dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

अभय कान्त झा दीपराज कृत - चक्रधर स्तुति

  









               चक्रधर स्तुति

राम बन कब ? आओगे, प्रभु कृष्ण बन कब ? आओगे |
अपने  भक्तों को भला प्रभु ,  कब  तलक ?  तरसाओगे ||

दस नहीं प्रभु ,  अनगिनत  हैं ,  शीश,  रावण  के  यहाँ |
कंस   भी   प्रभु  अनगिनत  हैं,  दृष्टि  जाती   है   जहाँ ||
क्षीर - सागर,   शेष - शैय्या,  छोड़ प्रभु कब ?  धाओगे |
अपने  भक्तों को भला प्रभु ,  कब  तलक ?  तरसाओगे ||१ ||

हर   तरफ   अंधेर   और   अन्याय   का   शासन  हुआ |
धर्म,    रानी   द्रोपदी    और    पाप,   दुःशासन   हुआ ||
चीर बन तुम दीन को प्रभु , फिर न क्या ? अपनाओगे |
राम बन कब ? आओगे, प्रभु कृष्ण बन कब ? आओगे ||२ ||

धेनु  -  धरती   और   गंगा,   कष्ट   से   सब   त्रस्त  हैं |
दुर्जनों   के   ज़ुल्म   से   प्रभु ,   भक्त   तेरे   पस्त   हैं ||
बन के सावन की घटा क्या ?  प्रभु न इन  पर छाओगे | 
अपने  भक्तों को भला प्रभु ,  कब  तलक ?  तरसाओगे || ३ ||

जिस  प्रकृति  के  और  कृति  के,  आप प्रभु आधार हों |
दुर्दशा  क्यों  उसकी ?   जिसके   आप   पालनहार  हों ||
क्या ?  हमें  प्रभु  गोद  में,  लेकर  न फिर समझाओगे |    
राम बन कब ? आओगे, प्रभु कृष्ण बन कब ? आओगे ||४ ||

चक्रधर,  फिर  चक्र  लेकर  आओ  प्रभु ,  अवतार  लो |
धर्म   की   रक्षा   करो   प्रभु ,   पाप   को   संहार   लो ||
वर्ना ,   कैसे ?   नाथ,   दीनानाथ,   तुम   कहलाओगे |
अपने  भक्तों को भला प्रभु ,  कब  तलक ?  तरसाओगे ||५ ||


राम बन कब ? आओगे, प्रभु कृष्ण बन कब ? आओगे |

अपने  भक्तों को भला प्रभु ,  कब  तलक ?  तरसाओगे ||


                रचनाकार - अभय दीपराज

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

मधेपुरा में ई वर्ष खुलत मेडिकल कॉलेज

राज्य के स्वास्थ मंत्री अश्रि्वनी कुमार चौबे कहलखीन जे सरकार अगला वित्तीय वर्ष में बिहार में मधेपुरा सहित चार मेडिकल कालेज खोले ले जा रहल ये | एकरा लेल केंद्र सरकार से एमसीआई के नियम में लचीलापन आनए के आग्रह करल गेल ये|
स्वास्थ चेतना यात्रा के क्रम में बुधवार के रात सहरसा पहुंचल स्वास्थ मंत्री श्री चौबे जी स्थानीय परिसदन में पत्रकारों से भेल बातचीत में बतेलखीन जे सहरसा में तैयार आइसीयू कक्ष के तीन माह के अन्दर चालू करै के आदेश सिविल सर्जन आज़ाद हिंद प्रसाद के दा देल गेल ये| ओ कहलखीन जे बिहार में मेडिकल कालेज, अस्पताल आ चिकित्सक के ढेर कमी ये| जबकि नियमतः ५० लाख के आबादी पे एक टा मेडिकल कालेज होबाक चाही|
ई हिसाब से बिहार में कम स कम २० टा मेडिकल कालेज होना चाही |
मुदा, आईठाम ६ टा सरकारी आ ३ टा मेडिकल कालेज ये|
राज्य सरकार अगला वित्तीय वर्ष में इंदिरा गांधी आर्युविज्ञान संस्थान के अलावा पावापुरी, बेतिया एवं मधेपुरा में मेडिकल कालेज खोले के निर्णय लेलक ये| सहरसा सदर अस्पताल में डाक्टर के कमी के बारे पे पुछला पर चौबे जी कहलखिन जे पूरा राज्ये में चिकित्सक के कमी ये आ नौ हज़ार डाक्टर ते तुरंते चाही| सरकार ई लेल जोर शोर से काज का रहल ये|
चौबे जी कहलखीन जे राज्य सरकार २२ मार्च से तिन करोड़ ६५ लाख बच्चा
के स्वास्थ जाँच शुरू करै ले जाय रहल ये | ई बच्चा के स्वास्थ जाँच में बाद सबटा के स्वास्थ कार्ड भी देल जायत| आ १६ बर्ष तक के बच्चा के स्वास्थ के जिम्मा राज्य सरकार लेत|

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

कोशी महोत्सव में उपेक्षित भेल मैथिल आ मैथिलि

माछ, मखान आ पान के लेल  प्रसिद्ध मिथिला आ कोसी के धरती पे आयोजित भेल कोसी महोत्सव में भी मैथिली भाषा उपेक्षित रही गेल। कोसी आ मिथिला के नामी गिरामी कलाकार भले ही दोसर प्रदेशों आ जिलों में अपन नाम कमा रहल हुए मुदा कोसी में ही उपेक्षा के शिकार बनल ये |
कोसी महोत्सव में मौजूद लोगेंन सब कहैत रहा जे मैथिली आंदोलन के दौरान 1965 में जखन दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास पे  आयोजित कार्यक्रम में सुपौल जिला के धीरेन्द्र झा धीर जी समदाउन की चाइरे पंक्ति में इंदिरा जी का मन मोह ललक रहे । ओही मैथिली के कोसी महोत्सव से बाहर खड़ी क देल गेल ये। कोसी क्षेत्र के कईकटा गायक आ अभिनेता ये जे वालीवुड में अपना नाम कमा रहल ये लेकिन, अपन एता भेल कार्यक्रम में ओ उपेक्षित रही गेल। मैथिली के गीतकार अशोक चंचल जी दूरभाष पर कहलखिन जे कोसी महोत्सव में मिथिला आ कोसी के कलाकार के उपेक्षित करल जाय रहल ये !जबकि गायक एश्वर्या निगम मैथिली कैसेट 'मिथिला में रफी' से ही चर्चित भेल रहे! ओ कहलखिन जे लोक संस्कृति को बढ़ावा दै  के लेल स्थानीय स्तर पे भी लोग के जागरुक
होबाक चाही। दुःख ते बहुत भेल की आपन माटी पर आपन मैथिल की उपेक्षा भेल मुदा संघर्ष करैत छि जे आगाँ से एहन गलती नै होएत| याह कामना के साथ " जय मैथिल जय मिथिला" |

गीत स्वतंत्रता के@प्रभात राय भट्ट


सुनु सुनु ययो बाबु भैया ,
नींद स तू जगबा कहिया ,
भूखे पेट पेटकुनिया देला स
नई चलत आब कम हौ
कालरात्री के भेलई अस्त ,
उठह उठह कर दुसमन के पस्त ,
आइधैर तोरा पर शासन केलक ,
आब कतय दिन रहबा गुलाम हौ,
भेलई परिवर्तन बदैल गेलई दुनियाँ,
मधेस अखनो रहिगेलई शासक केर कनियाँ,
हसैछ दुसमन दैछ ललकार ,
उठह उठह दुष्ट शासक के करः प्रतिकार ,
मग्लाह स त भूख गरीबी रोग शोक देलकह ,
आब छिनक ला ला अपन अधिकार हौ ,
अखनो नई जगबा त जिनगी हेतह बेकार हौ ,
बेसी सुत्बा त अम्लपित बैढ़ जेताह ,
बिस्फोट भक्ह प्राण निकैइल जेताह ,
उठह उठह करः अपन प्राण क रक्षा ,
सिखह तू मान-स्वाभिमान क शिक्षा ,
प्राण तोहर मधेस माई में ,
मान-स्वाभिमान छह तोहर स्वतंत्रता में ,
बन्धकी परल छह तोहर मधेस माई,
उठह उठह हों बाबु भाई ,
मधेस माई केर मुक्ति दिलाब ,
सुन्दर शांत विकाशील मधेस बनाब ,
कालरात्री केर भेलई अस्त ,
उठह उठह करः दुसमन केर पस्त ,

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
पिता :-गंगेस्वर राय
माता :-गायत्री देवी
ग्राम :-धिरापुर -महोतरी
अस्थाई बसोबास :-जनकपुरधाम -नेपाल

गीत:-माहासंग्राम@प्रभात राय भट्ट


संग्राम संग्राम ई अछि मधेस मुक्ति केर महासंग्राम !!
विना हक हित अधिकार पौने हम नए लेब आब विश्राम !!
अईधैर हम सहित गेलौ दुस्त शासक केर अन्याय !!
मुदा आब नई हम सहब लक हम रहब अपन न्याय !!
निरंकुश शासक शासन करईय घर में हमरा घुईस !!
मेहनत मजदूरी हम करैतछि, खून पसीना ललक हमार चुईस !!

