जय शंकर प्रसाद जी रचित ये पंक्तियां सुषमा जी के व्यक्तिव को सही प्रकार से प्रदर्शित करती हैं......
भावुक मन के शब्द नहीं,
श्रद्धा के थोड़े पुष्प है ये।
तुम प्रथमा थी,
तुम अजातशत्रु,
तुम गरिमामय नारी का रूप रही।
तुम मृदु भाषी,
तुम ओजस्वी,
तुम अनुशासित योगी स्वरूप रही।
तुम ममतामय,
तुम करुणामय,
तुम आवश्यक शक्तिस्वरूपा भी।
तुम क्षमाशील,
तुम अनासक्त,
तुम जन-गण आसक्त मां रूपा भी।
बैकुंठ तुम्हारे स्वागत में,
और धरती पे है मौन अहे।
स्वीकार करो मेरा वंदन,
श्रद्धा के थोड़े पुष्प है ये।------
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