dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

मिथिला महोत्सव मुंबई

28 दिसम्बर -२०१४    दहेज मुक्त मिथिला मुंबई-
द्वारा आयोजित 'मिथिला महोत्सव' २८ दिसम्बर भारतक आर्थिक राजधानी मुंबई मे भव्यतापूर्वक समापन भेल। एहि कार्यक्रमक विधिवत् उद्घाटन पंडित राजेन्द्र झा तथा कृष्ण कुमार झा 'अन्वेषक' केर वेदपाठ आ स्वस्तिवाचन सँ प्रारंभ कैल गेल। तदोपरान्त रश्मि प्रिया द्वारा विद्यापतिरचित गोसाउनि गीत 'जय जय भैरवि' केर गान सँ प्रारंभ कार्यक्रम मे एक सँ बढि कय एक प्रस्तुति परसल गेल। माधव राय, मनुवा ठाकुर, ज्ञानेश्वर दुबे, सुरेशानन्द, रश्मि प्रिया, प्रीति सुमन, पूजा झा - हिनका लोकनि द्वारा एक सँ बढिकय एक दहेज पर आधारित लोकगीत, विद्यापति गीत आ मिथिला महिमागान कैल गेल। भाइ माधव राय द्वारा उगना रे मोर कतय गेलाह आ ज्ञानेश्वर दुबे केर आजु नाथ एक व्रत महासुख लागत हे आ फेर सुरेशानन्द केर हे हर हमर करहु प्रतिपाला सहित अनेकानेक शिव ओ शक्ति केर आराधना जे मिथिलाक खास विशेषता अछि तेकर प्रस्तुति सँ हर मैथिली कार्यक्रम मे स्वयं महादेव आ गौरीक संग मिथिलाक पाहुन राम आ धिया सिया सब कियो आह्लादित भेलाह। उपस्थित जनमानस केर बाते कि कैल जाय जखन स्वयं आराध्यदेव आह्लादित होइथ। कार्यक्रमक भव्यता पर विमल जी मिश्र बस एतबी कहैत छथि "जे एकर वर्णन शब्द मे संभव नहि अछि'। पंकज झा, संयोजक व दहेज मुक्त मिथिलाक राष्ट्रीय अध्यक्ष कहैत छथि "समयक पाबंदी सजा बुझाइत छल - कार्यक्रमक भव्यताक शिखर-शोभा कि कहू"। राजेश राय केर शब्द अछि "बस भाइजी, अहीं टा के कमी छल, बाकी कार्यक्रम तऽ लाजबाब भेल।
   एहि अवसर पर दहेज मुक्त मिथिला अभियान लेल खास रूप सँ नवीन मिश्रा द्वारा तैयार कैल गेल एक डक्युमेन्ट्री फिल्म केर प्रदर्शन सेहो कैल गेल। दहेज समाजक केहेन कूरीति अछि, एहि कूरीतिकेँ लोक जानि-बुझि कोना प्रश्रय दय रहल अछि, एकरा सँ समाजकेँ निजात दियेबा लेल अभियानक दिशा ओ दशा केहेन अछि, एहि मे आमजनक सहभागिता कोन तरहें कैल जाय.. इत्यादि विषय पर समेटल बात राखैत एहि डक्युमेन्ट्री सँ उपस्थित सब कियो एतेक प्रभावित भेला जेकर परिणामस्वरूप उपस्थित हजारों लोकक भीड़ सँ युवाक आवाज आबय लागल जे हम सब संकल्पित छी दहेज मुक्त मिथिला लेल, माँगरूपी दहेजक प्रतिकार करबा मे हम सब एहि अभियानक संग छी। मिथिला तखनहि स्वच्छ आ सुन्दर बनत जखन स्वेच्छाचारिताक बढाबा देल जाय। एहेन सांगीतिक समागम जाहि मे वैचारिक क्रान्ति हो, यैह तऽ मूल उद्देश्य रहैक एहि भव्य कार्यक्रमक। आ अभियानक सफलता लेल जतय मुंबई केर समस्त मैथिल सितारा लोकनि उपस्थित भऽ जाइथ तऽ फेर कल्पना कैल जा सकैत छैक जे समागम कतेक महान ओ गंभीर छल। उल्लेखनीय अछि जे सब सितारा 'राजीव सिंह (गजरा), राहुल सिन्हा, फूल सिंह, मनोज झा, नविन मिश्र, डा. अभय झा, संजीव पूनम मिश्र, गौरव झा, ज्ञानेश्वर दुबे' स्वस्फूर्त दहेज मुक्त मिथिला अभियानक सफलता लेल आगाँ आबि एहि कार्यक्रम मे भाग लेलनि आ संदेश देलनि जे घर-घर एहि अभियानक संदेश केँ पहुँचाबय मे ओ सब सदिखन संग छथि। ओना तऽ एहि कार्यक्रम मे उपस्थिति बहुतो लोकक होइत मुदा उत्तर भारत मे कड़क ढंढक चलते बाहरी उपस्थिति कम भऽ सकल, धरि दिल्ली सँ विमल जी मिश्र अपन वचन केँ निर्वाह करैत एहि कार्यक्रम मे महत्त्वपूर्ण सहभागिता प्रदान केलैन, आयोजक समिति आभार सहित धन्यवाद प्रकट कयलनि एहि लेल।
              कलाकार, फिल्मी सितारा, गायक, विद्वान्, समाजिक नेतृत्वकर्ता अभियानी आ खास कय आयोजक संस्थाक समस्त समर्पित युवा-शक्ति - सबहक समर्पण सँ सुव्यवस्थित एहि ऐतिहासिक विश्वस्तरीय कार्यक्रम आयोजन मे संचालक किसलय कृष्ण अपन प्रखर ओ ओजपूर्ण संचालन सँ मंच केँ एहि तरहें बान्हिकय प्रस्तुति सब करैत रहलाह जाहि मे प्रमुख अतिथि डा. बुद्धिनाथ मिश्र केँ सीधे मंच पर सम्मान कार्यक्रम मे आमंत्रित करबाक अवसर भेटल आ हुनक मुखारविन्द सँ संबोधन भेल जे 'दहेज सँ समाज प्रभावित अछि, निवारण आवश्यक'। तहिना अतिथि लोकनिक सम्मानक क्रम निरंतरता मे रखैत मंच पर सांसद गोपाल सेठी द्वारा कहल गेल जे 'दहेज सब समाजकेँ प्रभावित कय रहल अछि, तैँ एकरा समाप्त करू आ बेटा-बेटी केर समानरूप सँ शिक्षित करू'। एहि कार्यक्रमक विशिष्ट आमंत्रित अतिथि दिल्ली सँ आयल अखिल भारतीय मिथिला संघ केर अध्यक्ष श्री विजय चन्द्र झा केँ मंच सँ सम्मान करैत हुनक मुखारविन्द सँ संबोधन भेल जे 'एक समय दहेज उन्मुलन लेल बैजु बाबु संग सौराठ सँ कार्यक्रम प्रारंभ केने रही, ओकरे नवरूप दहेज मुक्त मिथिला केर कार्य प्रशंसनीय अछि'। स्थानीय विधायक प्रकाश सुर्वे सेहो मंच द्वारा सम्मानित होइत अपन उद्गार प्रकट केला जे 'दहेजक लोभी केर सामाजिक बहिष्कार कैल जाय'। संस्थाक संरक्षक पंडित धर्मानन्द झा सेहो सम्मानित भेला उपरान्त अपन संबोधन मे कहलनि जे 'हम जाहि वचन मे अपना केँ बन्हलहुँ तेकरा अपन बेटीक विवाह सँ पूरा केलहुँ, आगाँ दुइ-दुइ पुत्रधनक पिता रहैत एहि वचनकेँ निर्वाह करबाक लेल प्रतिबद्ध छी'। समयाभाव मे बहुते रास वक्ताकेँ मौका नहि भेटलनि, दयानन्द झा द्वारा सेहो संछिप्त संबोधन मे कहल गेल जे 'सामाजिक विकास लेल दहेज परित्याग करबाक जरुरत अछि'।   