tag:blogger.com,1999:blog-48449962304752489582024-03-18T08:32:59.764+05:30अपन गाम अपन बातapan gaam apan bathttp://www.blogger.com/profile/02500129398040564721noreply@blogger.comBlogger1369125tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-13304776493668162782024-03-16T15:52:00.001+05:302024-03-16T15:52:21.943+05:30कुलदेवी और कुलदेवता <p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWuFI9_SCAAWlOFw9msn8hBKwG2fjv7hCdf0gJXxf0_dwq41xm4Rzpe2G62DHKEUiaOtMIEA9MXdBW4ssocxxmfVL0bT_Lb09G3yJMnNjq0zu9EYhO5ZdLYQq9IbpPxzYIvrz9kVMuV1pMU9K1FtygMi8y91z26S8v-MpjscKqrqdekFc15ao4HNN8es8/s960/FB_IMG_1709555431182.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="704" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWuFI9_SCAAWlOFw9msn8hBKwG2fjv7hCdf0gJXxf0_dwq41xm4Rzpe2G62DHKEUiaOtMIEA9MXdBW4ssocxxmfVL0bT_Lb09G3yJMnNjq0zu9EYhO5ZdLYQq9IbpPxzYIvrz9kVMuV1pMU9K1FtygMi8y91z26S8v-MpjscKqrqdekFc15ao4HNN8es8/s320/FB_IMG_1709555431182.jpg" width="235" /></a></div><br /> भारत में ज्यादातर समाज या जाति के कुलदेवी और देवता होते हैं। भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुलदेवी और कुलदेवता की पूजा करते आ रहे हैं। हालांकि आजकल अधिकतर परिवारों ने अपने कुलदेवी और कुल देवताओं को पूजना या उनको याद करना छोड़ दिया है। संभवत: इसी के कारण वे घोर संकट में घिरे हुए हैं। यदि ऐसा है तो 4 उपाय करें और संकटों से मुक्ति पाएं।*<p></p><p>1. जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या कुलदेवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है। कुलदेवी की कृपा का अर्थ होता है सौ सुनार की एक लोहार की। बिना कुलदेवी कृपा के किसी के कुल का वंश ही क्या कोई नाम, यश आगे बढ़ नहीं सकता। अत: कुल देवी और देवता के लिए प्रतिदिन सुबह और शाम को भोग निकालें। और उनके नाम का उच्चारण करें। नाम नहीं याद हो तो स्थान का उच्चारण करें। जैसे, डल्ला वाली कुलदेवी की जय। स्थान का नाम भी नहीं मालूम हो तो तो हे माता कुलदेवी जी और कुलदेवता जी आपकी सदा ही जय हो। दुर्गा माता जी की जय, भैरू महाराजजी की जय।</p><p>2. एक ऐसा भी दिन होता है जब संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं। जिन लोगों को अपने कुलदेवी और देवता के बारे में नहीं मालूम है या जो भूल गए हैं, वे अपने कुल की शाखा और जड़ों से कट गए हैं। कुलदेवी या कुल देवता के स्थान से आपके पूर्वजों का पता लगता है। जिसे यह नहीं याद है वे भैरू महाराजजी और दुर्गा माताजी के मंदिर में जाकर उनके नाम का भोज चढ़ाएं और पूजा करें।</p><p>3. कुल देवी या देवता के स्थान पर जाकर एक साबूत नींबू लें और उसको अपने उपर से 21 बार वार कर उसे दो भागों में काटकर एक भाग को दूसरे भाग की दिशा में और दूसरे भाग को पहले भाग की दिशा में फेंक दें। इसके बाद कुलदेवी या देवता से क्षमा मांग कर वहां अच्छे से पूजा पाठ करें या करवाएं और गरीबों व ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें।</p><p>4. कुलदेवता की पूजा करते समय शुद्ध देसी घी का दीया, धूप, चंदन और कपूर जलाना चाहिए साथ ही प्रसाद स्वरूप फल , मिठाई का भोग भी लगाना चाहिए। कुलदेवता को चंदन और चावल का टीका अर्पण करते समय ध्यान रखें की टूटे हुए यां खंडित चावल ना हों। कुलदेवता को हल्दी में लिपटे पीले चावल पानी में भिगोकर अर्पण करना शुभ माना जाता है। पूजा के समय पान के पत्ते का बहुत महत्व है जिसके साथ सुपारी, लौंग, इलायची और गुलकंद भी अर्पण करना चाहिए। कुलदेवी या देवता को पुष्प चढ़ाते हुए आपको इन्हें पानी में अच्छी तरह से धोना चाहिए। सभी देवी-देवताओं की पूजा जिस तरह सुबह-शाम की जाती है, उसी तरह कुलदेवी और देवता की पूजा भी दीपक जलाकर करनी चाहिए।</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-11973522739510468672024-03-07T12:42:00.001+05:302024-03-08T12:59:27.911+05:30क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि? जानें इससे जुड़ी कथाएं<p> महाशिवरात्रि 08 मार्च विशेष </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBVHGrY_kYpJ4qSP5cAj1lCJsdP5zq2XP9nfAIjEe8n_mH2im-8ueV4dZWgL0fr_TS9DSOpl490ga1GepUNpFz3SyHKJcaCKw9NsswfFTHYx9-7m7AEfNhx2yS1KC8zFQKwPXDS4Fci5Jq5uzKxP4RFMKoNJ3QgST2oOaQYa1XgsHOJu_6wIz5gG7_eqo/s960/FB_IMG_1709555431182.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: left;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="704" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBVHGrY_kYpJ4qSP5cAj1lCJsdP5zq2XP9nfAIjEe8n_mH2im-8ueV4dZWgL0fr_TS9DSOpl490ga1GepUNpFz3SyHKJcaCKw9NsswfFTHYx9-7m7AEfNhx2yS1KC8zFQKwPXDS4Fci5Jq5uzKxP4RFMKoNJ3QgST2oOaQYa1XgsHOJu_6wIz5gG7_eqo/s320/FB_IMG_1709555431182.jpg" width="235" /></a></div><br /><p></p><p>*क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि? जानें इससे जुड़ी कथाएं, महूर्त, विधि*</p><p>पौराणिक कथा के अनुसार, देवों के देव महादेव और मां पार्वती का विवाह फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। इसी वजह से हर साल फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर शिव भक्त भगवान शिव की बारात निकालते हैं। साथ ही भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही व्रत करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से वे जल्द प्रसन्न होते हैं</p><p>मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से साधक को वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है। साथ ही दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।</p><p>महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है। फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।</p><p>अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। परन्तु पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं। दोनों पञ्चाङ्गों में यह चन्द्र मास की नामाकरण प्रथा है जो इसे अलग-अलग करती है। हालाँकि दोनों, पूर्णिमांत और अमांत पञ्चाङ्ग एक ही दिन महा शिवरात्रि के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं।</p><p>पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है।</p><p>माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। इस पावन अवसर पर शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा और अभिषेक करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।</p><p>अन्य भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिन्दु पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महा शिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागी रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है।</p><p>महाशिवरात्रि अगर शनिवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है और यह दो घटी के लिए प्रबल होती है। </p><p> महाशिवरात्रि पूजा विधि</p><p>इस दिन सुबह सूर्योंदय से पहले उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत हो जाएं। अपने पास के मंदिर में जाकर भगवान शिव परिवार की धूप, दीप, नेवैद्य, फल और फूलों आदि से पूजा करनी चाहिए। सच्चे भाव से पूरा दिन उपवास करना चाहिए। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र जरूर चढ़ाने चाहिए और रुद्राभिषेक करना चाहिए। इस दिन शिव जी रुद्राभिषेक से बहुत ही जयादा खुश हो जाते हैं. शिवलिंग के अभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी इत्यादि का उपयोग किया जाता है। शाम के समय आप मीठा भोजन कर सकते हैं, वहीं अगले दिन भगवान शिव के पूजा के बाद दान आदि कर के ही अपने व्रत का पारण करें। अपने किए गए संकल्प के अनुसार व्रत करके ही उसका विधिवत तरीके से उद्यापन करना चाहिए। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। रात को चार पहाड़ जागकर यदि संभव ना हो तो कम से कम रात्रि 12 बजें के बाद थोड़ी देर जाग कर भगवान शिव की आराधना करें और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें, इससे आर्थिक परेशानी दूर होती हैं। इस दिन सफेद वस्तुओं के दान की अधिक महिमा होती है, इससे कभी भी आपके घर में धन की कमी नहीं होगी। अगर आप सच्चे मन से मासिक शिवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपका कोई भी मुश्किल कार्य आसानी से हो जायेगा. इस दिन शिव पार्वती की पूजा करने से सभी कर्जों से मुक्ति मिलने की भी मान्यता हैं।</p><p>*शिवरात्रि तीन पहर अभिषेक, पूजन एवं जागरण मुहूर्त*</p><p>चतुर्दशी तिथि प्रारंभ👉 8 मार्च को रात्रि 09.55 से</p><p>चतुर्दशी तिथि समाप्त - 9 मार्च, सायं 06.16 पर। </p><p>रात्रि प्रथम प्रहर पूजन समय👉 सायं 06.25 से रात्रि 09.27 तक।</p><p>रात्रि द्वितीय प्रहर पूजन समय👉 रात्रि 09.27 से 12.31 तक।</p><p>रात्रि तृतीय प्रहर पूजन समय👉 रात्रि 12.31 से 03.05 तक।</p><p>रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजन समय👉 अंत:रात्रि 03.05 से 09 मार्च प्रातः 06.35 तक।</p><p>पारण समय👉 09 मार्च को प्रातः 06.37 से दिन 03.27 तक।</p><p>शिवरात्रि पर रात्रि जागरण और पूजन का महत्त्व-</p><p>माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है। इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है। इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।</p><p>उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। यही नहीं रात्रि प्रिय महादेव से भेंट करने का सबसे उपयुक्त समय भी यही होता है। इसी कारण भक्त उपवास के साथ रात्रि में जागकर भोलेनाथ की पूजा करते है।</p><p>शास्त्रों में शिवरात्रि के पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं महाशिवरात्रि के बाद शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हर मासिक शिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करनी चाहिए। माना जाता है कि इस दिन महादेव की आराधना करने से मनुष्य के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही उसे आर्थिक परेशनियों से भी छुटकारा मिलता है। अगर आप पुराने कर्ज़ों से परेशान हैं तो इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर आप अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। इसके अलावा भोलेनाथ की कृपा से कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है।</p><p>शिवपुराण कथा में छः वस्तुओं का महत्व -</p><p>बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने का अर्थ है कि महादेव की क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए उन्हें ठंडे जल से स्नान कराया जाता है।</p><p>शिवलिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है। फल, फूल चढ़ाना इसका अर्थ है भगवान का धन्यवाद करना।</p><p>धूप जलाना, इसका अर्थ है सारे कष्ट और दुःख दूर रहे।</p><p>दिया जलाना इसका अर्थ है कि भगवान अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर हमें शिक्षा की रौशनी प्रदान करें जिससे हम अपने जीवन में उन्नति कर सकें।</p><p>पान का पत्ता, इसका अर्थ है कि आपने हमें जो दिया जितना दिया हम उसमें संतुष्ट है और आपके आभारी हैं।</p><p>*समुद्र मंथन की कथा*</p><p>समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है</p><p>*शिकारी की कथा* </p><p>एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।</p><p>शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।</p><p>पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।</p><p>कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।</p><p>मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। </p><p>मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।</p><p><br /></p><p>*भगवान गंगाधर की आरती*</p><p>ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।</p><p>त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥</p><p>कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।</p><p>गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥</p><p>कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।</p><p>रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥</p><p>तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।</p><p>तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥</p><p>क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्।</p><p>इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम् ॥ हर...॥</p><p>बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।</p><p>किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥</p><p>धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।</p><p>क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥</p><p>रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।</p><p>चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥</p><p>तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।</p><p>अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥</p><p>कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्।</p><p>त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्॥</p><p>सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्।</p><p>डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ॥ हर...॥</p><p>मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्।</p><p>वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्॥</p><p>सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्।</p><p>इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥</p><p>शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।</p><p>नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥</p><p>अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।</p><p>अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥</p><p>ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।</p><p>रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥</p><p>संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।</p><p><br /></p><p>शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥</p><p><br /></p><p>*त्रिगुण शिवजी की आरती*</p><p>ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।</p><p>ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥</p><p>एकानन चतुरानन पंचानन राजे।</p><p>हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p>दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।</p><p>तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p>अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।</p><p>चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p>श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।</p><p>सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p>कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।</p><p>जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p>ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।</p><p>प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p>काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।</p><p>नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p>लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।</p><p>पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।</p><p>पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।</p><p>भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।</p><p>जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।</p><p>शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।</p><p>त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।</p><p>कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥</p><p> ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा</p><p>ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव....।। </p><p><br /></p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-68338196466048633552024-03-06T12:26:00.000+05:302024-03-08T13:00:11.376+05:30Ayushman card kaise banaye mobile se | खुद मोबाइल से आयुष्मान कार्ड कैसे...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/xMjSnbBtfpQ?si=H5oBkMQuCMSOErBX" frameborder="0"></iframe>Birendr mandalhttp://www.blogger.com/profile/12960986691387531232noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-9530257571102348832024-03-04T16:44:00.001+05:302024-03-04T16:44:00.129+05:30मनोजवं मारुत तुल्य वेगम जितेंद्रियम् बूद्धिमतां वरिष्ठम् वातात्मजं वानरयूथ मुख्यम् श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्धे" <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaj5Omxo0fLoe_AdbnS9lcZk6ifMRhCZ7MV6NPOQXDibnbPXlT4biYOztOntY9D7pTOeVcgRsjvUqRCkTxmSXfeRYmJ0GRIb5gIe9Kk2UBKZkzpIfEr0mBabPvw8gOgyfh_xGf8UwRgTC-DqRXT_Yc58HbY0ZPuuS3IIf7lXogI0Z_Q-lV2cVKekNw7xM/s889/FB_IMG_1709032411808.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="889" data-original-width="617" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaj5Omxo0fLoe_AdbnS9lcZk6ifMRhCZ7MV6NPOQXDibnbPXlT4biYOztOntY9D7pTOeVcgRsjvUqRCkTxmSXfeRYmJ0GRIb5gIe9Kk2UBKZkzpIfEr0mBabPvw8gOgyfh_xGf8UwRgTC-DqRXT_Yc58HbY0ZPuuS3IIf7lXogI0Z_Q-lV2cVKekNw7xM/s320/FB_IMG_1709032411808.jpg" width="222" /></a></div><br />अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।। अर्थात अतुल बल के धाम, सोना के पहाड़ (सुमेरु) के जकाँ कान्तियुक्त शरीर बला, दैत्य रूपी वन के ध्वंस करवाक लेल अग्नि रूप, ज्ञानी सभक महाज्ञानी, समस्त गुण केर निधान, वानर केर स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र हनुमान जी के हम प्रणाम करै छी। हनुमान जी एकमात्र एहन देवता छैथि जे शक्तिशाली, विनम्र आ तुरंत प्रसन्न होमय बला छैथि। एतवे नहि ओ चारू युग मे उपस्थित छैथि। हिनक भक्ति करयबला के कखनो कोनो संकट नहि अबैत छैक। भक्त के कोनो भय नहि सता सकैत छैक। ब्रम्हांडपुराण के अनुसार हनुमानजी के पाँच टा भाई छलखिन जे विवाहित छलाह। नाम रहैन - मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान आ घृतिमान। सभ हनुमान जी सँ छोट छलखिन आ सभ भाई के धिया पुता छलैन्ह ।ब्रह्मपुराण केर अनुसार हनुमानजी के पिता केसरी कुंजर के बेटी अंजना के पत्नी के रूप में स्वीकार कयने छलाह। अंजना बहुत सुंदर छलीह। हिनके गर्भ सँ प्राणस्वरूप वायु के अंश सँ हनुमान केर जन्म भेल छलन्हि। "मनोजवं मारुत तुल्य वेगम जितेंद्रियम् बूद्धिमतां वरिष्ठम् वातात्मजं वानरयूथ मुख्यम् श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्धे" <p></p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-67882997287483033752024-02-27T10:39:00.005+05:302024-02-27T11:30:47.541+05:30मैथिली फिल्म रिलीज होबय जा रहल अछी - अरुण ठाकुर <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYrj6H59Unx_ohCG15OaHkjkOMMYf4MMt3_2mfV307Bv1sDcTrQtvAswN9CNIYpOvlVFMKyQ39cJvWCpNhDitJTN-GIDDhs8B42RC3_moc9FEIJFCIuEUrnz3uabGD5gpVNwtsELdBm64cQ6-u3oEWj3FoP3LfjHaN2pG63qBiQQ0cFnH975IrcaywrMo/s720/FB_IMG_1709010289730.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="695" data-original-width="720" height="309" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYrj6H59Unx_ohCG15OaHkjkOMMYf4MMt3_2mfV307Bv1sDcTrQtvAswN9CNIYpOvlVFMKyQ39cJvWCpNhDitJTN-GIDDhs8B42RC3_moc9FEIJFCIuEUrnz3uabGD5gpVNwtsELdBm64cQ6-u3oEWj3FoP3LfjHaN2pG63qBiQQ0cFnH975IrcaywrMo/s320/FB_IMG_1709010289730.jpg" width="320" /></a></div><br />नया नया मैथिली फिल्म रिलीज होबय जा रहल अछी । सेंसर बोर्ड सार्टिफेकेट जारी केलक मुदा सिनेमा हॉल में जाकय कंजूस मैथिल फिल्म के टिकट खरीदहता से शक भ रहल अछी। <p></p><p>जी ये है साहसी व्यक्ति C M Jha जी है जो संभवतः अगले महीने बड़े पर्दे पर लेकर आ रहे है मैथिली फिल्म "राजा सलहेस " की कहानी । साहसी व्यक्ति इसलिए की अपने बड़े जमा पूंजी को मैथिली फिल्म में लगाया है जिस मैथिली फिल्म की पूंजी की एक रुपया वापसी की उम्मीद कम ही रहती है क्योंकि मैथिली फिल्म को ना ही अच्छे सिनेमा हॉल में जगह मिल पाती है और ना ही मैथिल पैसा खर्च कर मैथिली फिल्म देखना चाहते है ।</p><p>जी हम बात कर रहे है सीएमजे फिल्म्स के वैनर तले बन रही मैथिली फीचर फिल्म राजा सलहेस अगले महीने सिनेमाघरों में आने वाली है। फिल्म को एक साथ सिनेमा हॉल और ओटीटी पर रिलीज किया जाएगा। मिथिला के प्रसिद्ध उद्योगपति और शिक्षाविद चंद्रमोहन झा ने इसे बनाया है। निर्देशन संतोष वादल ने किया है।</p><p>प्रमुख कलाकारों में प्रियरंजन सिन्हा, दिव्या गौतम, पूजा ठाकुर, नवीन चौधरी, अमरनाथ झा, नीरज पाठक, विकास कुमार, प्रदीप शर्मा, ममता शर्मा, प्रियंका गिरि, संतोष कुमार, पूजा, अर्जुन राय, मेरे ग्रामीण भतीजा गुंजन श्री, संजीव कुमार विट्ट आदि हैं। फिल्म में संगीत दिया है ज्ञानेश्वर दुबे ने जवकि सिनेमेटोग्राफी की है अनिल मिश्रा ने। फिल्म की कहानी लिखी है अजित आजाद जी ने जिसमें सलहेस को मिथिला के सुपर हीरो की तरह दिखाया गया है। सलहेस के प्रेम-प्रसंग को भी सलीके से उभारा गया है।</p><p>फिल्म में चौहरमल और सलहेस के बीच के संबंध को समुचित मर्यादा के साथ फिल्माया गया है। इस मैथिली फिल्म में एक्शन है तो प्रेम और करुणा भी है। युद्ध के दृश्यों में वीएफएक्स का इस्तेमाल प्रभावकारी है।</p><p>मेरा मानना ये है की राजा सलहेश का सबसे ज्यादा मंदिर और फॉलोअर मिथिला में पासवान समाज में है और कही भी फिल्म में ऊनलोगों लोगों के पार्टिसिपेशन को इग्नोर किया गया है । अगर प्रोड्यूसर डायरेक्टर इस फिल्म के लिए चिराग पासवान को किसी भी रोल में एडजस्ट करते तो फिल्म का ग्लैमर काफी रोचक होता । हमारे किराड़ी में भी राजा सलहेश का मंदिर है अतः आपको प्रमोशन के लिए ऐसे जगह हो आना चाहिए ।</p><p>फिलहाल मैं बहुत बहुत शुभकामना देता हूं सीएम झा जी के पूरे टीम को की फिल्म जनता में सफल हों ।</p><p> अरुण ठाकुर </p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0दरभंगा, बिहार, भारत26.1542045 85.891845422.385206321939677 50.735595399999994 29.923202678060321 121.0480954tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-73863180319276656482024-02-24T00:00:00.001+05:302024-02-24T12:55:14.081+05:30पंडित भवनाथ मिश्र उर्फ अयाची मिश्र - KIRTI NARAYAN JHA, <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQSjk89RqYIeWSI5Uzj_hHDsX2W8EIDR3gLTBglnf49kMMdVSp0iwV9JUg_gwWSDAPaEq0rLmsVMNPeDhS2Lfe_IQkHR0-FQfiSmxRrQ2Zu0Fqt1tt-0BhzO9Kk9e7ZQ6BxE8OvjxoXxSdIol6abLYiCNd8_BOeaUmzhMtfaixbKS3gOtYzStzchMpbhw/s964/FB_IMG_1708685879663.