चाहे सहस्त्रों वर्ष है बीत गए,
पर राजनीति वैसी ही है।
पुत्र मोह में अंधा बना है सब,
राष्ट्रमोह की ऐसी-तैसी है।
अब न कुछ अंतर है बचा यहां,
इस कलयुग और धृतराष्ट्र युग में।
बस,तब का मंत्री शुभचिंतक था,
अब चाटुकार भरें हैं इस युग में।
तब नेत्रहीन नृप देखता था,
हर पाशा जिसको वह फेकता था।
किस क़दम का क्या प्रतिफल होगा,
बंद नेत्रों से सब देखता था।
अब नेत्रवान नृप अंधा है,
जो सेवा को समझा धंधा है।
तब तो एक विदुर ने चेता दिया,
राष्ट्र हित क्या है वो बता गया,
अपने कर्तव्य को करते हुए,
नृप के कर्तव्य को बता गया।
अब ना वो विदुर ना द्वापर है,
ना शुभचिंतक यहां, बस चाकर है।
सच से यहां समुचित दूरी है,
जो कर्तव्य है वो,मजबूरी है।
सत्ता, पुत्र मोह बस ज़रूरी है,
जनता की आश अधूरी है।
वह विदुर तो परम धर्मात्मा था,
मानव के रूप परमात्मा था।
जो ज्ञानी था, राजनीतिज्ञ था,
दूरदर्शी था,देशभक्त भी था।
वह बोला,मुंह भी खोला,
पर मृतात्मा की तब भरमार थी।
सब त्याग के रण को छोड़ चला,
जब चंहुओर भयंकर हाहाकार थी।
जहां विदुर जैसे शुभचिंतक से,
महाविनाश, संग्राम न रुक पाया।
किसी चुप्पी का प्रतिफल था शायद वो,
जहां ज्ञानी का ज्ञान न रंग लाया।
यह सीख लो कलयुग के विदुरों,
न अन्याय को देख आंखें मूंदो।
द्रौपदी चीरहरण हो या द्युद भवन,
अन्याय को यथाशीघ्र रौंदो।
उठती चिंगारी को न सुलगने दो,
विकराल रूप न पकड़ने दो।
द्वापर के विदुर से सीख के,
न किसी डर से आंखें मूंदो।
हो कड़वी बातें पर सच्ची हो,
जनहित के लिए पर अच्छी हो।
करो विरोध उस देशद्रोही नृप का,
अधर्मी और पुत्र मोही नृप का।
जो लिए रूप धृतराष्ट्र, द्रोण,कृप का।
यदि विरोध नहीं अब करोगे तो,
रणभूमि फिर से तैयार होगा।
जिसमें दुराचारी तन का विनाश होगा ही,
पर सदाचारी आत्मा पे भी प्रहार होगा।
नाम :- दीपिका झा
नैहर (जन्मस्थान) :- पोखरौनी (मधुबनी)
सासुर:- बसौली (मधुबनी)
नानीगांव :- नवगांव (दरभंगा)
विगत पंद्रह साल सं पुणे (महाराष्ट्र) में रहि रहल छी।
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