अढाईसय वरखक बाद आई भेलई मधेस में भोर हौ !!
गाऊ गाऊ गली गली में आजादी क नारा लागल छै जोर हौ !!
निरंकुश शासक कहैया हम छि बड़ा बलबंत !!
मुदा आई हेतई दुष्ट निरंकुश शासक केरअंत !!
संग्राम संग्राम यी अछि मधेस मुक्ति केर महासंग्राम !!
विना हक हित अधिकार पौने आब नई हम लेब विश्राम !!

अईधैर हम सहैत गेलौ उ बुझलक हमरा कांतर !!
तन मन धन सब कब्जा कौलक हमरा बुझलक बांतर !!
आब हम मांगब नई छीन क लेब अपन अधिकार हौ !!
उतैर गेलौ हम रणभूमि में करैला दुष्ट शासक केर प्रतिकार हौ !!
मेची स महाकाली चुरेभावर स तराई,समग्र भूमि अछि मधेस माई !!
हिन्दू मुश्लिम यादव ब्राम्हिन थारू सतार संथाल हम सब एक भाई !!
जातपात कोनो नई हमर हम सब छि एक मधेसी हौ !!
अपन भाषा भेष संस्कृति नया संविधान में हम करब समावेशी हौ !!

रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

कोसी महोत्सव के तैयारी पूरा भ गेल


रविवार से शुरू होये वला दू दिवसीय कोसी महोत्सव के तैयारी पूरा भ गेल ये ! आब इंतजार ये काइल के जखन जोशो खरोश के साथ शुरू होयत प्रसिद्ध कोशी महोत्सव.

ई महोत्सव के अवसर पर स्टेडियम में प्रमंडल स्तर के  सरस मेला आऔर  कृषि उद्योग मेला का आयोजन कायल जा रहल ये! याह में  हैण्डलूम, हेंडीक्राफ्ट, फूड प्रोसेसिंग, दरी-कालीन आदि के बिक्री होयत। मेले का मुख्य आकर्षण होयत भागलपुरी सिल्क, कैमूर निर्मित बनारसी साड़ी, समस्तीपुर निर्मित बांसक के सामान, मोतिहारी निर्मित सीप के सामान आऔर रेशम उद्योग के रेशम कीट प्लान होयत! सरस मेला में कृषि विभाग से अनुदानित दर पर कृषि उपकरण की बिक्री सेहो हायत। मेला के  उद्घाटन करथीन  योजना एवं विकास मंत्री नरेन्द्र नारायण यादव। आ मुख्य अतिथि के रूप में आपदा प्रबंधन मंत्री रेणु कुमारी कुशवाहा, विशिष्ट अतिथि के रूप में सांसद शरद यादव, दिनेश चन्द्र यादव भाग लेथीन । जिला प्रशासन  सम्मानित अतिथि के रूप में विधायक डॉ. आलोक रंजन, डॉ. अरुण कुमार, डॉ. अब्दूल गफूर, रत्‍‌नेश सादा, अनिरूद्ध प्रसाद यादव, सुजाता देवी, नीरज कुमार, अमला देवी, रमेश ऋषिदेव, प्रो. चन्द्रशेखर, विधान पार्षद वीरकेश्वर सिंह, संजीव कुमार सिंह, हारुण रसीद, विजय कुमार वर्मा एवं मो. इसराईल राईन को आमंत्रित करालखीन ये । देखियो काइल की होए ये मुदा हम ते येहा कहब की एक बेर फेर पिछला साल जेना इहों साल कोशी महोत्सव के धूम पूरा विश्व में गुंजायमान हुए.

मैथिल बने मोबाइल के टोन ई दिशा में करलखिन पहल सहरसा के विधायक जी


सहरसा के विधायक डॉ. आलोक रंजन जी केंद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल के चिट्ठी भेज के आग्रह करलखिन ये जे संविधान के अष्टम सूची में शामिल मैथिली भाषा के भी दूरभाष आऔर मोबाइल के टोन में शामिल करल जाये!
संचार मंत्री के भेजल पत्र में विधायक जी कहलखिन जे मैथिलि मिथिलांचल  आऔर नेपाल के तराई क्षेत्र के भाषा ये!ओ कहलखिन जे  भारत में चार करोड़ लोगेन के भाषा मैथिलि ये ते ई भाषा से ई पक्षपात किया भ रहल अछि! भारत के विभिन्न प्रान्तक भाषा के टोन में शामिल करल गेल ये, ते मैथिलि किया अखन तक शामिल नै ये ! आब देखनाई ई ये जे  विधायक जी के ई निक कदम  कोन रंग लाबई ये, मुदा हम ते यहाँ कहब जे भगवानक दया से मैथिल भाषा भी टोन में आइब जाये!

परिचय@प्रभात
यी अछी हमर परिचयरुपी कविता,
यी अछी हमर प्रेमपरागक सरिता,
धन्य धन्य अछी भाग्य हमर,
जन्म लेलौ हम मिथिलाधम में,
बास अछी हमर पावनभूमि धिरापुर गाम में,
स्वर्ग स सुन्दर आनन्द बरसैय,अई मिथिलाधम में,
धिरापुर केर धिरेस्वरमहादेव छैथ बड़ ओढरदानी,
हम बालक प्रभात अबोध अज्ञानी,
पिता गंगेस्वर छैथ ईश्वर के स्वरूप ,
माता गायत्री ममता स भरल देवी क रुप,
भातृत्व प्रेमक प्रतिक प्रकाश प्रभात प्रविन,
सब भाई मे अछी आदर सत्कार स्वाभिमान नबिन,
सुन्दर सरल सिशील शालीन बहिन आशा,
धन्य धन्य अछी भाग्य हमर पुरा भेल अभिलाषा ,
भौजी सद्खन ममता स भारल स्नेह बर्सबैय,
भावो भावनात्मक बत्सल स्नेह बच्चा सब मे बटैय,
हमर मन उप्वनमें बास करैय चन्द्रबदन पत्नी पुनम,
सोन स सुन्दर सरल शुशिल बेट्टी अछी स्वर्णिम,
सत्यमार्गी संतान तेज्स्व्बी बेट्टा अछी सत्यम ,
धन्य धन्य अछी भाग्य हमर जन्म लेलौ मिथिलाधाम में,

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

बिहार में होयत पंचायत चुनाव १० चरण में.



पंचायत चुनाव के अधिसूचना २१ के फरवरी के जरी क देल जायत

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अध्यक्षता में मंत्रिमंडल के संग भेल बैठक में ई सम्बंध में निर्णय लेल गेल ये.
मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अपर सचिव बी़ क़े सिंह पत्रकार सबहक बतेलक जे मंत्रिमंडल के बैठक में राज्य में होए वाला चुनाव के अधिसूचना २१ फरवरी के जरी करल जायत !

पहिलुक चरण के चुनाव २० अप्रेल के होयत.

ओ बतेलखिन जे ई मंत्रिमंडल के बैठक में ३३ प्रस्ताव लेल गेल ये.

बैठक में राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी संगे मंत्रिमंडल के करीब - करीब  सब टा सदस्य उपस्थित रहे.

