’। ई पाँचपत्र प्रो. झाक नहि, अपितु मैथिली कथा-साहित्येक एकटा सर्वोत्तम कथा थिक। एहि ‘पाँच पत्र’क प्रसंग कुलानन्द मिश्र (हरिमोहन झा अभिनन्दन ग्रन्थ) लिखने छथि जे ‘अखनो धरि एकटा कोमल आ धड़कैत आ मधुर-चेतना तथा करुण आ उदास नियति बोधक कथाक रूपमे मैथिलीक अन्यतम सफल कथा थिक। एकर अन्तिम पत्रक अन्तमे पुनश्च कहि जोड़ल पाँती जे देवकृष्ण पत्नीकेँ इंगित कए बेटाकेँ लिखने छथि। अद्भुत करुणा आ व्यंग्यक बोध-मोनमे उत्पन्न कए दैछ।

‘चर्चरी’मे प्रो. झाक दू टा एकांकी संगृहीत अछि-  ‘अयाची मिश्र’ एवं ‘मंडन मिश्र’। छओ दृश्यमे समाप्त ‘अयाची मिश्र’ एकांकीमे म.म. भवनाथ मिश्र, प्रसिद्ध अयाची मिश्रक जीवन-दृष्टि, शंकर मिश्रक विद्वता, अतिथि सत्कार, निर्लोभता आदिक दृश्यांकन भेल अछि। दोसर एकांकी ‘मंडन मिश्र’मे शंकराचार्यक मिथिला आगमन, मंडन मिश्रसँ शास्त्रार्थ, विदुषी सरस्वती द्वारा मध्यस्थता, शंकराचार्यक सात वर्षक बाद पुनः आबि, विदुषी सरस्वतीक प्रश्नक समाधान, मंडन मिश्रक संन्यास ग्रहण करब, पत्नी द्वारा सुरेश्वरचार्य नामकरण एवं कर्णफूल उतारि प्रथम भिक्षा देब आदि स्थितिक दृश्यांकन कएने छथि। एहि दुनू एकांकीक माध्यमसँ प्रो. झा मिथिलाक प्राचीन सांस्कृतिक उत्कर्षकेँ प्रस्तुत कए समाजमे उद्बोधन अनबाक प्रयास कएल अछि।

प्रो. हरिमोहन झाक एहि दुनू एकांकीक ऐतिहासिक महत्त्व एहू लेल अछि जे मैथिली रंगमंचक इतिहासमे हुनक पत्नी,  स्वर्गीया सुभद्रा झा मंचपर उतरलि छलीह तथा प्रथम मैथिल महिला रंगकर्मीक रूपमे ख्याति पाओल।

‘चर्चरी’ मे एकटा प्रहसन संगृहीत अछि ‘रेलक झगड़ा’। रेलगाड़ीमे बैसबा लेल कोना कटाउझ होइछ, तकर एहिमे चित्रण विनोदपूर्ण अछि। किन्तु, जखन पोल खुजैछ, परिचय होइछ तँ सम्भावित समधिनि आ सम्भावित सासु-पुतहु पश्चाताप करैत अछि। सम्बन्ध स्थापित होइछ। ‘रेलक झगड़ा’क प्रसंग डा. वासुकीनाथ झा (हरिमोहन झा अभिनन्दन ग्रन्थ) लिखैत अछि जे ‘रेलक झगड़ा’ मे आधुनिक शिक्षाक वायुसँ कनेक सिहकल दू टा परिवारक विवाह-सम्बन्ध स्थिर करबाक क्रममे आकस्मिकताकेँ हास्यपूर्ण अभिव्यक्ति देल गेल अछि। कन्या देखय-देखयबाक हेतु दुनू भावी समधिनि एवं भावी पुतहुक बीच रेलगाड़ीमे विशिष्ट मैथिल पद्धतिसँ झगड़ा होइत अछि। दुनू पक्षक परिचय खुजैत अछि। पश्चाताप प्रकट कएल जाइछ। अन्तमे वरक माए कन्याकेँ अंगीकार करैत छथि। विषयक दृष्टिसँ एहिमे प्रगतिशीलता भेटैत अछि आ शिल्पक दृष्टिसँ हास्यसँ अधिक फैंटेसीक तत्त्व विद्यमान अछि।

