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गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

वेद-ज्ञान



प्र.1-  वेद किसे कहते है ?

उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?

उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण   के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?

उत्तर- चार ।                                                  

1-ऋग्वेद 

2-यजुर्वेद  

3-सामवेद

4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।

        वेद          -     ब्राह्मण

1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय

2 - यजुर्वेद      -    शतपथ

3 - सामवेद     -    तांड्य

4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।

उत्तर -  चार।

      वेद                 -    उपवेद

    1- ऋग्वेद        -    आयुर्वेद

    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद

    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद

    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।

उत्तर -  छः ।

1 - शिक्षा

2 - कल्प

3 - निरूक्त

4 - व्याकरण

5 - छंद

6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?

उत्तर- चार ऋषियों को।

         वेद           -      ऋषि

1- ऋग्वेद         -      अग्नि

2 - यजुर्वेद       -       वायु

3 - सामवेद      -      आदित्य

4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?

उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?

उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-   चार ।

        ऋषि        विषय

1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान

2-  यजुर्वेद    -    कर्म

3-  सामवे     -    उपासना

4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।

1-  मंडल      -  10

2 - अष्टक     -   08

3 - सूक्त        -  1028

4 - अनुवाक  -   85 

5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।

1- अध्याय    -  40

2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।

1-  आरचिक   -  06

2 - अध्याय     -   06

3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।

1- कांड      -    20

2- सूक्त      -   731

3 - मंत्र       -   5977

प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                   उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?

उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?

उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?

उत्तर- 

1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।

2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।

3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।

4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।

5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।

6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?

उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?

उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?

उत्तर-  

01-ईश ( ईशावास्य )  

02-केन  

03-कठ  

04-प्रश्न  

05-मुंडक  

06-मांडू  

07-ऐतरेय  

08-तैत्तिरीय 

09-छांदोग्य 

10-वृहदारण्यक 

11-श्वेताश्वतर 

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?

उत्तर- वेदों से।

प्र.24- चार वर्ण।

उत्तर- 

1- ब्राह्मण

2- क्षत्रिय

3- वैश्य

4- शूद्र

प्र.25- चार युग।

1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।

2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।

3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।

4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।

कलयुग के  4,976  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।

4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

पंच महायज्ञ

       1- ब्रह्मयज्ञ   

       2- देवयज्ञ

       3- पितृयज्ञ

       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ

       5- अतिथियज्ञ

   

स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।

नरक  -  जहाँ दुःख है।.

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

भगवान शिव के "35" रहस्य


भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है। 


*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिmए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिये थे

*पं.संजय तिवारी*

सोमवार, 14 दिसंबर 2020

अंगना लागै चान सन

  !! 

  जागल जन जन लहरि उमंगक

  मंद  मधुर  मुस्कान  सन ।

  चकमक चकमक दीप जरैया

  अंगना  लागै  चान  सन ।।

  अडिपन ऊपर कलश अछि साजल

  तेहिपर  चौमुख  बाती ।

  सभतरि  पसरल  दीप  कतारहि

  दिव्य ज्योति केर पाँति ।।

  कुसुम लता चहुँ साजल अनुपम

  मधु मकरंद बगान सन ।। जागल.......

 शतदल ऊपर सुशोभित देखू

 स्वर्ण कलश लय माता ।

 दुःख  दारिद्रक  हारिन  मैया

 सबहक  भाग्य  विधाता ।।

 पेड़ा पान प्रसाद पात पर

 सजल पुष्प परिधानक सन ।। जागल...

 "रमण" शरण गहि माँगि रहल अछि

  भक्त नै अपन बिसारू ।

 एक  दृष्टि  दय  ताकू  एम्हरो

 हमरो  जग  सँ  तारू ।।


  अंधकार जीवन मे जागृत

  कलर व करू विहान सन ।। जागल.....


  गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"

धन्यवाद सोशल मीडिया



मात्र 8 वर्ष पहले मैं भी एक सामान्य व्यक्ति था,2012 हिन्दू शब्द से चिढ़ता था, स्वयं को भारतीय मानने को राजनीतिक सोच समझता था और वन्देमातरम या भारतमाता की जय को दूसरों का दिल दुखाने वाले नारे समझता था।

इन छह वर्षों में कुछ ऐसे सत्य पता चले कि जिनपर पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, फिर जब लगा कि यह सब सच है तो मैं हैरान हूँ।

1.सोशल मीडिया से मुझे यह पता चला कि "पत्रकार" भी निष्पक्ष नही होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुड़े होते हैं।

2. लेखक, साहित्यकार भी निष्पक्ष नही होते। वे भी खास विचारधारा से जुडे होते है।

3. कि साहित्य अकादमी, बुकर, मैग्ससे पुरुष्कार प्राप्त बुद्धिजीवी भी निष्पक्ष नही होते।

4.फिल्मों के नाम पर यह होता है? बालीबुड का सच पता चला।

5.कि हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहते हैं और देश का नाम हिंदुस्तान है, क्योंकि यह हिंदुओं का इकलौता देश है।

6.कि हिन्दू शब्द सिंधु से नही(ईरानियों द्वारा स को ह बोलने से) नही आया बल्कि हिन्दू शब्द ऋग्वेद में 5000 वर्ष पूर्व(कम से कम) से वर्णित था।

7.कि जातिवाद हजारों वर्ष पूर्व सनातनी नही बल्कि मुगलों के आगमन से उपजी कु-व्यवस्था थी, जिसे अंग्रेजों ने सनातन से जोड़कर हिन्दुओ को बांटा। उसे लिखित इतिहास बनाया।

8.कि किसी समय भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पूरे विश्व मे फैला था!!

9.कि वास्कोडिगामा का सच ये था कि वह एक लुटेरा, धोखेबाज था और किसी भारतीय जहाज का पीछा करते हुए भारत पहुंचा!!

10. बप्पा रावल का नाम, काम और और अद्भुत पराक्रम सुना। उनसे डरकर 300 वर्ष तक मुस्लिम आक्रांता इधर झांके भी नहीं।

11. टीपू सुलतान एक क्रूर, हत्यारा, इस्लाम का प्रसारक और हिंदुओं का नरसंहार करने वाला था,यह  सच पता चला। 

12 कि ताज़महल, लालकिला, कुतुब मीनार  हिन्दू भवन थे, इनकी सच्चाई कुछ और थी।

13.जिसे लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहकर मजाक उड़ाते हैं, उसी ने मुझे महात्मा गांधी के "ब्रह्मचर्य के प्रयोग" की सच्चाई बताई।

14. गाँधी जी की तुष्टिकरण और भारत विभाजन के बारे मे ज्ञान हुआ!.

15. नेहरू जी की असलियत, उनके इरादे, उनकी हरकतें, पता चली।

16. pok के बारे मे भी इन 6 वर्षों में जाना कि कैसे पाकिस्तान ने कब्जा किया। और कौन उसे जारी रखना चाहते हैं।

17. अनुच्छेद तीन सौ सत्तर और उससे बने नासूर का पता चला।

18.कश्मीर में दलितों को आरक्षण नही मिलता, यह भी अब पता चला।

19.Amu मे आरक्षण नही मिलता, वह संविधान से परे है!!

20. जेएनयू की असलियत, वहाँ के लल्ला लल्ली के खेल और हमारे टैक्स से पलने वाली बिल्ली हमीं से म्याऊं...यह पता चला।. 

21. वामपंथी-देशद्रोही-विचारधारा और दक्षिणपंथी-सदैव से उपेक्षित-विचारधारा के बारे मे सुना ! इनमें हमारे अपने कौन, यह पता चला।

22.जय भीम समुदाय के बारे मे पता चला।आदरणीय भीमराव के नाम पर उनके मत से सर्वथा भिन्न खेल का पता चला। मीम भीम दलित औऱ हिन्दू दलित अलग होते है पता चला।

23. मदर टेरेसा की असलियत अब जाकर ज्ञात हुई।

24.ईसाई मिशनरी और धर्मांतरण के बारे में पता चला।

25.आधी उम्र निकल गई लेकिन बिल्कुल पड़ोस में होने वाले तीन तलाक, हलाला, तहरुष, मयस्सर, मुताह जैसी कुरूतियों के नाम भी अब जाकर सुना।

26. ओह!! अब मुझे पता चला कि  धिम्मी, काफिर, मुशरिक, शिर्क, जिहाद, क्रुसेड जैसे शब्द मेरे लिए क्या संदेश रखते हैं!!