मोनक अपन बात @प्रभात राय भट्ट

की कहू ककरा स: कहू मोनक अपन बात
विग्रल जाईय समाज क प्रबृति आओर हालत !
जुल्म अपराध में फसल अछि युवा वर्ग केर हाथ
dekh rahal chhi sab ke गोली बन्दुक केर साथ !!
हम जहिया बच्चा छलौ बाबु स मंगलौ किताब कापी कलम
मुदा हमर दश वरखक बेट्टा कहैय किन्दे वावू पेस्तोल बन्दुक आ बम
हम जहिया युवा छलौ खेलौ दूध खुवा मलाई !
तन मन स केलौ गाऊ समाज देश क भलाई !
आई काहिल क छौरा सब वीडी गंजा भांग दारू तारी पिबैय !
चौक चौराहा बैठक जुवा तास खेलईय !
बाट चलैत बहुरिया केर देख क मारईय पिहकारी !1

sutal sutal bhojan karaiya kare nae कोनो रोजगारी
अपहरण फिरौती चंदा स पैसा कमाईकेर मन में छई भ्रम !
चोरी सेहो कराइय घोईर घोईर पिगेल सबटा लाज शर्म
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत क्रमांक-

                भगवती के गीत
 
अवलम्ब  अहीं  हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख  दूर    करू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान  और धन  सँ  कोष हमर भरपूर करू ||

अहाँ माता छी, हम शिशु अबोध, नहीं कोप अहाँ के, सहि पायब |
जौं   कष्ट   सतओत   मोन   हमर,   माँ,   अहीं   के   गोहरायब ||
रक्षक   बनि   रक्षा   करू   हमर,   नहिं   ऐना   कष्ट  सँ चूर करू |
अवलम्ब  अहीं   हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख   दूर   करू ||१ ||

बनि   बेटी   आँगन   में   खेलाउ, बनि  पुत्र  बनू  कुल  के गौरव |
जों   हाथ   अहाँ   के   माथ   रहत, संसार   व्यूह  के  हम तोड़व ||
माता  बनि  क  हे  जगजननी, जीवन   में   सौम्य - सुरूर   भरू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान  और   धन  सँ  कोष हमर भरपूर करू ||२ ||

कर्त्तव्य   धर्म   निर्वाह   करी, बनि   पुत्र   अहाँ   के   चरण  गही |
छाया   में   अहीं   के  जीवन - धन  के  भोगी, अहींक शरण रही ||
एहि  तरहक  सौम्य  स्वभाव दिअ, अभिमान  सँ  ने मगरूर करू |
अवलम्ब   अहीं   हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख   दूर   करू ||३ ||

संकट   सँ   हमर   उबार   करू,   दुर्गा    बनि   हमरो   दुर्ग   बनूँ |
जग के  अहाँ कारण - तारण  छी, अहीं नाव  के  अब पतवार बनूँ ||
अब  द्वार  कतय  हम  जाई  जतय, अहीं  हमरा  अब  मंजूर  करू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान   और   धन  सँ  कोष  हमर भरपूर करू ||४ ||

हम  थाकि  गेलौं, भटकैत- भटकैत,  जग के जंजाल - जाल में माँ |
नहिं   कोनो   साथी, संबंधी   अछि, हमर  अब  एहि हाल में, माँ ||
बड़  कष्ट  उठोलौं   हे  अम्बा, बस , और   ने   अब  मजबूर   करू |
अवलम्ब  अहीं   हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख    दूर   करू ||५ ||

अवलम्ब  अहीं  हे जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख   दूर   करू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान  और धन  सँ  कोष हमर भरपूर करू ||



                       रचनाकार - अभय दीपराज
 

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

गीत वियोग के@प्रभात राय भट्ट







पिया निर्मोहिया गेलैथ परदेश ,

भेजलैथ नई चिठ्ठी आ कोनो सन्देस,

जिया घबराईय ,चैन नई भेटैय,

सद्खन साजन अहि पर सुरता रहैय,

अहाविन हे यौ साजन मोन नई लगैय .......२

आईबकेर परदेस हमहू छि कलेश में ,

दुःख केर पोटरी की हम भेजू सन्देस में ,

आईबकेर परदेस मोन पचताईय ,

अहाक रे सुरतिया सजनी बिसरल नई जाईय ,

अहा विन हे ये सजनी मोन नई लगईय ,..........२

नई चाही हमरा गहना ,रुपैया आऔर बड़का नाम ययौ ,

ख्याब नून रोटी झोपडी में मुदा चएल आउ गाम ययौ ,

अहाक मुन्ना मुन्नी पर नई अछि हमार काबू ,

बाट चलैत बटोही क कहीदईया झट सा बाबु ,

सम्झौला स झट पुईछबैठेय कतए गेल हमर बाबु ,

सुनीकेर बेट्टाबेट्टी के बोली ,दिल पर चैइल जाईत अछि गोली ,

चुप चाप हम भजईत छि ,मोने मोन हम लाजईत छि ,

कहिदु मुन्ना मुन्नी के बाबु गेल छौ पाई कमाईला विदेस ,

ल क अईतोऊ तोरासबल्या खेलौना आ मीठ मीठ सनेश ,

मोन तर्शैय हमरो सजनी अहाक प्यार आ अनुरागला ,

आ बेट्टा बेट्टी केर मिठिका दुलार ला ........2


आबैछी सजनी हम अपन गाम ,फेर नई लेब विदेस जाईकेर नाम !!

रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

तुम स्वयम जागो @प्रभात राय भट्ट





जागो रे युवा जागो खोल अपनी आँखे !!


अस्त हुयी कालरात्रि छाया है सुनहरा सबेरा !!
अपनी आहार की खोजी में निकल पड़ी पंक्षी छोड़ के अपना डेरा !!
जागो रे युवा जागो खोल अपनी आँखे !!
जगादो गहरी नींद में सोये समाज को !!
जगादो भोग में भुक्त सरकारको !!
जगादो देश की कर्मधार नव युवाको !!
जगादो सोये हुए भावनायों को !!
और तुम स्वयं जागो ,
--बसंत ऋतू में लहराता हरियाली ,
पर मुरझाई हुयी है पेड़ पौधों की डाली !!
क्यों की गहरी नींद में सो गया माली !!
तुम्हे समाज को मुरझाने से बचाना है !!
अपने वतन के लिए कुछ करके दिखाना है !!
-----तुम युवा ही देस की कर्मधार हो !!
विकाश और परिवर्तन की मुलभुत आधार हो !!
अपने कार्यकुशलता ,आत्म्वल पर रखो भरोषा !!
मंजिल तुझे मुक्म्बल होगी ,मन में रख ये अभिलाषा !!
तू कदम पे कदम बढ़ाते जा ,हम भी तेरा साथ देंगे !!
ठोकर कही लगे तुझे तो हम अपना हाथ देंगे !!
तुम जहा भी जाओ हम कलम कापी के साथ होंगे !!
परिवर्तन की ईतिहास में तेरा भी नाम लिखेंगे !!
नयुतन ,ग्यालिलियो ,अब्राहम, सुकरात,गाँधी ,
इन महामानव के साथ तुझे भी हम विराजमान करेंगे !!


रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट


प्रस्तुतकर्ता Prabhat from madhes पर 9:32 AM 0 टिप्पणियाँ Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook Share to Google Buzz इस संदेश के लिए लिंक
लेबल: प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

अभय कान्त झा दीपराज कृत - प्रार्थना

                        प्रार्थना


मैं   विवेक  के  गंगा  जल से,  सारे जग  का  मल  धोऊँ |
हे प्रभु  मुझको  शक्ति  दे, मैं जग का स्वर्णिम कल होऊँ ||

प्रभु ,  मेरे  इस  तन  और मन से,  सारे  पाप  हटा दे  तू |
और  राहों  से  अन्धकार  को बनकर ज्योति मिटा दे  तू ||
जिस जग ने  रचना  की मेरी,  उस  पर  न्योछावर   होऊँ |
हे प्रभु मुझको शक्ति दे, मैं जगका  स्वर्णिम  कल होऊँ ||१  

बनूँ  पुण्य  का  प्रहरी  और  इस जग से पाप मिटा दूँ मैं |
दीनों  और   दुखियों   के   आँसू , पर  सर्वस्व लुटा दूँ मैं ||
दानवता  को  थर्रा   दूँ   मैं,   जब   जागूँ ,  चंचल  होऊँ |
मैं  विवेक  के  गंगाजल से, सारे  जग   का  मल  धोऊँ || २

प्रभु  मुझको  बल बुद्धि धैर्य का तू  अनुपम  सागर  कर दे |
पी  सकूँ   हलाहल  और  अमृत  उगलूँ  ऐसी गागर कर दे||
अभिमान नहो कुछ पाने का, हो गौरव जब खुदको खोऊँ|| 
हे  प्रभु  मुझको  शक्ति  दे, मैं जगका स्वर्णिम  कल होऊँ || ३||

