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शनिवार, 19 अप्रैल 2025

जानिए क्या है आर्टिकल 142, उपराष्ट्रपति ने क्यों बताया ‘न्यूक्लियर मिसाइल’.

   


लोकसभा स्पीकर के बराबर हैं CJI, फिर राष्ट्रपति को आदेश दे सकता है सुप्रीम कोर्ट.? जानिए क्या है आर्टिकल 142, उपराष्ट्रपति ने क्यों बताया ‘न्यूक्लियर मिसाइल’...*

*केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बनाए गए वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति को भी समय सीमा देते हुए निर्देश जारी किया था। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर फिर से निशाना साधा है और कहा कि वह अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर विधायिका के मामले में हस्तक्षेप कर रही है।*

*उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक ‘परमाणु मिसाइल’ बन गया है, जो न्यायपालिका के पास 24 घंटे उपलब्ध होता है।। उपराष्ट्रपति का बयान ऐसे समय में आया है, जब संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई और उसे रोकने की बात कही।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “हाल ही में एक निर्णय के माध्यम से राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहाँ जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमने लोकतंत्र के लिए इस दिन की कभी उम्मीद नहीं की थी। हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएँगे, कार्यकारी कार्य करेंगे, सुपर-संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहाँ आप (सुप्रीम कोर्ट) भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें। वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है।” उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 145(3) के अनुसार किसी महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर कम-से-कम 5 न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब पाँच न्यायाधीशों वाली पीठों का निर्णय निर्धारित किया गया था, तब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ थी। धनखड़ ने बिल के संबंधित मामले को लेकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ निर्णय दो न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा दिया गया था। अब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है।

उन्होंने यहाँ तक कहा कि संविधान पीठ में न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 145(3) में संशोधन करने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को बिल पर तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो संबंधित राज्यपाल द्वारा भेजा गया विधेयक कानून बन जाता है।

न्यायपालिका की वर्तमान हालात पर बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने न्यायाधीश यशवंत वर्मा का भी जिक्र किया। ये वही जज हैं, जिनके घर पर इस साल होली के दिन नोटों से भरे बोरों में आग लग गई थी। मामले में भारी विवाद के बाद भी सुप्रीम कोर्ट उन्हें दिल्ली से इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया और मामले की जाँच के लिए आंतरिक कमिटी बना दी गई।

धनखड़ ने कहा, “14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर एक घटना घटी। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। इसमें हुई देरी को क्या समझा जा सकता है? क्या यह क्षमा योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य स्थिति में और सामान्य परिस्थितियाँ कानून के शासन को परिभाषित करती हैं।”

अनुच्छेद 142, जिसे उपराष्ट्रपति ने परमाणु मिसाइल कहा

संविधान के अनुच्छेद 142 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और डिक्री को देने का अधिकार और उसे लागू करने आदि से संबंधित से संबंधित है। अनुच्छेद 142 के उपबंध-1 सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि उसके पास आए किसी भी मामले में वह न्याय के लिए डिक्री या आदेश पारित कर सकेगा। यह डिक्री या आदेश पूरे भारत में लागू होगा।

इसके उपबंध-2 में कहा गया है कि इस संंबंध में संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए सुप्रीम कोर्ट पूरे भारत के किसी भी क्षेत्र के किसी व्यक्ति को हाजिर होने, दस्तावेज प्रस्तुत करने, अवमानना की जाँच करने या दंड देने का समस्त अधिकार उसके पास होगा। इस तरह अनुच्छेद 142 में स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा पारित कानून के दायरे में ही काम करना है।

हालाँकि, बात यहीं खत्म नहीं होती। कॉलेजियम के तर्ज पर सुप्रीम कोर्ट ने इसकी भी काट निकाली है। पिछले कुछ वर्षों में अनुच्छेद 142 की व्याख्या और उसके प्रयोग के विभिन्न उदाहरण पेश किए गए। हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में निर्णय देकर एक कानूनी ढाँचा विकसित किया।