अन्त मे एहि सुन्दर आयोजन लेल दहेज मुक्त मिथिलाक समस्त मुंबई कार्यकारिणी केँ समुचित सराहनाक संग अध्यक्ष पंकज झा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन करैत अभियान संग निरंतर सहयोग करैत 'दहेज मुक्त मिथिला' निर्माण हेतु सबहक संग पेबाक आह्वान कैल गेल। विदित हो जे ई अभियान फेसबुक सँ शुरु होइत आइ ग्लोबल बनि गेल अछि आ हर मैथिलक संग अन्य-अन्य सहयात्रीवर्ग मे विषय प्रवेश करैत क्रान्ति-आमंत्रण भऽ रहल अछि। एहि आयोजना केँ फेसबुक सँ लाइव फेसबुकास्ट सेहो कैल गेल। कैमरा आ मैसेज द्वारा नियंत्रित समस्त कार्यक्रम केँ स्लट-वाइज फेसबुक पर प्रसारण कैल गेल जाहि मे आयोजन पक्षक धर्मेन्द्र झा, राजेश राय आ राधेश्याम खाँ चुनचुनक संग हम प्रवीण समस्त पोस्ट केँ मैनेज कय रहल छलहुँ। ई आयोजन केँ एहेन कहल जा सकैत छैक जे 'न भूतो न भविष्यति'।  
   बिना कोनो भेद भाव कें एहेन कार्यक्रम, पहिल बेर देखल गेल की,जाहि में मुम्बई कें सांसद विधायक आ अनेकानेक संगठन सबहक कार्यकर्ता,बुद्धिजीबी सब कें सब इक्कठा भऽ कें एक सुर में,बिना कोनो राजनीति कें, दहेज मुक्त मिथिला' अभियानक प्रशंशा केलक आ बाजल जे देश समाज कें लेल,शुरु कएल गेल "दहेज मुक्त अभियान" सब सँ उत्तम कार्य अछि । एहेऩ सुन्दर भव्य आयोजन कें परिकल्पना में श्री प्रविण नारयण चौधरी जी कें दूर दृष्टि,दिव्य विचार धारा, अमुल्य परिश्रम सर्वविदित अछि । पं.श्री धर्मन्नद जी आ पंकज जी कें कार्य दछ्ता अतुलनिय अछि । एक कृष्ण अछि तऽ दोसर अर्जुन,किनका सारथि कहि किनका महारथि कहि । एक सँ बढि कें एक,दिग्गज रथि सब कें संग,दानव रुपि दहेज कें दमन करबाक लेल,वचन आ कर्म रूपि अस्त्र -शस्त्र सँ सुसज्ति भऽ कें महायुद्ध जितबाक लेल प्रतिबद्ध । पितामह भिष्म कें सदृश शोभायमान,श्री विजय चन्द्र झा जी, मिथिलाक कुरीति कें समाप्त करबाक लेल महारथि सब कें अन्दर जोश क संचार करैत छलाह । बुद्धि नाथ मिश्र जी,एहि महाभारतक व्युह रचना भेदन पर,अपन अमोघ दृष्टांत सँ अवगत करा रहल छलाह । पं.श्री धर्मानन्द जीक आतिथ्य आ पंकज जीक सेवा भाव सँ अभिभुत छी । अद्वितय स्वभाव आ हृदयस्पर्शि बिचारधाराक गंगा बहैत पहिल बेर देखबाक सौभाग्य मिलल । धन्य हमर मिथिला,धन्य हमर मैथिल । हम किएक नहि गर्व करब । पुर्व जन्मक कोनो सतकर्मक फल थीक जे एतेक नीक कार्यक्रम में,पं.श्री धर्मानन्द जी आ पंकज जी कें संग भ्राति स्नेहक दुर्लभ खजाना मिलल  जय मिथिला जय मैथिल ।