दानवता को जीत सकूँ  मैं,  मानवता  का  मान  बढ़ा कर|
जग  को  मैं  आदर्श  बना  दूँ , सिद्धांतों का पाठ पढ़ा कर ||  
लक्ष्य न जबतक पालूँ अपना, थक कर कभी न मैंसोऊँ |
हे प्रभु  मुझको  शक्ति  दे, मैं जग का स्वर्णिम कल होऊँ|| ४||

चक्र मुझे प्रभु  दे अपना  तू ,  बस  कर  इस  अंतर्मन  में |
धर्म, न्याय,  सुख की वर्षा मैं कर दूँ  जग  के  आँगन  में||
फसल,  शांति  और  समृद्धि  की  प्रभु,  सारे जग में बोऊँ |
हे प्रभु  मुझको शक्ति दे, मैं जग का स्वर्णिम  कल होऊँ||५

मैं  विवेक  के  गंगा  जल से,  सारे जग  का  मल  धोऊँ |
हे  प्रभु  मुझको शक्ति  दे, मैं जग का स्वर्णिम कल होऊँ||
 
                रचनाकार - अभय दीपराज 


शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

गाम आबी जाऊ

बसंतक आगमन भेल अछी,
धानक सीस जेना आमक मज्जर ,
फगुआ सेहो लकचियागेल ,
हम त कहब !!!
अहि बेर छुट्टी मैं गाम आबी जाऊ ,
दालान पर कोटपिस आ २८ खेलब ,
आ संगे मालदह आ किसुन्भोग क स्वाद ,
सहर मैं त कारबिदेक गंद सुन संतोस कर परत ,
आ बिसेस इ जे !!!!!!
कनिया काकी बाट तकैत तकैत नोरा गेली ,
तैं गाम आबी जाऊ !!!!!!!

***स स्नेह .....विकाश झा ***

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

किडनी चोर - किशन कारीग़र

किडनी चोर।

देखू-देखू केहेन जमाना आबि गेल
मनुखक हृदय भऽ गेल केहेन कठोर
सभ सॅं मुॅंह नुकौने, चुपेचाप
भागि रहल अछि एकटा किडनी चोर।

डॉक्टर भऽ के करैत अछि डकैति
कोनो ग़रीबक बेच लैत अछि किडनी
पुलिस तकैत अछि ओकरा इंडिया मे
मुदा ओ परा जाइत अछि सिडनी।

कोनो ग़रीबक किडनी बेचि कऽ
संपति अरजबाक केहेन ई अमानवीय भूख
केकरो मजबूरीक फायदा उठा कऽ
डॉक्टर तकैत अछि खाली अपने सूख।

केकरो जिनगी बॅंचौनिहार डॉक्टर रूपयाक लोभ में
बनि गेल आब किडनी चोर
छटपटा रहल अछि एकटा गरीबक करेजा
कनैत-कनैत सूखा गेलै ओकर ऑंखिक नोर।

मनुख आब केहेन लोभी भऽ गेल
आब ओ किडनी बेचब सेहो सीख गेल
राता-राति अमीर बनबाक सपना देखैत अछि
रूपया खातीर ओ किछू कऽ सकैत अछि।

मनुख भऽ के मनुखक घेंट काटब
कोन नगर में सिखलहुॅं अहॉं
आबो तऽ, बंद करू किडनी बेचबाक धंधा
मानवताक नाम सगरे घिनेलहुॅं अहॉं।

कोनो गरीबक किडनी बेचि कऽ
महल अटारी बनाएब उचित नहीं थीक
एहेन डॉक्टरीक पेशा सॅं कतहू
मजूरी बोनिहारी करब बड्ड नीक।

हम अहिं के कहैत छी यौ किडनी चोर
एक बेर अपने करेजा पर छूरी चला कऽ देखू
कतेक छटपटाइत छैक करेजा
एक बेर अपन किडनी बेचि कऽ तऽ देखू।

लेखक:- किशन कारीग़र



परिचय:-जन्म- 1983ई0 कलकता में मूल नाम-कृष्ण कुमार राय किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय नन्दू’माताक नाम- श्रीमती अनुपमा देबी। मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी जिला-मधुबनी बिहार। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि।वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम फिल पत्रकारिता एवं बी एड कुरूक्षे़त्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

भगवती के गीत (By Abhay Deepraaj)


अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत

               भगवती के गीत

जय  माँ  अम्बे ,  जय  जगदम्बे , हमरा  पर  उपकार  करू |
हम  बालक  भटकल - बौआयल  ,  जीवन  के  उद्धार  करू ||

हम   कामी ,  लोलुप   और   पापी ,  अपराधी   संसार   के |
शरण   अहाँ   के   अयलों   माता   आशा  ल  क   प्यार  के ||
चाहे   दण्डित    करू   हे  जननी ,  चाहे   बेड़ा   पार   करू |
जय  माँ  अम्बे ,  जय  जगदम्बे ,  हमरा  पर  उपकार  करू || १ 

माता  अंश  अहीं  के  हम सब  , अहीं  क  रूप  अनेक अछि |
हम   कपूत त दोष  अहीं  के ,  अहीं  क  देल  विवेक अछि ||
अब   चाहे   अहाँ   करू   तामश  ,  चाहे   हमरा  प्यार  करू |
हम  बालक  भटकल  -  बौआयल  , जीवन  के  उद्धार   करू || २

नेहक  आशा  ल   क   जननी ,  शरण  अहाँ   के  आयल  छी |
अहीं   उबारब त हम   उबरब  ,  अहीं   के  भटकायल   छी ||
अहीं   बनेलौं   मूरख    हमरा ,   अहीं    बुद्धि   आगार    करू |
जय   माँ  अम्बे ,  जय  जगदम्बे, हमरा  पर  उपकार  करू || ३ 

जग    में    हे     जगदम्बे     अहीं    स्नेहक     भण्डार    छी |
बुद्धि,  ज्ञान,  बल,  विद्या  के  अहाँ, सागर  छी ,   संसार   छी ||
हाथ   कृपा  के  राखि  माथ   पर , हमरो   नीक   कपार  करू |
हम   बालक   भटकल - बौआयल , जीवन  के  उद्धार  करू  || ४

स्वस्थ,  सुखी,  संपन्न,  धर्म - युत  जीवन  के  आशीष  दिअ |
परमारथ और पर सेवा में झुकल रहय ओ रहय ओ शीश दिअ||
बसि  क   हमर  आत्मा  में   माँ ,  पापक  अहाँ   संहार   करू |
जय  माँ  अम्बे, जय   जगदम्बे, हमरा   पर   उपकार  करू ||५ || 

                         रचनाकार - अभय दीपराज

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

सपना देख्लौ बड अजगुत @प्रभात राय भट्ट


सपना देख्लौ बड अजगुत@प्रभात राय भट्ट


की कहिय राएत सपना देखलौं बड अजगुत हो भाई ,
हमरा पाछु लागल रहे एकटा बहुरुपिया कसाई,
धमकी देलक गल्ह्थी लगौलक देखौलक चाकू छुरा ,
जान स माएर देबौ,प्राण निकाइलदेबौ,नईतकर हमर माग पूरा ,
गाल हमर लाल कौलक खीच क मारलाक चटा चट चांटा ,
निकाल बाक्स पेटी स फटा फट दू चार लाख टाका,
डर स हम थर थर कापी मोन रहे घबराईल ,
तखने एकटा पहरा करैत प्रहरी हमरा लग चईल आईल ,
मोने मोन हम सोचलौ इ करता हमरा मदत ,
मुदा उहो रहे ओई चंडाल कसाई केर भगत ,
दुनु गोटा कान में कौलक फुस फूस ,
बाईन्ध क हमरा डोरी स घर में गेल घुईस ,
छन में सबटा भेल छनाक घर में परल डाका ,
झट पट जे आईंख खोल लौ ,त की कहिय काका ,
उ सपना नई सचे के बिपना रहे ,
हमर बिपति क एकटा घटना रहे ,
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

पिता :गंगेस्वर राय

माता :गायत्री देवी

ग्राम :-धिरापुर वार्ड न.