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="964" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQSjk89RqYIeWSI5Uzj_hHDsX2W8EIDR3gLTBglnf49kMMdVSp0iwV9JUg_gwWSDAPaEq0rLmsVMNPeDhS2Lfe_IQkHR0-FQfiSmxRrQ2Zu0Fqt1tt-0BhzO9Kk9e7ZQ6BxE8OvjxoXxSdIol6abLYiCNd8_BOeaUmzhMtfaixbKS3gOtYzStzchMpbhw/s320/FB_IMG_1708685879663.jpg" width="239" /></a></div><br /> मिथिला आदि कालहि सँ शिक्षा केर क्षेत्र में अपन अग्रणी भूमिका एहि भूमण्डल पर निवाहैत आयल अछि। कवि विद्यापति सँ मंडन मिश्र आदि अनेकों विद्या विशारद एहि धरा के गौरवशाली स्थान प्रदान करैत अयलाह अछि। एहि क्रम में पंडित भवनाथ मिश्र उर्फ अयाची मिश्र केर नाम अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक लेल जा सकैत अछि। चौदहम शताब्दी केर उत्तरार्द्ध में मिथिला केर पवित्र धरती पर सरिसबपाही गाम में हिनक जन्म भेल छल आ जीवन भरि ककरहु सँ किछु याचना नहिं केलखिन तें ई अयाची केर नाम सँ विख्यात भेलाह। हिनक विद्वता केर नाम सूनि क तत्कालीन मिथिला केर नरेश स्वयं हिनका ओहिठाम पहुंच गेलाह। मुदा राजा के देखि हिनका कोनो प्रकार केर व्यवहार में परिवर्तन नहि भेलैन। दोसर दिस महाराज हिनका सभ रूप सँ आर्थिक सहायता करय चाहैत छलखिन। ओ नीक गुरूकुल बना क आचार्य केर उच्च स्थान हुनका देवय चाहैत छलखिन मुदा पंडित जी सभ टा प्रस्ताव के अस्वीकार कय देलखिन कारण ओ भोतिक आ सांसारिक सुख-सुविधा सँ कोनो सम्बन्ध नहि रखैत छलाह। कतवो राजा हिनका स्वास्थ्य केर सुरक्षा हेतु गाय महिष इत्यादि केर देवाक प्रयास केलखिन मुदा पंडित जी मना क देलखिन आ कहलखिन जे हमरा तीन टा अनुपम सांसारिक वस्तु अछि पाँच कठ्ठा धानक खेत, धात्री केर गाछ आ तुलसी चौरा। दू चारि मोन धान भ जाइत अछि भरि साल खेवाक लेल। धात्री गाछ सँ नित्य चारि पाँच टा धात्री (आँवला) हम खाइत छी जाहि में छप्पन भोग भोजन केर स्वाद भेटैत अछि आ तुलसी गाछ में नारायण कें नित्य जल चढवैत छी आ चरणामृत प्राप्त करैत छी अकाल मृत्यु हरणम, सर्व व्याधि विनाशनम अर्थात हमरा कोनो प्रकार केर अकाल मृत्यु केर भय अथवा रोग नहिं होइत अछि। कखनो जँ कनेक मोन उननैस बीस होइत अछि त तुलसी केर काढा पीवि लैत छी पुनः अपन अध्यापन कार्य में लागि जाइत छी। भगवान सँ सदिखन मनवैत रहैत छी जे यावत धरि जीवैत छी सतत गरीब सँ गरीब छात्र के निःशुल्क शिक्षा दान करैत रही। हमरा छात्र लोकनि प्रतीक्षा क रहल छैथि तें आदेश देल जाऊ आ ई कहि पंडित जी पुनः अध्यापन कार्य में लागि गेलाह। ई थिक मिथिला केर स्वर्ण युग केर इतिहास। किछु लोक के इहो मान्यता छैक जे भगवान शिव स्वयं हिनक बालक शंकर के रूप में अवतार लेने रहैथि। आई मिथिला केर माटि एहन एहन महापुरुष के अपन कोखि सँ जन्म देने अछि आ अपन कोरा में खेलेने अछि...<p></p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0सरिसव पाही, बिहार 847424, भारत26.2312094 86.170843100000013-2.0790244361788446 51.014593100000013 54.54144323617885 121.32709310000001tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-24481480107780194982024-02-23T17:34:00.001+05:302024-02-27T17:40:55.122+05:30श्रद्धांजलि! प्रो.हरिमोहन झा<p> श्रद्धांजलि! प्रो.हरिमोहन झा </p><p> (18सितम्बर,1908-23फरबरी,1984)</p><p>"बसाते तेहन छै जे गोष्ठीमे कवियो</p><p>गजल, दादरा आ कब्वाली गबैये</p><p>किछु दिनमे इहो देखब औ बाबू!</p><p>जे कवितो संग तबला बजैये।'</p><p> हरिमोहनझा </p><p>अइ कोठीक धान ओइ कोठी:</p><p>प्रो. हरिमोहन झा एवं हुनक ‘चर्चरी’</p><p>(मैथिली अकादमी पत्रिका,मार्च 1984 एवं अखियासल’, 1995 मे संकलित) </p><p>‘चर्चरी’ नामहिसँ स्पष्ट अछि जे ई कोनो एक विधाक पोथी नहि थिक। जेना चर्चरी एकहि संग विभिन्न व्यञ्जनक सम्मिलित रूप रहितहु, एकटा फूटे स्वाद दैछ, ओहिना प्रो. हरिमोहन झा (1908-23 फरवरी 1984) द्वारा विभिन्न विधामे लिखित रचनाक संग्रह ‘चर्चरी’ सेहो एकटा फूटे स्वाद पाठककेँ दैत अछि। ‘चर्चरी’ मे प्रो. झाक उत्कृष्ट रचनासभ संगृहीत अछि।</p><p>‘चर्चरी’ मे विभिन्न उपखण्ड अछि। कथा उपखण्डमे ‘ग्रेजुएट पुतोहु’, ‘मर्यादाक भंग’, ‘ग्राम सेविका’, ‘परिवर्तन’ ‘युगक धर्म’ ‘महारानीक रहस्य’, ‘पाँचपत्र’, ‘सातरंगक देवी’, ‘नौ लाखक गप्प’, ‘तिरहुताम’, 'ब्रह्माक श्राप’, आ ‘तीर्थयात्रा’ अछि। द्वितीय उपखण्डमे ‘अयाची मिश्र’ एवं ‘मंडन मिश्र’ एकांकी अछि। तेसर उपखण्ड अछि छायारूपक। एहिमे अछि- ‘एहि बाटें अबै छथि सुरसरि धार’। चारिम उपखण्ड अछि ‘झाजीक चिट्टी’। एहिमे अछि संगठनक समस्या। पाँचम उपखण्डमे ‘भोलाबाबाक गप्प’, ‘दलान परक गप्प’, चैपाड़ि परक गप्प’ आ ‘पोखरि परक गप्प’ अछि। प्रहसन उपखण्डमे ‘रेलक झगड़ा’ अछि। खट्टर ककाक तरंग उपखण्डमे ‘प्राचीन सभ्यता’, दर्शनशास्त्रक रहस्य’ आ’ मिथिलाक संस्कृति’ अछि।</p><p>प्रो. झा गप्प लिखल की कथा, एहिपर वेस विचार आ खण्डन-मण्डन होइत रहल अछि। किछु गोटे प्रो. झाकेँ कथाकार रूपमे मानैत छथि तँ किछु गोटे गप्प विधाक प्रणेता एवं आचार्यक रूपमे। सुधांशु ‘शेखर’ चौधरी प्रो. झाकेँ गप्प-साहित्यक प्रणेता एवं आचार्य मानि लिखैत छथि ‘जाहि वस्तुक आधारपर प्रो. झाक रचनामे कथातत्त्वक हेतु अमर रहताह ओ थिक हिनक गप्प-साहित्य(‘सन्दर्भ’)।’ </p><p>प्रो. श्रीकृष्ण मिश्र प्रो. झाक रचनामे कथातत्त्वक अभाव देखि गप्प-साहित्यक अन्तर्गत मानैत लिखल अछि - ‘प्रो. झा लिखलनि ‘प्रणम्यदेवता’, ‘खट्टर ककाक तरंग’, ‘चर्चरी’, ‘रंगशाला’ - एहि सभमे कथाक अंश बड़ कम अछि। हमरा जनैत ई सभ ने कथा थिक आ ने निबन्ध। ई वास्तवमे गप्प थिक जकरा हरिमोहन बाबू अपन प्रतिभाक बलेँ एक नव साहित्य विधा ( genre) रूपमे प्रचलित कयलनि। हिनक ‘चूड़ा दही चीनी’ वा ‘अलंकार शिक्षा’केँ कथा कहब समुचित नहि बुझना जाइछ। ई रोचक गप्प थिक। ओना जे किछु लिखब तँ ओहिमे सूक्ष्मो रूपमे कथा-वस्तु, चरित्र-चित्रण, घटना, वार्तालाप विचार सभ रहबे करतैक, किन्तु ‘प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति’- एहि नियमसँ हरिमोहन बाबूक अधिकांश रचना गप्प प्रधान अछि(प्रो. हरिमोहन झा अभिनन्दन ग्रन्थ)।</p><p>प्रो. आनन्द मिश्र (मिथिला मिहिर,10 अप्रैल,1977) सेहो प्रो. हरिमोहन झाकेँ कथाकेँ कथासँ बेशी गप्प मानल अछि- ‘हुनक कथा, कथासँ वेशी गप्प अछि, बेस चहटकार, तिक्त, कषाय आदि सभसँ युक्त कोनो चरित्र जावत धरि अतिशय नहि करताह, तावत सन्तोषे नहि होइनि।'</p><p>पंरच डा. जयकान्त मिश्र ‘चर्चरी’क एहि कोटिक रचनाकेँ कथा मानैत छथि- Carcari revealed him to be even more successful as a short story writer than as a novelist.' </p><p>प्रो. हरिमोहन झा अपने एहि रचना सभकेँ कथा- साहित्यक अन्तर्गत मानैत लिखैत छथि जे हमर कथा-साहित्यक तेसर मोड़ ‘खट्टर ककासँ प्रारम्भ होइछ।’’ </p><p>पंरच कथा विधाक लेल आवश्यक तत्त्व जखन प्रो. झाक रचनामे तकैत छी जकरा ओ कथा-साहित्यक अन्तर्गत मानल अछि, तँ ओ कथाक अनुरूप नहि भेटैछ। एहि दृष्टिसँ बड़ कम रचना अछि, जकरा कथाक रूपमे अलोचित-विश्लेषित कएल जा सकैछ। इएह स्थिति ‘चर्चरी’क रचनाक संग अछि। किछु केँ बेराए कथाक रूपमे आ शेषकेँ गप्प-साहित्यक रूपमे देखबे विशेष श्रेयस्कर होएत।</p><p>प्रो. झा भारतीय वाङमयक प्रखर सर्जनात्मक क्षमता सम्पन्न रचनाकार छथि। एहन प्रखर क्षमता सम्पन्न रचनाकारक लेल बहुत स्वाभाविक छैक जे ओकर अभिव्यक्तिकेँ वहन करबाक क्षमता कोनो प्रचलित विधाकेँ नहि होअए। तखन ओ जे लिखैछ, ओहिसँ कालक्रमेँ स्वतः एकटा नव विधाक जन्म भए जाइछ। ई तँ निर्विवाद अछि जे प्रो. झा पहिल मैथिल रचनाकार छथि जे अपन रचनासँ अधिकाधिक पाठकक निर्माण कएल। हिनक रचनासँ पाठकक एकटा पैघ समुदाय तैआर भए गेल जे सदिखन प्रो. झाक रचनाकेँ पढ़बा लेल उनमुनाइत रहैत छल। एकटा इहो विशेषता प्रो. झामे छल जे ओ हास्य-व्यंग्य प्रिय मैथिल संस्कारक अनुरूप अपन रचनाक धाराकेँ प्रवाहित राखल, अपन पाठकक एहि प्रवाहकेँ अवाधित रखबा लेल ओ हास्यरसक वर्षा करैत रहलाह, पाठककेँ गुदगुदी लगबैत रहलाह, जाहिसँ एक स्वतन्त्र विधाक, गप्प-साहित्यक निर्माण भए गेल।</p><p>पूर्वहि लिखल अछि जे मैथिल संस्कारहिसँ हास्य- व्यंग्य प्रिय होइत छथि। मैथिलकेँ ओहन कोनो सामाजिक स्थितिक मोकाविला नहि करय पड़लनि जे लोककेँ संघर्षशील बना दैछ। संघर्षशीतलाक अभाव आ पेटक चिन्तासँ निफिकिर लोकमे गप्पक खेती वेशी होइते छैक। एही स्थितिक प्रतिफल थिक जे एकसँ एक गप्पी मैथिल समाजमे होइत रहलाह अछि। एहन गप्पीक उपस्थितिए सँ वातावरणक जड़ता समाप्त भए जाइत छैक। लोक कान खोलि गप्पक आनन्द लिअ लगैछ। एहन-एहन गप्प सुनि दुखियाक मन बहटारल जाइछ तँ बैसल लोकक हँसी-खुशीमे समय कटि जाइछ। ओ आनन्दित भए कौखन द्विगुणित उत्साहसँ अपन-अपन काजो करए लगैछ। मनोरंजक क्षणक उपयोगसँ थाकल ठेहीआएल मन उत्फुल्ल भए जाइछ। प्रो. झाक गप्प-साहित्य मैथिली साहित्यक पाठककेँ एही प्रकारक आनन्द देलक अछि। स्फूर्ति प्रदान कएलक अछि। समय कटबाक एकटा माध्यम भेल अछि।</p><p>प्रो. झाक गप्प-साहित्यक एक खास विशेषता अछि। ई ततेक रोचक आ प्रवाहपूर्ण अछि जे पाठक बिना समाप्त कएने छोड़बा लेल प्रस्तुते नहि रहैछ। हिनक गप्प परी देशक गप्प नहि थिक। ओ जे गप्प कहैत छथि ओ रहैछ मैथिल संस्कृतिक, मिथिलाक समाज आ शास्त्रपुराणक। पाठकक चारूकात पसरल, अथवा घटैत घटनाक संयोजनपूर्ण विनोद आ हास्य व्यंग्ययुक्त प्रभावक शैलीमे रहैत छैक। ‘चर्चरी’मे संगृहीत ‘दलान परक गप्प’, ‘चैपाड़िक गप्प’, ‘घूर परक गप्प’, ‘पोखरि परक गप्प’, ‘प्राचीन सभ्यता’, ‘दर्शनशास्त्रक रहस्य’, ‘मिथिलाक संस्कृति’, ‘सात रंगक देवी’, ‘नौ लाखक गप्प’, ‘महारानीक रहस्य’ आदि एही शैलीमे अछि।</p><p>एहि सभ गप्पक माध्यमसँ हरिमोहन बाबू पाठक समुदायकेँ हँसबैत छथि। कौखन तँ ई हँसी हृदय विदारक भए जाइछ। एहि सन्दर्भमे प्रो. जयदेव मिश्र लिखैत छथि जे समाजक जाहि अंगपर श्री हरिमोहन बाबू देखैबाक हेतु हँसैत प्रहार करैत छथिन्ह, ओतय फोंका धरि बहार भए जाइत छैक। एही कारणेँ हिनक हास्य रचना समान रूपसँ सभक हेतु प्रिय नहि बनि सकलन्हि अछि। ई रचना सभ बहुत स्थलपर जीवन विषयक विषमता एवं विद्रूपताक विनोदपूर्ण अध्ययन होएबाक अपेक्षा विद्रूपता, अतिरंजन मात्र प्रतीत होइत छनि। प्रो. हरिमोहन झाक हेतु सभसँ उपर्युक्त प्रसंग तखन अबैत छनि, जखन ओ भोजन अथवा धर्माचरणक प्रसंगकेँ लए केँ लेखनी चलबैत छथि’ (मिथिलाक हास्य साहित्य, विवेचना, सम्पादकः सुधांशु ‘शेखर’ चौधरी)। </p><p>डा. जयकान्त मिश्रक मत सेहो एही प्रकारक अछि। डा. मिश्रक मतेँ प्रो. झाक कथा-साहित्यमे हँसी तँ उड़ाओल गेल अछि, किन्तु ओही हँसीक माध्यमसँ कोनो बाट देखाइत छैक, से नहि- Harimohan Jha's stories are marred by his obession of finding fault with even some of those things, which form the really noble sublime and good in our culture. While he seeks to shake our confidence in their values, he does not always succeed in offering with any force other alternative values of life.'(History of Maithili Literature, Sahitya Akademi). </p><p>‘चर्चरी’मे प्रो. हरिमोहन झाक सर्वोत्कृष्ट कथा ‘पाँचपत्र’ संगृहीत अछि। पाँच दशकक पति-पत्नीक रागात्मक सम्बन्ध, क्रमशः परिवर्तित होइत दृष्टि आ पारिवारिक दायित्वबोधक जीवन्त कथा थिक ‘पाँच पत्र’। ई पाँचपत्र प्रो. झाक नहि, अपितु मैथिली कथा-साहित्येक एकटा सर्वोत्तम कथा थिक। एहि ‘पाँच पत्र’क प्रसंग कुलानन्द मिश्र (हरिमोहन झा अभिनन्दन ग्रन्थ) लिखने छथि जे ‘अखनो धरि एकटा कोमल आ धड़कैत आ मधुर-चेतना तथा करुण आ उदास नियति बोधक कथाक रूपमे मैथिलीक अन्यतम सफल कथा थिक। एकर अन्तिम पत्रक अन्तमे पुनश्च कहि जोड़ल पाँती जे देवकृष्ण पत्नीकेँ इंगित कए बेटाकेँ लिखने छथि। अद्भुत करुणा आ व्यंग्यक बोध-मोनमे उत्पन्न कए दैछ।</p><p>‘चर्चरी’मे प्रो. झाक दू टा एकांकी संगृहीत अछि- ‘अयाची मिश्र’ एवं ‘मंडन मिश्र’। छओ दृश्यमे समाप्त ‘अयाची मिश्र’ एकांकीमे म.म. भवनाथ मिश्र, प्रसिद्ध अयाची मिश्रक जीवन-दृष्टि, शंकर मिश्रक विद्वता, अतिथि सत्कार, निर्लोभता आदिक दृश्यांकन भेल अछि। दोसर एकांकी ‘मंडन मिश्र’मे शंकराचार्यक मिथिला आगमन, मंडन मिश्रसँ शास्त्रार्थ, विदुषी सरस्वती द्वारा मध्यस्थता, शंकराचार्यक सात वर्षक बाद पुनः आबि, विदुषी सरस्वतीक प्रश्नक समाधान, मंडन मिश्रक संन्यास ग्रहण करब, पत्नी द्वारा सुरेश्वरचार्य नामकरण एवं कर्णफूल उतारि प्रथम भिक्षा देब आदि स्थितिक दृश्यांकन कएने छथि। एहि दुनू एकांकीक माध्यमसँ प्रो. झा मिथिलाक प्राचीन सांस्कृतिक उत्कर्षकेँ प्रस्तुत कए समाजमे उद्बोधन अनबाक प्रयास कएल अछि।</p><p>प्रो. हरिमोहन झाक एहि दुनू एकांकीक ऐतिहासिक महत्त्व एहू लेल अछि जे मैथिली रंगमंचक इतिहासमे हुनक पत्नी, स्वर्गीया सुभद्रा झा मंचपर उतरलि छलीह तथा प्रथम मैथिल महिला रंगकर्मीक रूपमे ख्याति पाओल।</p><p>‘चर्चरी’ मे एकटा प्रहसन संगृहीत अछि ‘रेलक झगड़ा’। रेलगाड़ीमे बैसबा लेल कोना कटाउझ होइछ, तकर एहिमे चित्रण विनोदपूर्ण अछि। किन्तु, जखन पोल खुजैछ, परिचय होइछ तँ सम्भावित समधिनि आ सम्भावित सासु-पुतहु पश्चाताप करैत अछि। सम्बन्ध स्थापित होइछ। ‘रेलक झगड़ा’क प्रसंग डा. वासुकीनाथ झा (हरिमोहन झा अभिनन्दन ग्रन्थ) लिखैत अछि जे ‘रेलक झगड़ा’ मे आधुनिक शिक्षाक वायुसँ कनेक सिहकल दू टा परिवारक विवाह-सम्बन्ध स्थिर करबाक क्रममे आकस्मिकताकेँ हास्यपूर्ण अभिव्यक्ति देल गेल अछि। कन्या देखय-देखयबाक हेतु दुनू भावी समधिनि एवं भावी पुतहुक बीच रेलगाड़ीमे विशिष्ट मैथिल पद्धतिसँ झगड़ा होइत अछि। दुनू पक्षक परिचय खुजैत अछि। पश्चाताप प्रकट कएल जाइछ। अन्तमे वरक माए कन्याकेँ अंगीकार करैत छथि। विषयक दृष्टिसँ एहिमे प्रगतिशीलता भेटैत अछि आ शिल्पक दृष्टिसँ हास्यसँ अधिक फैंटेसीक तत्त्व विद्यमान अछि।