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

श्रद्धांजलि ( स्वर्गीय श्री शैलेन्द्र मिश्र भाइ के)

श्रद्धांजलि ( स्वर्गीय श्री  शैलेन्द्र मिश्र भाइके )
M  S अपार्टमेंट  सिविल  सर्विस  ऑफ़िसर कलव  के जी  मार्ग देल्ही
२१ दिसम्बर २०१४ 
   
      १६ दिसम्बर  २०१४  के  शैलेन्द्र  मिश्र  बिमारी सं ग्रषित  के  कारन  मात्र  - ५२ वर्ष के अवस्था  में  स्वर्गवशी  भगेलहा , हुनक श्रद्धांजलि  देबाक लेल  मिथिला कला मंच आ सुगति - सोपान  के  सानिंध्य  में श्री मति - कुमकुम झा   और  A -वन फिल्ल्म  इंडिस्ट्री    के  संचालक  सुनील झा पवन के अगुवाई  में  विभिन्  प्रकार के डेल्ही   एन सी आर  में  जतेक  भी संस्था  अच्छी  हुनका  सब  के  समक्ष  शैलेन्द्र  मिश्रा नामक  बल्ड  बैंक  के योजना  बनबै  के  मार्गसं अविगत  केला ।  जे  गति शैलेद्र  भाई , हेमकान्त  झा , अंशुमाला झा  के  संग  भेल ।  ओहि विपप्ति  सं  दोसर किनको  नै  गुजरै परैं ।  कियाक  नै  हम  सब  मिल  एकटा  एहन  काज  करी  जाहिसं  मैथिलि कला मंच के हित  में राखी  हुनका  लेल  किछु  राशि निवित  राखल  जय और  ओहि  राशि  के  शैलेन्द्र  भाई  एहन  लोक  लेल  जरुरत  परला पर  मैथिल कला मंच  काम  आबैथि  ।
      
       ब्लड  बैंक के  जिम्बारी  डॉक्टर  विद्यानन्द  ठाकुर  आ  ममता  ठाकुर  जी  स्वीकार  करैत  अपन  मार्ग   सं  सब  के  अबगति  करेला ।   ओतय  दहेज़  मुक्त  मिथिला   डेल्ही  प्रभाड़ी  मदन कुमार  ठाकुर   सेहो   अप्पन  जिम्मेबारी  के  निर्वाह  करैत  डी म म  के  पूर्ण सहयोग  के  अस्वाशन  देला  ।

         आखिर मिथिला कला मंच सन  पिछरल  कियाक ? से  मैलोरंग  के  समस्त  टीमसं जानकारी  और   रहस्य मय  बात के  पूर्ण  सहयोग भेटल ।   मैथिल  कला  रंगकर्मी सं  जे  भी  जुरल  छथि  हुंकर  जिनगी  कोनो  खास  नै  कहल  जय  ओहिसं जिनगी के गुजर - वसर  नै  कैइयल जा  सकइत  अच्छी ।  ताहि  हेतु  भारत  सरकार  से  उचित न्याय  के  मांग  कइल जैय ।

        एवं प्रकारे   सेकड़ो  के  संख्या   में आवि  भाई  शैलेन्द्र के  श्रद्धांजलि  दय  प्रणाम  करैत  हुनक  आत्मा के  शांति  प्रदान  होयक  लेल   गयत्री  मन्त्र  के  उच्चारण  करैत   २ मिनट  के  मोन धारण  कइल  गेल  ।
 
   शैलेन्द्र  भाई  के  गुजरालसं खास के  कला और  साहित्य  दुनू  में  बहुत  नुकसान  अच्छी ।   कही  नै  सकैत  छी  कतेको   शैलेन्द्र भाई  के  चेला  रंग कर्मी  कला  मंच  सं पाछू छुटी गेला ।  मिथिला  मैथिलि के प्रति  हुनक  एकटा  बस  अवाज  बानी  रही  गेल --
 हे  मिथिला  अहाँ  मरैय  सन  पहिने  हम  मरीय   जय    

