बन्द करूँ सम्मानक मेला
जन विद्वान बनल अछि खेला ।
एक दोसर पागे पहिराबी
दोसर कीर्ति पर आँखि देखाबी ।।
कियो ने कम बुधियारक सार
सब भेटल गुरुए कियो नै चेला ।
बन्द करूँ सम्मानक मेला
जन विद्वान बनल अछि खेला ।।
अपने बनलौं सब भाग्य विधाता
बुझिगेलौं सब आहाँ के गाथा ।
बनल प्रपंञ्ची , सबटा ज्ञानी
देब सम्मान , बात जौं मानी ।।
चाटुकारिता एतय प्रधान
जँ नई करब तS भेंटत ढ़ेला ।
बन्द करूँ सम्मानक मेला
जन विद्वान बनल अछि खेला ।
कूटनीति अइ कपट सँ भरल
राज नीति तेलहि सब तरल ।
विद्यापति नामक बनल धंधा
चला रहल अइ देखू अंधा ।।
मठोमाट अछि पग - पग बैसल
"बटोही" बुड़िबक ठाढ़ अकेला ।
बन्द करूँ सम्मानक मेला
जन विद्वान बनल अछि खेला ।।
रचनाकार -
निशान्त झा"बटोही"
2 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया रचना
अपने बनलौं सब भाग्य विधाता
बुझिगेलौं सब आहाँ के गाथा ।
बनल प्रपंञ्ची , सबटा ज्ञानी
देब सम्मान , बात जौं मानी ।।
बधाई हो ,नमस्कार
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