यह ढाँचा संविधान के अनुच्छेद 142 की व्याख्या और उसके प्रयोग से संबंधित था। इस निर्णय ‘एशियन रीसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम सीबीआई के पिछले निर्णय से बिल्कुल उलट था। सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट बार के फैसले में एशियन रीसर्फेसिंग के निर्णय को पलट दिया था। इसमें अनुच्छेद 142 के तहत नए दिशा-निर्देश जारी करने के अलावा अंतरिम आदेशों से संबंधित पहलुओं को भी शामिल किया।

इसमें विचार किया गया कि अंतरिम आदेश को रद्द करने या संशोधित करने का हाई कोर्ट का अधिकार क्या है और क्या अंतरिम आदेश किसी विशेष समय की समाप्ति पर खुद ही समाप्त हो सकता है। एशियन रिसर्फेसिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर विचार किया था। उस दौरान शीर्ष न्यायालय ने माना था कि जब तक अंतरिम आदेश का समय ना बढ़ाया न जाए, वह आदेश की तारीख से 6 महीने बाद स्वतः समाप्त हो जाता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले को उलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एशियन रीसर्फेसिंग मामले में निर्धारित समय बीत जाने पर अंतरिम आदेशों की स्वतः समाप्ति की शर्त लागू रहने योग्य नहीं थी और इसलिए इसे खारिज कर दिया। इसके बाद अनुच्छेद 142 में दिए गए अधिकारों के तहत उसने नए दिशा-निर्देश जारी किए।

इसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्या कोई न्यायालय अंतरिम आदेश पारित करते समय कोई समय सीमा तय कर सकता है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का उपयोग प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को दबाने या वादियों के मूल अधिकारों को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग विवेक से और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए, ताकि विवादों का निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाधान निकाला जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि अनुच्छेद 142 द्वारा दी गई शक्तियों का उद्देश्यपूर्ण न्याय सुनिश्चित करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने एशियन रीसर्फेसिंग में पहले दिए गए निर्णय को खारिज करते हुए कहा कि अनुच्छेद 226(3) के तहत पारित स्थगन आदेश को रद्द करने के लिए अनिवार्य शर्त स्थगन आदेश हटाने के लिए आवेदन दाखिल करना और न्यायालय द्वारा न्यायिक विवेक का प्रयोग करना है। इस आवेदन पर दो सप्ताह के भीतर निर्णय नहीं लिया जाता है तो स्थगन आदेश स्वतः समाप्त नहीं होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थगन आदेश तब तक प्रभावी रहता है, जब तक कि इसके रद्द करने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए आवेदन का कारणों के साथ निपटारा नहीं हो जाता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालतों को मामलों के निपटान के लिए कठोर समय-सीमा नहीं लगानी चाहिए, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न हो।

*अपने इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने जो नया गाइडलाइन तय किया उसके अनुसार, अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग न्यायालय द्वारा अपने समक्ष पक्षकारों के लिए पूर्ण न्याय करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन ऐसा करने में न्यायालय अन्य अधिकार क्षेत्रों में अन्य वादियों के पक्ष में पारित वैध न्यायिक आदेशों को रद्द नहीं करेगा।*

*राष्ट्रपति को निर्देश देने के लिए उपराष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट पर क्यों भड़के???

हमने अपने पिछले आर्टिकल में बताया था कि क्या सुप्रीम कोर्ट भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति को निर्देश सकते हैं या नहीं। इस आर्टिकल में हमने कई कानून पहलुओं पर विचार किया था। कई लोगों के मन में सवाल उठता होगा कि भारत में पदों की वरीयता क्रम क्या है। इससे भी साफ हो जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश दे सकता है या नहीं।

अगर वरीयता क्रम की बात की जाए तो राष्ट्रपति को देश का सर्वोच्च पद है। राष्ट्रपति को भारत का पहला नागरिक कहा जाता है। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति और संसद को मिलाकर ही भारत बनता है और वह संघ के प्रशासन का प्रमुख होता है। इसी प्रशासन का एक अंग न्यायपालिका भी है। इस तरह देश का सर्वोच्च राष्ट्रपति का होता है।