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

मिथिला महोत्सव - २०१४

मिथिला महोत्सव - २०१४
दहेज़ मुक्त  मिथिला  के  सानिध्य में  - 28  दिसम्बर - 2014  के  देहिसर  मुंबई में   मिथिला  मोहोसव के  आयोजन  होबय जा रहल  अच्छी ,  जाहि  में  अपनेक समस्त परिवार के  उपस्थिति  अनिवार्य  अच्छी  ,  दहेज़  खास क मिथिला  में एकटा  बहुत  पैघ समस्या अच्छी , जाहि  के  निवारण  हेतु , दहेज़ मुक्त मिथिला  परिवार  अपन  कर्तव्  के  पालन  करैत  बेर - बेर  देल्ही  आ   मुंबईटा  नै पूरा विस्व  में  दहेज़ समस्या के  खत्म  कराय  में  लागल  अच्छी , चाहे  नेपाल  सन  करुणा  झा  होयत या प्रवीण जी   आई  तक  अपन  कर्तवय  सं  पाछू  नै हैट पोलैथि  ,  ओहे जिम्बारी के  पालन  करैक  लेल  दहेज़ मुक्त  मिथिला  अध्यक्ष , पंकज झा (मुम्बई ) आ संरक्ष   पंडित  श्री  धर्मनद  झा  , संजय मिश्र  इतियादी  अनेको  भी  सहयोगी शामिल  छैथि , हुनक  अभिलाषा  कइ  पूरा  करैक  लेल  अपनेक  सहयोग  अनिवार्य  अच्छी  । 

याद रखाब - 28 दिसम्बर - २०१४  रवि  दिन 
जय मैथिल जय  मिथिला 

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

जिनगीक पहेली बड्ड उलझल
जतेक सुलझेबाक चेष्टा करी
ओतेक उलैझ जाइत अछि...
बुइझ नहि पबैत छी
कत' चुक भ जाइत अछि...
कखनो शांत जिनगीक गति
कखनो अनायास
ज्वार भाटा आइब जाइत अछि....
सहज रहबाक चेष्टा
नहि कोनो अपेक्षा
तथापि कखनो क
जिनगी बोझ बुइझ परैया ।।।।।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

मक्ष्छर चलिसा



दोहा

अति आबस्यक जानी के होके अति लचार ,
बरनो मच्छर सक्‍ल गुणों दुख दायक ब्यबहार ।
बिना मसहरि दिन हूँ सुनहू सकल नर्रनार ,
मक्ष्छर चलिसा लिखक पढ़उ सोइच बिचैर ।।

चोपाई

जय मच्छर भगवान उजागर ।
जय अनगिनित हे रोग के सागर ।।

नदियाँ पोखैर गंगा सागर ।
सबठाम रहते छी अही उजा गर ।।

नीम हकिम के अही रखबारे ।
डाक्टर के भेलो अतिश्य प्यारे ।।

मलेरिया के छी अहा दाता ।
छी खटमल के प्यारे भ्राता ।।

जरी बुट्टी से काज नऽ बनल ।
अंग्रेजी दबाइर् जलदी फीट करल ।।

आउल आउट गुडनाइर्ट अपनेलो ।
फेर अपन अहा जान बचेलो ।।

दिन दुखि सब धुप में जरैत छैथ ।
रैतो में बेचैन रहैत छैथ ।।

संझ – भोर अहा राग सुनाबी ।
गूं गूं के नाम कमाबी ।।

राजा छैथ या रंक फकिरा ।
सब के केलो अपनेही मत धिरा ।।

रूप कुरूप न अहा मानलो ।
छोटका - बऱका नै अहा जनलो ।।

नर छैथ या स्वर्गाक नारी ।
सब के समक्ष बनलो अहा भारी।।

भिन्न भिन्न जे रोग सुनेला ।
डाकटर कुमार फेर शर्मेला ।।

सब दफ्‍तर में आदर पेलो ।
बिना इजाजत के अहा घुस गेलो ।।

चाट परल जिन्गी से गेलो ।
कनैत खिजैत परिवार गमलो ।।

जय - जय हे मक्ष्छर भगवाना ।
माफ करू सबटा जुर्माना ।।

छी अहा नाथ साथ हम चेरा ।
जल्दी उजारारू अहा अपनेही डेरा ।।

दोहा


निश बंसर शंकर करण मालिन महा अति कुर |
अपन दल बल सहित बशु कहि जा दुर ||


मदन कुमार ठाकुर

पट्टीटोल (कोठिया), भैरव स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार ,८४७४०४
mo 9312460150 





रविवार, 7 दिसंबर 2014

कवि कोकिल विद्यापति के नाम पर कत्ते नाम कमेल जा सकैये...