</p><p>‘झाजीक चिट्टी’ उपखण्डमे ‘संगठनक समस्या’ पर सम्पादककेँ पत्र लिखल गेल अछि। काजक दिस कम, किन्तु संस्थाक नामकरणपर विशेष घमर्थन होइत छैक। ओहिपर व्यंग्य अछि। प्रतिकूल विचारधाराक व्यक्ति संगठनक काजमे कोना बाधा उत्पन्न करैत छथि, सेहो देखाओल अछि।</p><p>छायारूपक उपखण्डमे ‘एहि बाटे अबै छथि सुरसरि धार’ संगृहीत अछि। एहि छायारूपकक केन्द्र थिक ‘सौराठ सभा’। तिलक-दहेजक उन्मूलन करबा लेल महिला लेकनिक सक्रियताक वर्णन पाँच रीलमे अछि। प्रथम रीलमे तिलक-दहेजक विरोध कएनिहार महिला उपहास्य बनैत छथि। किन्तु क्रमशः जागृति अबैत जाइछ आ पाँचम रीलमे आबि स्वयंवर होइछ। तिलक-दहेजक घृणित प्रथा समाप्त होइछ। प्रो. हरिमोहन झा केहन भविष्य द्रष्टा छलाह, हिनक दृष्टि नारी-जागरण एवं कल्याणक लेल कतेक तत्पर छल, तकर ज्वलन्त प्रमाण थिक ‘एहि बाटें अबैत छथि सुरसरि धार’। जहिआ ई रूपक लिखल गेल, ओहि समयमे ई असंगत छल छे ‘सौराठ सभा’मे महिला लोकनि पैर दए सकतीह। किन्तु गत किछु वर्षमे एहि छायारूपक पहिल रील - महिला संगठन सभामे जाए दहेजक विरोधमे बाजए लगलीह अछि। नारी जागरणक अग्रदूत प्रो. हरिमोहन झाक एहि रचनाक अन्तिम रील कहिआ सत्य होएत तकर प्रतीक्षा अछि। तिलक-विनाशिनी सुरसरि सौराठ मार्गसँ तिलक दहेजक प्रथाकेँ कहिआ आत्मसात कए, लाखो कन्याक बापकेँ बलि होएबा सँ बचबैत छथि, तकर प्रतीक्षा छैक। एहि छायारूपकक कथ्य जहिना सामाजिक एवं समसामायिक अछि, ओहिना प्रस्तुति सेहो आकर्षक। एकर अन्त संगीतमय अछि। संगीतमय अन्त लोकक मन-प्राणकेँ आच्छादित कएने रहैछ-</p><p>‘भागू दूर घटक पंजियार</p><p>होउ बरागत आब होशियार</p><p>आब नहि चलत तिलक रोजगार</p><p>नहि केओ टाका गनत हजार</p><p>समटू अपन हाट बाजार</p><p>एहि बाटे अबै छथि सुरसरि धार।’</p><p>प्रो. हरिमोहन झाक कतेको उत्कृष्ट रचना ‘चर्चरी’मे संगृहीत अछि। एहि उत्कृष्ट रचनाकेँ जँ फूटसँ पढ़ल जाइछ तँ ओकर उत्कृष्टता प्रभावित करैत छैक। किन्तु ‘चर्चरी’ मे पड़ि ओ ‘भोलाबाबाक गप्प’मे तेना ने स्पन्दनहीन भए गेल अछि जे ओकर स्वादक पता, तकला सँ लगैछ।</p><p> ‘चर्चरी’क प्रसंग प्रो. निगमानन्द कुमरक कहब छनि (अखिल भारतीय लेखक सम्मेलन, रचना संग्रह,भाग-4, वैदेही समिति, दरभंगा) जे आइ जँ मैथिली पाठकगणक बीच ‘चर्चरी’केँ सेहो लोकप्रियता भेटि रहल अछि तँ ई हमरा सभक हीन दृष्टिकोणक प्रमाण दए रहल अछि। जे स्वस्थ व्यंग्य लए श्री हरिमोहन बाबू ‘कन्यादान’सँ यात्रा आरम्भ कएलैनि, बुझाइत अछि जे रस्तेमे साँझ भेल देखि दृक् भ्रमित भए गेलाह। ‘प्रणम्य देवता’ सन उत्कृष्ट व्यंग्य ओ हास्यक खट्टमिठी दोसर नहि भेटल, मुदा ‘खट्टर कका’क संग पड़ि हुनक शास्त्रार्थमे श्रीहरिमेाहन बाबू तेना ने ओझरा गेलाह जे ‘चर्चरी’ धरि अबैत एना लगैत अछि जेना डुमराँवमे ट्रेनक दुर्घटना कए गेल हो, जाहिमे मात्रा हल्ला अर्थात् गप्प आर ठहाकाक किछु बुझाइत अछिये नहि। साहित्यसँ दूर रहि साहित्यकेँ समय कटबाक साधन बूझि जे लोकनि ‘भोलाबाबाक’ चैपाड़िक सक्रिय सदस्य छथि, तनिके मन मोहिनी छथिन्ह ‘चर्चरीदाइ’।</p><p>प्रो. हरिमोहन झाक रचनाक मूलस्वर समाजोन्मुख आ उद्वोधनात्मक अछि। परंच, ई समाजोन्मुखता व्यापक नहि अछि। किछु निश्चित निर्धारित क्षेत्र अछि, जाहिपर कलम उठबैत रहलाह अछि। प्रहार कए हँसबैत रहलाह अछि। तेँ प्रो. झाक समाजोन्मुखताक तात्पर्य ई नहि जे समाजमे व्याप्त विषमता आ शोषणपर प्रहार कएल अछि। समाजोन्मुखताक मतलब ई नहि, जे समाजमे व्याप्त आर्थिक दुःस्थिति जन्य विसंगतिक अभिव्यक्ति कएल अछि, प्रो. हरिमोहन झाक समाजोन्मुखताक मतलब नहि जे ओ सामाजक ओहि वर्गक सामाजिक स्थिति अथवा राजनीतिक स्थितिकेँ स्वर देल अछि, जे युग-युगसँ सुविधाभोगी वर्ग आ धन-धान्यपूर्ण व्यक्तिक पैरतर पिचाइत रहल अछि। समाजोन्मुखताक मतलब ई नहि जे हिनक रचना ओहि सामाजिक चेतनाक अभिव्यक्ति थिक जाहिमे भूखक ज्वालामे झरकल, शोषण, उत्पीड़न, सम्बन्धवाद, राजनीतिक सुतार-नीतिक जालमे फँसल लोक, किछु कए जयबा लेल विवश भए जाइछ। अपितु, हरिमोहन बाबूक रचनामे विधि-व्यवहार, शास्त्रीय मान्यता, मिथिला-भाषा आ संस्कृतिक मैथिले द्वारा उपेक्षा अथवा ओकर विकासक प्रति अन्यमनस्कताक अभिव्यक्ति विशेष रुचिपूर्णक भेल अछि। तेँ अधिकांश रचना पढ़लापर विचारक उन्मेष नहि होइछ, पाठक अभिप्रेतपर सोचबा लेल प्रेरित नहि होइछ, वैचारिक मंथन नहि होइछ। अपितु अधिकांश रचना पढ़लापर गुदगुदी लगैछ। कौखन व्यंग्यास्पदपर दया सेहो होइछ, पंरच एक बेर हँसा गेलापर ओकर प्रभाव बिला जाइत छैक।</p><p>स्रोत : मैथिली अकादमी पत्रिका, मार्च 1984</p><p>एवं अखियासल’1995 मे संकलित।</p><p>साभार आदरणीय - Ramanand Jha Raman</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-48219901894136073272024-02-23T16:11:00.006+05:302024-02-24T12:57:54.095+05:30उच्चैठ भगवती - KIRTI NARAYAN JHA<p>"या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।. </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtQfiTNrjhf8ZKFRuRjv_yjpXw_SRI1SLiPT47JmSw6KxSzG2Vhbjn_R1acuJS8-7XY5i2tdgjUnW0WTzlNmZ0uLSJDHLcsfsa0RNmGvBKNbGQeNhhmpobORX2TQMHubtPWrIdAG4QZ-NMzOLjUEn7ZTkmf8k4MJ-BdDO_DHR6S4ISljIevJSt-qGALp0/s720/FB_IMG_1708683944811.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtQfiTNrjhf8ZKFRuRjv_yjpXw_SRI1SLiPT47JmSw6KxSzG2Vhbjn_R1acuJS8-7XY5i2tdgjUnW0WTzlNmZ0uLSJDHLcsfsa0RNmGvBKNbGQeNhhmpobORX2TQMHubtPWrIdAG4QZ-NMzOLjUEn7ZTkmf8k4MJ-BdDO_DHR6S4ISljIevJSt-qGALp0/s320/FB_IMG_1708683944811.jpg" width="320" /></a></div><br /> उच्चैठ मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी थाना मे अछि । एतय माँ भगवती के एकटा पुरान आ पैघ मंदिर अछि । ई स्थान कमतौल रेलवे स्टेशन सँ २४ कि०मी० उत्तर आ दरभंगा सँ बस सँ सीधा जूडल अछि । एहि दुर्गा मंदिरक अपन खास ऐतिहासिक महत्व अछि । एकटा पौराणिक कथाक हिसाब सँ एतय कालीदास रहैत छलाह । कालीदास पहिने महामूर्ख छलाह ।<p></p><p> ओहि समय सदानंद नामक एकटा प्रसिद्ध राजा छलाह । हुनक बेटी विद्योतमा सुंदर आ गुणवती छ्लीह । विद्योतमा वियाहक लेल आयल अनेको राजा सँ वियाह करबा सँ मना दऽ देलनि आ प्रण केलनि जे ओ हुनके सँ वियाह करतीह जे हुनका सँ बेसी गुणवान हुअए । एहि सँ अपमानित भेल राजाक पंडित लोकनि बदला लेबाक लेल सोचलथि आ एकटा महामूर्खक खोज मे लागि गेलाह । एक दिन हुनका लोकनिक नजरि कालीदास पर पड़ल, जे एकटा गाछक डारि पर बैसल छलाह आ ओकरहि काटि रहल छलाह । विद्वान लभ सोचलाह जे एहि सँ पैघ मूर्ख कतय भेटत । ओ कालीदास कें राजा सदानंदक दरबार मे लऽ गेलाह आ विद्योत्मा सँ हुनक वियाहक प्रस्ताव केलनि । पंडित लोकनि इहो कहलाह जे एखन ई मौन व्रत धाराण केने छथि आ तें इशारा मे गप्प करैत छथि ।</p><p> विद्योत्मा दरवार मे उपस्थित भेलीह आ मौन रूप सँ प्रश्न पूछैत एकटा आँगुर उठेलीह, जेकर अर्थ भेल - ईश्वर एक छथि । कालीदास सोचलाह जे ई हमर एकटा आँखि फोड़य चाहैत अछि तँ हम हिनक दुनू फोड़ि देब आ तें ओ अपन दूटा आँगुर उठा देलनि । विद्योत्मा बुझलीह जे ई ईश्वरक दू रूप बतबैत छथि आ तें दूटा आँगुर उठेलनि अछि । पुन: दोसर प्रश्न मे विद्योत्मा अपन पाँचो आँगुर उठेलनि जेकर अर्थ भेल _ मूल तत्व ५ अछि । कालीदास सोचलाह जे ई हमरा थापड़ मारत तँ हम एकरा मुक्का मारब आ ओ पाँचों आँगुर बान्हि मुक्का देखेलनि । विद्योत्मा सोचलीह जे हिनक आशय ५ तत्व सँ मीलि कें बनल शरीर सँ अछि आ विद्योत्मा हारि मानि लेलनि । एवं प्रकारे कालीदास आ विद्योत्माक वियाह भेल । परंतु बाद मे वास्तविक स्थितिक ज्ञान भेला पर विद्योत्मा कालीदास कें अपमानित कऽ घर सँ निकालि देलनि ।</p><p>तत्पश्चात कालीदास विद्याध्ययनक लेल उच्चैठ पहुँचलाह आ एहिठाम रहि सभ शास्त्रक ज्ञाता भऽ गेलाह । आइयो लोक एहिठामक माँटि अपन घर लऽ जाईत अछि आ विश्वास करैत अछि जे दुर्गाक कृपा सँ हुनको घर मे कालीदास सन विद्वान जन्म लेथिन । माँ उच्चैठ भगवती सभक कल्याण करैथि एहि मंगलकामना केर संग जय माँ जगतजननी जगदम्बा 🙏</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0ucchaith, FV7H+J5M, durgasthan, Benipatti, Dhanauja, Bihar 847223, भारत26.4640898 85.8779081-1.8461440361788455 50.7216581 54.774323636178849 121.0341581tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-6617215915281250372024-02-22T10:57:00.002+05:302024-02-22T10:57:18.850+05:30जैसी करनी वैसी भरनी - Mamta Jha <p>आदिकाल से ही देखा गया है कि जो लोग जैसा भाव रखते हैं सबके प्रति उनको वैसा ही उपहार परिणाम में मिलता है।</p><p>महाभारत एक पूर्ण न्यायशास्त्र है और चीर-हरण उसका केन्द्रबिन्दु है ! इस प्रसङ्ग के बाद की पूरी कथा इस घिनौने अपराध के अपराधियों को मिले दण्ड की कथा है। वह दण्ड, जिसे निर्धारित किया भगवान श्रीकृष्ण ने,जिन्होंने किसी को नहीं भी छोड़ा... </p><p>दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दुशासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।</p><p>भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए देखे... </p><p>भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब तक सब देख नहीं लिया, तब तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था। </p><p>धृतराष्ट्र का दोष था पुत्र मोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।</p><p>दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो श्रीकृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई। अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या नहीं.. वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।</p><p>युधिष्ठिर ने स्त्री को दांव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... </p><p>धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा?</p><p>दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने ही उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके... </p><p>उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, श्रीकृष्ण और बर्बरीक। </p><p> श्रीकृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से मना कर दिया जिससे आततायियों को पीड़ित ही दंड दे सके तथा बर्बरीक को भी रोक दिया क्योंकि यदि बर्बरीक का वध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। श्रीकृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, वे तो कृष्णा के अपराधियों को दण्ड दिलाने उतरे थे।</p><p>कुछ लोग कर्ण का बड़ा महिमामण्डन करते हैं । कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा या कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। द्रौपदी के अपमान में किये गए सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि वह महानीच व्यक्ति था और उसका वध ही धर्म था। </p><p>स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दांव पर लगाया जाय।</p><p>श्रीकृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया। देवकी का बाल पकड़ा कंस ने, और द्रौपदी का बाल पकड़ा दुशासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है। भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो... यही न्याय है , यही धर्म है... </p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-65703081759084546242024-02-14T12:05:00.005+05:302024-02-16T12:09:38.358+05:30 जे नै पढ़ब हुनकर सातो विदिया नाश - Ishanath Jha <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgr07TztRALn3ym0NNzX9PxKbdhBJR6do7AaT2pJJzsKk9tecqVqipNUsb8-ZU8G83Ht6mclPdtcGmx-9Gslfe10JtaMPGKVPGdWljD6FX-LFQ_sTE5NciqMDrPbunNRURZoZFUyTgX3wfnRHKQkQcahNN7tgJxhpIiQomvdFY1efGyagFlwIVt9w8l9qI/s848/FB_IMG_1708064153325.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="848" data-original-width="650" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgr07TztRALn3ym0NNzX9PxKbdhBJR6do7AaT2pJJzsKk9tecqVqipNUsb8-ZU8G83Ht6mclPdtcGmx-9Gslfe10JtaMPGKVPGdWljD6FX-LFQ_sTE5NciqMDrPbunNRURZoZFUyTgX3wfnRHKQkQcahNN7tgJxhpIiQomvdFY1efGyagFlwIVt9w8l9qI/s320/FB_IMG_1708064153325.jpg" width="245" /></a></div><p>वसंतोत्सव प्रारंभ भ' चुकल अछि। प्राकृतिक छटा, नैसर्गिक सौंदर्य, अप्रतिम प्रेम, अलौकिक कामक अनुभूतिक दिन आबि चुकल अछि। वसंतक अवतरण आम्रवृक्षक मादक मंजरी आ अशोकवृक्षक रक्त किसलय ओ पुष्पक संग वसंत पंचमी कें प्रकृति आ' मानवीय प्रेमक सजीवन स्नानार्थ महाकुम्भ बना रहल अछि। प्रकृति चारू कात सकारात्मक ऊर्जा कें चरमोत्कर्ष पर पहुँचा देने अछि। विभिन्न कला आ प्रेम प्रकृतिक पीत पुष्प सँ नयनाभिराम सौंदर्य मे पीयर साड़ीमे नवयौवना जकाँ खिलि उठल अछि। तात्पर्य जे चतुर्दिक् प्रसन्नता पसरल अछि।