27.सच बताऊं, गजवा ऐ हिन्द के बारे मे पता भी नहीं था. नाम भी नहीं सुना था। यह सब इन 6 वर्षों में पता चला। स्टॉकहोम सिंड्रोम और लवजिहाद का पता चला।

28.मैं कितना बड़ा अज्ञानी था, सैक्युरिज्म की असलियत अब पता चली। मानवाधिकार, विश्वबैंक, बड़ी बिंदी गैंग, लुटियंस जोन इन सबके लिए तो हिन्दू एक चारा था।

29. हिन्दू ला(कानून) और मुस्लिम ला अलग हैं, यह भी सोशल मीडिया ने ही बताया।

30.धर्म और मजहब का अंतर पता चला

....और भी कई विषय हैं, जो इन 6 वर्षो मे हमको आपकोे ज्ञात हुये होंगे ... जो देश से छुपाए गये... 

आज बड़े बड़े लोग इस 56इंची यंत्र से डरने लगे हैं। यह डर अच्छा लगा!!

जय हिंद जय भारत

✍️....🙏🏻

मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

मित्रता की परिभाषा


एक बेटे के अनेक मित्र थे, जिसका उसे बहुत घमंड था। उसके पिता का एक ही मित्र था, लेकिन था सच्चा।

एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त हैं, उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते हैं।

बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों, बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे। बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद दोनों ने सुना कि अंदर से बेटे का दोस्त अपनी माताजी को कह रहा था कि माँ कह दे, मैं घर पर नहीं हूँ। यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों घर लौट आए।

फिर पिता ने कहा कि बेटे, आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ। दोनों रात के 2 बजे पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ।

जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी। पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र।

तब मित्र बोला... अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो। अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारें साथ चलता हूँ।

तब पिता की आँखे भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि, मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को *मित्रता की परिभाषा* समझा रहा था। ऐसे मित्र न चुने जो खुदगर्ज हो और आपके काम पड़ने पर बहाने बनाने लगे!


*शिक्षा:-*

मित्र कम चुनें, लेकिन नेक चुनें.!!


गुरुवार, 19 नवंबर 2020

छठ मैया कौन-सी देवी हैं?

   


बहुत से मित्र छठ पूजा से जुड़ी जानकारी चाहते हैं तो आज विशेष रूप से उनके लिए पोस्ट।

छठ मैया कौन-सी देवी हैं?

कई लोगों के मन में ये भी सवाल है कि छठ या सूर्यषष्ठी व्रत में सूर्य देव की पूजा तो की जाती है पर साथ-साथ छठ मैया की पूजा क्यों की जाती है?

छठ मैया का पुराणों में कोई वर्णन मिलता है क्या?

वैसे तो छठ पूजा अब केवल बिहार का ही प्रसिद्ध लोकपर्व नहीं रह गया है इसका फैलाव देश-विदेश के उन सभी भागों में हो गया है जहां इस प्रदेश के लोग जाकर बस गए हैं इसके बावजूद भी बहुत बड़ी आबादी इस व्रत की मौलिक बातों से अनजान है।

श्वेताश्वतरोपनिषद् में बताया गया है कि परमात्मा ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांटा दाहिने भाग से पुरुष,बाएं भाग से प्रकृति का रूप सामने आया।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी हुआ पुराण के अनुसार, ये देवी सभी बालकों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी आयु प्रदान करती हैं।

''षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता |

बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा ||

आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी|

सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी'' ||

(ब्रह्मवैवर्तपुराण/प्रकृतिखंड)

षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में षठ/छठ मैया कहा गया है षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।

आज भी देश के बड़े भाग में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का चलन है पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्यायनी भी है इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को ही होती है।

अब प्रश्न उठता है सूर्य देव के साथ षष्ठी देवी की पूजा क्यो होती है?

तो मित्रो हमारे धर्मग्रथों में हर देवी-देवता की पूजा के लिए कुछ विशेष तिथियां बताई गई हैं उदाहरण के लिए, भगवान गणेश की पूजा चतुर्थी को,भगवान विष्णु की पूजा एकादशी को किए जाने का विधान है।

इसी तरह सूर्य की पूजा के साथ सप्तमी तिथि जुड़ी है सूर्य सप्तमी,रथ सप्तमी जैसे शब्दों से यह स्पष्ट है।

लेकिन छठ में सूर्य का षष्ठी के दिन पूजन अनोखी बात है सूर्य षष्ठी व्रत में ब्रह्म और शक्ति (प्रकृति और उनके अंश षष्ठी देवी) दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है इसलिए व्रत करने वालों को दोनों की पूजा का फल मिलता है यही बात इस पूजा को सबसे खास बनाती है।

महिलाओं ने छठ के लोकगीतों में इस पौराणिक परंपरा को जीवित रखा है ये दो लाइनें देखिए:

''अन-धन सोनवा लागी पूजी देवलघरवा हे,

पुत्र लागी करीं हम छठी के बरतिया हे '

दोनों की पूजा साथ-साथ किए जाने का उद्देश्य लोकगीतों से भी स्पष्ट है इसमें व्रती कह रही हैं कि वे अन्न-धन, संपत्ति आदि के लिए सूर्य देवता की पूजा कर रही हैं संतान के लिए ममतामयी छठी माता या षष्ठी पूजन कर रही हैं।

इस तरह सूर्य और षष्ठी देवी की साथ-साथ पूजा किए जाने की परंपरा और इसके पीछे का कारण साफ हो जाता है पुराण के विवरण से इसकी प्रामाणिकता भी स्पष्ट है।

कुछ खास बातें हैं जैसे कि माता स्वयं प्रकृति का रूप हैं तो प्रकृति खुद को स्वस्थ एवं स्वच्छ देखना चाहती है, तो स्वच्छता का महत्व बहुत ही ज्यादा है।

कहीं कहीं छठी माता को भगवान भास्कर की धर्मबहिन भी माना गया है जो पूर्णतः सत्य है साथ ही छठी माता को कात्यानी माता के जगह कभी कभी स्कंदमाता रूप भी माना गया है वो एक बहस का विषय है जिसके बारें में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नही है तो बहस की गुंजाइश थोड़ी कम है बहरहाल आप सभी मित्रों को समर्पित है ये लेख जो भी छठ व्रत के बारे में जानना चाहते थे।

आप सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं

जय छठी मैया

ॐ सूर्य देवाय नमः🙏

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

 *ॐ*

प्रति वर्ष दशहरे के बाद ठीक 

21 दिन बाद ही दीपावली क्यों आती है ? 

क्या कभी आपने इस पर विचार किया है ? 

विश्वास न हो तो कैलेंडर देख लीजिएगा। 

रामायण में वाल्मिकी ऋषि ने लिखा है कि, 

प्रभु श्रीराम को अपनी  पूरी सेना को 

श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 

21दिन इक्कीस दिन यानी 504 घंटे लगे!!

अब हम 504 घंटे को 24घंटे से भाग दें 

तो उत्तर 21 आता है 

यानी इक्कीस दिन !!! 

मुझे भी आश्चर्य हुआ । 

कुछ भी बताया है यह सोचकर कौतूहलवश गूगल मैप पर सर्च किया। 

उसमें दर्शाता है कि,

श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 

3145 किलोमीटर और 

लगने वाला समय 504 घंटे।।। 

हैं न आश्चर्यजनक बात। 

वर्तमान समय में गूगल मैप को 

पूरी तरह विश्वनीय माना जाता है। 

लेकिन हम भारतीय लोग तो 

दशहरा और दीपावली त्रेतायुग से चली आ रही 

परंपरानुसार मनाते आ रहे हैं।

समय के इस गणित पर 

आपको विश्वास न हो रहा हो तो 

गूगल सर्च कर देख सकते हैं 

तथा औरों को भी दीजिए यह रोचक जानकारी।

और वाल्मिकी ऋषि ने तो 

रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी।!!!