‘झाजीक चिट्टी’ उपखण्डमे ‘संगठनक समस्या’ पर सम्पादककेँ पत्र लिखल गेल अछि। काजक दिस कम, किन्तु संस्थाक नामकरणपर विशेष घमर्थन होइत छैक। ओहिपर व्यंग्य अछि। प्रतिकूल विचारधाराक व्यक्ति संगठनक काजमे कोना बाधा उत्पन्न करैत छथि, सेहो देखाओल अछि।

छायारूपक उपखण्डमे ‘एहि बाटे अबै छथि सुरसरि धार’ संगृहीत अछि। एहि छायारूपकक केन्द्र थिक ‘सौराठ सभा’। तिलक-दहेजक उन्मूलन करबा लेल महिला लेकनिक सक्रियताक वर्णन पाँच रीलमे अछि। प्रथम रीलमे तिलक-दहेजक विरोध कएनिहार महिला उपहास्य बनैत छथि। किन्तु क्रमशः जागृति अबैत जाइछ आ पाँचम रीलमे आबि स्वयंवर होइछ। तिलक-दहेजक घृणित प्रथा समाप्त होइछ। प्रो. हरिमोहन झा केहन भविष्य द्रष्टा छलाह, हिनक दृष्टि नारी-जागरण एवं कल्याणक लेल कतेक तत्पर छल, तकर ज्वलन्त प्रमाण थिक ‘एहि बाटें अबैत छथि सुरसरि धार’। जहिआ ई रूपक लिखल गेल, ओहि समयमे ई असंगत छल छे ‘सौराठ सभा’मे महिला लोकनि पैर दए सकतीह। किन्तु गत किछु वर्षमे एहि छायारूपक पहिल रील - महिला संगठन सभामे जाए दहेजक विरोधमे बाजए लगलीह अछि। नारी जागरणक अग्रदूत प्रो. हरिमोहन झाक एहि रचनाक अन्तिम रील कहिआ सत्य होएत तकर प्रतीक्षा अछि। तिलक-विनाशिनी सुरसरि सौराठ मार्गसँ तिलक दहेजक प्रथाकेँ कहिआ आत्मसात कए, लाखो कन्याक बापकेँ बलि होएबा सँ बचबैत छथि, तकर प्रतीक्षा छैक। एहि छायारूपकक कथ्य जहिना सामाजिक एवं समसामायिक अछि, ओहिना प्रस्तुति सेहो आकर्षक। एकर अन्त संगीतमय अछि। संगीतमय अन्त लोकक मन-प्राणकेँ आच्छादित कएने रहैछ-

‘भागू दूर घटक पंजियार

होउ बरागत आब होशियार

आब नहि चलत तिलक रोजगार

नहि केओ टाका गनत हजार

समटू अपन हाट बाजार

एहि बाटे अबै छथि सुरसरि धार।’

प्रो. हरिमोहन झाक कतेको उत्कृष्ट रचना ‘चर्चरी’मे संगृहीत अछि। एहि उत्कृष्ट रचनाकेँ जँ फूटसँ पढ़ल जाइछ तँ ओकर उत्कृष्टता प्रभावित करैत छैक। किन्तु ‘चर्चरी’ मे पड़ि ओ ‘भोलाबाबाक गप्प’मे तेना ने स्पन्दनहीन भए गेल अछि जे ओकर स्वादक पता, तकला सँ लगैछ।