</p><p>मुदा, वसंत ऋतुक देवता भगवान मन्मथ मुरझायल सन अशोथकित उदास मुद्रामे अपन महल मे विरहा गाबि रहल छथि। पत्नी श्रीमती रति अपन प्रिय पति श्री कामदेवक एहि क्लांत छविक कारण पुछैत छथि, " प्रियवर ई तऽ अहाँक मास आयल अछि, एखन तँ अहाँक समय थिक तखन म्लानमुख कियैक ?"</p><p>"हे मानिनि देवि रति, हमर प्रभाव प्रतिदिन क्षीण भेल जा रहल अछि, हमर काममयी तीर निस्तेज भेल जा रहल अछि, भोथ भ' गेल अछि लगैए, पृथ्वी परहक मनुष्य पर कोनो असरि नहि करैत अछि। तीव्र वैज्ञानिक प्रगति आ आधुनिकताक अंधानुकरणक फलस्वरूप वासंती मासक प्रकृति प्रदत्त सुषमा शनै:-शनै: क्षीण भेल जा रहल अछि, प्रिये", मिझायल स्वरमे उत्तर देलनि कामदेव।</p><p>"स्वामी, पर्यावरण प्रदूषण सँ तs सहमत छी जे भारतवर्षक पृथ्वी पर ओ नैसर्गिक सौंदर्य नहि रहल, मुदा ई मोन नहि मानि रहल अछि जे अहाँक मदनवाण अप्रभावी भ' गेल अछि ! के के नै शिकार भेल छथि ओहि वाण सँ, जे देव, दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नड़ कें नहि छोड़लक से मनुष्य लग केना विफल होएत प्रभु ?"</p><p>एवंप्रकारेण दुनू परानी घमर्थन करैत रहलाह मुदा कामदेवक मुखाकृति पर कोनो तरहक ऊर्जाक संचार नहि भेटलनि। "चलू तखन पृथ्वी पर अपन जम्बूद्वीपक वास्तविकताक दर्शन करब, प्रिये !"</p><p>ऋतुराज आ रति --- वसुधा पर पदार्पण करैत छथि पाटलिपुत्रक पवित्र धरती पर आ रति एहिठामक हल्ला-हुच्चड़, मारा-मारी, जिंदाबाद-मुर्दाबादक कनफोड़ा ध्वनि सँ हतप्रभ भेल छगुन्तामे जे पड़ि गेली आ कामदेव सँ आग्रह केलनि जे शीघ्रे पड़ाऊ एतय सँ। रतिपति कामदेव राजपथ पर बहुरंगी झंडा धारण केने 'जिंदाबाद-मुर्दाबाद' करैत श्वेतवसनधारी एहि भारी भीड़ कें देखि स्वयं हतप्रभ छलाह। राजभवनक मुख्य द्वारि पर एकटा भीड़ भरल लाइनमे धक्कामुक्की करैत स्वस्थ श्यामल मुष्टंडा पर पर अपन पुष्पवाण छोड़लनि मुदा, ई की ? युवक ओकरा हाथ सँ झाड़ि लेलक आ तरहत्थी कें पोनसँ पोछि फेर जिंदबाद करय लागल। आब अचंभा रति कें भेलनि, तामसो भेलनि। चोट्टहि पतिक संग युवक लग जाए ओकरा पुछलनि, </p><p>"हे रौ मनुक्ख ! तों जुआन छह, स्वस्थ छह, की तोरा 'काम' सँ कोनो लगाव नहि छौ ? कामवाण तोरा पर कोनो प्रभाव कियै नहि छोड़लक ? कथीक दाबी छौ एते जे तों हमर पुष्पवाणक अपमान करमें ?"</p><p>खौंझायल युवा नेता चिचिआइत बाजल, " देखै नै छियै काजमे लागल छी ! अहीलेल तऽ भोरसँ निसाभाग राति धरि छिछियाएल फिरैत छी। लाख दुनमरी काज करैत कहुना कें एमएलए बनलौं। आब एखन मौका छै मंत्री बनबाक तऽ हम अहाँमे लटपटा जाऊ? वाह रे देवता ! एकबेर सप्पत खा लै छी संविधानक आ तकरा बाद हम छीहे आ अहूँ छीहे !"</p><p>"ई कोन महत्त्वपूर्ण काजमे एते अस्त-व्यस्त छी औ, अहाँक उमेरमे लोक मस्त रहैए !", पस्त होइत ऋतुराज कहलनि।</p><p>"हे यौ ऋतुराज, हम एकैसम शताब्दीक भारतमे रहैत छी,</p><p>एखने मोबाइल कें आधारकार्ड सँ लिंक कराके अनलहुँ, विभिन्न कोर्ट सँ एनओसी अनने छी आ आब बैंक खाताकें आधारकार्ड सँ लिंक करेबाक लेल लाइनमे पठौने छी अपन दूत सभकें। हमर पत्नी काल्हिए सँ अपन लिंक सँ जोर लगेने छथिए !ओ अभगला पीएं जे दसे बजे किछु इंतजाम करबा लेल गेल से एखन धरि फोन तक नहि केलक अछि। आ' अहाँ 'काम', 'प्रेम', 'प्रणय' आदि विषय पर प्रवचन द' रहल छी। भारतक कोनो मूर्ख सँ मूर्ख नौजवान लग समय नहि छैक एहि सबहक लेल। एतय सामान्य लोक कें जीबाक लेल आधारकार्ड जरूरी छै। नेता सबकें सरवाइव करबाक लेल सत्ताक शीर्ष पर बैसल लोकसभ सँ लिंक रखबाक आवश्यकता छै ! आ' हे, एकटा सलाह दियऽ, अहूँ अपन वाणक संपूर्ण स्टॉक कें आधार सँ लिंक करा ने लियऽ तखने ओकर महिमा वा ई कहू जे वैधता आपस आएत ! ई कहैत युवक लाइनमे आगू ससरि गेल।</p><p>रति महारानी 'लिंक' शब्दक अर्थमे ओझराएल रहली आ कामदेव ठोहि पाड़िकें कानय लगलाह !</p><p>प्रश : जखन सप्पत खाइ बेरमे विद्या साते टा होइ छै तखन मैथिलक लेल तेरहम विद्या की होइ छै?</p><p>■ईशनाथ झा</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0मधुबनी, बिहार, भारत26.3482938 86.071166115.558043118528019 50.914916100000056 37.138544481471982 121.22741609999994tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-68019280312006161822024-01-27T19:51:00.003+05:302024-01-29T20:09:41.780+05:30Vidyapati Nagar Jalpura Greater Noida West me Vidyapati Smrit Parv Samaroh Smapany bhel <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dwYr81llAIHpdmtMvjRcx3yFQ7gYsilwkXh7GBzbOZf-9TIiCNWv7FGWNlffNn7fErLzNedp1binBLGXAqjQg' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe></div><br /><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dyepEcU-_5_XG20cu919BLPo1HZYJuikkUw68AVXVuZGm0xru9GKDblwTp8eD6ZP3T6jZFkCshcZ7kss6E34w' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' 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112.5864173tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-73298964769903801182024-01-14T18:18:00.001+05:302024-01-14T18:18:00.186+05:30राम मन्दिर का 22 जनवरी - 2024 का उद्घाटन<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaVXoc1_S5HMfgWZp39K58Sf4kNk1MiA8SKR_MWWiAH-d-o5fP_h0PL8xBK0IR0YeRfY2_S5q7Rp1L_3c-bb6QmlXc5L1gwqXvaLGsfx2kLF5zj2GDxVY5GGzaDBWDVhR5RnpSS-G2-eoSOcH15guZbGqAN8wvyfKdARz111Bwg7hsovruF_C1h9A47do/s414/images.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="233" data-original-width="414" height="160" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaVXoc1_S5HMfgWZp39K58Sf4kNk1MiA8SKR_MWWiAH-d-o5fP_h0PL8xBK0IR0YeRfY2_S5q7Rp1L_3c-bb6QmlXc5L1gwqXvaLGsfx2kLF5zj2GDxVY5GGzaDBWDVhR5RnpSS-G2-eoSOcH15guZbGqAN8wvyfKdARz111Bwg7hsovruF_C1h9A47do/w285-h160/images.jpeg" width="285" /></a></div><br /> राम मन्दिर का 22 जनवरी 2024 का उद्घाटन और शंकराचार्य का नही सम्मिलित होना विरोध का स्वर नही है <p></p><p>राम मन्दिर अयोध्या में बनना ऐतिहासिक है। जब मन्दिर का निर्माण हुआ है तो मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी होना ही है। 22 जनवरी को ज्योतिषियों के मुताबिक कई शुभ योग बन रहे हैं। इस तिथि को शुरुआत में तीन शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग बन रहे हैं इसके अतिरिक्त यह ऐसा दिन है जो राम भक्तों की कुर्बानी को याद दिलाता है। सनातन धर्म महान इसिलिए भी है कि यहाँ लोगों को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है। एक विषय पर अनेक मत सम्भव है। इस सन्दर्भ मे चार शंकराचार्य द्वारा उसमे भाग नही लेना उचित तो नही लग रहा है परंतु यह आश्चर्य का विषय नही है। शंकराचार्य ज्ञान परम्परा के सर्वश्रेष्ट व्यक्ति ही नही संस्था हैं। इसको सभी जानते हैं। सम्मान भी करते हैं। सभी शंकराचार्य शास्त्र को सर्वोत्तम मानते हैं और उसी अनुरुप जीवन जीते हैं। लेकिन उनका 22 जनवरी 2024 को अयोध्या नही जाना न तो सरकार विरोधी और न ही सनातन विरोधी कर्म के रूप मे देखने की जरूरत है। लोग बात को जोड़ तोड़ कर कह रहे हैं। यह उचित नहीं है। जो लोग कल तक शंकराचार्य को गाली दे रहे थे आज उन्हें शंकराचार्य का नही जाने का निर्णय अमोघ अस्त्र के समान लग रहा है। वे उनके हितैषी बन रहे हैं। यह तो अलग ही अवस्था है भाई! </p><p>लोग स्वयं के घर और देवालय मे भी पुर्ण निर्माण से पहले प्रवेश करते रहे हैं। यह नूतन और शास्त्र विरुध्ध कार्य नही रहा है। </p><p>कहता चलूं की राजा अद्वैत है क्योंकि वह एक है। प्रधान मंत्री जनप्रतिनिधि होने के कारण राजा हैं। एक ऐसा राजा जिसका चयन जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधर पर हुआ है। एक ऐसा राजा जो जन जन का प्रतिनिधित्व करता है। अतएव प्रधानमंत्री स्वत: यजमान हो जाते हैं। उन्हें प्राण प्रतिष्ठा करने का अधिकार स्वत: हो जाता है। सभी शंकराचार्य का यह दायित्व हो जाता है कि अपनी भव्य उपस्थिति से और ज्ञान से यज्ञ को सार्थक करें। एक नैयायिक की तरह देखें कि प्राण प्रतिष्ठा का विधान शास्त्र सम्मत हो रहा है या नही। सभी पूजा, धार्मिक कार्य, देवालय इत्यादि का सम्पादन राजा के द्वारा ही होता रहा है। इसपर राजा का ही अधिकार रहा है। राम ने जब त्रेता युग में राजसीयू यज्ञ किया तो राम ही यजमान थे । वशिष्ठ पुरोहित बने थे न कि यजमान। इस यज्ञ मे पुरोहित तो ब्राह्मण ही है। ब्राहमण का धर्म ही है पुरोहित होना और सम्पादन को सही तरह से अंजाम देना। डॉकैलाशकुमारमिश्र </p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-56269447835548361742024-01-12T10:23:00.003+05:302024-01-12T10:23:46.003+05:30<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-g7qYpfxcTKMLggq5c1I5nmDotHkEaQMXfQ5KaxyB-NmwPahly_922oL0s606984Y56N6rsZFmRQTLb1mz4OkBXslbEE37UIaFeDKZBrHo-plbwW-uz13olXZHDJBvLvd1Nr2XX2o4hhYyeLJpAzNR9PH9AbvdMlVJXc5KCCe37870pwCgnhq1-7_C2Y/s960/FB_IMG_1705034737002.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="720" height="383" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-g7qYpfxcTKMLggq5c1I5nmDotHkEaQMXfQ5KaxyB-NmwPahly_922oL0s606984Y56N6rsZFmRQTLb1mz4OkBXslbEE37UIaFeDKZBrHo-plbwW-uz13olXZHDJBvLvd1Nr2XX2o4hhYyeLJpAzNR9PH9AbvdMlVJXc5KCCe37870pwCgnhq1-7_C2Y/w288-h383/FB_IMG_1705034737002.jpg" width="288" /></a></div><br />मैथिली कवि कोकिल विद्यापति केर रचना में शिव पार्वती केर हास्य व्यंग्य केर चर्चा बेसी भेटैत अछि यथा "नित उठि गौरी शिव के मनावथि करू बीघा दूई खेत" अथवा "गौरी दौड़ि दौड़ि कहथिन हे मोरा भंगिया रूसल जाइ" इत्यादि अनेकों रचना लिखलाह।. एहि हास परिहास केर वातावरण एवं स्थान केर संदर्भ में मधुवनी जिला केर राज राजेश्वरी मन्दिर डोकहर (दुखहर) जे मधुबनी शहर सँ बारह किलोमीटर उत्तर में बरहन बेलाही गाम के निर्जन स्थान में बिन्दुसर पोखैर के कात में अवस्थित अछि। एहि स्थान के शिव पार्वती के रमणीय स्थली के रूप में सेहो जानल जाईत अछि ।एहि ठाम केर शिव पार्वती केर मूर्ति केर भाव भंगिमा आ युगल मुद्रा एहि बात केर प्रत्यक्ष प्रमाण दैत अछि। एहि कारण सँ एहि स्थान केर नामकरण दुखहर राखल गेल जे एहि बात केर परिचायक अछि जे जाहि ठाम स्वयं देवाधिदेव महादेव आ माता पार्वती केर विलास स्थान छैन्ह ओहिठाम कोनो दुःख केर स्थान कोना भेटि सकैत छैक। एहिठाम राज राजेश्वरी के परब्रम्ह के महाशक्ति केर रूप में आदि कालहि सँ पूजा होइत आयल अछि। ऐतिहासिक तथ्य केर अनुसार जखन बुद्ध धर्म केर प्रचार प्रसार ब्राम्हण धर्म सँ प्रतिशोध लेवाक लेल जोर पकड़लकै त मूर्ति केर क्षति पहुंचेवाक आशंका सँ मूर्ति के लग केर चन्द्रभागा नदी में नुका क राखि देल गेल रहैक जे बाद में किछु दिनुका बाद पुनः अपन यथा स्थान स्थापित कऽ देल गेलैक। आई ओ भव्य स्थान श्रद्धालु केर लेल सृष्टि केर प्रलय हारी, करूणामयी, श्रृंगारिक आ ओजस्वी रूप में दुखहर बनि कऽ बिराजमान छैथि आ सतत अपन भक्त केर आशीर्वाद दैत छथिन्ह ।जँ भक्त हिनक दरवार में सत्य आ निश्छल भाव सँ उपस्थित होइत छैथि त हुनकर समस्त दुःख केर अंत आ मनोकामना अवश्य पूर्ण होइत छैन्ह। जय राज राजेश्वरी .<p></p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-89234434917542522492024-01-11T10:40:00.002+05:302024-01-11T10:40:19.302+05:30हमारी खुशी किस में<p> एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे, पुराने डोंगे, कटोरियां, प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।</p><p>*फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और नववर्ष पर लाए हुए बर्तन तरीके से रखकर सजा दिए।</p><p>*बड़ा ही सुंदर लग रहा था अब किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले को दे दिया तो समझो हो गया काम।</p><p>*इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए बर्तनों पर गई और बोली - बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या ?</p><p>*और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।