 उनका भविष्यवाणी और आगे घटने वाली घटनाओं का वर्णन कितना सटीक था। अपनी सनातन हिन्दू संस्कृति कितनी महान है। हमें गर्व है ऐसी महान हिन्दू संस्कृति में जन्म लेने पर।

 *है न रोचक और आश्चर्य जनक*

            *वन्देमातरम ।जय श्री राम।।*

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

Bihar Me ki chhai ? Kislay Krishan

 बिहारमे की छै ?

नेता छै, लाठी छै

लोके छागर-पाठी छै

जही टोल पर नजरि उठेबै

हेंजक हेंज कविकाठी छै....

बिहारमे की छै ?

विधायक सब गोल छै

सांसद बकलोल छै

चौके-चौके सह-सह करइत

जनता फूटल ढोल छै ....

बिहारमे की छै ?

तरुआ-तिलकोर छै

मारा माछक झोर छै

उज्जर दपदप कुर्ताधारी

कुल्लम नेता चोर छै ....!

बिहारमे की छै ?

पाबनि-तिहार छै

स्वागत सत्कार छै

नित्तह चलै कुमारिए भोजन

लेकिन बेटीके चित्कार छै ...!

बिहारमे की छै ?

चमकी बोखार छै

तंत्रो लाचार छै

पोस्टर सभतरि तैयो भेटत

'बिहारमे बहार छै ...... '

बिहारमे की छै ?

आमदनी कम आ फुटानी 

बड छै

बिहार मे की छै ...

जनता कम नेता अथाह छै

बिहार मे की छै

Writing  - Kislay Krishan 

      ◆◆◆

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

भोजन के प्रकार

 भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था ...

पहला भोजन ....

जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है ...!

दूसरा भोजन ....

जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ....!

तीसरे प्रकार का भोजन ....

जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ....

चौथे नंबर का भोजन ....

अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है .....

और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ..

अगर दो भाई एक थाली में भोजन कर रहे हो तो वह अमृतपान कहलाता है

चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है ....

और सुनो अर्जुन .....

बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ....

क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें ! क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं ...!

 संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है ...

"सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए ... 

पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे  

रविवार, 27 सितंबर 2020

जातिवादमे जकडाइत प्रदेश नं.२ : अनिष्टक संकेत

 

–मनोज झा मुक्ति

ओना नेपाल आ ताहुमे मधेशमे जातिपातिक राजनीति आइए आविकऽ शुरु नै भेलैय । अपनासबहकलेल ई कोनो नवका गप्प नई रहिगेल छै । एकसँएक अपनाके बुद्धिजीवी कहनिहार लोक जातिपातिक राजनीतिसँ अछुत नई रहिगेल अछि । किछु वर्ष पहिनेसँ नेपालेमे आ विषेश कऽ मधेशमे जातिपाति एकटा संस्कृतिकेँरुपमे बढैत जाऽरहल अछि ।

टोल सुधार समितिक चुनावसँ लऽकऽ माननीय आ माननीय सबमेसँ मन्त्रीधरिक चुनावमे जातीयता प्रतिष्ठाकरुपमे स्थान वनवैतगेल अछि । आर त आर चोरी,छिनरपन,अपहरण,गुण्डागर्दी लगायत निकृष्टसँ निकृष्ट काजमे जातीयताके ओतवे प्रवल समर्थनक मानिसिकता जाहि तरहें समाजक हरेक वर्ग,समुदायमे देखल जाऽरहल अछि, बहुत चिन्तनीय बात अछि ।

ओना मनुष्यक पहिचानमे जातीयता एकटा बहुत पैघ अवयव छै । सबगोटेके अपना अपना जातिपर गर्व करवाक चाही, मुदा कि अन्धभक्त भेनाई कतेक सही या वेजाय ? एहिपर चर्चा–परिचर्चा के शुरु करत आ कहियासँ ?

प्रदेश नं.२ मे किछुएदिन पहिने एकटा मन्त्रीद्वारा एकटा मन्त्रालयके सचिवके मारिपीटके घटना समाजिक संजालमे खुब चर्चा कमेलक । ओ काज निकृष्ट या उत्कृष्ट रहय तकर सामाजिक न्यायसँ बेसी एकसँएक विद्वानक पंक्तिमे अपनाके ठाढ कएनिहारसब सेहो अपनाके ब्राम्हण आ यादवके कित्तामे बँटवारा कएल देखलगेल । मन्त्री आ सचिवके मारिपीट त मात्र एकटा छोट उदाहरण अछि, एकटा छोटकोनो गल्ती या कमजोरी ककरो भेटवाक मात्र चाही  जातीवादके नंगा समर्थन या विरोध विशेषकऽ सामाजिक संजालमे शुरु भऽजाइत अछि ।

विचित्र त तखन बुझाइत अछि कि नीक काज कएनिहार कोनो जातिकलोकके जते सराहना नई होइत अछि, ताहिसँ बेसी खराब काज कएनिहार कोनो जातिक समर्थन या विरोधमे जातिक लडाकासब देखाइदेवऽलगैत अछि । अनेरे कुकर्मोके जाहि तरहें जातीवादके नामपर प्रश्रय जे भेटिरहल अछि ओ समाज,प्रदेश आ देशकलेल कोनो विषसँ कम नई अछि ।

समाज आ देशके सुधरवाक, परिवर्तन करवाक दिनराति चौक–चौराहासँ लऽकऽ सडक,सदन आ मिडियामे बजनिहार कथित बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता आ राजनीतिकर्मीसब जातियताक रंगदेवऽमे सबसँ आगु देखल जाऽरहल अछि । कि एहने परिवर्तनक पक्षधर हमसब छी ?

जतऽ जातिपातिक विष नई पनपल रहैछ, ओतऽ राजनैतिक दलसब जातिपातिक विषक वृक्ष दिनानुदिन रोपिते जाऽरहल अछि । मात्र आ मात्र जातिक भोंट लऽ,सत्ता प्राप्तीकवाद हमसब केहन रस्तापर देशके आगु बढवऽ चाहि रहल छी ? एकर जवाव ककरासँ पुछल जाए ?

जातिपातिक नामपर जाहि तरहें चोरके साधुक मुखिया बनाओल जएवाक काज भऽरहल अछि, केहन विधि आ व्यवस्थाके निर्माण कएल जाऽरहल अछि ? कि इएह आ एहने परिवर्तन हमसब समाजमे चाहि रहल छी जे सबजाति अपन अपन जाति जाहिगाम,टोल या मुहल्लामे अछि ओत्तहि जाऽकऽ वास करओ ? समाजक परिचय जे विविधिता रहल अछि, ओ समाप्त कएल जाए ? जँ, नहिं त मात्र भाषणमे विरोधक स्थान लैत आएल जातीवाद कहियासँ व्यवहारिकरुपमे समाजमे अपन स्थान बनाओत ? जतेक समय बितिरहल अछि, एकर प्रकोप ओतवे समाजमे देखाइ दऽरहल अछि । किया त एकर नाकारात्मक पक्षके पृष्टपोषकक संख्या दिनानुदिन बढिए रहल अछि । बौद्धिक आ सचेत वर्ग जातियताक नामपर पद आ प्रतिष्ठा आर्जन करवाक प्रतिस्पर्धामे लागल अछि आ राजनैतिक दल भोंटक लोभमे जातीवादके मलजल देवऽमे प्रतिस्पर्धी बनल अछि ।

आखिर कहियाधरि ई आगि समाजके मूल्य आ मान्यताके झरकवैत रहत आ समाजिकताके रक्ताम्य बनवैत रहत । आ विशेषकऽ प्रदेश नं.२मे जे जातियताके खेती जाहि तरहें वढैत जाऽरहल अछि, समाज, प्रदेश आ देशके महाभारी द्वन्द्वमे फँसवैत जाऽरहल अछि । जँ आइए आ एखनेसँ समाजक सऽभ वर्ग सचेत नईं होइजाएव त अपना घरक दुहारिपर कालके प्रतिक्षा करैत रहु, कखनो अपना चपेटमे लऽसकैत अछि ।

नीक आ बेजाय कएनिहार हरेक जातिमे होइत छैक । चोर,छिनार,डाकू आ हत्यारा एवम् भ्रष्टाचारीके कोनो जाति नहिं होइत छैक, ओ कोनो जातिक हुए ओकरा समाजसँ दुत्कारे भेटवाक जे हमरासबहक सामाजिक परम्परा रहल, तकरा पुनःसमाजिक प्रचलनमे लाएव आवश्यक अछि । जानकी सबके सदबुद्धि देथुन । समयमे सबके चेत खुलय ।


शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

Hamare desh ki samasya

 आइये मिलकर बढ़ती बेरोज़गारी के कारणों पर एक नज़र डालें... 