जनकपुरधाम( नेपाल )

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

उद्वोधन

कहियो पूर्णिमा सन आलोकित,
मैथिल, मिथिला आ
मैथिली,
घोर अन्हरियामे हराओल अ,
किछ दूर
टिमटिमाइत तारा सन,
किछ मिटैल पगडण्डी,
रि-धुरिमे ओझराल अ,
सभ्यातक सूर्य,
कहिया परिचयके
बदलि देलक,
किछ आभासो नै भेल,
मुदा !
जहन-जहन पा
छू तकैत छी,
ह्रदयमे कि
छु उथल-पुथल,
बहरा
लेल व्याकुल अ,
मुदा !
भीतरे-भीतर घु
टि जाइत अ,
स्व
च्छन्दता- स्वतंत्रता नै अ,
अपन अहंग,
सैहबी डोरीमे ब
न्हाए,
जाबी लगौने,
बरद जका
ऑफिसक दाउनमे लागल छी,
अपन सहजता-सरलतास
डेराइ,
जे पाछू नै भ जा ,
अपन परिचयस
भगैत,
नव परिचय बना
बैमे लागल छी,
मुदा !
ओ स्वर्णिम गौरव गाथा,
कोना लिखब,
माता-पिता आ
पूर्वजक प्रति श्रद्धा बिनु,
भा
षाक प्रेम सिनेह बिनु,
कोन रंगस
रंगब
अपन कैनवासके
…..
कोन गीतस
सजैब
अपन जीवनके ……
मुदा !
हम सुतल नै
छी,
मरल नै
छी,
जागल
छी,
हमर अल्हड़ता, हमर सहजता,
हमर नम्रता
हमर परिचय अ,
सभ्यातक आलोकस
आलोकित,
आब हम समर्थवान छी,
किक ने अपन समृद्धि,
अपन परिचयके
सींची,
अतीत त
स्वर्णिम छल,
आब आ
आ आबैबला काल्हि,
के
सेहो स्वर्णिम बनाबी,
गोटे मिली कऽ,
एक दोसरके
मैथिलीक रपान कराबी.

pankajjha23@gmail.com
http://pankajjha23.blogspot.com/

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

मैथिली मे आइ स्तरीय साहित्यक घोर अभाव...

साभार ई-समाद
http://www.esamaad.com/regular/2011/01/7129/



अनलकांत जी कए भारतीय भाषा परिषद क युवा पुरस्कार भेटल अछि, एहि मौका पर पत्रकार विनीत उत्‍पल इसमाद लेल खास तौर पर हुनका स गप केलथि, प्रस्‍तुत अछि गपशप क किछु अंश’ – समदिया

अहाँ केँ भारतीय भाषा परिषद क युवा पुरस्कार भेटला पर सब सँ पहिने इसमाद परिवारक बधाई आ इसमाद लेल समय निकालबा लेल धन्यवाद!

प्रश्न- अनलकांत आइ गौरीनाथ से आगू आकि पाछु?
गौरीनाथ : पहिने अहूँ केँ धन्‍यवाद!अनकांत आ गौरीनाथ मे हमरा कोनो द्वैध नइँ बुझाइत अछि। गौरीनाथ प्रमाण-पत्र सभ मे अछि, अनलकांत घरक आप्‍त नाम थिक। मैथिली मे सेहो शुरू मे मारतेरास रचना गौरीनाथक नामे छपल अछि। दुनू भाषा मे हम अपना सामर्थ्‍य भरि समाने सोच आ निष्‍ठाक संग लिखैत छी। हँ, हिन्‍दीक कमाइ सँ घर-गृहस्‍थी चलबै छी आ ओकरे कमाइ खाइत मैथिली लेल जे आ जतबे करै छी से हमर अपन हार्दिक इच्‍छा आ रुचिक परिणाम थिक, किनको दबाव नइँ। किनको दबाव, सराहना अथवा निंदाक परवाह हम नइँ करै छी। मैथिली भाषाक तथाकथित प्रेमीकहाबक लौल हमरा नइँ अछि। ई भाषा हमर नितांत व्‍यक्तिगत सुख-दुख मे अभिव्‍यक्तिक माध्‍यम रहल अछि, हमरा घर-परिवारक संगहि नेनपनक संगी आ शुरूआती जीवनक आप्‍त-स्‍वजनक भाषा थिक ई आ एहि मे अपना केँ सब सँ पहिने अभिव्‍यक्‍त करब शुरू कयने रही हम जखन कलमो-पेंसिल नइँ पकड़ने रही। तेँ मैथिली मे एक तरहक अतिरिक्‍त जनपक्षीय लगाव, सहजता आ सुविधा अनुभव करैत छी। बाकी हिंदी सँ सेहो कम प्रेम नइँ। साहित्यिक लेखन हम हिंदीए मे पहिने शुरू कयने रही आ सर्वाधिक अनुभव, अध्‍ययन, यश, नेह-प्रेम, सम्‍मान आ जीविकोपार्जन लेल धन हिंदीए सँ प्राप्‍त होइत रहल अछि।

प्रश्न- अहाँ अपना केँ कवि, कहानीकार आ उपन्यासकार मे सँ की मानैत छी?
गौरीनाथ : हमर कथा दू दर्जन सँ बेसी छपल अछि। हिंदी मे दू टा कथा-संग्रह अछि ! मैथिली मे पोथी तेना बिकाइ नइँ छै तेँ मैथिली मे कथा-संग्रह सभ प्रकाशनक बाटे तकै अछि। कविता हम नइँ लिखने छी, तँ कवि कोना कहब अहाँ? कविता सनक जे किछु हमर छपल अछि, ओ वास्‍तव मे हमर डायरी थिक। बेसी सँ बेसी कवितानुमा डायरी कहि सकैत छी ओकरा आ सेहो बड़ थोड़ अछि। वैचारिक आ समसामयिक लेख दुनू भाषा मे अछि, मैथिली मे किछु आलोचनात्‍मक लेख सेहो। उपन्‍यास कोनो भाषा मे छपल नइँ अछि। हँ, मैथिली मे एक टा उपन्‍यास पूरा कयलहुँ अछि, साल भरिक भीतर जकर छपिकअबैक संभावना अछि। एहना मे आओर जे मानी, कवि तँ नहिए टा छी हम। ओना हमरा नजरि मे साधारण मनुक्‍ख होयब सब सँ पैघ बात होइत छै।
प्रश्न- हंसछोड़ि अपन प्रकाशन शुरू करबाक पाछु कोनो खास वजह?
गौरीनाथ : अपना सोचक अनुरूप एहन किछु नव करबाक योजना छल जे एखन करहल छी। ‘‘बया’’, ‘‘अंतिका’’क संपादन आ पुस्‍तक प्रकाशनक जे काज एखन हम करहल छी, से की अहाँ केँ लगैत अछि जे एहिना ओतरहितो कसकितहुँ?

प्रश्न- ‘‘अंतिका’’क प्रकाशन कोना शुरू भेल?
गौरीनाथ : ‘‘अंतिका’’क प्रकाशन जनवरी, 1999 मे प्रत्‍यक्षत: अरुण प्रकाश, सारंग कुमार, संजीव स्‍नेही आ नंदिनीक संग हमसभ मिलि शुरू जरूर कयने रही, मुदा एकरा पाछाँ एतबे लोक नइँ छलाह। हमरा सभ जकाँ सोचैवला मारतेरास अग्रज आ समकालीन रचनाकार मित्र छलाह जिनका लोकनि केँ ‘’अंतिका’’ सन एक टा पत्रिकाक दरकार छलनि। राज मोहन झा, कुलानंद मिश्र, धूमकेतु, उपेन्‍द्र दोषी, रामलोचन ठाकुर, महाप्रकाश, अग्निपुष्‍प, कुणाल, नरेन्‍द्र, विद्यानन्‍द झा, कृष्‍णमोहन झा, रमेश रंजन, रामदेव सिंह, श्रीधरम, रमण कुमार सिंह, अविनाश आदि सनक एहेन अनेक गोटे छलाह जिनका लोकनिक समस्‍त सहयोगक बिना एकरा ठाढ़े नइँ कसकैत रही। ओना एहि प्रसंग मे अनेक आन-आन ठामक अलावा ‘‘अंतिका’’25म अंकक संपादकीय मे हम विस्‍तार सँ लिखने छी। इच्‍छुक पाठक ओ संपादकीय पढि़ सकैत छथि। (अंतिकाक ओ संपादकीय नींचा साभार देल गेल अछि- समदिया )

