शनिवार, 27 जनवरी 2024
रविवार, 14 जनवरी 2024
राम मन्दिर का 22 जनवरी - 2024 का उद्घाटन
राम मन्दिर का 22 जनवरी 2024 का उद्घाटन और शंकराचार्य का नही सम्मिलित होना विरोध का स्वर नही है
राम मन्दिर अयोध्या में बनना ऐतिहासिक है। जब मन्दिर का निर्माण हुआ है तो मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी होना ही है। 22 जनवरी को ज्योतिषियों के मुताबिक कई शुभ योग बन रहे हैं। इस तिथि को शुरुआत में तीन शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग बन रहे हैं इसके अतिरिक्त यह ऐसा दिन है जो राम भक्तों की कुर्बानी को याद दिलाता है। सनातन धर्म महान इसिलिए भी है कि यहाँ लोगों को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है। एक विषय पर अनेक मत सम्भव है। इस सन्दर्भ मे चार शंकराचार्य द्वारा उसमे भाग नही लेना उचित तो नही लग रहा है परंतु यह आश्चर्य का विषय नही है। शंकराचार्य ज्ञान परम्परा के सर्वश्रेष्ट व्यक्ति ही नही संस्था हैं। इसको सभी जानते हैं। सम्मान भी करते हैं। सभी शंकराचार्य शास्त्र को सर्वोत्तम मानते हैं और उसी अनुरुप जीवन जीते हैं। लेकिन उनका 22 जनवरी 2024 को अयोध्या नही जाना न तो सरकार विरोधी और न ही सनातन विरोधी कर्म के रूप मे देखने की जरूरत है। लोग बात को जोड़ तोड़ कर कह रहे हैं। यह उचित नहीं है। जो लोग कल तक शंकराचार्य को गाली दे रहे थे आज उन्हें शंकराचार्य का नही जाने का निर्णय अमोघ अस्त्र के समान लग रहा है। वे उनके हितैषी बन रहे हैं। यह तो अलग ही अवस्था है भाई!
लोग स्वयं के घर और देवालय मे भी पुर्ण निर्माण से पहले प्रवेश करते रहे हैं। यह नूतन और शास्त्र विरुध्ध कार्य नही रहा है।
कहता चलूं की राजा अद्वैत है क्योंकि वह एक है। प्रधान मंत्री जनप्रतिनिधि होने के कारण राजा हैं। एक ऐसा राजा जिसका चयन जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधर पर हुआ है। एक ऐसा राजा जो जन जन का प्रतिनिधित्व करता है। अतएव प्रधानमंत्री स्वत: यजमान हो जाते हैं। उन्हें प्राण प्रतिष्ठा करने का अधिकार स्वत: हो जाता है। सभी शंकराचार्य का यह दायित्व हो जाता है कि अपनी भव्य उपस्थिति से और ज्ञान से यज्ञ को सार्थक करें। एक नैयायिक की तरह देखें कि प्राण प्रतिष्ठा का विधान शास्त्र सम्मत हो रहा है या नही। सभी पूजा, धार्मिक कार्य, देवालय इत्यादि का सम्पादन राजा के द्वारा ही होता रहा है। इसपर राजा का ही अधिकार रहा है। राम ने जब त्रेता युग में राजसीयू यज्ञ किया तो राम ही यजमान थे । वशिष्ठ पुरोहित बने थे न कि यजमान। इस यज्ञ मे पुरोहित तो ब्राह्मण ही है। ब्राहमण का धर्म ही है पुरोहित होना और सम्पादन को सही तरह से अंजाम देना। डॉकैलाशकुमारमिश्र
शुक्रवार, 12 जनवरी 2024
मैथिली कवि कोकिल विद्यापति केर रचना में शिव पार्वती केर हास्य व्यंग्य केर चर्चा बेसी भेटैत अछि यथा "नित उठि गौरी शिव के मनावथि करू बीघा दूई खेत" अथवा "गौरी दौड़ि दौड़ि कहथिन हे मोरा भंगिया रूसल जाइ" इत्यादि अनेकों रचना लिखलाह।. एहि हास परिहास केर वातावरण एवं स्थान केर संदर्भ में मधुवनी जिला केर राज राजेश्वरी मन्दिर डोकहर (दुखहर) जे मधुबनी शहर सँ बारह किलोमीटर उत्तर में बरहन बेलाही गाम के निर्जन स्थान में बिन्दुसर पोखैर के कात में अवस्थित अछि। एहि स्थान के शिव पार्वती के रमणीय स्थली के रूप में सेहो जानल जाईत अछि ।