किसी बेरोज़गार से सवाल करो...

1. मजदूरी करोगे....? 

    - नहीं

2. दुकान पर काम करोगे..? 

    - नहीं

3. बाइक / कार का काम जानते हो..?

    - नहीं

4. बिजली मैकेनिक बनोगे...?

    - नहीं

5. पेंटिंग का काम आता है..?

    - नहीं

6. मिठाई बनाना जानते हो...? 

    - नहीं

7. प्राइवेट कंपनी में काम करोगे? 

     - नहीं... 

8. मूर्तियां, मटके, हस्तशिल्प वगैरह कुछ बनाना आता है? 

     - नहीं.

9. तुम्हारे पिता की ज़मीन है?

     - हाँ.

10. तो खेती करोगे ?

     - नहीं!!!! 


ऐसे 10 - 20 प्रश्न और पूछ लो जैसे - सब्ज़ी बेचोगे ? फ़ेरी लगाओगे? प्लम्बर, बढ़ई / तरखान, माली / बागवान, आदि का काम सीखोगे ??

      - सब का जवाब ना में ही मिलेगा।।


फिर पूछो...

11. भैया किसी  कला मे निपुण तो होगे...?

    - नहीं।। पर मैं B. A. पास हूँ , M.A. पास हूँ I    

      डिग्री है मेरे पास।।

12. बहुत अच्छी बात है पर कुछ काम जानते हो ? कुछ तो काम आता होगा सैकड़ों की संख्या में काम है ?

    - नहीं.  काम तो कुछ नहीं आता I😇


बताओ अब ऐसे युवा बेरोज़गार सिर्फ हमारे ही देश में क्यूँ है?

 क्योंकि हमारा युवा दिखावे की जिंदगी जीने का आदी हो गया है l यहां सबको कुर्सी वाली नौकरी चाहिए जिसमें कोई काम भी ना करना पड़े l ऐसा युवा सच में देश के लिए अभिशाप ही है l जहां अपनी आजीविका के लिए भी काम करने से हिचकिचाता है l

शर्म आनी चाहिए खुद की कमजोरी को बेरोजगारी का नाम देते हुए l

हर साल लाखों बच्चे डिग्री लेके निकलते है पर सच कहूँ तो सब के हाथ में काग़ज़ का टुकड़ा होता है हुनर नहीं l जब तक आप खुद में कुछ हुनर पैदा करके उसको आजीविका अर्जन में प्रयोग मे नहीं लाते तब तक ख़ुद को बेरोजगार कहने का हक़ नहीं है किसी का भी l

रही बात सरकारों की ये तो आती रहेंगी जाती रहेंगी कोई भी सरकार 100% सरकारी रोज़गार नहीं दे सकती l तो मेरे प्यारे देशवासियों, समय रहते भ्रामक दुनिया से निकलने का प्रयत्न करो और अपनी काबिलीयत के अनुसार काम करना शुरू करो l अन्यथा जीवन बहुत मुश्किल भरा हो जाएगा l

जापान और चाइना जैसे देशों में छोटा सा बच्चा अपने खर्च के लिए कमाने लग जाता है l और हम यहां 25-26 साल का युवा वर्ग केवल सरकारों की आलोचना करके समय की बर्बादी कर रहा है l कुछ नहीं होने वाला इनसे। कितने भी आंदोलन कर लीजिए किसी सरकार को कुछ फर्क़ नहीं पड़ने वाला l अंततः परिश्रम अपने आप को ही करना पड़ता है l 

किस्मत रही तो आपको भी जरूर सरकारी नौकरी मिलेगी l लेकिन सिर्फ इसके भरोसे मत बैठो l

बुधवार, 1 जुलाई 2020

इन बातों पर विचार कीजिये*


०  मातृनवमी थी तो मदर्स डे क्यों ?
० कौमुदी महोत्सव था तो वेलेंटाइन डे क्यों ?
०  गुरुपूर्णिमा थी तो टीचर्स डे क्यों ?
०  धन्वन्तरि जयन्ती थी तो डाक्टर्स डे क्यों ?
० विश्वकर्मा जयंती थी तो प्रद्यौगिकी दिवस क्यो?
० सन्तान सप्तमी एवं अहोय अष्टमी थी तो चिल्ड्रन्स डे क्यों ?
०  नवरात्रि और कंजिका भोज था तो डॉटर्स डे क्यों ?
० रक्षाबंधन है तो सिस्टर्स डे क्यों?
० भाईदूज है ब्रदर्स डे क्यों?
० आंवला नवमी, तुलसी विवाह मनाने वाले  को एनवायरमेंट डे की क्या आवश्यकता?
०  नारद जयन्ती ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है।
० पितृपक्ष 7 पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है तो फादर्स डे क्यों,,?
० नवरात्रि को स्त्री के नवरूप दिवस के रूप में स्मरण कीजिये।

० संस्कृति विस्मरण और रूपांतरण के लिए छोटी चीजें, अश्रेष्ठ संस्कृति लायी गयी।
० नव संवत्सर को अप्रैल फूल डे घोषित कर एक जनवरी हैप्पी न्यू ईयर कर दिया गया!
० उन्होंने अपनी नदियों, पहाड़ों, झीलों को बचाया, केवल भारत की नदियों को नष्ट करने के लिए ताकत झोंकी।

० पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करे। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो वे ही हमें वेद, शास्त्र, संस्कृत भी पढ़ाने आ जाएंगे!

अपनी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए, व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये।

जीवन में भारतीय पंचांग जरूर अपनायें जिससे भारतीय पर्व, त्यौहार से लेकर मौसम संबंधित जानकारी एवं ज्ञान सहज रूप से प्राप्त हो सके।

*उत्सव और पर्व सनातन धर्म की शक्ति हैं। सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये।*
#जय श्री राम#

रविवार, 21 जून 2020

।। पितृ - वन्दना ।। गीतकार दिनेश झा " माधव "



पितृ दिवस कें पावन सुअवसर पर हमहुँ किछु लिखबाक प्रयास कयलौं लिय प्रस्तुत अछि ,,,,,,

             ।। पितृ - वन्दना ।।
                 ***********
   हे पितुवर माफ करब हमरा ,
                 हम अहींकें  सरोवर के जल छी ।
    हम अहींकें सरोवर कें जल छी  -- 2 ,
      हे जीवन दाता  अहीं   बगियन कें ,
                      फुलल फरल सुन्नर फल छी ।।
           हे पितुवर माफ करब ...............।।
      ई जीवन अछि ऋणि अहीं कें ,
                          हम  कोना क  बिसरबै यौ ।
       अँगुरी पकड़िकें सहारा देलौं ,
                         कान्ह कोरा लय खेलेलौं यौ ।
       हे परम पिता अहाँ  मुँह नहि फेरबै ,
                        ई  साज अहींके साजल  छी ।।
           हे पितुवर माफ करब ...........।।
      एक माटिक पुतला कें गढिकें ,
                        इन्सान  अहीँ   बनेलौं यौ ।
      आई जे कियो जानै छै जग में ,
                       पहिचान अहीं सँ  भेलौ यौ ।
       हे जीवन धन के स्वामी पुज्यवर ,
                       चरण कमल में लोटायल छी ।।
          हे पितुवर माफ करब ..............।।
     नहि आखर ग्यान ओतेक हमरा ,
                       हम कोना क वर्णन गान करी ।
      सिर छ्त्र बनि छान्ह देबै हमरा ,
                      हम एतबे  अहाँ सँ माँग करी ।
      " माधव "  रचित  ई  पितु दिवस पर ,
                      पितु - वंदन हम गाओल छी ।।
         हे पितुवर माफ करब .............।।