भारत में राष्ट्रपति और राज्यपाल ही ऐसे दो पद हैं, जिनके खिलाफ अदालती कार्रवाई नहीं की जा सकती है। भारत के संविधान ने अनुच्छेद 361 के तहत इसका प्रावधान किया है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति और राज्यपालों के खिलाफ अदालती कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ना ही इन दोनों को किसी मामले में नोटिस जारी कर सकता है और ना ही निर्देश दे सकता है।

राष्ट्रपति के बाद देश में दूसरा सर्वोच्च पद उपराष्ट्रपति का होता है। इसके बाद तीसरे नंबर पर प्रधानमंत्री आते हैं। देश का चौथा सर्वोच्च पद राज्यपाल का होता है, जो उनके कार्य वाले राज्यों में होता है। इसके बाद वरीयता क्रम में पाँचवें स्थान पर पूर्व राष्ट्रपति आते हैं। इसके बाद भारत के उपप्रधानमंत्री का पद वरीयता क्रम में 5A स्थान पर आता है।

*केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और लोकसभा स्पीकर का पद एक समान होता है। दोनों वरीयता क्रम में छठे नंबर पर आते हैं। इसके बाद सातवें नंबर पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्यों में होते हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री, राज्यसभा और लोकसभा में विपक्ष के नेता भी सातवें क्रम पर ही आते हैं।*

भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति का क्रम 7A होता है। आठवें क्रम में राजदूत, भारत द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रमंडल देशों के आयुक्त, अपने राज्य के बाहर मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल होते हैं। नौंवें क्रम पर सुप्रीम कोर्ट के आते हैं। इसके बाद 9A पर संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, मुख्य चुनाव आयुक्त और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) आते हैं।

*वरीयता क्रम मेें 10वें स्थान पर राज्यसभा के उपसभापति, राज्यों के उपमुख्यमंत्री, लोकसभा के उपसभापति, योजना आयोग (वर्तमान में नीति आयोग) के सदस्य और केंद्र सरकार के राज्यमंत्री आते हैं। वहीं, 11वें स्थान पर भारत के अटॉर्नी जनरल, कैबिनेट सचिव और अपने-अपने केंद्रशासित प्रदेशों के भीतर लेफ्टिनेंट गवर्नर (उपराज्यपाल) तक शामिल हैं। वरीयता क्रम में 12वें स्थान पर पूर्ण जनरल या समकक्ष रैंक के पद पर कार्यरत चीफ ऑफ स्टाफ।*

Devender Singh जी ✍️✍️

साभार!!

कैसी संसद और उसके द्वारा बनाया क़ानून?

*कौन राज्यपाल?*

*कौन राष्ट्रपति ?*

*कौन प्रधानमंत्री ?*

*कैसी संसद और उसके द्वारा बनाया क़ानून?

*पार्थ*

आँखें खोलो और मेरा विराट रूप देखो. 

मैं ही हूँ जो खुद को नियुक्त करता हूँ. 

मैं ही हूँ जो खुद का प्रमोशन करता हूँ. 

मेरे ही भाई बंधू हैं जो अधोवस्त्र उतार कर महिला वकील को जज बना सकते हैं. 

मेरे ही घर से करोड़ों के जले नोट निकलते हैं. 

मैं ही हूँ जो आधी रात पाजामे में आतंकवादी का केस सुनता हूँ 

मैं ही हूँ जो आम जनता के मुकदमो को दसियों साल लटकाता हूँ 

हे पार्थ 

मेरी ही उपासना करो. 

मैं ही हूँ ब्रह्माण्ड का निर्माता और उसको चलाने वाला. 

मैं स्वयं साक्षात प्रभु हूँ.         

गुरुवार, 27 मार्च 2025

बिहार को कोसना छोड़कर फैक्ट्री लगाइये

    बिहार प्रदेश को कोसना बंद करें ,इसकी तरक्की के लिए कुछ कर सकते हैं , तो ठीक वरना बिहार आकर आक्सीजन लें और कार्बन डाई आक्साइड छोड़ें?

*दिल्ली में कार्बन डाई ऑक्साइड लेना फिर जहरीला कार्बन मोनो ऑक्साइड छोड़ना बंद करें ?