 ‘चर्चरी’क प्रसंग प्रो. निगमानन्द कुमरक कहब छनि (अखिल भारतीय लेखक सम्मेलन, रचना संग्रह,भाग-4, वैदेही समिति, दरभंगा)  जे आइ जँ मैथिली पाठकगणक बीच ‘चर्चरी’केँ सेहो लोकप्रियता भेटि रहल अछि तँ ई हमरा सभक हीन दृष्टिकोणक प्रमाण दए रहल अछि। जे स्वस्थ व्यंग्य लए श्री हरिमोहन बाबू ‘कन्यादान’सँ यात्रा आरम्भ कएलैनि, बुझाइत अछि जे रस्तेमे साँझ भेल देखि दृक् भ्रमित भए गेलाह। ‘प्रणम्य देवता’ सन उत्कृष्ट व्यंग्य ओ हास्यक खट्टमिठी दोसर नहि भेटल, मुदा ‘खट्टर कका’क संग पड़ि हुनक शास्त्रार्थमे श्रीहरिमेाहन बाबू तेना ने ओझरा गेलाह जे ‘चर्चरी’ धरि अबैत एना लगैत अछि जेना डुमराँवमे ट्रेनक दुर्घटना कए गेल हो, जाहिमे मात्रा हल्ला अर्थात् गप्प आर ठहाकाक किछु बुझाइत अछिये नहि। साहित्यसँ दूर रहि साहित्यकेँ समय कटबाक साधन बूझि जे लोकनि ‘भोलाबाबाक’ चैपाड़िक सक्रिय सदस्य छथि, तनिके मन मोहिनी छथिन्ह ‘चर्चरीदाइ’।

प्रो. हरिमोहन झाक रचनाक मूलस्वर समाजोन्मुख आ उद्वोधनात्मक अछि। परंच, ई समाजोन्मुखता व्यापक नहि अछि। किछु निश्चित निर्धारित क्षेत्र अछि, जाहिपर कलम उठबैत रहलाह अछि। प्रहार कए हँसबैत रहलाह अछि। तेँ प्रो. झाक समाजोन्मुखताक तात्पर्य ई नहि जे समाजमे व्याप्त विषमता आ शोषणपर प्रहार कएल अछि। समाजोन्मुखताक मतलब ई नहि, जे समाजमे व्याप्त आर्थिक दुःस्थिति जन्य विसंगतिक अभिव्यक्ति कएल अछि, प्रो. हरिमोहन झाक समाजोन्मुखताक मतलब नहि जे ओ सामाजक ओहि वर्गक सामाजिक स्थिति अथवा राजनीतिक स्थितिकेँ स्वर देल अछि, जे युग-युगसँ सुविधाभोगी वर्ग आ धन-धान्यपूर्ण व्यक्तिक पैरतर पिचाइत रहल अछि। समाजोन्मुखताक मतलब ई नहि जे हिनक रचना ओहि सामाजिक चेतनाक अभिव्यक्ति थिक जाहिमे भूखक ज्वालामे झरकल, शोषण, उत्पीड़न, सम्बन्धवाद, राजनीतिक सुतार-नीतिक जालमे फँसल लोक, किछु कए जयबा लेल विवश भए जाइछ। अपितु, हरिमोहन बाबूक रचनामे विधि-व्यवहार, शास्त्रीय मान्यता, मिथिला-भाषा आ संस्कृतिक मैथिले द्वारा उपेक्षा अथवा ओकर विकासक प्रति अन्यमनस्कताक अभिव्यक्ति विशेष रुचिपूर्णक भेल अछि। तेँ अधिकांश रचना पढ़लापर विचारक उन्मेष नहि होइछ, पाठक अभिप्रेतपर सोचबा लेल प्रेरित नहि होइछ, वैचारिक मंथन नहि होइछ। अपितु अधिकांश रचना पढ़लापर गुदगुदी लगैछ। कौखन व्यंग्यास्पदपर दया सेहो होइछ, पंरच एक बेर हँसा गेलापर ओकर प्रभाव बिला जाइत छैक।

स्रोत : मैथिली अकादमी पत्रिका, मार्च 1984

एवं अखियासल’1995 मे संकलित।

साभार आदरणीय - Ramanand Jha Raman

उच्चैठ भगवती - KIRTI NARAYAN JHA

"या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता                              नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।.                                                                                                             


  उच्चैठ मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी थाना मे अछि । एतय माँ भगवती के एकटा पुरान आ पैघ मंदिर अछि । ई स्थान कमतौल रेलवे स्टेशन सँ २४ कि०मी० उत्तर आ दरभंगा सँ बस सँ सीधा जूडल अछि । एहि दुर्गा मंदिरक अपन खास ऐतिहासिक महत्व अछि । एकटा पौराणिक कथाक हिसाब सँ एतय कालीदास रहैत छलाह । कालीदास पहिने महामूर्ख छलाह ।