   -----  गीतकार दिनेश झा " माधव "
       सझुआर , बेनीपुर , दरभंगा , मिथिला

शुक्रवार, 19 जून 2020

।। झूला रास गीत ।। - गीतकार दिनेश झा " माधव "


               ।। झूला रास गीत ।।

मधुवन मधुर मुरलिया बाजे ,  रसिया रास रचाबे ना ।
    हे रसिया रास रचाबे ना हे रसिया रास रचाबे ना ।।
          मधुवन मधुर मुरलिया बाजे .........।।
       कदम्ब डारि  पर ,   कंचन  झुला
          राधा ललिता.   सँग  ब्रजबाला
      झुलत कृष्ण सवरिया ना  ,
                   हे सखिया  बंशी बजैया ना ।
              मधुवन मधुर मुरलिया  बाजे ............।।
        साओन  मास केर , पावन  बेला ।
         वृन्दावन बिच ,  लागल  ई मेला  ।
      नाचत गोप गोपिया ना ,
                     हे सखिया नटवर छलिया ना ।
              मधुवन मधुर मुरलिया बाजे...........।।
        ब्रजमण्डल केर ,  महिमा  भारी ।
         गिरधर  सँग नाचे  भोले भंडारी । 
     रचाओल रास रचैया ना ,
                    हे सखिया मोहन मुररिया ना ।
             मधुवन मधुर मुरलिया बाजे ..........।।
          भाव भक्ति जे , मगन  मन  गाबै ।
          सकल मनोरथ , सिद्धि वो  पाबै ।
    लिखलनि "माधव" कजरिया ना
                     हे सखिया माधव कजरिया ना ।।
             मधुवन  मधुर मुरलिया बाजे .........।।

       -  गीतकार दिनेश झा " माधव "
            सझुआर , बेनीपुर , दरभंगा , मिथिला
                          

शुक्रवार, 5 जून 2020

*FACEMASK के खतरे*

 मास्क का उपयोग सीमित समय के लिए किया जाना चाहिए।  यदि आप इसे लंबे समय तक पहनते हैं:

 1. रक्त में ऑक्सीजन कम हो जाती है।

 2. मस्तिष्क को ऑक्सीजन कम मिलता है।

 3. आप कमजोर महसूस करने लगते हैं।

 4. मृत्यु तक ले जा सकता है।

 *सलाह*

 *a*- जब आप अकेले हों तो इसे हटा दें।  मैंने कार में बहुत से लोगों को अभी भी चेहरा MASK पहने हुए AC के साथ देखता हूं।  अज्ञान या अशिक्षा?

 *B* - इसे घर पर इस्तेमाल न करें।

 *C* - केवल इसका उपयोग भीड़ वाली जगह पर करें और जब एक या अधिक व्यक्तियों के साथ निकट संपर्क में हो।

 *D* -अपने आप को सबसे अधिक बार अलग करते हुए इसका उपयोग कम करें।
E- AC का इस्तेमाल कम से कम करे।

  *सुरक्षित रहें!!!*

 दवाएं जो आइसोलेशन अस्पतालों में ली जाती हैं

  1. विटामिन सी -1000
  2. विटामिन ई (ई)
  3. (10 से 11) घंटे तक, 15-20 मिनट धूप में बैठे।
  4. हम आराम करते हैं / कम से कम 7-8 घंटे सोते हैं
  5. हम रोजाना 2.5 लीटर पानी पीते हैं
  6. सभी भोजन गर्म (ठंडा नहीं) होना चाहिए।
  और यह सब हम अस्पताल में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए करते हैं

  ध्यान दें कि कोरोनावायरस का पीएच 5.5 से 8.5 तक भिन्न होता है

  इसलिए, वायरस को खत्म करने के लिए हमें बस इतना करना है कि वायरस की अम्लता के स्तर से अधिक क्षारीय खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
  जैसे कि :
  हरा नींबू - 9.9 पीएच
  पीला नींबू - 8.2 पीएच
  एवोकैडो - 15.6 पीएच
  * लहसुन - 13.2 पीएच
  * आम - 8.7 पीएच
  * कीनू - 8.5 पीएच
  * अनानास - 12.7 पीएच
  * वॉटरक्रेस - 22.7 पीएच
  * संतरे - 9.2 पीएच

  कैसे पता चलेगा कि आप कोरोना वायरस से संक्रमित हैं?

  1. गला
  2. सूखा गला
  3. सूखी खांसी
  4. उच्च तापमान
  5. सांस की तकलीफ
  6. गंध की कमी…।
  #गर्म पानी के साथ नींबू फेफड़ों तक पहुंचने से पहले वायरस को खत्म कर देता है ...
  इस जानकारी को खुद तक न रखें।  इसे अपने सभी परिवार और दोस्तों को प्रदान करें।

  हम आपके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करते है!

   🏥 *आर्मी मेडिकल कॉर्प्स* 🥼🩺

गुरुवार, 4 जून 2020

      !! लंका में डंका बजा दियो !!

 मेंहदी पुर का है बटुआ , बटुआ में बसे है बाला जी
 लंका में डंका बजा दियो , प्यारे अंजनी के लाला जी 
                हनुमंत लला जब जन्म लियो
                अंजनी का आँगन धन्य हुआ ।
                जय - जय  कार  हुआ भू पर
                कुल केसरी का श्री मन्य हुआ ।।
कपि रुद्र एकादस बजरंगी , है तेरा रूप निराला जी
 मेंहदी  पुर का है बटुआ ...............................
                हुए भट्ट महा भट्ट इस भू पर
                इतना ना कोई कमाल किया ।
                कोई राम भक्त ना हुआ एक
                जितना अंजनी का लाल किया ।।
पवन वेग से पवन पुत्र , पिया राम नाम का प्याला जी
  मेंहदी पुर का है बटुआ ...............................

                ज्ञान पुंज  ,  हे  गुण  निधान
                जग में तुम एक हो महाबली ।
                मंगल  मूरति  मारुति  नंदन
                हे जय-जय-जय बजरंगबली ।।
हे शंकर सुवन करूँ वन्दन , स्वर्ण सुमेरू मतबाला जी
  मेंहदी पुर का है बटुआ ...............................
                हे   बज्र  देह   पर्वता   कार
                तुमसे  विनती  है बार - बार ।
                तारा कितनो को कृपा-सिन्धु
                अब मेरी भी सुनलो पुकार ।।
फहरा के धर्म - ध्वज हनुमत , अब रमण का खोलो ताला जी
  मेंहदी पुर का है बटुआ ...............................
           
                                  गीतकार
                         रेवती रमण झा "रमण"





    

       !! हनुमान - आरती !!

 आरती आहाँक उतारि रहल छी
 राम दूत हनुमान यौ ।
 महिमा ऋषि मुनि सदिखन गाबथि
 गाबथि वेद पुरान यौ ।।

 केसरी नंदन काल निकंदन
 टूटल विपति पहाड़ यौ ।
 पतवार सम्हारु,जीवन तारू
 नैया अछि मझधार यौ ।।

 अहिरावण के मारि , बचौलौ -
 राम लखन के प्राण यौ ।। आरती......

 सरसिज लोचन,जग दुख मोचन
 मुर्छित लखन बुटी लयलौ ।
 सुग्रीव उवारल,विभिषण तारल
 धर्मक काज सतत कयलौ ।।

 लंका जारि सिया सुधि लेलौं
 राखल रघुकुल मान यौ ।। आरती.....