</p><p>*महिला बोली - अरी नहीं! ये सब तो भंगारवाले को देने हैं।</p><p>*कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आँखें एक आशा से चमक उठीं और फिर बोली - मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं ? (साथ ही साथ में उसकी आँखों के सामने घर में पड़ा हुआ उसका तलहटी में पतला हुआ और किनारे से चीर पड़ा हुआ इकलौता पतीला नजर आ रहा था।)</p><p>*महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा। उतना ही पसारा कम होगा।</p><p>*कामवाली की आँखें फैल गईं - क्या! सब कुछ ? उसे तो जैसे आज नए साल पर अलीबाबा का खजाना ही मिल गया हो।</p><p>*फिर उसने अपना काम फटाफट खत्म किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर की ओर निकली।</p><p>*आज तो जैसे उसे चार पाँव लग गए थे। घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया, और फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिया।</p><p>*आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना भरा पूरा सुंदर दिख रहा था।</p><p>*तभी उसकी नजर अपने बहुत पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई - अब ये बेकार सामान भंगारवाले को दे दिया तो समझो हो गया काम।</p><p>*तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- माँ! पानी दे।</p><p>*कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।</p><p>*जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली - फेंक दो कहीं भी।</p><p>*वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए ? क्या मैं रख लूँ अपने पास ?</p><p>*कामवाली बोली - रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ और फिर उसने जो-जो भी बेकार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।</p><p>*वो भिखारी भी खुश हो गया।</p><p>*पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।</p><p>*आज ऊसकी फटी झोली भरी भरी दिख रही थी।*</p><p>*ये सब क्या है? सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।</p><p>*हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है..!!*</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-18300571681001569602023-12-28T10:35:00.007+05:302024-01-06T10:09:48.951+05:30सकारात्मकता <p> सकारात्मकता खुशबू की तरह है, जो हमें ही नहीं, पूरे वातावरण को महका देती है। डर और आशंकाओं को मन से निकाल कर यदि हम सकारात्मक सोचें तो हमारा पूरा परिवेश खुशियों की महक से भर जाएगा...</p><p>लोककथा है। गर्मी और थकान से हारा एक मुसाफिर एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठ गया। संयोग से वह जिस पेड़ के नीचे बैठा, वह कल्पवृक्ष था। कथाओं में कल्पवृक्ष एक मिथक है, माना जाता है कि उसके नीचे बैठ कर जो</p><p> कल्पना की जाए, वह फलीभूत होती है।वहां बैठकर उसने सोचा कि काश, कहीं से खाने को कुछ मिल जाता। अचानक उसके सामने भोजन अवतरित हो गया। उसने पानी के बारे में सोचा तो पानी उपस्थित हो गया। उसने पेट भरकर खाना खाया और पानी पिया..। खा-पीकर वह सोचने लगा, कहींइस पेड़ पर कोई प्रेत तो नहीं रहता,जिसने यह चमत्कार किया। उसके मन में डर बैठ गया। वह सोचने लगा कि अगर प्रेत है, तब तो वह मुझे खा जाएगा। उसने यह सोचा ही था कि पेड़ से कूदकर एक प्रेत उसे खा गया..।</p><p>हमारी लोक कथाएं हमें संदेश देने के लिए बनाई गई हैं। यह कहानी संदेश देती है कि मन में हम जैसे विचार लाएंगे, उसका वैसा ही असर होगा। यदि हम सकारात्मक सोचेंगे, तो उसकी प्रतिक्रिया भी सकारात्मक ही होगी। यह स्वयंसिद्ध बात भी है, क्योंकि अक्सर सकारात्मक रहने वाले लोगों को खुश और नकारात्मक सोच रखने वालों को अक्सर दुखी देखा जाता है।</p><p>दरअसल, हमारा मन हमारी सोच से पूरी तरह प्रभावित हो जाता है। हमारी सोच जैसी भी होती है, वह हमारे चेहरे पर, हमारे व्यवहार में, हमारे कार्र्यों में दिखने लगती है। यदि हमारे भीतर डर और आशंकाओं की आमद हो चुकी है, तो वह हमारी आंखों के जरिये, हमारे माथे की शिकन में, हमारी बातों में, हमारे कामों में दिखेंगी। हम डर और आशंकाओं को पूरी तरह जीने लगेंगे और कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे। हमेशा हम भयभीत और नकारात्मक बने</p><p>रहेंगे। डर का प्रेत हमें वाकई धीरे-धीरे खा ही जाएगा। सिर्फ डर ही नहीं, कोई भी नकारात्मक विचार यदि हम मन में बैठा लें, तो वह हमें पूरी तरह नकारात्मक बना देता है। यह नकारात्मक छवि हमें लोगों से दूर कर देती है। वहीं सकारात्मक विचार हमें लोगों से जोड़ते हैं, दूसरों की मदद करने को प्रेरित करते हैं, हमें लोकप्रियता देते हैं और व्यक्तित्व में भी निखार लाते हैं।</p><p>हमारी सोच का प्रभाव सिर्फ हम पर नहीं, दूसरों पर भी पड़ता है। यदि नकारात्मक विचारों से हमारा मुख म्लान है, हमारे चेहरे पर गुस्सा या दुख है, तो दूसरों को भी हमारा यह रूप पसंद नहीं आता। लोग हमसे दूर भागने लगते हैं। वहीं, जब हम एक मुस्कराहट के साथ लोगों के बीच जाते हैं, तो हमारा स्वागत गर्मजोशी से होता है और हमारी सकारात्मक सोच दूसरों को प्रभावित करती है। जितने भी लोकप्रिय लोग है, उन्होंने सकारात्मक सोच से ही अपने चेहरे पर तेज पैदा किया है। दरअसल, सकारात्मक सोच हमें लोगों से जोड़कर लोकहित के काम करने के लिए प्रेरित करती है।</p><p>भारतीय दर्शन मानता है कि हमारे सभी कर्मों का कारण मन है। अच्छा या बुरा कोई भी काम करने से पहले हमें मन</p><p>से स्वीकृति लेनी पड़ती है। अमृतबिंदु उपनिषद में कहा गया है, मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयो: अर्थात, मन बंधन का भी कारण है और मोक्ष का भी। मन के परिष्कृत हो जाने से या उसमें सकारात्मक ऊर्जा भर जाने से स्वत: ही दया, करुणा, उदारता, सेवा, परोपकार जैसे सद्गुणों का उदय हो जाता है। हमारा मन सकारात्मक विचारों के प्रवाह</p><p>से ही परिष्कृत होता है। मन में बैठा हुआ डर हमें हमारी सोच या कल्पना के अनुसार ही फल देने लगता है। कई बार लोगों को भूत-प्रेत दिखाई देने लगते हैं, जबकि वैज्ञानिक युग में उनका कोई अस्तित्व नहीं माना जाता। यह उसी सोच और कल्पना का प्रभाव है कि जो है ही नहीं, उसे भी</p><p>हम देखने लगते हैं। मनोविकारों से बचने के लिए हमें सृजनात्मक और सकारात्मक सोच अपनानी होगी। ऐसा करने से हमें सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। </p><p>भगवानश्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, जिसका मन वश में है, राग-द्वेष से रहित है, वह स्थायी प्रसन्नता प्राप्त करता है। जो व्यक्ति मन को वश में कर लेता है, उसी को कर्मयोगी </p><p></p><p>कहा जाता है।</p><p>गौतम बुद्ध ने कहा था, मन को मारने से इच्छाएं नहीं मरती, इसलिए मन को मारने की नहीं, उसे साधने की जरूरत है।</p><p>मन को साधने का अर्थ यही है कि वह नकारात्मकता से प्रेरित न हो। इसका यही उपाय है कि मन को सकारात्मक विचारों की खुराक दी जाए, ताकि डर, आशंकाएं और नकारात्मक विचारों का प्रवाह रुक जाए और हम सदैव प्रसन्न, सुखी और मानवता की सेवा करने वाले बने रहें। </p><p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFeJu94LlaZ7tTZ8lALO67AKIgvXkAHVYXbDPGNi_nkv9fnlxndQDLa4wuvx_1OJq2MQjuX0vFbFHc-uqG92bhSqsyxNiG3C_FeTNVxv3RKsWfRUUJ9h0OGTlRjXM3XVA0uXZct7EbHKZYLU4Vdu7kFBINdWZxBjjvnRdJ19iO3EKrtRwAUCGfiWixlLg/s1393/IMG_20231221_191049.JPG" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="1393" data-original-width="1023" height="211" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFeJu94LlaZ7tTZ8lALO67AKIgvXkAHVYXbDPGNi_nkv9fnlxndQDLa4wuvx_1OJq2MQjuX0vFbFHc-uqG92bhSqsyxNiG3C_FeTNVxv3RKsWfRUUJ9h0OGTlRjXM3XVA0uXZct7EbHKZYLU4Vdu7kFBINdWZxBjjvnRdJ19iO3EKrtRwAUCGfiWixlLg/w155-h211/IMG_20231221_191049.JPG" width="155" /></a></p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0विद्यापति नगर, जलपुरा, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश 201306, भारत28.5472991 77.43016730.23706526382115456 42.273917299999994 56.857532936178842 112.5864173tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-3105575399137460792023-10-24T16:50:00.004+05:302024-01-06T10:10:16.885+05:30रामायण में वर्णित मुख्य स्थान<h3 style="text-align: left;"> <span style="color: red;">रामायण में वर्णित मुख्य स्थान...</span>.</h3><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiu4YpSAeBqdKwgGWXgkrMetdT9jhtG86xkMMaHswesjr4J5LJsmQVI1BgvSgH07f2OOiIBHc7c9hU7NS9YgPWlv2h8cS-5Ephil_3qfdg77G_jeu6h99sIe7S0aBEJIvvVmFL3hGxDIxUW3j-mdtrhKI47Fv6u0b5GG5qhmje_rHwev1XSaejcAplKxME/s1280/Screenshot_2023-06-11-08-43-12.png" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="720" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiu4YpSAeBqdKwgGWXgkrMetdT9jhtG86xkMMaHswesjr4J5LJsmQVI1BgvSgH07f2OOiIBHc7c9hU7NS9YgPWlv2h8cS-5Ephil_3qfdg77G_jeu6h99sIe7S0aBEJIvvVmFL3hGxDIxUW3j-mdtrhKI47Fv6u0b5GG5qhmje_rHwev1XSaejcAplKxME/w225-h400/Screenshot_2023-06-11-08-43-12.png" width="225" /></a></div><br /><p></p><p>1. तमसानदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की।</p><p>2. श्रृंगवेरपुरतीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।</p><p>3. कुरईगांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।</p><p>4. प्रयाग: कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। कुछ महीने पहले तक प्रयाग को इलाहाबाद कहा जाता था ।</p><p>5. चित्रकूट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।</p><p>6. सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था।</p><p>7. दंडकारण्य : चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।</p><p>8. पंचवटीनासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।</p><p>9. सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।</p><p>10. पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।</p><p>11. तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।</p><p>12. शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है।</p><p>पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।</p><p>13. ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3yW8Lb8ZtlbmsiK1GFoStrHu4B8esmvJzIMmKb89esQAc4adekBzrnaI8neYjzLEl0DoVgKnVFhaJ8RUQJoKuMO1gENF3p3WAZEH0QwSlaUrpOvHGk-yBONxC8KCPgjK6qEykLE4xRJ0eUaJj_skpZurfwx26o0v-XhwCbpkdvQOUlWfQSb2tMZr4r2Q/s720/FB_IMG_16983204812027316.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="486" data-original-width="720" height="216" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3yW8Lb8ZtlbmsiK1GFoStrHu4B8esmvJzIMmKb89esQAc4adekBzrnaI8neYjzLEl0DoVgKnVFhaJ8RUQJoKuMO1gENF3p3WAZEH0QwSlaUrpOvHGk-yBONxC8KCPgjK6qEykLE4xRJ0eUaJj_skpZurfwx26o0v-XhwCbpkdvQOUlWfQSb2tMZr4r2Q/s320/FB_IMG_16983204812027316.jpg" width="320" /></a></div><br />करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे।<p></p><p>14. कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्क स्ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।</p><p>15. रामेश्वरम : रामेश्वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।</p><p>16. धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्नार से करीब 18 मील पश्चिम में है।</p><p>इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।</p><p>17.' नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला :</p><p> वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।