"ब्लू व्हेल चैलेंज" जो एक इंटरनेट गेम है, वह आज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से बच्चो और किशोर वर्ग के युवाओं के लिए मौत का पर्याय बन गया है। वास्तविकता में यह कोई गेम, एप्लिकेशन या सॉफ्टवेयर नहीं है। वस्तुत: आइस बकेट चैलेंज की तरह इसे भी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (फेसबुक, व्हॉसअप तथा गूगल+) के माध्यम से कुछ गुप्त सोशल मीडिया ग्रुप द्वारा प्रसारित किया जाता है।
ऐसा संदेह है कि अभी तक विश्व में करीब १०० बच्चो ने इस घातक गेम को खेल कर आत्महत्या कर ली है। लेकिन ठोस सबूत के अभाव में इसकी पुष्टि अभी तक कोई साइबर एक्सपर्ट नहीं कर पाया है। २०१६ में पुलिस ने इस इंटरनेट गेम के एक क्यूरेटर "फिलिप बुड़ैकिन" को इस संदर्भ में गिरफ्तार किया था। जिन्होंने दोषी पाये जाने पर यह कबूल किया कि वह समाज के बायोलॉजिकल गंदगी की सफाई कर रहे है।
हालाँकि इस इंटरनेट गेम की शुरुआत २०१५ में रूस से शुरु हुआ था लेकिन यह गेम अब विश्व के सभी हिस्सों में फैल चुका है। जिस में गेम के प्रतियोगियों को ५० चैलेंज दिया जाता है। गेम को कोई बीच में नहीं छोड़ सकता है। गेम में प्रतिभगियों को डरावना वीडियो देखने, खुद को क्षति पहुंचाने, देर रात पुल पर अकेला चलने तथा छत के किनारे टांग लटकाकर नीचे बैठने जैसी तमाम क्रियाकलाप दिया जाता है जिसे गेम का एडमिनिस्ट्रेटर/ क्यूरेटर प्रतियोगी द्वारा भेजे गए वीडियो क्लिप के माध्यम से मॉनिटर करता रहता है। इस गेम के अंतिम पड़ाव में प्रतियोगी को छत से कूदकर आत्महत्या करना होता है।
भारत में अभी तक कथित तौर पर करीब ७ बच्चो ने यह घातक गेम खेल कर आत्महत्या की है, जिनमें केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली तथा अन्य राज्यो के बच्चे शामिल है।
अभी के ताज़ा घटनाओं में दिल्ली के 'शुभ अग्रवाल' ने १६ अगस्त २०१७ को चार मंजिले छत से कूद कर आत्महत्या कर ली।
कहा जा रहा है कि बच्चे के हाथ में फोन था तथा वह कथित तौर पर ब्लू व्हेल चेलेंज गेम खेल रहा था।
घटना की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने फेसबुक, गूगल तथा व्हाट्सअप सहित सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स को हिदायत दी है कि वे अपने वेबसाइट से "ब्लू व्हेल चेलेंज" के लिंक को हटा दे। विभिन्न राज्य सरकारों ने भी स्कूल प्रशासन के माध्यम से छात्रों तथा अभिभावकों को इस घातक गेम के बारे में महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए है।
इस जानलेवा गेम से उत्पन्न विकट समस्या से मुकाबला करने के लिए मेरा सलाह यह है कि स्कूल प्रशासन द्वारा लगातार नियमित रूप से छात्रों तथा अभिभावकों को जागरूक किया जाए। छात्रों के स्मार्टफोन तथा इंटरनेट के एकांत में इस्तेमाल पर पावंदी लगे। माता-पिता इस बात का बिशेष ध्यान रखे कि बच्चे मोबाइल पर क्या कर रहे है। साथ ही साथ माता-पिता बच्चो के सामान्य क्रियाकलापों तथा व्यवहार में हुए किसी भी बदलाव का लगातार मूल्यांकन करते रहे। लगातार सतर्क होकर तथा जागरूक होकर ही मासूमो को "ब्लू व्हेल चेलेंज" रूपी मौत के मुँह से बचाया जा सकता है।
अतः सदैव सतर्क रहे। सुरक्षित रहे।
सौजन्य से :-
चन्दन झा
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