 शिव सुत बलकारी , गगन बिहारी
 महिमा कते बखान करू ।
 "रमण" विपति में,अछि कोन गति में
  यौ बजरंगी ध्यान धरु ।।

  जग में कते मनोरथ पूरल
  हमरो किछु अरमान यौ ।। आरती.....

  गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"




शनिवार, 23 मई 2020

मैथिली - हनुमान चालीसा , लेखक - रेवती रमण झा " रमण "




MAITHILI HANUMAN CHALISA by madan-thakur




Aarti hanuman ji ke , maithili hanuman chalisa se by madan-thakur

  ||  मैथिली  - हनुमान चालीसा  ||
     लेखक - रेवती रमण  झा " रमण "
     ||  दोहा ||
गौरी   नन्द   गणेश  जी , वक्र  तुण्ड  महाकाय  ।
विघ्न  हरण  मंगल करन , सदिखन रहू  सहाय ॥
बंदउ शत - शत  गुरु चरन , सरसिज सुयश पराग ।
राम लखन  श्री  जानकी , दीय भक्ति  अनुराग । ।
 ||    चौपाइ  ||
जय    हनुमंत    दीन    हितकारी ।
यश   वर  देथि   नाथ  धनु  धारी ॥
श्री  करुणा  निधान  मन   बसिया ।
बजरंगी    रामहि    धुन    रसिया ॥
जय   कपिराज  सकल गुण सागर ।
रंग   सिन्दुरिया   सब गुन   आगर  ॥
गरिमा   गुणक  विभीषण  जानल ।
बहुत   रास  गुण  ज्ञान   बखानल  ॥
लीला   कियो   जानि   नयि पौलक ।
की कवि कोविद जत  गुण गौलक ॥
नारद - शारद   मुनि   सनकादिक  ।
चहुँ   दिगपाल    जमहूँ  ब्रह्मादिक ॥
लाल    ध्वजा     तन   लाल  लंगोटा  ।
लाल   देह     भुज    लालहि    सोंटा ॥
कांधे     जनेऊ        रूप     विशाल  ।
कुण्डल      कान     केस    धुँधराल  ॥
एकानन     कपि      स्वर्ण     सुमेरु  ।
यौ      पञ्चानन     दुरमति    फेरु  ।।
सप्तानन      गुण   शीलहि   निधान ।
विद्या     वारिध    वर  ज्ञान  सुजान ॥
अंजनि     सूत    सुनू   पवन कुमार  ।
केशरी      कंत      रूद्र      अवतार   ॥
अतुल    भुजा  बल  ज्ञान अतुल अइ ।
आलसक  जीवन नञि एक पल अइ ॥
दुइ    हजार     योजन   पर  दिनकर ।
दुर्गम   दुसह    बाट  अछि जिनकर ॥
निगलि  गेलहुँ रवि  मधु फल जानि  ।
बाल    चरित  के  लीखत   बखानि  ॥
चहुँ    दिस    त्रिभुवन  भेल  अन्हार ।
जल ,  थल ,  नभचर  सबहि बेकार ॥
दैवे    निहोरा   सँ    रवि   त्यागल  । 
पल  में  पलटि  अन्हरिया भागल  ॥ 
अक्षय   कुमार  के  मारि   गिरेलहुं  ।
लंका     में    हरकंप     मचयलहूँ  ॥
बालिए   अनुज   अनुग्रह   केलहु  ।
ब्राहमण    रुपे    राम मिलयलहुँ  ॥
युग    चारि    परताप    उजागर  ।
शंकर    स्वयंम   दया  के  सागर ॥
सुक्षम  बिकट  आ भीम  रूप धरि ।
नैहि  अगुतेलोहुँ   राम काज करि  ॥
मूर्छित   लखन  बूटी जा  लयलहुँ  ।
उर्मिला     पति     प्राण  बचेलहुँ  ॥
कहलनि   राम   उरिंग  नञि तोर ।
तू  तउ    भाई   भरत  सन  मोर   ॥
अतबे   कहि   दृग   बिन्दू  बहाय  ।
करुणा निधि , करुणा चित लाय ॥
जय   जय   जय बजरंग  अड़ंगी  ।
अडिंग ,अभेद , अजीत , अखंडी ॥
कपि के सिर पर धनुधर  हाथहि ।
राम  रसायन  सदिखन  साथहि ॥
आठो  सिद्धि  नो  निधि वर दान ।
सीय  मुदित  चित  देल हनुमान ॥
संकट    कोन  ने   टरै   अहाँ   सँ ।
के   बलवीर   ने   डरै   अहाँ  सँ  ॥
अधम   उदोहरन , सजनक संग ।
निर्मल -  सुरसरि  जीवन तरंग ॥
दारुण - दुख  दारिद्र् भय मोचन ।
बाटे  जोहि  थकित दुहू  लोचन ॥
यंत्र  - मंत्र   सब  तन्त्र  अहीं छी ।
परमा   नंद  स्वतन्त्र  अहीं  छी  ॥
रामक   काजे   सदिखन  आतुर ।
सीता   जोहि   गेलहुँ   लंकापुर  ॥
विटप   अशोक  शोक  बिच जाय ।
सिय    दुख  सुनल कान लगाय ॥
वो  छथि   जतय ,  अतय  बैदेही ।
जानू   कपीस    प्राण  बिन देही  ॥
सीता  ब्यथा   कथा   सुनि  कान ।
मूर्छित     अहूँ    भेलहुँ  हनुमान ॥
अरे      दशानन     एलो     काल  ।
कहि   बजरंगी    ठोकलहुँ  ताल ॥
छल   दशानन  मति  के आन्हर ।
बुझलक    तुच्छ अहाँ  के  वानर ॥
उछलि   कूदी  कपि  लंका जारल ।
रावणक   सब  मनोबल  मारल  ॥
हा - हा    कार  मचल  लंका   में  ।
एकहि    टा  घर  बचल लंका में  ॥
कतेक    कहू  कपि की -  की कैल ।
रामजीक     काज  सब   सलटैल  ॥
कुमति के काल सुमति सुख सागर ।
रमण ' भक्ति चित करू  उजागर ॥
  ||  दोहा ||
चंचल कपि कृपा करू , मिलि सिया  अवध नरेश  ।
अनुदिन   अपनों    अनुग्रह , देबइ  तिरहुत देश ॥
सप्त    कोटि   महामन्त्रे ,  अभि मंत्रित  वरदान ।
बिपतिक   परल   पहाड़  इ , सिघ्र  हरु  हनुमान ॥

|| 2  ||
          ॥  दुख - मोचन  हनुमान   ॥ 
  जगत     जनैया  ,  यो बजरंगी  ।
  अहाँ      छी  दुख  बिपति  के संगी
  मान  चित  अपमान त्यागि  कउ ,
     सदिखन  कयलहुँ   रामक काज   । 
   संत   सुग्रीव   विभीषण   जी के,   
    अहाँ , बुद्धिक बल सँ  देलों  राज  ॥ 
   नीति  निपुन   कपि कैल  मंत्रना  
    यौ      सुग्रीव   अहाँ    कउ  संगी  
              जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख --

  वन  अशोक,  शोकहि   बिच सीता  
  बुझि   ब्यथा ,  मूर्छित  मन भेल  ।
  विह्बल   चित  विश्वास  जगा  कउ
  जानकी     राम     मुद्रिका    देल  ॥
  लागल  भूख  मधु र फल खयलो  हूँ
  लंका     जरलों    यौ   बजरंगी   ॥
               जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख--

   वर  अहिरावण  राम लखन  कउ
   बलि   प्रदान लउ   गेल  पताल  ।
   बंदि   प्रभू    अविलम्ब  छुरा कउ
   बजरंगी     कउ   देलौ  कमाल  ॥
   बज्र   गदा   भुज  बज्र जाहि  तन 
     कत   योद्धा  मरि   गेल   फिरंगी  , 
             जगत  जनैया ---अहाँ  छी दुख -