</p><p>श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए है।। </p><p>जय श्रीराम, </p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-42279784638230191172023-08-28T12:10:00.004+05:302024-01-06T10:10:41.587+05:30रक्षाबंधन 2023 राखी बांधने का शुभ मुहूर्त<p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghVCRf-VOKnRWGhNkojN1QnC5UhcDxs-JlY35yQPIcQpfJwzXQiuLvLhJS62tcM2AhaTZFEJzeV71deDN1QVvImcLLg6AZlu0oFqjnH2CIkumyUttGp-l8Y4qNrVS1iP7ndzPxZ_m-gOR7Y8Gj5yivp07VAT4lLsTnxOCSA1_9DIkBg-2iXXPPHoLKKd8/s360/raksha-bandhan-2022-1-16601118753x2.webp" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: left;"><img border="0" data-original-height="240" data-original-width="360" height="133" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghVCRf-VOKnRWGhNkojN1QnC5UhcDxs-JlY35yQPIcQpfJwzXQiuLvLhJS62tcM2AhaTZFEJzeV71deDN1QVvImcLLg6AZlu0oFqjnH2CIkumyUttGp-l8Y4qNrVS1iP7ndzPxZ_m-gOR7Y8Gj5yivp07VAT4lLsTnxOCSA1_9DIkBg-2iXXPPHoLKKd8/w200-h133/raksha-bandhan-2022-1-16601118753x2.webp" width="200" /></a></div><br />जानिए रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त :- पंचांग के अनुसार, इस साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की<p></p><p>पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर प्रारंभ हो रही है और इसका समापन 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 45 मिनट पर हो रहा है. </p><p>रक्षाबंधन 2023 पर भद्रा का साया</p><p>इस साल 30 अगस्त को रक्षाबंधन पर भद्रा का साया है. राखी वाले दिन भद्रा सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू हो रही है और यह रात 09 बजकर 01 मिनट तक है. ऐसे में जब भद्रा खत्म होगी, तब राखी बांधा जा सकेगा. यह भद्रा पृथ्वी लोक की है, इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.</p><p>रक्षा बंधन का पर्व प्रत्येक वर्ष श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार पुरे विश्वभर में मनाया जाने वाला एक ऐसा पर्व है जो अपने साथ भाई बहनों के प्यार को स्नेहरुपी धागों में जन्मजन्मांतर तक बांध के रखता है,भाई -बहन के रिश्तों की अटूट डोर का प्रतीक है यह पर्व।</p><p>30 अगस्त 2023 के दिन भद्रा का साया रहेगा </p><p>रक्षाबंधन भद्रा पूँछ - शाम 05:30 - शाम 06:31</p><p>रक्षाबंधन भद्रा मुख - शाम 06:31 - रात 08:11</p><p>रक्षाबंधन भद्रा का अंत समय - रात 09:02</p><p>रक्षाबंधन 2023 राखी बांधने का शुभ मुहूर्त</p><p>30 अगस्त को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त रात 09:01 बजे से रात्रि 11:30 तक .</p><p>31 अगस्त को सूर्योदय से प्रातः 7:45 तक शुभ मुहूर्त। </p><p>उदया तिथि के अनुसार 31 अगस्त को सुबह से पूरे दिन तक रक्षाबंधन मनाया जा सकता है। </p><p>तिथि दो प्रकार की होती है </p><p>एक वह जो सूर्य-चंद्र के भोग्यांश प्रति 12 अंश पर सुनिश्चित कर के पंचांग में प्रतिदिन समय के साथ लिख दिया जाता है। </p><p>दूसरी वह तिथि होती है जिसे उदया तिथि के नाम से जानते है या साकल्यापादिता तिथि के नाम से जाना जाता है। </p><p>ध्यान रहे :-उदया तिथि या साकल्यापादिता तिथि सूर्योदय के बाद चाहे जितनी हो, वह तिथि उस दिन व्रत,पूजा आदि के लिए मान्य होती है और पुण्यकाल प्रदान करने वाली होती है, उदया तिथि सूर्योदय से चाहे एक घाटी हो या आधी घटी हो वह पुरे दिन मान्य होती है। </p><p>रक्षाबंधन के त्योहार को प्रभावशाली बनाने के लिए वेद मन्त्र का उच्चारणः करते हुए राखी बांधे , जिससे भाई बहन का पवित्र रिस्ता कायम रहे ,</p><p>आज के दिन सभी भाइयों को अपनी बहन के साथ सभी बहनो की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए , जिससे समाज में माताए बहने आजादी से अपना कार्य कर सके।</p><p>राखी बांधते समय करें इस मंत्र का उच्चारण :-</p><p>येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।</p><p>तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥</p><p>भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित मंत्र के द्वारा रक्षाबन्धन बाँधा था।</p><p>इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"</p><p>अधिक जानकारी के लिए निचे दिए गए नंबर पर संपर्क करे </p><p>9227204176</p><p>राधा मोहन पांडे </p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-18615036741297230362023-08-16T12:12:00.002+05:302024-01-06T10:11:08.568+05:30कौन कहता है की कांग्रेस ने पिछले 65 सालों में कुछ काम नही किया ? बहुत किया<p> इतिहास ज्ञात होना चाहिए -: अधाधुंध कांग्रेस की आलोचना करते जाना ठीक नहीं है। कांग्रेस की उपलब्धियां भी जाननी चाहिए और देखिए।</p><p>कौन कहता है की कांग्रेस ने पिछले 65 सालों में कुछ काम नही किया ? बहुत किया, लेकिन मुसलमानों के लिए ?</p><p>• पाकिस्तान बनाया, मुसलमानों के लिए,</p><p>• बांग्लादेश बना, मुसलमानों के लिए,</p><p>• धारा ३७० लागू हुई, मुसलमानों के लिए।</p><p>• अल्पसंख्यंक बिल आया, मुसलमानों के लिए।</p><p>• मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना, मुसलमानों के लिए।</p><p>• अल्पसंख्यंक मंत्रालय बना, मुसलमानों के लिए।</p><p>• वक़्फ़ बोर्ड बनाया, मुसलमानों के लिए।</p><p>• अल्पसंख्यंक विश्वविद्यालय बना, मुसलमानों के लिए।</p><p>• देश का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ, मुसलमानों के लिए।</p><p>• Places of worship Act लाये, मुसलमानों के लिए।</p><p>• Anti communal violence bill दो बारी संसद में पेश किया परंतु BJP ने पास नहीं होने दिया, वो बिल भी मुसलमानों के लिए और कहीं अगर यह बिल पास हो जाता तो हिंदुओं को ख़त्म होने में मात्र 10 साल लगते ? यदि किसी को कोई शक हो तो google पर जाकर पढ़ सकता है। • देश को चुपचाप इस्लामिक देश बनाने की तैयारी कांग्रेस ने की थी, और हिंदूओं के लिए सिर्फ आरक्षण दिया, ताकि हिंदू समाज सदा आपस मे लड़ता रहे और कभी गजवा-ए-हिन्द को समझ ही न पाये ।</p><p>हिंदूओं को दुय्यम, दोयम ( second rate citizen) नागरिक बनाने के लिए - हिंदू कोड बिल लाये, तो वो भी मुसलमानों के लिए,</p><p>कभी - कभी मन करता है कि पोस्ट ही ना करूं ? फिर ख्याल आता है कि पढेगा भारत, तभी तो कांग्रेसियों की छाती पे चढ़ेगा भारत ? इस पोस्ट को पढ़कर कुछ समझ आया तो अधिक से अधिक लोगों तक क्या पोस्ट पहुंचने में सहयोग करें।</p><p>जय श्री राम - राधे राधे गोविन्दा </p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-7212646841694535802023-08-15T12:15:00.001+05:302024-01-06T10:11:52.076+05:30कुछ सच जो 1947 से आज तक कानूनन हम हिन्दुस्तानियों से छिपाकर रखे गए (Transfer of Power Agreement. ) <p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUncFaD4M2O6bevCYaCGu34GtbKpQApFsNpdohVvVNLl4CH-boYVnK2HbVKCJA4LM8vFHZXdYzzi25hyb8sIdgH_Wx-Klr_WCjQXlG5M9xmSSWJ_HF8DAoqYfnJ4dq9XvCKT6gQxOUauS0sTz20ceRPITAkGCfyf0NZ0JhJi2d5ydw6GMoE2aqxlFelBg/s563/images.jpeg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="544" data-original-width="563" height="342" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUncFaD4M2O6bevCYaCGu34GtbKpQApFsNpdohVvVNLl4CH-boYVnK2HbVKCJA4LM8vFHZXdYzzi25hyb8sIdgH_Wx-Klr_WCjQXlG5M9xmSSWJ_HF8DAoqYfnJ4dq9XvCKT6gQxOUauS0sTz20ceRPITAkGCfyf0NZ0JhJi2d5ydw6GMoE2aqxlFelBg/w303-h342/images.jpeg" width="303" /></a></div><br /> प्रत्येक भारतीय को यह जानना आवश्यक है की आखिर क्यों 2024 में मोदी जी को सत्ता में लाना हम भारतीयों के लिए अति आवश्यक है जान कर होश उड़ जायेंगे <p></p><p> कुछ सच जो 1947 से आज तक कानूनन हम हिन्दुस्तानियों से छिपाकर रखे गए,आजादी के समय कुकर्मी नेहरू और गाँधी ने जल्दी सत्ता पाने की लालच में अंग्रेजो के साथ Transfer of Power Agreement. गोपनीय समझौता साइन किया</p><p> जिसकी शर्त ये है की 1947 से 50 वर्षों तक भारत इस पेपर को सार्वजनिक नहीं कर सकता और इसमें संसोधन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय संसद, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के पास भी नहीं है,संविधान अनुच्छेदों 366, 371, 372, 395</p><p>*जिसके कुछ भयानक तथ्य*</p><p>*क्या आप जानते हैं कि 1947 से आज तक हमारे देश से प्रतिवर्ष 10 अरब रुपये पेंशन महारानी एलिजाबेथ को आज भी जाती है।</p><p>*समझौते के तहद भारत आजतक प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-माँस ब्रिटेन को देने के लिए बाध्य है।</p><p>*भारत अपना एंबेसडर (राजदूत) जापान,चीन, रूस जैसे देशों में नियुक्त करता है…लेकिन श्रीलंका,पाकिस्तान,कनाडा,आस्ट्रेलिया इन देशों में राजदूत नही केवल हाईकमिश्नर (उच्चायुक्त) ही नियुक्त कर सकता है.आखिर ऐसा क्यों.?</p><p>*आखिर भारत समेत 54 देशों को कॉमनवेल्थ कंट्री के नाम से क्यों जाना जाता है, इंडिपेंडेंट नेशन के नाम से क्यों नहीं?*</p><p> कॉमनवेल्थ का अर्थ होता है,"सयुंक्त सम्पत्ति" Joint Propertyब्रिटिश नैशनैलिटीअधिनियम 1948 के अन्तर्गत हर भारतीय,आस्ट्रेलियाई, कनेडियन,चाहे हिन्दू,मुसलमान ईसाई, बौद्ध, सिक्ख आज भी कानूनन ब्रिटेन की क्वीन एलिजाबेथ के ग़ुलाम हैं जो अब मर चुकी है तो अब उनकी जगह हम किंग चार्ल्स 3 के गुलाम हैं।</p><p>*सन् 1997 में इस Transfer of Power Agreement.गोपनीय समझौता के 50 साल पूरे होने से पहले ही इसको सार्वजनिक होने से रोकने हेतु विदेश एजेंट सोनिया माइनो ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्द्र कुमार गुजराल द्वारा इसकी अवधि 2024 तक बड़ा दी थी।</p><p>*अब 2024 में ये गोपनीय समझौता पुन: सार्वजनिक होने के डर से भारत विरोधी शक्तियां मोदी जी का विरोध कर रही हैं ताकि 2024 में भी यह सार्वजनिक न हो पाये और..* </p><p>*हमारे देश से 10 अरब रुपये पेंशन प्रतिवर्ष ब्रिटेन जाता रहें।</p><p>*हमारे देश से प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-माँस ब्रिटेन जाता रहे और भी रहस्य झुपे है।</p><p>*स्वतन्त्र भारत का इतिहास गवाह है कि जब भी भारत में मजबूत नेता लाल बहादुर शास्त्री जी आए तो उनकी हत्या करवाई गई यह सभी को पता है…</p><p>*उन्हे ताशकंद में खाने में जहर दिया गया.. उनकी मौत,सुभाष चंद्र बोस की मौत आदि रहस्य बनकर रह गई..</p><p>*इसी तरह हमारी स्वतंत्रता भी एक रहस्य बनी है</p><p> मेरे प्रिय सनातनी भारतवासियों से अपील है कि अपना निज स्वार्थ ऊंचनीच प्रांतवाद के सब भेदभाव मिटाकर देश धर्म और आनेवाली पीढ़ी की रक्षा, सुख शांति समृद्धि के लिए 2024 मे मोदी सरकार को भारी जनादेश से प्रधानमंत्री बनाना ही होगा..,इसे अपनी मजबूरी, लाचारी या समय की मांग कहें दूसरा कोई विकल्प ही नही है।</p><p>*वरना देश के दुश्मन गद्दार कांग्रेसी, वामपंथी, स्वार्थी भ्रष्टाचारी केजरी, ममता अखिलेश जैसे आतंकवादी टुकड़े टुकड़े गैंग समर्थक भारत को लूटकर बर्बाद कर देंगे या इस्लामिक देश बनाने की कगार पर खड़ा कर देगें।</p><p>इसीलिए ये चंद रुपयों में बिके हुए विपक्षी दल, न्यूज चैनल जी जान लगाकर जनता को गुमराह करके मोदी जी को बदनाम और रोकने की बेसब्री से कोशिश दिनरात कर रहे हैं…</p><p>अतः जागरूक रहें और हर भारतीय को उनकी वाली पीढ़ी को सुरछित जीवन देने के उद्देश्य से ये बात बताएं सावधान रहें, सतर्क रहें।</p><p>*हम भारतीयों के पास.मोदी लाओ देश बचाओ. के अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं।</p><p> *सनातन एकता जिंदाबाद*</p><p>*इस संदेश को कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे*</p><p>*कुछ लोग नही भेजेंगे लेकिन मुझे यकीन है आप जरूर भेजेंग</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-14968259131652059692023-08-08T10:15:00.000+05:302023-08-08T10:15:01.619+05:30लघुकथा - रुबी झा मधुबनी<p> भूषणक घरमे आय चारि दिन सँ चूल्हामे आँच नै पड़लैन। घरमे एको कनमा अन्न नै छलैन।पैन पीब क' दुनू बच्चा कें पाँजड़िमे साटि भूषणक कनिया सुति रहै छलैथि।आय बड़का बेटा (५)बड कानै लगलैन,और छोटका( २) कानैयो कें स्थितिमे नै छलैन ततेक कमजोर भँ गेल छलैन।भूषण सँ भूषनक कनियाँ कहलखिन्ह !यौय चलु ना पीताम्बर बाबू कें खेतमे जन गेलैन्है धान काटैय लेल अपनो सब काटि आनब ।और बोइन जें हैत ओहि सँ चूल्हामे पजाड़ पड़त और बच्चा सब कें भूख शांत हैत।लागैया दुनू बच्चा कें अन्न बिना प्राण निकैल जैत।भूषण बजला मइर जैब चारु प्राणी पेटमे पेट सटा कँ से मंजूर। लेकिन दोसरा कें खेतमे ब्राम्हण भँ कँ बोइन करय कोना जायब।लोक कि कहत ? समाज कि सोचत ?</p><p>कनिया कहलखिन्ह कियै ब्राम्हण भेनाय अभिशाप छै कि ?</p><p>भूखल-प्यासल घरमे प्राण त्यैग देब लेकिन किनको खेत मे काज करय नै जैब।