dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

छठ मैया कौन-सी देवी हैं?

   


बहुत से मित्र छठ पूजा से जुड़ी जानकारी चाहते हैं तो आज विशेष रूप से उनके लिए पोस्ट।

छठ मैया कौन-सी देवी हैं?

कई लोगों के मन में ये भी सवाल है कि छठ या सूर्यषष्ठी व्रत में सूर्य देव की पूजा तो की जाती है पर साथ-साथ छठ मैया की पूजा क्यों की जाती है?

छठ मैया का पुराणों में कोई वर्णन मिलता है क्या?

वैसे तो छठ पूजा अब केवल बिहार का ही प्रसिद्ध लोकपर्व नहीं रह गया है इसका फैलाव देश-विदेश के उन सभी भागों में हो गया है जहां इस प्रदेश के लोग जाकर बस गए हैं इसके बावजूद भी बहुत बड़ी आबादी इस व्रत की मौलिक बातों से अनजान है।

श्वेताश्वतरोपनिषद् में बताया गया है कि परमात्मा ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांटा दाहिने भाग से पुरुष,बाएं भाग से प्रकृति का रूप सामने आया।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी हुआ पुराण के अनुसार, ये देवी सभी बालकों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी आयु प्रदान करती हैं।

''षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता |

बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा ||

आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी|

सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी'' ||

(ब्रह्मवैवर्तपुराण/प्रकृतिखंड)

षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में षठ/छठ मैया कहा गया है षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।

आज भी देश के बड़े भाग में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का चलन है पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्यायनी भी है इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को ही होती है।

अब प्रश्न उठता है सूर्य देव के साथ षष्ठी देवी की पूजा क्यो होती है?

तो मित्रो हमारे धर्मग्रथों में हर देवी-देवता की पूजा के लिए कुछ विशेष तिथियां बताई गई हैं उदाहरण के लिए, भगवान गणेश की पूजा चतुर्थी को,भगवान विष्णु की पूजा एकादशी को किए जाने का विधान है।

इसी तरह सूर्य की पूजा के साथ सप्तमी तिथि जुड़ी है सूर्य सप्तमी,रथ सप्तमी जैसे शब्दों से यह स्पष्ट है।

लेकिन छठ में सूर्य का षष्ठी के दिन पूजन अनोखी बात है सूर्य षष्ठी व्रत में ब्रह्म और शक्ति (प्रकृति और उनके अंश षष्ठी देवी) दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है इसलिए व्रत करने वालों को दोनों की पूजा का फल मिलता है यही बात इस पूजा को सबसे खास बनाती है।

महिलाओं ने छठ के लोकगीतों में इस पौराणिक परंपरा को जीवित रखा है ये दो लाइनें देखिए:

''अन-धन सोनवा लागी पूजी देवलघरवा हे,

पुत्र लागी करीं हम छठी के बरतिया हे '

दोनों की पूजा साथ-साथ किए जाने का उद्देश्य लोकगीतों से भी स्पष्ट है इसमें व्रती कह रही हैं कि वे अन्न-धन, संपत्ति आदि के लिए सूर्य देवता की पूजा कर रही हैं संतान के लिए ममतामयी छठी माता या षष्ठी पूजन कर रही हैं।

इस तरह सूर्य और षष्ठी देवी की साथ-साथ पूजा किए जाने की परंपरा और इसके पीछे का कारण साफ हो जाता है पुराण के विवरण से इसकी प्रामाणिकता भी स्पष्ट है।

कुछ खास बातें हैं जैसे कि माता स्वयं प्रकृति का रूप हैं तो प्रकृति खुद को स्वस्थ एवं स्वच्छ देखना चाहती है, तो स्वच्छता का महत्व बहुत ही ज्यादा है।

कहीं कहीं छठी माता को भगवान भास्कर की धर्मबहिन भी माना गया है जो पूर्णतः सत्य है साथ ही छठी माता को कात्यानी माता के जगह कभी कभी स्कंदमाता रूप भी माना गया है वो एक बहस का विषय है जिसके बारें में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नही है तो बहस की गुंजाइश थोड़ी कम है बहरहाल आप सभी मित्रों को समर्पित है ये लेख जो भी छठ व्रत के बारे में जानना चाहते थे।

आप सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं

जय छठी मैया

ॐ सूर्य देवाय नमः🙏

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

 *ॐ*

प्रति वर्ष दशहरे के बाद ठीक 

21 दिन बाद ही दीपावली क्यों आती है ? 

क्या कभी आपने इस पर विचार किया है ? 

विश्वास न हो तो कैलेंडर देख लीजिएगा। 

रामायण में वाल्मिकी ऋषि ने लिखा है कि, 

प्रभु श्रीराम को अपनी  पूरी सेना को 

श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 

21दिन इक्कीस दिन यानी 504 घंटे लगे!!

अब हम 504 घंटे को 24घंटे से भाग दें 

तो उत्तर 21 आता है 

यानी इक्कीस दिन !!! 

मुझे भी आश्चर्य हुआ । 

कुछ भी बताया है यह सोचकर कौतूहलवश गूगल मैप पर सर्च किया। 

उसमें दर्शाता है कि,

श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 

3145 किलोमीटर और 

लगने वाला समय 504 घंटे।।। 

हैं न आश्चर्यजनक बात। 

वर्तमान समय में गूगल मैप को 

पूरी तरह विश्वनीय माना जाता है। 

लेकिन हम भारतीय लोग तो 

दशहरा और दीपावली त्रेतायुग से चली आ रही 

परंपरानुसार मनाते आ रहे हैं।

समय के इस गणित पर 

आपको विश्वास न हो रहा हो तो 

गूगल सर्च कर देख सकते हैं 

तथा औरों को भी दीजिए यह रोचक जानकारी।

और वाल्मिकी ऋषि ने तो 

रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी।!!!

 उनका भविष्यवाणी और आगे घटने वाली घटनाओं का वर्णन कितना सटीक था। अपनी सनातन हिन्दू संस्कृति कितनी महान है। हमें गर्व है ऐसी महान हिन्दू संस्कृति में जन्म लेने पर।

 *है न रोचक और आश्चर्य जनक*

            *वन्देमातरम ।जय श्री राम।।*