      *बिहार की पहली और मनपसंद तरक्की यह है की पिछले बीस वर्षों में लालू प्रसाद यादव या उनका सातवीं फेल लड़का या अंगुठा छाप घरवाली मुख्यमंत्री नहीं बनी। इसके लिए श्रीमान नीतीश कुमार जी को हृदय से बधाई दिजिए साथ ही आशिर्वाद के साथ- साथ बिहार आकर नवंबर 2025 के चुनाव में भाजपा को या एनडीए को वोट दिजिए। अब श्रीमान नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी के केन्द्र सरकार का खजाना का मुंह बिहार सरकार के लिए खुल चुका है लगभग 10 लाख करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट पुरे बिहार में विकसित हो रहा है। इसके अलावा 5 लाख करोड़ का बजट और मंजूर कर लिया गया है।

         *कभी आप इसे हवा - हवाई न मान लो इसलिए आपको जानकारी दुं की आज ही सूचना आई है की 10 हवाई अड्डा को अगले तीन वर्षो में "" जनता-जनार्दन "" के लिए और खोला जायेगा। फिलहाल चार हवाई अड्डा बिहार में जनता-जनार्दन के लिए चालु है। चार तो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बिहार में सुरू होनें जा रहा है। पिछले 6 महिना में 14 औद्योगिक नगर बनना सुरू हुआ है।* *जिसमें जमीन अधिग्रहण हो चुका है अब 5 जगह जो औद्योगिक नगरी पहले से मृत प्राय है उसका विस्तार और पुनः निर्माण सुरू हो चुका है।* *उद्योग मंत्री श्रीमान नीतीश कुमार मिश्र जी जो की ललित नारायण मिश्र के घर से ही हैं ने बिहार में औद्योगिक क्रांति ला दिया है।*

         *जितना कार्य 20 वर्षों में नहीं हुआ है, उतना कार्य मोदी जी के लोकसभा चुनाव 2024 के रिजल्ट आने के बाद से हुआ है। मोदी जी की प्राथमिकता में बिहार, उड़ीसा और दिल्ली तीनों राज्य को विकसित बनाना है। नीतीश कुमार जी  मुख्यमंत्री अब अपना नेतृत्व अपने पुत्र को सौंपेंगे। इसलिए जंगलराज निकट भविष्य में बिहार में नहीं लौटेगा और बिहार प्रदेश को 1947 की तरह विकसित प्रदेश बनाने का संकल्प भारतीय जनता पार्टी ले चुकी है।*

       *इसलिए निराशा से आशा की ओर लौटिये और पत्रकारिता में जो कमायें हैं सब रूपया बिहार में फैक्ट्री लगाने पर निवेश किजिए। भूल जाइये ,पुराना बिहार , 2025 का बिहार तेजी से तरक्की की ओर अग्रसर है।*

         *मात्र 2700 रूपये खर्च कर दिल्ली से दरभंगा हवाई जहाज से पहुंचिये 1 घंटा 30 मिनट में आ जाइये दरभंगा । आकाशा कम्पनी वाला अप्रैल माह से अपनी सीधी उड़ान दिल्ली दरभंगा के बीच सुरू कर दिया है। टाटा की कंम्पनी है आकाशा एयरलाइंस । किराया 2500 से 2700 रूपये तक मात्र है। आपको कार लेकर मैं इंतजार करूंगा लेकर चलुंगा । दरभंगा में औद्योगिक नगरी और पंडौल मधुबनी का औद्योगिक नगरी। अन्यथा बरौनी और गया का बड़ा औद्योगिक नगरी जहां सैकड़ों फैक्टरी दिन रात उत्पादन कर रहा है।*

          *बिहार में मखाना उद्योग, मत्स्य पालन, आम, लीची, केला का बड़ा कारोबार विकसित हो रहा है। चार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा आपके कृषि उत्पादन को सीधा विदेशों में भेजकर मोटा कमाई चालू होने जा रहा है। मिथिला पेंटिंग का बड़ा बाजार संसार में है जिस पर मधुबनी सौराठ में बिहार सरकार का 10 एकड़ में कला केंद्र बनकर उद्धाटन भी हो गया है। रेलवे का भयंकर विस्तार हो रहा है। चार एक्सप्रेस वे सड़क का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है। अगले वर्ष दरभंगा से गया 200 किलोमीटर एक्सप्रेस वे बन के तैयार हो जायेगा। इस प्रोजेक्ट पर दो वर्षों से नितीन गडकरी जी 60 हजार करोड़ रुपया लगा रहे हैं।