कवि कोकिल विद्यापति के नाम पर कत्ते नाम कमेल जा सकैये...
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मे करीब 350 संस्था चलैये और करीब 40-50 थाम विद्यापति स्मृति पर्व समारोह मनेल जाइये, लेकिन ओक्टूबर स दिसंबर के बाद कोनो अपीयरेन्स नई रहै छैन्ह कीएक त ओ हिसाब किताब करैत करैत अगला सालक तैयारी केनाई अनिवार्य भा जैत छै.
तजुर्बा के मुताबिक ज अगर 50xरुपया 3लाख (विद्यापति पर्व समारोहक आयोजन x खर्चा) = रुपया150 लाख, ज ई रुपियाक खर्च कोनो उदेश्य स केल जाइ त मिथिला अपन अलग पहिचान जरूर बना सकाइये.
उदाहरण अगर पूरा हिनूस्तान के ली त करीब 250-300 थम विद्यापति स्मृति पर्व समारोह मनेल जाइये जेकर कम स कम हरेक साल एवरेज कॉस्ट 300*रुपया 2लाख = रुपया 600 लाख (हरेक साल) , ज ई पैसा मिथिला के डेवेलपमेंट और शिक्षा,अवेर्नेस के संग खर्च केल जाय त मिथिला के एकटा बिल्कुल अलग पहचान दैई बला प्रवासी मैथिल हेता...और कोनो शक्ति एकरा अलग पहचान देबा स नहीं रोक सकैईये कीएक त रिज़ल्ट बिल्कुल सामने रहतई.
नशा एटा एहन अभिशाप जे पूरा मिथिलांचल युवा की पूरा भारत के अपन लपेट मे ल बाप के बाप नहीं, मे बहिन के मे बहिन नई बुइझ अत्याचार करबाबई ये...अत्याचार केनीहर नशा करै बला नही हालांकि नशा के छि ताहि अवेर्नेस लेल नशा मुक्त अभियान जाहि मे हम सब प्रेरित करै छियैंन अवैध विक्री गाम घर मे बंद क नया उद्योग के जगह दैथ जाहि मे प्रॉफिट बेसी, अपन संस्कार बरकरार, और निब मजबूत रहत.
नशा मुक्त मिथिला के टीम के तरफ स हमर करबद्ध निवेदन जे ऐ मुहिम स जुइर अपन मिथिला के एकटा अलग पहिचान दैई लेल पहिने ओकरा लेल बहुत सामाजिक कार्य करै पड़त जाहि मे लोग अपना के सुरक्षिते टा नहीं बल्कि सपोर्टेड मे सेहो बुझत..
अप्पन सबहक की राय...ज मिथिला के हम अधिकार बुझै छि त ओकरा प्रति बहुत कर्तब्य सेहो ऐछ...
आउ नशा मुक्त मिथिला अभियानक सदयस्ता लेल अपन नाम दर्ज करी या 9818325312 पर फोन क डीटेल दी.

किछु अपन मात्रीभूमि लेल जरूर करी
विक्की ठाकुर 
नशा मुक्त मिथिला

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

मिथिला विभुति

मिथिला विभुति 
स्व. श्री हरिमोहन झा (१९०८-१९८४)