प्रश्न- ‘‘अंतिका’’क नियमित प्रकाशन मे की बाधा रहल?
गौरीनाथ : शुरू मे मारते तरहक बाधा रहल छल, मुदा आब एकमात्र बाधा स्‍तरीय रचनाक अभाव अछिएम्‍हर आबिकई संकट बेसी बढ़ल जा रहल अछि। प्रश्न- बाजारवादक युग मे मैथिलीक भविष्य केहन अछि?गौरीनाथ : बाजारवादे मात्र भविष्‍य नइँ निर्माण करत। समग्रत: जेहन भविष्‍य आन-आन अधिकांश भारतीय भाषाक लगैत अछि तेहने मैथिलियोक। हमरा जनैत अष्‍टम अनुसूची मे मैथिलीक प्रवेश सँ मात्र एहि भाषाक दोकानदार आ ठेकेदार लोकनि लाभान्वित भेलाह अछि। सामान्‍य जन लेल धनसन!हमरा बुझाइछ जे स्‍तरीय साहित्‍य-लेखनक दृष्टि सँ मैथिलीक स्थिति ह्रासोन्‍मुख अछि। कहि सकै छी जे ई भाषा म्‍यूजियम दिस, माने अपन कब्र दिस डेग उठा देलक अछि।

प्रश्न- मैथिलीक साहित्यिक दाँव-पेंच मे फँसबाक कोनो घटना?
गौरीनाथ : ई तँ भाषाक दोकानदार लोकनि कहताह। ओहि सभ लेल हमरा लग फुर्सते नइँ अछि।

प्रश्न- खगेंद्र ठाकुर संग अहाँक विवाद चर्चा मे रहल, की मामला छल?
गौरीनाथ : मोहल्‍ला लाइव डॉट कॉम पर हमर जवाब उपलब्‍ध अछि। तकरा बाद ओ लेखन सँ जवाब नइँ दलीगल नोटिस भेजलनि।एहेन-एहेन नोटिस सँ लेखक केँ लिखै सँ थोड़े रोकल जा सकैत अछि?

प्रश्न- अहाँ पर आरोप लगैत रहल अछि जे अहाँ गैर वामपंथी विचारधारावला लेखक केँ छपबा सँ कतराइत छी?
गौरीनाथ : ई अहाँक गढ़ल आरोप अछि आ अहीं सन-सन ओहन व्‍यक्ति ई बात कहि सकैत अछि जे अंतिकापढ़नहि नइँ होअय। अंतिकामे छपल लेखकक सम्‍पूर्ण सूची देखि लिअ’, सत्‍तरि प्रतिशत सँ बेसी लेखक गैरवामपंथी छथि। हँ, हमरा स्‍तरीय रचना जरूर चाही आ से किन्‍नहुँ जनविरोधी आकि समाज केँ पाछाँ लजायवला नइँ होअय। स्‍त्री, दलित अथवा कोनो शोषित-पीड़ित लोकक हक आ सम्‍मानक विरुद्ध सेहो नइँ जाइत होअय। माने हम जे रचना छपैत छी ता‍हि सँ उचित न्‍यायक पक्षधरता जरूर चाहैत छी। अंतिकाक हरिमोहन झा, यात्री, किरण, राजकमल, राज मोहन झा आदि पर केन्द्रित विशेषांक सभ आयल अछि। एहि मे सँ यात्री जी केँ छोड़िकके वामपंथी छथि? सम्‍माननीय भीम भाइक कतेको आलेख आ अनुवाद अंतिकामे छपल अछि। एहिना वरिष्‍ठ कथाकार मायानंद मिश्र, रामदेव झा, सोमदेव, जीवकांत, उषाकिरण खान आदि सँ लअशोक, तारानन्‍द वियोगी, नारायणजी, विभूति आनंद, सुस्मिता पाठक आदि-आदि सन करीब सय सँ बेसी एहेन लेखकक रचना ‘‘अंतिका’’ मे छपल अछि जे कतहुँ सँ वामपंथी नइँ छथि। मैथिली मे कतबो गनब, दस टा सँ बेसी वामपंथी रचनाकार नइँ भेटताह। मुदा सभ केँ खटकैत छनि वामपंथी। जखन यात्रीजी धरि केँ जीवकांत जी सन वरिष्‍ठ लेखक ‘’मार्क्‍सवादक ढोलिया’’ कहैत उपहास उड़बचाहैत छथि, …जखन धूमकेतु कुलानंद मिश्र, रामलोचन ठाकुर, अग्निपुष्‍प, कुणाल केँ स्‍वीकारैत अहाँक साहित्‍यक पैघ-पैघ झंडाबरदार लोकनि धखाइत छथि, तँ हमरासभ सन नव आ प्रशिक्षु वामपंथी केँ अहाँ लोकनि किऐ ने मुँह दूसब? अहाँ जनसंघी छी तँ बड़ नीक, अहाँ कांग्रेसी छी तँ बड़ नीकअहाँ जे-से कोनो पार्टी वा दल मे रहैत मैथिली प्रेमी कहाबैत अकादमी सँ लसभ तरहक संस्‍थान मे लोभ-लाभक पूर्ति करैत रहूहम न्‍यायक पक्ष मे रहैत दलित-स्‍त्री-शोषित-पीड़ित लोकक हक आ सम्‍मानक बात करैत छी तँ हम गलत भजाइत छीमार्क्‍सवाद अहाँ बूझी आकि नइँ बूझी, ओकर विरोध आ ओकरा पर आक्षेप करबा मे अहाँ केँ आनंद अबैत अछिहम तँ बस एतबे बुझैत छी अहाँक एहि प्रश्‍नक आशय।

प्रश्न- आजुक युग मे समीक्षाक की स्थान अछि?
गौरीनाथ : मैथिली मे रमानाथ झा आ कुलानन्‍द मिश्रक बाद कोनो तेहन आलोचक नइँ छथि। आइ जे किछु सार्थक आलोचना आकि समीक्षा आबि रहल अछि से सुकांत सोम, सुभाष चन्‍द्र यादव, तारानन्‍द वियोगी, विद्यानन्‍द झा, श्रीधरम आदि सन-सन रचनाकारे लोकनि द्वारा लिखल जाइत अछि। राज मोहन जी सेहो लिखैत रहलाह मुदा एम्‍हर कतेको वर्ष सँ स्‍वास्‍थ्‍यजन्‍य परेशानीक कारणें हुनक लेखने छूटल छनि।

प्रश्न- नव लेखक लेल कोनो संदेश?
गौरीनाथ : नइँ-नइँ!हम स्‍वयं नव छी आ कोनो टा संदेश देब हमरा उपदेश बघारै जकाँ फालतू लगैत अछि।

प्रश्न- मैथिली भाषा मे स्त्री लेखन क भविष्य केहन लगैत अछि?
गौरीनाथ : जेहने पुरुष लेखनक भविष्‍य, तेहने

प्रश्न- भविष्य क योजना?
गौरीनाथ : योजना बनाकजीबवला विशिष्‍ट लोक होइत छथि। हमरा सन साधारण लोक जीविकोपार्जन लेल भने कोनो रूटीन पालन करैत होअय, बाकी लेखन आ जीवन सामान्‍य ढर्रा पर चलैत छै।

ईसमाद : एक बेर फेर अहाँ कए इसमादक संग साक्षात्कार देबा लेल धन्यवाद।
गौरीनाथ : बातचीत करबा लेल ईसमाद परिवार कें हमरा दिस सं बहुत-बहुत धन्‍यवाद।