एहि ठाम केर शिव पार्वती केर मूर्ति केर भाव भंगिमा आ युगल मुद्रा एहि बात केर प्रत्यक्ष प्रमाण दैत अछि। एहि कारण सँ एहि स्थान केर नामकरण दुखहर राखल गेल जे एहि बात केर परिचायक अछि जे जाहि ठाम स्वयं देवाधिदेव महादेव आ माता पार्वती केर विलास स्थान छैन्ह ओहिठाम कोनो दुःख केर स्थान कोना भेटि सकैत छैक। एहिठाम राज राजेश्वरी के परब्रम्ह के महाशक्ति केर रूप में आदि कालहि सँ पूजा होइत आयल अछि। ऐतिहासिक तथ्य केर अनुसार जखन बुद्ध धर्म केर प्रचार प्रसार ब्राम्हण धर्म सँ प्रतिशोध लेवाक लेल जोर पकड़लकै त मूर्ति केर क्षति पहुंचेवाक आशंका सँ मूर्ति के लग केर चन्द्रभागा नदी में नुका क राखि देल गेल रहैक जे बाद में किछु दिनुका बाद पुनः अपन यथा स्थान स्थापित कऽ देल गेलैक। आई ओ भव्य स्थान श्रद्धालु केर लेल सृष्टि केर प्रलय हारी, करूणामयी, श्रृंगारिक आ ओजस्वी रूप में दुखहर बनि कऽ बिराजमान छैथि आ सतत अपन भक्त केर आशीर्वाद दैत छथिन्ह ।जँ भक्त हिनक दरवार में सत्य आ निश्छल भाव सँ उपस्थित होइत छैथि त हुनकर समस्त दुःख केर अंत आ मनोकामना अवश्य पूर्ण होइत छैन्ह। जय राज राजेश्वरी .
गुरुवार, 11 जनवरी 2024
हमारी खुशी किस में
एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे, पुराने डोंगे, कटोरियां, प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।
*फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और नववर्ष पर लाए हुए बर्तन तरीके से रखकर सजा दिए।
*बड़ा ही सुंदर लग रहा था अब किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले को दे दिया तो समझो हो गया काम।
*इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए बर्तनों पर गई और बोली - बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या ?
*और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।
*महिला बोली - अरी नहीं! ये सब तो भंगारवाले को देने हैं।
*कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आँखें एक आशा से चमक उठीं और फिर बोली - मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं ? (साथ ही साथ में उसकी आँखों के सामने घर में पड़ा हुआ उसका तलहटी में पतला हुआ और किनारे से चीर पड़ा हुआ इकलौता पतीला नजर आ रहा था।)
*महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा। उतना ही पसारा कम होगा।
*कामवाली की आँखें फैल गईं - क्या! सब कुछ ? उसे तो जैसे आज नए साल पर अलीबाबा का खजाना ही मिल गया हो।
*फिर उसने अपना काम फटाफट खत्म किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर की ओर निकली।
*आज तो जैसे उसे चार पाँव लग गए थे। घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया, और फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिया।
*आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना भरा पूरा सुंदर दिख रहा था।
*तभी उसकी नजर अपने बहुत पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई - अब ये बेकार सामान भंगारवाले को दे दिया तो समझो हो गया काम।
*तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- माँ! पानी दे।
*कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।
*जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली - फेंक दो कहीं भी।
*वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए ? क्या मैं रख लूँ अपने पास ?
*कामवाली बोली - रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ और फिर उसने जो-जो भी बेकार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।
*वो भिखारी भी खुश हो गया।
*पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।
*आज ऊसकी फटी झोली भरी भरी दिख रही थी।*
*ये सब क्या है? सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।
*हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है..!!*