*दरभंगा, पटना, बिहटा, गया चार हवाई अड्डा अंतरराष्ट्रीय बन रहा है। पटना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा हाल ही में बनकर तैयार हो चुका है।* 

      *इसलिए लालू प्रसाद यादव जी की मानसिकता से बाहर निकलिये।* *ये बिहार साधु यादवों को भूलकर, सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा , चिराग पासवान, शंभवी चौधरी की ओर मुर चुका है। उम्मीद है की नीतीश कुमार जी अपने पुत्र को बिहार की राजनीति में अवश्य सक्रिय करेंगे। और अब बिहार आगे का सुनहरा भविष्य प्रशस्त करेगा।*

 *बिहार की नयी पीढी, तीस वर्षों से नीचे को , जातिवाद में जरा भी भरोसा नहीं रहा वे सभी एनडीए की सरकार से संतुष्ट भी हैं और बार - बार जीत भी दिला रहे हैं।*

         *मोदी जी और योगी जी, इन युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं और निकट भविष्य का भारत , बिहार से होकर ही हर क्षेत्र में गुजरेगा। बहुत बड़ी बात हिन्दी में आपको बता दिया हूँ।*

      *पुनः आग्रह की मित्र और पत्रकार, आप दोनों हैं। इसलिए बिहार को कोसना छोड़कर फैक्ट्री लगाइये!! कुछ दिन गुजारिये बिहार में। जय बिहार!! जय भारत!! जय हिन्दूराष्ट्र!! जय हिन्द!!* 

*🚩 निवेदक------->🚩*

*धीरेन्द्र कुमार झा ( मास्टर जी )*

*राष्ट्रीय प्रवक्ता*

*अखिल भारत हिन्दू महासभा*

*नई दिल्ली- 110001*

*मोबाइल नम्बर- 8826770055*

🚩🚩🌹🙏🙏🌹🚩🚩

शनिवार, 1 मार्च 2025

महायज्ञ आमंत्रण


16 मार्च तक आयोजित जगदीश नारायण ब्रह्मचर्याश्रम लगमा में आयोजित लक्ष चंडी सह अति विष्णु महायज्ञ में आप एक दिन का समय निकालकर अवश्य पहुंचे ।

आपको यहां सनातनियों का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। 

यज्ञ में देखने लायक - 


१. एक ही यज्ञ मंडप पर एक साथ 2100 पंडितों को संस्कृत में पाठ करते हुए।

2. 108 हवन कुंड में आहुतियां देते हुए।

3. 2100 पंडितों के आवास देखने, फलाहार और भोजन की कैसे एक साथ व्यवस्था की गई है।


4. 11 मंजिला विशाल यज्ञ मंडप का प्रदक्षिणा करने।

5. वृन्दावन के रामलीला - रासलीला का दर्शन।

6. देश-विदेश के प्रख्यात कथावाचकों का दर्शन।

7. पुरी शंकराचार्य जी का दर्शन।

8. लगमा गुरुकुल का दर्शन।

9. गोलोकवासी ब्रह्मचारी जी का समाधि स्थल का दर्शन ।

10. करोड़ों रुपए से नवनिर्मित शीशमहल मन्दिर में विराजमान राम दरबार का दर्शन ।

11. शेषशय्या पर आसीन पद्मनाभ स्वामी का अलौकिक दर्शन

12. आचार्य रामानुजाचार्य जी का विग्रह दर्शन।

13.चैतन्य कुटी (राधे राधे कुटी) में नवद्वीप से स्थापित चैतन्य महाप्रभु, गौरांग महाप्रभु एवं श्रीराधाकृष्ण का अद्भुत विग्रह का दर्शन।  


सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

क्या आपने "धारा 30" के बारे में सुना है?