गौरीनाथ जी अपन सफर पर अंतिका क 25म अंकक संपादकीय मे सविस्‍तार उल्‍लेख केने छथि, इसमाद साभार ओ संपादकीय अहां लेल एहि ठाम प्रस्‍तुत कए रहल अछि,
पचीस अंकक यात्रा
- अनलकान्त
मोन पड़ै अछि दिसंबर, 1998क ओ दिन जहिया दिल्लीक सीमा कात शालीमार गार्डन (गाजियाबाद)क सटले गणेशपुरीक एक टा छोट-सन किरायाक कोठली मे सपरिवार रहैत छलहुँ। ओही कोठली मे सारंग कुमार आ संजीव स्नेहीक संग हमरासभ एक टा पत्रिका निकालबाक निर्णय लेने छलहुँ। ओ दिसंबरक कोनो रवि दिन छल, मुदा संजीव स्नेही केँ सांध्य महालक्ष्मीसँ छुट्टी नहि छल। सारंगजी पब्लिक एशियामे विज्ञापन-अनुवादक काज करैत कटवारिया सराय मे रहैत छलाह आ पछिला साँझ हमरा घर आयल छलाह। रविक भोर संजीव स्नेही जाबत ऑफिसक लेल विदा होइत हम आ सारंग अनेक नाम पर विचार करैत अंतिकापर आबि करुकल रही। बाकी नाम सभक लगातार मजाक-मजाक मे धज्ïजी उड़बैत आबि रहल संजीव स्नेही आ नंदिनी सेहो एहि पर एक भगेल।
ओहि राति धरि, जाबत संजीव ऑफिस सँ घुरल, हम आ सारंग अंकक प्रारूप, लेखकक सूची, लेखक लोकनि केँ जायबला पत्रक प्रारूप आदि बना लेने छलहुँ। राति मे डेढ़-दू बजे धरि सब गोटे ओहि पर पुन:-पुन: चर्चा-समीक्षा-बहस करैत सब किछु तय कलेने छलहुँ, मुदा अंतिकालेल दिल्लीक एक टा डाक पताक संकट छले। संगे एक टा वरिष्ठ सलाहकारक बेगरता सेहो अनुभव करै छलहुँ। कि तखने अग्रज अरुण प्रकाश जी सँ भेट करबाक विचार आयल।
अगिला भोर हम, सारंग आ संजीवतीनू गोटे अरुण जीक घर पहुँचलहुँ। हमरासभ सब टा बात-विचार सँ हुनका अवगत करबैत अपन प्रस्ताव रखलयनि। ओ मैथिलीक स्थिति सँ अवगत छलाह आ एक टा स्तरीय पत्रिकाक बेगरता स्वयं अनुभव करहल छलाह। ते ओ सहर्ष तैयार होइत संपादकीय कार्यालयक रूप मे अपन घरक पता उपयोग करबाक अनुमति सेहो देलनि आ तत्काल भाइ श्रीकांत जी केँ बजा कपत्रिकाक बजट बनबौलनि। पहिल अंक जनवरी-मार्च, 1999क छपाइक काज श्रीकांते जीक दौड़-भाग आ निर्देशन मे पूरा भेल छल।
एवंप्रकारें अंतिकाक पहिल अंक छपिकआबि गेल। ओहि अंकक संग एक टा नीक बात ईहो भेल छल जे भाइसाहेब राज मोहन जी आ सुकांत जी सेहो ओहि समय दिल्ली मे छलाह। अनेक वरेण्य रचनाकारक संगहि हिनका लोकनिक अपार सहयोग प्रवेशांकेक ओरिआओन सँ रहल। ओही बीच दिवंगत भेल बाबा यात्री पर ओहि अंक लेल सुकांत जी अपन आलेख दिल्लीए मे लिखने छलाह। भाइसाहेबक सक्रिय सहयोग सेहो ओही अंक सँ शुरू भगेल छल। ओ तँ कतेको अंकक कतेको सामग्रीक संपादन, पू्रफ, संयोजन, अनुवाद आदि करैत जाहि रूपें अंतिकाकेँ ठाढ़ कयलनि तकरा बिसरले नइँ जा सकैछ। तहिना एकर न्यौं मे हिंदीक वरिष्ठ कथाकार-उपन्यासकार आ समयांतर संपादक पंकज बिष्टक व्यापक सहयोग अविस्मरणीय अछि। सुखद आ स्मरणीय ईहो जे नई दिल्ली मे कनाट प्लेस स्थित मोहनसिंह पैलेसक इंडियन कॉफी हाउस मे 21 फरवरी 1999 केँ अंतिकाक विमोचन राज मोहन जीक हाथें भेल छल आ एहि अवसर पर जीवकांत, भीमनाथ झा, रामदेव झा, गंगेश गुंजन, रामेश्वर प्रेम, मोहन भारद्वाज, अनिल मिश्र सन मैथिलीक वरिष्ठ लोकनिक संगे हिंदीक पंकज बिष्ट, हरिनारायण समेत अनेक लोकक उपस्थिति हमरासभक लेल उत्साहवद्र्घक छल। अरुण जी सहित समस्त अंतिकापरिवार अपन कठिन संघर्षक काल (मोने अछि जे ओहि दिन हमरा तीनूक जेब खाली छल)मे समस्त ऊर्जा आ भावनाक संग ओहि ठाम जेना उत्साह सँ एकजुट भेल रही सेहो अविस्मरणीय अछि।
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तकरा बाद सोलह टा अंक लगातार चारि वर्ष धरि अनेकानेक विघ्न-बाधा, वाद-विवाद, विरोध-सहयोगक बीच समय सँ आयल आ पत्रिका लगातार विकास-पथ पर अग्रसर रहल। एहि बीच दू-एक टा दु:खद-सन प्रसंग सेहो जुड़ल। दोसर अंक अबैत-अबैत अरुण प्रकाश जी अपन नाम वापस ललेलनि आ डाक लेल दोसर पता ताककहलनि। ओना रजिस्टर्ड कार्यालय एखनो अरुणे जीक घर अछि आ हुनक लगाव सेहोअंतिकासंग अछिए। जे सेतखन हम हंससंपादक राजेन्द्र यादव सँ निवेदन डाक-संपर्क लेल अक्षर प्रकाशन, दरियागंज केर पता तँ ललेलहुँ, मुदा एहि शर्तक संग जे एहि पता पर व्यक्तिगत-संपर्क संभव नहि। ई फराक जे परिचित लोक जे पहिने अबै छलाह, बादो मे अबैते रहलाह। एहि लेल राजेन्द्र जीक आभारी छी।
ओहि समय धरि सारंग कुमार आ संजीव स्नेही मात्र नइँ, कनेके बाद मे जुड़ल साथी श्रीधरम आ रमण कुमार सिंहचारू अविवाहित छलाह आ चाकरीक अलावा अधिकाधिक समय अंतिकाकेँ दैत छलाह। तखन पैकेट बनाव’, डिस्पैच कर’, रचना मँगाव’, संपादन करसँ लसदस्यता अभियान हो आकि किछु लिखब-पढ़बसब किछु सामूहिक आ एक टा मिशनक अंग जेना छल। मुदा कालक्रमें सभक अपन-अपन घर-परिवार, बाल-बच्ïचा आ मारते रास पारिवारिक ओलझोल बढ़ैत गेलनि। जीवन मे ई सब आवश्यक थिक, मुदा महानगरी जीवन आ बाजारक दबाव एकरा पहिने जकाँ सहज-स्वाभाविक कहाँ रहदेलकै! एकरा नियतिवाद सँ जोडि़कदेखयौ वा आन कोनो रूप मे, एहि नगरीक यैह व्यवहार! जे सेसमयक दबाव मे सारंग आ संजीव शुरूक तीन सालक बादअंतिकाकेँ समय देबमे असमर्थ भगेलाह, मुदा भावनात्मक स्तर पर आ एक रचनाकार-मित्रक रूप मे दुनू एखनो अंतिकाक संग छथि आ आगूओ रहताह।अंतिकाक न्यौंक हरेक पजेबा मे हिनका लोकनिक पसेनाक अंश अछि। श्रीधरम, रमण कुमार सिंह आ अविनाश अनेक व्यस्तताक कारणें अंतिकालेल कम समय निकालबाक दु:ख भनहि रखैत होथि, मुदा ई लोकनि जे समय दरहल छथि से हिनका लोकनिक हिस्साक लड़ाइ आ प्रतिबद्घता सँ जुड़ल अछि। ई टीम-भावना आ सहयोगअंतिकाकेँ शक्ति आ ऊर्जा दैत अछि।