      ओहि समय सदानंद नामक एकटा प्रसिद्ध राजा छलाह । हुनक बेटी विद्योतमा सुंदर आ गुणवती छ्लीह । विद्योतमा वियाहक लेल आयल अनेको राजा सँ वियाह करबा सँ मना दऽ देलनि आ प्रण केलनि जे ओ हुनके सँ वियाह करतीह जे हुनका सँ बेसी गुणवान हुअए । एहि सँ अपमानित भेल राजाक पंडित लोकनि बदला लेबाक लेल सोचलथि आ एकटा महामूर्खक खोज मे लागि गेलाह ।                                                                एक दिन हुनका लोकनिक नजरि कालीदास पर पड़ल, जे एकटा गाछक डारि पर बैसल छलाह आ ओकरहि काटि रहल छलाह । विद्वान लभ सोचलाह जे एहि सँ पैघ मूर्ख कतय भेटत । ओ कालीदास कें राजा सदानंदक दरबार मे लऽ गेलाह आ विद्योत्मा सँ हुनक वियाहक प्रस्ताव केलनि । पंडित लोकनि इहो कहलाह जे एखन ई मौन व्रत धाराण केने छथि आ तें इशारा मे गप्प करैत छथि ।

        विद्योत्मा दरवार मे उपस्थित भेलीह आ मौन रूप सँ प्रश्न पूछैत एकटा आँगुर उठेलीह, जेकर अर्थ भेल - ईश्वर एक छथि । कालीदास सोचलाह जे ई हमर एकटा आँखि फोड़य चाहैत अछि तँ हम हिनक दुनू फोड़ि देब आ तें ओ अपन दूटा आँगुर उठा देलनि । विद्योत्मा बुझलीह जे ई ईश्वरक दू रूप बतबैत छथि आ तें दूटा आँगुर उठेलनि अछि ।                                 पुन: दोसर प्रश्न मे विद्योत्मा अपन पाँचो आँगुर उठेलनि जेकर अर्थ भेल _ मूल तत्व ५ अछि । कालीदास सोचलाह जे ई हमरा थापड़ मारत तँ हम एकरा मुक्का मारब आ ओ पाँचों आँगुर बान्हि मुक्का देखेलनि । विद्योत्मा सोचलीह जे हिनक आशय ५ तत्व सँ मीलि कें बनल शरीर सँ अछि आ विद्योत्मा हारि मानि लेलनि ।      एवं प्रकारे कालीदास आ विद्योत्माक वियाह भेल । परंतु बाद मे वास्तविक स्थितिक ज्ञान भेला पर विद्योत्मा कालीदास कें अपमानित कऽ घर सँ निकालि देलनि ।

तत्पश्चात कालीदास विद्याध्ययनक लेल उच्चैठ पहुँचलाह आ एहिठाम रहि सभ शास्त्रक ज्ञाता भऽ गेलाह । आइयो लोक एहिठामक माँटि अपन घर लऽ जाईत अछि आ विश्वास करैत अछि जे दुर्गाक कृपा सँ हुनको घर मे कालीदास सन विद्वान जन्म लेथिन । माँ उच्चैठ भगवती सभक कल्याण करैथि एहि मंगलकामना केर संग जय माँ जगतजननी जगदम्बा 🙏

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

जैसी करनी वैसी भरनी - Mamta Jha

आदिकाल से ही देखा गया है कि जो लोग जैसा भाव रखते हैं सबके प्रति उनको वैसा ही उपहार परिणाम में मिलता है।

महाभारत एक पूर्ण न्यायशास्त्र है और चीर-हरण उसका केन्द्रबिन्दु है ! इस प्रसङ्ग के बाद की पूरी कथा इस घिनौने अपराध के अपराधियों को मिले दण्ड की कथा है। वह दण्ड, जिसे निर्धारित किया भगवान श्रीकृष्ण ने,जिन्होंने किसी को नहीं भी छोड़ा... 

दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दुशासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।

भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए देखे... 

भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब तक सब देख नहीं लिया, तब तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।  

धृतराष्ट्र का दोष था पुत्र मोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।

दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो श्रीकृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई। अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या नहीं..   वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।

युधिष्ठिर ने स्त्री को दांव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... 

धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा?

दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने ही उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके... 

उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, श्रीकृष्ण और बर्बरीक। 

 श्रीकृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से मना कर दिया जिससे आततायियों को पीड़ित ही दंड दे सके तथा बर्बरीक को भी रोक दिया क्योंकि यदि बर्बरीक का वध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। श्रीकृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, वे तो कृष्णा के अपराधियों को दण्ड दिलाने उतरे थे।

कुछ लोग कर्ण का बड़ा महिमामण्डन करते हैं । कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा या कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। द्रौपदी के अपमान में किये गए सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि वह महानीच व्यक्ति था और उसका वध ही धर्म था। 

स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दांव पर लगाया जाय।

श्रीकृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया। देवकी का बाल पकड़ा कंस ने, और द्रौपदी का बाल पकड़ा दुशासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है।  भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो... यही न्याय है , यही धर्म है... 

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

जे नै पढ़ब हुनकर सातो विदिया नाश - Ishanath Jha

वसंतोत्सव प्रारंभ भ' चुकल अछि। प्राकृतिक छटा, नैसर्गिक सौंदर्य, अप्रतिम प्रेम, अलौकिक कामक अनुभूतिक दिन आबि चुकल अछि। वसंतक अवतरण आम्रवृक्षक मादक मंजरी आ अशोकवृक्षक रक्त किसलय ओ पुष्पक संग वसंत पंचमी कें प्रकृति आ' मानवीय प्रेमक सजीवन स्नानार्थ महाकुम्भ बना रहल अछि। प्रकृति चारू कात सकारात्मक ऊर्जा कें चरमोत्कर्ष पर पहुँचा देने अछि। विभिन्न कला आ प्रेम प्रकृतिक पीत पुष्प सँ नयनाभिराम सौंदर्य मे पीयर साड़ीमे नवयौवना जकाँ खिलि उठल अछि। तात्पर्य जे चतुर्दिक् प्रसन्नता पसरल अछि।

मुदा, वसंत ऋतुक देवता भगवान मन्मथ मुरझायल सन अशोथकित उदास मुद्रामे अपन महल मे विरहा गाबि रहल छथि। पत्नी श्रीमती रति अपन प्रिय पति श्री कामदेवक एहि क्लांत छविक कारण पुछैत छथि, " प्रियवर ई तऽ अहाँक मास आयल अछि, एखन तँ अहाँक समय थिक  तखन म्लानमुख कियैक ?"

"हे मानिनि देवि रति, हमर प्रभाव प्रतिदिन क्षीण भेल जा रहल अछि, हमर काममयी तीर निस्तेज भेल जा रहल अछि, भोथ भ' गेल अछि लगैए, पृथ्वी परहक मनुष्य पर कोनो असरि नहि करैत अछि। तीव्र वैज्ञानिक प्रगति आ आधुनिकताक अंधानुकरणक फलस्वरूप वासंती मासक प्रकृति प्रदत्त सुषमा शनै:-शनै: क्षीण भेल जा रहल अछि, प्रिये", मिझायल स्वरमे उत्तर देलनि कामदेव।

"स्वामी, पर्यावरण प्रदूषण सँ तs सहमत छी जे भारतवर्षक पृथ्वी पर ओ नैसर्गिक सौंदर्य नहि रहल, मुदा ई मोन नहि मानि रहल अछि जे अहाँक मदनवाण अप्रभावी भ' गेल अछि ! के के नै शिकार भेल छथि ओहि वाण सँ, जे देव, दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नड़ कें नहि छोड़लक से मनुष्य लग केना विफल होएत प्रभु ?"

एवंप्रकारेण दुनू परानी घमर्थन करैत रहलाह मुदा कामदेवक मुखाकृति पर कोनो तरहक ऊर्जाक संचार नहि भेटलनि। "चलू तखन पृथ्वी पर अपन जम्बूद्वीपक वास्तविकताक दर्शन करब, प्रिये !"