लोक कि कहत, समाज कि सोचत ?</p><p>समाज हमरा खाय लेल द जायया कि ?</p><p>हमरा सँ तँ नीक फेकना अछि दुनू प्राणी बोइन करैया और बच्चा सब कें पोसैयै।</p><p>कनियाक बात सुनि भूषण मुरी झुकोने चुपचाप बैसल रहि गेलैथ।</p><p>नहिं किछु बजला आ नहिं हिलला!</p><p>आखिर ओ ब्राह्मण छलैथ कोना ककरो दोसरक खेतमे बोइन करऽ जैतैथ।</p><p> इ जें मैथिल समाजक ढकोसलापन अछि ताहि कारणे सेहो अपने सब बहुत पाछु रैह गेलौंह।</p><p>और पलायन कें एकटा मुख्य कारण हमरा जनैत ईहो अछि।</p><p>परदेशमे जा कँ हमसब सब काज करब,ठेली- रेरी लगायब,दोसरक घरमे काज करब।</p><p>लेकिन अपन गाम मे रहि कँ बबुआनी छाँटब।</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-61101629195567301142023-07-18T01:49:00.001+05:302023-07-18T01:49:42.111+05:30Nalanda University History | Nalanda University History in hindi | नालंद...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/uqkkmstcPVY" frameborder="0"></iframe>Birendr mandalhttp://www.blogger.com/profile/12960986691387531232noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-8779636132794125082023-07-16T13:24:00.002+05:302023-08-28T12:02:19.242+05:30कौन कहता है की कांग्रेस ने पिछले 65 सालों में कुछ काम नही किया ?<p> इतिहास ज्ञात होना चाहिए -: अधाधुंध कांग्रेस की आलोचना करते जाना ठीक नहीं है। कांग्रेस की उपलब्धियां भी जाननी चाहिए और देखिए।</p><p>कौन कहता है की कांग्रेस ने पिछले 65 सालों में कुछ काम नही किया ? बहुत किया, लेकिन मुसलमानों के लिए ?</p><p>• पाकिस्तान बनाया, मुसलमानों के लिए,</p><p>• बांग्लादेश बना, मुसलमानों के लिए,</p><p>• धारा ३७० लागू हुई, मुसलमानों के लिए।</p><p>• अल्पसंख्यंक बिल आया, मुसलमानों के लिए।</p><p>• मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना, मुसलमानों के लिए।</p><p>• अल्पसंख्यंक मंत्रालय बना, मुसलमानों के लिए।</p><p>• वक़्फ़ बोर्ड बनाया, मुसलमानों के लिए।</p><p>• अल्पसंख्यंक विश्वविद्यालय बना, मुसलमानों के लिए।</p><p>• देश का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ, मुसलमानों के लिए।</p><p>• Places of worship Act लाये, मुसलमानों के लिए।</p><p>• Anti communal violence bill दो बारी संसद में पेश किया परंतु BJP ने पास नहीं होने दिया, वो बिल भी मुसलमानों के लिए और कहीं अगर यह बिल पास हो जाता तो हिंदुओं को ख़त्म होने में मात्र 10 साल लगते ? यदि किसी को कोई शक हो तो google पर जाकर पढ़ सकता है। • देश को चुपचाप इस्लामिक देश बनाने की तैयारी कांग्रेस ने की थी, और हिंदूओं के लिए सिर्फ आरक्षण दिया, ताकि हिंदू समाज सदा आपस मे लड़ता रहे और कभी गजवा-ए-हिन्द को समझ ही न पाये ।</p><p>हिंदूओं को दुय्यम, दोयम ( second rate citizen) नागरिक बनाने के लिए - हिंदू कोड बिल लाये, तो वो भी मुसलमानों के लिए,</p><p>कभी - कभी मन करता है कि पोस्ट ही ना करूं ? फिर ख्याल आता है कि पढेगा भारत, तभी तो कांग्रेसियों की छाती पे चढ़ेगा भारत ? इस पोस्ट को पढ़कर कुछ समझ आया तो अधिक से अधिक लोगों तक क्या पोस्ट पहुंचने में सहयोग करें।</p><p>जय श्री राम राधे राधे गोविन्दा </p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-609180586566464232023-07-01T18:48:00.006+05:302024-01-06T10:12:24.894+05:30MAITHILI PANCHANG WARSH 2023-2024<h1 style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: red;"><b> MAITHILI PANCHANG WARSH 2023-2024<br /></b></span><span style="color: red;"><b> </b></span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAetIvZ64Lyel2nJjDE-ph6_OSFSWKvTWnV2p6VoIxrynfaeJkh-c_-gKmsPtNXG4-NbBLM4AXkuU4NaGKdrfqCUD2ixjB7CP_GLT4O2yQMSJcQrDWfWjaoea1IIwgs5WQjNVcSgp2FmG80BWbHtXY_9cAglMgxQTZFilrPslvG21-luyDSqICL9-Em7s/s1554/1.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="534" data-original-width="1554" height="221" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAetIvZ64Lyel2nJjDE-ph6_OSFSWKvTWnV2p6VoIxrynfaeJkh-c_-gKmsPtNXG4-NbBLM4AXkuU4NaGKdrfqCUD2ixjB7CP_GLT4O2yQMSJcQrDWfWjaoea1IIwgs5WQjNVcSgp2FmG80BWbHtXY_9cAglMgxQTZFilrPslvG21-luyDSqICL9-Em7s/w640-h221/1.jpg" width="640" /></a></h1><div style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzeUXMa5FocCXNphl76iSl5BWJhFPfpPxdqSWYY9lgPOX-N0oPE0YVk3eQAbhEIYY1Ubvsw3s5YXcnU9ixY6lRe-PiQiHADqRRUNqX8qssIZiO5dCE6RCGJcRaD3qX-PAA5tkDs2q6HUp25oRKwfQIwV-MKXVOtGvezUma-Qi6auZCLr50wOeDQaPavoc/s1545/2.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="518" data-original-width="1545" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzeUXMa5FocCXNphl76iSl5BWJhFPfpPxdqSWYY9lgPOX-N0oPE0YVk3eQAbhEIYY1Ubvsw3s5YXcnU9ixY6lRe-PiQiHADqRRUNqX8qssIZiO5dCE6RCGJcRaD3qX-PAA5tkDs2q6HUp25oRKwfQIwV-MKXVOtGvezUma-Qi6auZCLr50wOeDQaPavoc/w640-h214/2.jpg" width="640" /></a></div><div style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNqfZjp9K862zM9SFjDBaKkw52tZ_cXdQ9gt7vAowHBrECmmHeTOz7SVJ_hT1Ja1sCabViXGb5EPwTo8ai-YQBzAixjorOo_GrVww3-oYFibb8yERB_iiLHR7CGoYfzXBpV7z-0Vb65SVcSboa0gvbrDI6GxSbq1IFltNVQdLpTkD4IY1GDqTMjosKALc/s1554/3.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="520" data-original-width="1554" height="214" 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width="640" /></a></div><div style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQCRKMedb_V3sMNigNX-tLC89qWXPrwY9ln0R_aj1Fm3eryXrVyeDBVObo8ol_OPN7agqcwWnPGsERz3PBGofj7ttWK_Tx7b9aKQ39NuAIEy-PkEdlZvdrebBZgMcar_arwcdyBoLBiPC6EusaV3x6A5tKHbM2QMx-3I5GyE2w0-ogtIdng7Tnb_DdB1g/s1525/30.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="516" data-original-width="1525" height="216" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQCRKMedb_V3sMNigNX-tLC89qWXPrwY9ln0R_aj1Fm3eryXrVyeDBVObo8ol_OPN7agqcwWnPGsERz3PBGofj7ttWK_Tx7b9aKQ39NuAIEy-PkEdlZvdrebBZgMcar_arwcdyBoLBiPC6EusaV3x6A5tKHbM2QMx-3I5GyE2w0-ogtIdng7Tnb_DdB1g/w640-h216/30.jpg" width="640" /></a></div><div style="text-align: center;"><a 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style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="542" data-original-width="1556" height="222" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhj7ayE06mDlk-AQnfFqXhNAfJqKnQ_YClE4_q_zYtsh7A1gsHHAOw1N_bXfup4j-EwWvZxYV4ZRqyMUfgW59aTVrTHl0yLJAB7RTLA2_WfCCQwI_ZpZCP0M4RVobeHWQk_mbOZEaU6uKbzB1X4w738KnQaXk9-nGDtqtJMQEEdzGfM3Ckgj2NxmAy00Sg/w640-h222/32.jpg" width="640" /></a></div><div style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiL8iZhxMIOoXUUZh3aThLnItyjIk7Am63PbWEP7GCTCzfIHVnZ_kqvvthvHZafaDrKRicj1m62oftBrHplNTGjJ17XemOlnUyHgbHLLEaGCF4BV1t1M7SeoPu5S3xYHI2YCfLgUknifn0XFSWRb3fgsv9OC2R80h6AlMYmonsZrp1u6O5tkfM-kMlj2Dk/s1513/33.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="499" data-original-width="1513" height="213" 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121.0480954tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-42889094620349125342023-06-14T14:15:00.002+05:302023-06-14T14:15:19.860+05:30ऐना कियाक ?<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBYYstznzpOCL-g9CiY3zRQE7SOjhwii7r0THCkL-AVRdH_oPjnZMXg9-v64ZkbF0iA7ZKQlTTd4b2RpXCIF7kmD63_voWrBkDXf8OZfxus_ZC_o-S67u_xoJJojSy3NKDwpspUeeY7LabJFD3A1KcodtU0_JN6P504F7ifEjd4aAb1tigZKO__039/s1440/IMG-20230614-WA0005.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1440" data-original-width="1080" height="429" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBYYstznzpOCL-g9CiY3zRQE7SOjhwii7r0THCkL-AVRdH_oPjnZMXg9-v64ZkbF0iA7ZKQlTTd4b2RpXCIF7kmD63_voWrBkDXf8OZfxus_ZC_o-S67u_xoJJojSy3NKDwpspUeeY7LabJFD3A1KcodtU0_JN6P504F7ifEjd4aAb1tigZKO__039/w322-h429/IMG-20230614-WA0005.jpg" width="322" /></a></div><br /><p></p><p>आइ भोरे भोर हम चिरपरिचित मिथिला-मैथिलक नेतृत्व जीक आग्रह पर हुनक पोती के उच्च शिक्षा हेतु मार्गदर्शन देबाक हेतु हुनक घर पहुँचलहुँ। घरक लहजा देखि दंग रहि गेलहुँ। घरक सात सदस्य में सँ एक्को गोट सदस्य केँ मैथिली बजैत नहिं पयलहुँ। सब के सब अंग्रेजी किंवा हिन्दी में बात कयलन्हिं। हम बीच-बीच में मैथिली बाजि अप्पन मैथिल होबाक परिचय देबऽ चाहलहुँ। मुदा हमर प्रयास बेकार भऽ गेल। स्वयं हमर सबहक मिथिलाक नेतृत्व जी बजलाह : " मैथिली नहिं अंग्रेजी में बुझाबक प्रयास करियौन। इ सब मैथिली नहिं जनैत छथीन्ह।"</p><p>हमर मन बड्ड व्यथित भऽ गेल। नहिं रहल गेल। पुछि बैसलयन्हि जे - ऐना कियाक ? आहाँ सनक मैथिली अनुरागी कियाक अपना बाल बच्चा के मैथिली सँ दूर रखने छी ?</p><p>आँखिक संकेत के माध्यम सँ किछु कहलथि । शायद ओ कहऽ चाहलथि जे - चुप रहू, किछु दिन आर जीबऽ दिय। हम मजबूर छी। शपथ खाऽ कऽ कहैत छी आब हम कोनो मिथिला-मैथिलक समारोह में नहिं जायब। हम पतित छी। हमरा माँफ कऽ दिय।</p><p>ओ प्रतिष्ठित व्यक्ति रुमाल सँ आँखि पोछथि घर में भागि गेलाह। हमर आँखि में सेहो नोर भरि गेल छल। कहुना अपना के सम्हारैत जे काज लेल गेल छलहुँ से पूरा कऽ यथाशीघ्र अप्पन घर वापस आबि गेलहुँ। किन्तु एक टा प्रश्न मन में बार बार एखनहुँ घुमि रहल अछि जे ऐना कियाक ?</p><p>डाॅ माया शंकर झा 'राष्ट्रभाषा-रत्न'</p><p>राष्ट्रीय अध्यक्ष </p><p>मिथिला स्वराज्य अभियान मंच </p><p>कोलकाता</p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4844996230475248958.post-23890606710521319782023-06-10T18:03:00.000+05:302023-06-10T18:03:07.117+05:30मोदी कौन है ?<p> Binod Rai </p><p>मोदी कौन है ?</p><p>इसका जवाब एक जानकार *राजनैतिक वैद्य* ने बड़ा सुंदर समझाया।</p><p>आयुर्वेद और मेडिकल सांईस में *शहद* को अमृत के समान माना गया हैं।</p><p>लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि शहद को अगर *कुत्ता* चाट ले तो वह मर जाता हैं। </p><p>यानी जो मनुष्यों के लिये अमृत हैं वह शहद *कुत्तों* के लिये जहर है।</p><p>शुद्ध *देशी गाय के घी* को आयुर्वेद और मेडिकल सांईस औषधीय गुणों का भंडार मानता हैं।</p><p>मगर आश्चर्य, गंदगी से प्रसन्न रहने वाली *मक्खी* कभी शुद्ध देशी घी को नहीं खा सकती।</p><p>गलती से अगर *मक्खी* देशी घी पर बैठ कर चख भी ले तो वो तुरंत तड़प तड़प कर वहीं मर जाती है।</p><p>आर्युवेद में *मिश्री* को भी औषधीय और श्रेष्ठ मिष्ठान्न माना गया हैं।</p><p>लेकिन आश्चर्य, अगर *गधे* को एक डली मिश्री खिला दी जाए, तो कुछ समय में उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे।</p><p>यह अमृत समान श्रेष्ठ मिष्ठान, मिश्री *गधा* कभी नहीं खा सकता हैं।</p><p>*नीम* के पेड़ पर लगने वाली पकी हुई निम्बोली में कई रोगों को हरने वाले औषधीय गुण होते हैं।</p><p>आयुर्वेद उसे *"उत्तम औषधि"* कहता हैं।</p><p>लेकिन रात दिन नीम के पेड़ पर रहने वाला *कौवा* अगर निम्बोली खा ले तो उस कौवे की मृत्यु निश्चित है।</p><p>मतलब, इस धरती पर ऐसा बहुत कुछ हैं... जो हमारे लिये अमृत समान हैं, गुणकारी है, औषधीय है... </p><p>पर इस धरती पर ऐसे कुछ जीव ऐसे भी हैं जिनके लिये वही *अमृत... विष है।*</p><p>*मोदी वही गुणकारी अमृत औषधि है।*</p><p>लेकिन कुत्तों *(आतंकवादी-दंगाई),*</p><p>मक्खियों *(देशद्रोही-गंदगी),*</p><p>गधों *(वामपंथी सोच-राजनैतिक मूर्ख)*</p><p>और </p><p>कौवों *(स्वार्थी कपटी मीडिया)* आदि के लिये... विष समान है।</p><p>इसलिये यह कुछ तत्व इतने भयभीत है</p><p> *आपसे निवेदन करता हूं इस पोस्ट को सभी ग्रुप मे भेजिये | सादर धन्यवाद </p><p> *देश सर्वोपरि हे थोड़ा समय निकालकर पोस्ट जरूर पढ़ें। "मोदी हैं तो मुमकिन है।</p><p> "योगी है तो हड़कंम्प है |</p><p><br /></p>MADAN KUMAR THAKUR http://www.blogger.com/profile/01456212634699587708noreply@blogger.com0