 वर शक्ति वाण  उर जखन लखन , 
 लगि  मूर्छित  धरा  परल निष्प्राण । 
 वैध     सुषेन   बूटी   जा   आनल  ,
 पल में  पलटि  बचयलहऊ प्राण  ॥ 
 संकट      मोचन   दयाक  सागर , 
 नाम      अनेक ,   रूप बहुरंगी  ॥ 
       जगत      जनैया --- अहाँ  छी दुख --

नाग  फास   में   बाँधी  दशानन  , 
राम     सहित   योद्धा   दालकउ । 
 गरुड़  राज कउ  आनी  पवन सुत  ,
कइल     चूर     रावण    बल  कउ 
जपय     प्रभाते    नाम अहाँ   के ,
तकरा  जीवन  में  नञि  तंगी   ॥ 
         जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख --

ज्ञानक सागर ,  गुण  के  आगर  ,
  शंकर    स्वयम  काल  के  काल  । 
जे जे अहाँ   सँ  बल  बति यौलक ,
ताही     पठैलहूँ   कालक   गाल   
अहाँक  नाम सँ  थर - थर  कॉपय ,
भूत - पिशाच   प्रेत    सरभंगी   ॥ 
     जगत   जनैया --- अहाँ  छी दुख -- 

लातक   भूत   बात  नञि  मानल ,
  पर तिरिया लउ  कउ  गेलै  परान । 
  कानै  लय  कुल  नञि  रहि  गेलै  , 
अहाँक   कृपा सँ , यौ  हनुमान  ॥ 
अहाँक   भोजन  आसन - वासन ,
राम  नाम  चित बजय  सरंगी  ॥ 
   जगत     जनैया --- अहाँ  छी दुख -

सील    अगार   अमर   अविकारी  ,
हे   जितेन्द्र   कपि   दया  निधान  । 
"रमण " ह्र्दय  विश्वास  आश वर ,
अहिंक एकहि  बल अछि हनुमान  ॥ 
एहि   संकट    में  आबि   एकादस ,
यौ   हमरो    रक्षा    करू   अड़ंगी  ॥ 
      जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख ----
|| 3 ||
हनुमान चौपाई - द्वादस नाम  
 ॥ छंद  ॥ 
जय  कपि काल  कष्ट  गरुड़हि   ब्याल- जाल 
केसरीक  नन्दन  दुःख भंजन  त्रिकाल के  । 
पवन  पूत  दूत    राम , सूत शम्भू  हनुमान  
बज्र देह दुष्ट   दलन ,खल  वन  कृषानु के  ॥ 
कृपा  सिन्धु   गुणागार , कपि एही करू  पार 
दीन हीन  हम  मलीन,सुधि लीय आविकय । 
"रमण "दास चरण आश ,एकहि चित बिश्वास 
अक्षय  के काल थाकि  गेलौ  दुःख गाबि कय ॥ 
चौपाई 
जाऊ जाहि बिधि जानकी लाउ ।  रघुवर   भक्त  कार्य   सलटाउ  ॥ 
यतनहि  धरु  रघुवंशक  लाज  । नञि एही सनक कोनो भल काज ॥ 
श्री   रघुनाथहि   जानकी  जान ।   मूर्छित  लखन  आई हनुमान  ॥ 
बज्र  देह   दानव  दुख   भंजन  ।  महा   काल   केसरिक    नंदन  ॥ 
जनम  सुकारथ  अंजनी  लाल ।  राम  दूत  कय   देलहुँ   कमाल  ॥ 
रंजित  गात  सिंदूर    सुहावन  ।  कुंचित केस कुन्डल मन भावन ॥ 
गगन  विहारी  मारुति  नंदन  । शत -शत कोटि हमर अभिनंदन ॥ 
बाली   दसानन दुहुँ  चलि गेल । जकर   अहाँ  विजयी  वैह   भेल  ॥ 
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार ।  अंजनी  के   लाल   करु  उद्धार  ॥ 
जय लंका विध्वंश  काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन  गनि ॥ 
  यमुन  चपल  चित   चारु तरंगे । जय  हनुमंत  सुमति सुख गंगे ॥  
हे हनुमान सकल गुण  सागर  ।  उगलि  सूर्य जग कैल उजागर ॥ 
अंजनि  पुत्र  पताल  पुर  गेलौं  । राम   लखन  के  प्राण  बचेलों  ॥ 
पवन   पुत्र  अहाँ  जा  के लंका । अपन  नाम  के  पिटलों  डंका   ॥ 
यौ महाबली  बल कउ जानल ।  अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥ 
हे  रामेष्ट  काज वर कयलों ।   राम  लखन  सिय  उर  में लेलौ  ॥ 
फाल्गुन  सखा  ज्ञान गुण सार ।  रुद्र   एकादश   कउ  अवतार  ॥ 
हे पिंगाक्ष   सुमति  सुख मोदक ।  तंत्र - मन्त्र  विज्ञान के शोधक ॥ 
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥ 
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥ 
सीता  शोक   विनाशक  गेलहुँ । चिन्ह  मुद्रिका  दुहुँ   दिश  देलहुँ ॥ 
लक्षमण   प्राण  पलटि  देनहार ।  कपि  संजीवनी  लउलों  पहार ॥ 
दश  ग्रीव दपर्हा  ए कपिराज  । रामक  आतुरे   कउलों   काज  ॥ 
॥ दोहा ॥  
प्रात काल  उठि जे  जपथि ,सदय धरथि  चित ध्यान । 
शंकट   क्लेश  विघ्न  सकल  , दूर  करथि   हनुमान  ॥ 
|| 4 || 
|| हनुमान  द्वादस  दोहा || 

रावण   ह्रदय  ज्ञान    विवेकक , जखनहि  बुतलै  बाती  | 
नाश    निमंत्रण  स्वर्ण  महलके  , लेलक हाथ में पाती  || 

सीता हरण मरन रावण कउ , विधिना तखन  ई  लीखल | 
भेलै   भेंट  ज्ञान गुण  सागर , थोरवो बुधि  नञि सिखल || 

जकरे  धमक सं डोलल धरनी , ओकर कंठ अछि  सुखल  |
 ओहि पुरुषक कल्याण कतय ,जे पर  तिरिया के भूखल   ||   

शेष  छाउर   रहि  गेल   ह्रदय , रावण  के  सब  अरमान  | 
करम  जकर   बौरायले   रहलै  , करथिनं   कते  भगवन  ||

बाप सँ  पहिने पूत मरत  नञि , घन  निज ईच्छ  बरसात |
सीढी  स्वर्गे  हमहिं  लगायब  , पापी कियो  नञि तरसत ||

बिस भुज  तीन मनोरथ लउ  कउ , वो धरती  पर मरिगेल |
 जतबे  मरल  राम  कउ  हाथे ,  वो  ततबे  लउ  तरी  गेल ||  

कतबऊ  संकट  सिर  पर  परय , भूलिकय करी नञि पाप  |
लाख पुत  सवालाख  नाती  , रहलइ   नञि    बेटा   बाप  || 

संकट  मोचन भउ  संकट में , दुःख सीता जखन बखानल  | 
अछि  वैदेही धिक्कार  हमर , भरि  नयन  नोर  सँ  कानल  || 

स्तन  दूधक   धारे   अंजनि   ,  कयलनि   पर्वत  के  चूर  | 
ओकरे  पूत  दूत  हम  बैसल , छी  अहाँ    अतेक  मजबूर   || 

रावण  सहित  उड़ा  कउ  लंका , रामे  चरण धरि  आयब  | 
हे , माय   ई   आज्ञा  प्रभु  कउ ,   जौ   थोरबहूँ  हम पायब ||

हे माय  करू विश्वास अतेक  , ई  बिपति रहल दिन थोर   | 
दश  मुख दुखक  एतैय  अन्हरिया , अहाँक  सुमंगल भोर  || 

