dahej mukt mithila

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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

गजल


बनि जेतै घर, एखन धरि जे छै हमर मकान प्रिये।
घोरि दितियै हमर प्रेम मे अहाँ अपन जौं प्राण प्रिये।

एक मीसिया इजोत चानक चमकाबै छै पूरा दुनिया,
अहाँ बिन अछि घर अन्हार, छत जकर छै चान प्रिये।

आँखि मुनल हमर जरूर छै, मुदा हम छी नै सूतल,
अहाँक प्रेमक वाहक मुस्की दिन-राति लै ए जान प्रिये।

कखनो देखाबी प्रेम अहाँ, बनै छी कखनो अनचिन्हार,
प्रेमक खेल मे अहाँक नुका-छिपी केने ए हरान प्रिये।

जिनगीक रौदी छै प्रचण्ड, शीतल अहाँक केशक छाह,
विश्राम ओहि छाह मे करै ले डोलै "ओम"क ईमान प्रिये।
---------------------- वर्ण २१ ---------------------

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