ऋतुराज आ रति --- वसुधा पर पदार्पण करैत छथि पाटलिपुत्रक पवित्र धरती पर आ रति एहिठामक हल्ला-हुच्चड़, मारा-मारी, जिंदाबाद-मुर्दाबादक कनफोड़ा ध्वनि सँ हतप्रभ भेल छगुन्तामे जे पड़ि गेली आ कामदेव सँ आग्रह केलनि जे शीघ्रे पड़ाऊ एतय सँ। रतिपति कामदेव राजपथ पर बहुरंगी झंडा धारण केने 'जिंदाबाद-मुर्दाबाद' करैत श्वेतवसनधारी एहि भारी भीड़ कें देखि स्वयं हतप्रभ छलाह। राजभवनक मुख्य द्वारि पर एकटा भीड़ भरल लाइनमे धक्कामुक्की करैत स्वस्थ श्यामल मुष्टंडा पर पर अपन पुष्पवाण छोड़लनि मुदा, ई की ? युवक ओकरा हाथ सँ झाड़ि लेलक आ तरहत्थी कें पोनसँ पोछि फेर जिंदबाद करय लागल। आब अचंभा रति कें भेलनि, तामसो भेलनि। चोट्टहि पतिक संग युवक लग जाए ओकरा पुछलनि, 

"हे रौ मनुक्ख ! तों जुआन छह, स्वस्थ छह, की तोरा 'काम' सँ कोनो लगाव नहि छौ ? कामवाण तोरा पर कोनो प्रभाव कियै नहि छोड़लक ? कथीक दाबी छौ एते जे तों हमर पुष्पवाणक अपमान करमें ?"

खौंझायल युवा नेता चिचिआइत बाजल, " देखै नै छियै काजमे लागल छी ! अहीलेल तऽ भोरसँ निसाभाग राति धरि छिछियाएल फिरैत छी। लाख दुनमरी काज करैत कहुना कें एमएलए बनलौं। आब एखन मौका छै मंत्री बनबाक तऽ हम अहाँमे लटपटा जाऊ? वाह रे देवता ! एकबेर सप्पत खा लै छी संविधानक आ तकरा बाद हम छीहे आ अहूँ छीहे !"

"ई कोन महत्त्वपूर्ण काजमे एते अस्त-व्यस्त छी औ, अहाँक उमेरमे लोक मस्त रहैए !", पस्त होइत ऋतुराज कहलनि।

"हे यौ ऋतुराज, हम एकैसम शताब्दीक भारतमे रहैत छी,

एखने मोबाइल कें आधारकार्ड सँ लिंक कराके अनलहुँ, विभिन्न कोर्ट सँ एनओसी अनने छी आ आब बैंक खाताकें आधारकार्ड सँ लिंक करेबाक लेल लाइनमे पठौने छी अपन दूत सभकें। हमर पत्नी काल्हिए सँ अपन लिंक सँ जोर लगेने छथिए !ओ अभगला पीएं जे दसे बजे किछु इंतजाम करबा लेल गेल से  एखन धरि फोन तक नहि केलक अछि। आ' अहाँ 'काम', 'प्रेम', 'प्रणय' आदि विषय पर प्रवचन द' रहल छी। भारतक कोनो मूर्ख सँ मूर्ख नौजवान लग समय नहि छैक एहि सबहक लेल। एतय सामान्य लोक कें जीबाक लेल आधारकार्ड जरूरी छै। नेता सबकें सरवाइव करबाक लेल सत्ताक शीर्ष पर बैसल लोकसभ सँ लिंक रखबाक आवश्यकता छै ! आ' हे, एकटा सलाह दियऽ, अहूँ अपन वाणक संपूर्ण स्टॉक कें आधार सँ लिंक करा ने लियऽ तखने ओकर महिमा वा ई कहू जे वैधता आपस आएत ! ई कहैत युवक लाइनमे आगू ससरि गेल।

रति महारानी 'लिंक' शब्दक अर्थमे ओझराएल रहली आ कामदेव ठोहि पाड़िकें कानय लगलाह !

प्रश : जखन सप्पत खाइ बेरमे विद्या साते टा होइ छै तखन मैथिलक लेल तेरहम विद्या की होइ छै?

■ईशनाथ झा