एहि यात्रा मे तेसर धक्का लागल छल 2002क अंत मे हमर बीमार पड़लाक बाद। डेंगूक चपेट सँ बचि गेलाक बादो कर्ज आ ओहि सँ जुड़ल अनेक परेशानी तेना असमर्थ बना देलक जे 2003क मध्य सँ 2006क आरंभ धरि मात्र तीन टा संयुक्तांक आबि सकल। अंतत: 2006क अक्टूबरक बाद हंसक चाकरी त्यागि अंतिकालेल पूर्णकालिक होयबाक निर्णय कयल। मुदा संकट ई छल जे मात्र एक त्रैमासिक पत्रिकाक बल पर, सेहो मैथिलीक, बड़ आश्वस्त नइँ भसकै छलहुँ। क्रूर महानगरीक व्यवहार, बाल-बच्ïचा, घर-परिवार आ बाजारक दबाव हमरो पर छल। तेँ हिंदी मे बया’ (छमाही) आ संयुक्त रूपें हिंदी-मैथिली केँ समर्पित अंतिका प्रकाशनसेहो शुरू करपड़ल। आब तँ पंद्रह सँ बेसी किताबो अपने लोकनिक बीच आबि गेल अछि। वास्तव मे अंतिकाक जे पछिला अनुभव छल ताहि मे आर्थिक स्तर पर जे कोनो पैघ मदति छल से हिंदिएक रचनाकार लोकनि सँ भेटैत रहल छल। एतबे नइँ प्राय: एकाध अपवाद छोडि़ जे किछु विज्ञापन भेटल सेहो हिंदिए सँ हमर लेखकीय संबंध आ पहिचानक कारणें। पैंचो-उधारक आधार वैह छल। अनेक बेर पंकज बिष्ट, असगर वजाहत, महेश दर्पण आदि सँ पैंच लपत्रिकाक काज चलाओल। संपूर्ण मिथिला सँ आइ धरि विज्ञापन शून्य रहल। पूरा बिहारेक प्राय: सैह हाल। ओना पेट भरबाक लेल हमर निर्भरता सदति हिंदिए पर रहल आ ताहू मे पछिला पंद्रह बरख सँ प्रवासी होयबाक पीड़ा भोगैते सब लड़ाइ लड़लहुँ अछि। हिंदी मे लेखन आ संपादन दुनूक माध्यमें धन मात्र नइँ, जतबा स्नेह भेटल अछि से हमरा लेल पैघ संबल थिक। एकर उनटा मैथिलीक विभिन्न महंथानक कुत्सित दंद-फंदक कारणें ततेक अनावश्यक परेशानी आ असहयोग झेलैत रहल छी जे चोट सहबाक आदति नइँ रहैत तँ कहिया ने अंतिकाबन्न कदेने रहितहुँ। मुदा एक तँ मातृभाषा प्रेम, दोसर किछु सहृदय रचनाकार आ ढेर रास एहेन पाठक लोकनि जे अंतिकासँ मैथिली पढ़ब शुरूए कयलनिहिनका लोकनिक अगाध प्रेम हमरा अंत काल धरिअंतिकानिकालैत रहबाक लेल पर्याप्ïत ऊर्जा आ शक्ति दैत अछि।
एम्हर पछिला डेढ़-पौने दू बरख सँ नव साज-सज्ïजा आ रंगीन आवरण मे अयलाक बाद अंतिकाजेना फेर नियमित अपने धरि पहुँचैत रहल अछि, आगूओ पहुँचैते रहत से विश्वास राखि सकै छी। आब हमरासभक टीम आर पैघ आ मजगूत भेल अछि तँ अपने लोकनिक विश्वास आ स्नेहेक संबल पर। वरिष्ठ चित्रकार आ कथाकार-उपन्यासकार अशोक भौमिकक कला-संपादक रूप मे सौजन्य-सहयोग हमरासभक लेल गौरवक बात थिक। आब तँ दुनू पत्रिका आ प्रकाशनक संयुक्त उद्यम सँ दीपक, सरिता सन-सन नव लोकक जुड़ाव सेहो बढि़ रहल अछि। ईहो संतोषेक गप्प जे जेना-तेना आब प्रकाशन आ पत्रिका केँ एक टा अप्पन स्थायी-सन (स्थायी किछु होइ छै?)  पता सेहो भगेल छै।
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अंतिकाक पचीस अंकक ई यात्रा मैथिली साहित्यक लेल केहन रहल आ मैथिली पत्रकारिताक इतिहास मे एकर कोनो सार्थकता सिद्घ होइ छै आकि नइँ, से विद्वान लोकनि जानथिई हमरासभक चिंता आ बुद्घिसँ बाहरक बात थिक। हमरासभ केँ कोनो प्रमाण-पत्र आकि तगमा नइँ चाही किनको सँ। पाठके हमर देवता छथि आ सामान्य जनताक नजरि मे ठीक रहबे हमरसभक प्रतिबद्घताक पहिचान। जँ जन-सरोकार सँ जुड़ल उदार दृष्टि नइँ रहल तँ कथी लेल साहित्य आ कथी लेल पत्रकारिता?
पचीस अंकक एहि यात्रा मे हमरासभक ई उपलब्धि रहल जे सय सँ बेसी एहेन नियमित पाठक बनलाह जे पहिने मैथिली मे छपल कोनो पत्रिका आकि किताब नइँ पढऩे छलथि। एक दर्जन सँ बेसी रचनाकार मैथिली मे अपन लेखनक आरंभ अंतिकेसँ शुरू कयलनि। निन्दा-प्रशंसा-पूर्वाग्रह आकि संबंध-आधारित चर्चा सँ हँटि सम्यक आलोचना-समीक्षाक जे परिपाटी अंतिकासँ शुरू भेल, तकरे फल थिक जे मैथिलियो मे लोक आब अपन आलोचना सुनबा-सहबाक साहस करलागल छथि। साहित्येतर वैचारिक लेखन, अनुवाद, स्तंभ-लेखन आदि केँ जगह दैतो कथा-कविता-आलोचनाक संग नाटक केँ पर्याप्ïत जगह पहिल बेर अंतिकेमे भेटल अछि। एहिना उपन्यास आ महत्त्वपूर्ण रचनाकार पर संग्रहणीय विशेषांकक व्यवस्था आ सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति। एकरे परिणाम थिक जे आइ एहि पत्रिकाक जे सर्वाधिक पाठक छथि से स्वत: प्रेरित पाठक छथि। बरजोरी बनायल पाठक नइँ। आजीवन सदस्य हो आकि सामान्य सदस्यबेसी गोटे (प्राय: 95 प्रतिशत) अपरिचित छथि आ हुनका सभ सँ आइ धरि व्यक्तिगत भेंट-घाट धरि नइँहमरा-हुनका बीच संवादक पुल थिक एक मात्रअंतिका
अंतिकामे एखन धरि जे छपल अछि पछिला 24अंक मे तकर विस्तृत अनुक्रमणिका अनेक अध्येता आ शोधार्थीक आग्रह पर एहि अंक मे प्रकाशित कयल जा रहल अछि। एकरा देखि अपने स्वयं अंतिकाक एखन धरिक काजक मूल्यांकन कसकैत छी।
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बीसम शताब्दीक महान काव्य-यात्री आ मैथिलीक शिखर वैद्यनाथ मिश्रयात्रीक यात्रा-विरामक संगे शुरू भेल अंतिकाक एहि यात्रा मे अभिन्न रूपें जुड़ल अनेक रचनाकार हमरासभ सँ बिछुडि़ गेलाह, हुनका लोकनिक कमी आइ बड़ खटकि रहल अछि। खासककुलानंद मिश्र, धूमकेतु, उपेन्द्र दोषी सनअंतिकाक वरिष्ठ शुभचिंतक रचनाकार जिनका लोकनिक बहुत रास स्वप्न आ कामना एहि पत्रिका सँ जुड़ल छल।
एखन धरि सभ पीढ़ीक सर्वाधिक लेखकक अपार सहयोग जेना अंतिकाकेँ भेटल अछि, तकरा प्रति आभार शब्द बड़ छोट बुझाइत अछि। अनेक रचनाकार मित्र आ अनेक व्यक्तिक स्तर पर अनचिन्हार रहितो सोच-विचारक स्तर पर परिचित साथी-सहयोगी जे लगातार अंतिकापढ़ैत, दोसरो केँ पढ़बैत, नि:स्वार्थ विक्रय-सहयोग दैत बिना तगेदाक पूरा पाइ पठबैत रहलाहहुनका लोकनिक सहयोगक प्रति हम कोन शब्द मे आभार व्यक्त करब? ई तँ हुनके लोकनिक पत्रिका थिक।
एतमोन पड़ै छथि छोट-पैघ समस्त एहेन लोक जे कोनो ने कोनो रूप मेअंतिकाकेँ सहयोग देलनि अछि। चाहे तकनीकी सहयोगी होथि आकि एजेन्सीक लोक आकि विज्ञापनदाता लोकनि।