" रमण " कतहुँ नञि  अतेक व्यथित , हे कपि भेलहुँ उदाश | 
सर्व  गुणक  संपन्न   अहाँ  छी , यौ  पूरब   हमरो   आश  || 
||5 ||

|| हनुमंत - पचीसी || 
  हनुमान   वंदना  
शील  नेह  निधि , विद्या   वारिध
             काल  कुचक्र  कहाँ  छी  
मार्तण्ड   तम रिपु  सूचि  सागर
           शत दल  स्वक्ष  अहाँ छी 
कुण्डल  कणक , सुशोभित काने
         वर कच  कुंचित अनमोल  
अरुण तिलक  भाल  मुख रंजित
            पाँड़डिए   अधर   कपोल 
अतुलित बलअगणित  गुण  गरिमा
         नीति   विज्ञानक    सागर  
कनक   गदा   भुज   बज्र  विराजय 
           आभा   कोटि  प्रभाकर  
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
          उन्नत   उर    अविकारी  
  वर   बिस   भुज  रावणअहिरावण
         सब    पर भयलहुँ  भारी  
दीन    मलीने    पतित  पुकारल
        अपन  जानि  दुख  हेरल  
"रमण " कथा ब्यथा  के बुझित हूँ
       यौ  कपि  किया अवडेरल
-:-
|| दोहा || 
संकट  शोक  निकंदनहि , दुष्ट दलन हनुमान | 
अविलम्बही दुख  दूर करू ,बीच भॅवर में प्राण ||  
|| चौपाइ || 
जन्में   रावणक   चालि    उदंड | 
यतन  कुटिल   मति चल  प्रचंड  || 
बसल जकर चित नित पर नारि   | 
जत शिव पुजल,गेल  जग  हारि  || 
रंग - विरंग   चारु     परकोट   | 
गरिमा   राजमहल   केर   छोट || 
बचन  कठोरे    कहल   भवानी | 
लीखल भाल वृथा  नञि  वाणी  || 
रेखा       लखन     जखन    सिय  पार  |
वर        विपदा      केर    टूटल   पहार ||
तीरे     तरकस     वर   धनुषही  हाथ   | 
रने -       वने      व्याकुल     रघुनाथ  || 
मन मदान्ध   मति गति सूचि राख  | 
नत   सीतेहिअनुचित जूनि   भाष  || 
झामरे -  झुर   नयन  जल - धार  | 
रचल    केहन   विधि  सीय   लिलार || 
मम   जीवनहि    हे   नाथ    अजूर   | 
नञि  विधि   लिखल   मनोरथ  पुर  || 
पवन    पूत   कपि     नाथे    गोहारि  | 
तोरी      बंदि    लंका   पगु      धरि  || 
रचलक    जेहने    ओहन     कपार  | 
 दसमुख    जीवन     भेल      बेकार  || 
रचि     चतुरानन     सभे     अनुकूल  |
भंग  - अंग  , भेल  डुमरिक   फूल  || 
गालक    जोरगर    करमक    छोट  | 
विपत्ति   काल  संग  नञि  एकगोट || 
हाथ  -   हाथ    लंका    जरी     गेल  | 
रहि    गेल   वैह  , धरम - पथ  गेल || 
अंजनि    पूत     केशरिक       नंदन  | 
शंकर   सुवन    जगत  दुख   भंजन  || 
अतिमहा     अतिलघु     बहु     रूप  | 
जय    बजरंगी     विकटे    स्वरूप   || 
कोटि     सूर्य    सम    ओज    प्रकश | 
रोम -  रोम      ग्रह   मंगल     वास  || 
तारावलि     जते    तत     बुधि  ज्ञान |
पूँछे  -  भुजंग     ललित     हनुमान || 
महाकाय        बलमहा       महासुख  | 
महाबाहु       नदमहा       कालमुख  || 
एकानन     कपी    गगन      विहारी  | 
यौ     पंचानन       मंगल      कारी  || 
सप्तानान     कपी   बहु  दुख   मोचन | 
दिव्य   दरश   वर   ब्याकुल   लोचन  || 
रूप    एकादस      बिकटे     विशाल  | 
अहाँ    जतय     के     ठोकत    ताल || 
अगिन   बरुण   यम  इन्द्राहि  जतेक | 
अजर - अमर    वर   देलनि  अनेक ||  
सकल    जानि     हषि    सीय    भेल | 
सुदिन    आयल   दुर्दिन    दिन   गेल || 
सपत   गदा   केर   अछि   कपि   राज | 
एहि    निर्वल    केर   करियौ    काज  || 
|| दोहा  ||
जे   जपथि  हनुमंत  पचीसी  
सदय    जोरि  जुग    पाणी  | 
शोक    ताप    संताप   दुख    
 दूर   करथि   निज   जानि || 


|| 6 ||
  ||  हनुमान  बन्दना  ||

जय -जय  बजरंगी , सुमतिक   संगी  -
                       सदा  अमंगल  हारी  । 
मुनि जन  हितकारी, सुत  त्रिपुरारी  -
                         एकानन  गिरधारी  ॥ 
नाथहि   पथ गामी  , त्रिभुवन स्वामी  
                      सुधि  लियौ सचराचर   । 
तिहुँ लोक उजागर , सब गुण  आगर -
                     बहु विद्या बल सागर  ॥ 
मारुती    नंदन ,  सब दुख    भंजन -
                        बिपति काल पधारु  । 
वर  गदा  सम्हारू ,  संकट    टारू -
                  कपि   किछु  नञि   बिचारू   ॥ 
कालहि गति भीषण , संत विभीषण -
                          बेकल जीवन तारल  । 
वर खल  दल मारल ,  वीर पछारल -
                       "रमण" क किय बिगारल  ॥ 

   
|| 8  ||
  बजरंग -विनय 
बहक  काज सुगम सँ  कयलों 
हमर   अगम    कीय  भेलै  यौ  | 
रहलौं   अहिंक  शरण में हनुमंत 
जीवन   कीय  भसिअयलै    यौ  || 
          सबहक   ----हमर ---   २ 
क़डीरिक  वीर सनक  जीवन ई 
मंद   बसात    नञि झेलल  यौ  | 
हम दीन , अहाँ   दीनबन्धु  छी 
तखन  कीयक  अवडेरल  यौ   || 
         सबहक   ----हमर ---   २ 
अंजनी लाल , यौ  केशरी  नंदन 
जग  में कियो  अपन  नञि यौ  | 
एक  आश ,  विश्वास   अहाँक  
वयस   हमर   झरि  गेलै  यौ  || 
        सबहक   ----हमर ---   २ 
मारुति  नंदन , काल  निकंदन 
शंकर  स्वयम   अहाँ   छी  यौ  | 
"रमण "क  जीवन करू सुकारथ 
दया  निधान  कहाँ   छी   यौ 
सबहक   ----हमर ---   २ 
    || 9 . || 
                                       ||  हनुमान - आरती  ||
आरती आइ अहाँक  उतारू , यो अंजनि सूत केसरी नंदन  । 
अहाँक  ह्र्दय  में सतत   विराजथि ,  लखन सिया  रघुनंदन   
             कतबो  करब बखान अहाँ के '
            नञि सम्भव  गुनगान  अहाँके  । 
धर्मक ध्वजा  सतत  फहरेलौ , पापक केलों  निकंदन   ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
          गुणग्राम  कपि , हे बल कारी  '
          दुष्ट दलन  शुभ मंगल कारी   । 
लंका में जा आगि लागैलोहूँ , मरि  गेल बीर दसानन  ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
         सिया  जी के  नैहर  , राम जी के सासुर  '
         पावन     परम   ललाम   जनक पुर   । 
उगना - शम्भू  गुलाम जतय  के , शत -शत  अछि  अभिनंदन  ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
           नित     आँचर   सँ   बाट      बुहारी  '
          कखन   आयब   कपि , सगुण  उचारी  । 
"रमण " अहाँ के  चरण कमल सँ , धन्य  मिथिला के आँगन ॥ 
 आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
||10  ||


रचैता -

रेवती   रमण झा " रमण "
ग्राम - पोस्ट - जोगियारा पतोर
आनन्दपुर , दरभंगा  ,मिथिला
मो 09997313751