"मोदी का दूसरा प्रहार आ रहा है,
धारा 30 समाप्त हो सकती है!"

मोदी ने हिंदुओं के साथ नेहरू द्वारा किए गए विश्वासघात को सुधारने के लिए पूरी तैयारी कर ली है।
क्या आपने "धारा 30" के बारे में सुना है?
क्या आप जानते हैं कि धारा 30 का मतलब क्या है?

'धारा 30' एक हिंदू-विरोधी कानून है, जिसे नेहरू ने अन्यायपूर्ण तरीके से संविधान में शामिल किया था!
जब नेहरू ने इस कानून को संविधान में शामिल करने का प्रयास किया, तो सरदार वल्लभभाई पटेल ने इसका कड़ा विरोध किया।
सरदार पटेल ने कहा था,
"यह कानून हिंदुओं के साथ विश्वासघात है; अगर यह कानून संविधान में लाया गया तो मैं मंत्रिमंडल और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दूंगा!"

आखिरकार, नेहरू को सरदार पटेल के प्रतिरोध के सामने झुकना पड़ा।
लेकिन दुर्भाग्यवश, इस घटना के कुछ समय बाद ही सरदार वल्लभभाई पटेल का अचानक निधन हो गया...!!
पटेल की मृत्यु के बाद नेहरू ने तुरंत इस कानून को संविधान में शामिल कर दिया! 

अब जानिए धारा 30 की विशेषताएँ...
इस कानून के अनुसार, हिंदू अपने 'सनातन धर्म' की शिक्षा स्कूलों और कॉलेजों में न तो दे सकते हैं और न ही ले सकते हैं!
क्या यह अजीब नहीं लगता?

"धारा 30" के तहत, मुसलमान और ईसाई अपने धर्म की शिक्षा देने के लिए इस्लामिक (मदरसा) और ईसाई (कॉन्वेंट) स्कूल चला सकते हैं, लेकिन हिंदू अपने गुरुकुल या वैदिक शिक्षा पर आधारित पारंपरिक स्कूल नहीं चला सकते, जो देश के मुख्य धर्म सनातन या हिंदू धर्म और संस्कृति को संरक्षित कर सके। यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें इस कानून के तहत दंडित किया जाएगा!

साथ ही, मस्जिदों और चर्चों में दान से जमा सारा पैसा और सोना केवल उन्हीं का होता है। वे उस संपत्ति का उपयोग अपने अनुयायियों को बढ़ावा देने और अशिक्षित या कम शिक्षित हिंदुओं को धन के लालच में धर्मांतरण के लिए करते हैं। लेकिन हिंदू मंदिरों में जमा धन और सोने पर सरकार का नियंत्रण होता है!
नेहरू ने यह सब उस कुटिल गांधी के साथ मिलकर किया ताकि मुसलमानों और ईसाइयों को हिंदुओं के धर्मांतरण में सुविधा हो सके।

"धारा 30" हिंदुओं के खिलाफ एक जानबूझकर किया गया विश्वासघात है!

मुस्लिम बच्चों के लिए अपनी धार्मिक पुस्तक, कुरान पढ़ना और सीखना अनिवार्य है, और यही नियम ईसाइयों पर लागू होता है! लेकिन हमारे हिंदुओं के बारे में क्या? हमें अपने एकमात्र धर्म, जो इस प्राचीन विज्ञान पर आधारित है, की सही समझ भी नहीं है!
आइए, हम सभी सनातन धर्म की रक्षा करें। इस लेख को पढ़ें, समझें और नेहरू और कुटिल गांधी द्वारा किए गए इस अन्याय के बारे में हर जगह जागरूकता फैलाएँ।

क्योंकि धारा 30 के कारण, हम अपने स्कूलों और कॉलेजों में भगवद गीता नहीं पढ़ा सकते हैं, जबकि यह हमारा सनातन धर्म देश है।

यदि आप इस लेख को पढ़कर इसे पसंद करते हैं और सनातन धर्म में विश्वास और स्नेह रखते हैं, तो कृपया इसे जितना संभव हो सके उतना साझा करें!

कम से कम 5 लोगों को यह संदेश भेजें।
 धन्यवाद    Jai siya ram