जन्म १८ सितम्बर १९०८ ई. ग्राम+पो.- कुमर बाजितपुर , जिला-
वैशाली, बिहार, भारत। पिता- स्वर्गीय पं.
जनार्दन झा “जनसीदन” मैथिलीक
अतिरिक्त हिन्दीक लब्धप्रतिष्ठ
द्विवेदीयुगीन कवि-साहित्यकार। शिक्षा-
दर्शनशास्त्रमे एम.ए.- १९३२, बिहार-उड़ीसामे
सर्वोच्च स्थान लेल स्वर्णपदक प्राप्त। सन् १९३३ सँ
बी.एन.कॉलेज पटनामे व्याख्याता, पटना कॉलेजमे
१९४८ ई.सँ प्राध्यापक, सन् १९५३ सँ पटना विश्वविद्यालयमे
प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष आऽ सन् १९७० सँ १९७५
धरि यू.जी.सी. रिसर्च प्रोफेसर
रहलाह। हिनकर मैथिली कृति १९३३ मे
“कन्यादान” (उपन्यास), १९४३ मे “द्विरागमन”(उपन्यास),
१९४५ मे “प्रणम्य देवता” (कथा-संग्रह), १९४९ मे
“रंगशाला”(कथा-संग्रह), १९६० मे “चर्चरी”(कथा-
संग्रह) आऽ १९४८ ई. मे “खट्टर ककाक तरंग” (व्यंग्य)
अछि। “एकादशी” (कथा-संग्रह)क दोसर संस्करण
१९८७ ए. मे आयल जाहिमे ग्रेजुअट पुतोहुक बदलाने “द्वादश
निदान” सम्मिलित कएल गेल जे पहिने “मिथिला मिहिर”मे छपल
छल मुदा पहिलुका कोनो संग्रहमे नहि आएल छल।
श्री रमानथ झाक अनुरोधपर लिखल गेल “बाबाक
संस्कार” सेहो एहि संग्रहमे अछि। आऽ हुनकर “खट्टर
काका” हिन्दीमे सेहो १९७१ ई. मे पुस्तकाकार
आएल। एकर अतिरिक्त हिनकक स्फुट प्रकाशित-लिखित पद्यक
संग्रक “हरिमोहन झा रचनावली खण्ड ४ (कविता)”
एहि नामसँ १९९९ ई.मे छपल आऽ हिनकर आत्मचरित
“जीवन-यात्रा” १९८४ ई.मे छपल। हरिमोहन बाबूक
“जीवन यात्रा” एकमात्र पोथी छल जे
मैथिली अकादमी द्वारा प्रकाशित भेल छल
आऽ एहि ग्रंथपर हिनका साहित्य
अकादमी पुरस्कार १९८५ ई. मे मृत्योपरान्त देल
गेलन्हि। साहित्य अकादमीसँ १९९९ ई. मे
“बीछल कथा” नामसँ श्री राजमोहन
झा आऽ श्री सुभाष चन्द्र यादव द्वारा चयनित
हिनकर कथा सभक संग्रह प्रकाशित कएल गेल,
एहि संग्रहमे किछु कथा एहनो अछि जे हिनकर एखन धरिक
कोनो पुरान संग्रहमे सम्मिलित नहि छल। हिनकर अनेक
रचना हिन्दी, गुजराती, मराठी,
कन्नड़, तेलुगु आदि भाषामे अनुवादित भेल। हिन्दीमे
“न्याय दर्शन”, “वैशेषिक दर्शन”, “तर्कशास्त्र”(निगमन),
दत्त-चटर्जीक “भारतीय दर्शनक”
अंग्रेजीसँ हिन्दी अनुवादक संग हिनकर
सम्पादित “दार्शनिक विवेचनाएँ” आदि ग्रन्थ प्रकाशित अछि।
अंग्रेजीमे हिनकर शोध ग्रंथ अछि- “ट्रेन्ड्स ऑफ
लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी”।
प्राचीन युगमे विद्यापति मैथिली काव्यकेँ
उत्कर्षक जाहि उच्च शिखरपर आसीन कएलनि,
हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली गद्यकेँ ताहि स्थानपर
पहुँचा देलनि। हास्य व्यंग्यपूर्णशैलीमे सामाजिक-
धार्मिक रूढ़ि, अंधविश्वास आऽ पाखण्डपर चोट हिनकर लेखनक
अन्यतम वैशिष्ट्य रहलनि। मैथिलीमे
आइयो सर्वाधिक कीनल आऽ पढ़ल
जायबला पीथी सभ हिनकहि छनि।



 


मायानन्द मिश्र-
मायानन्द मिश्रक हिनक जन्म १७ अगस्त १९३४ ई. केँ सुपौल जिलाक बनैनियाँ गाममे भेलनि। तत्कालीन बनैनियाँ कोसीक प्रकोपसँ उजड़ि गेल। फलतः हिनक आरम्भिक शिक्षा अपन मामा स्व. रामकृष्ण झा “किसुन” क सान्निध्यमे सुपौलसँ भेलनि। उच्च शिक्षाक हेतु ई दरभंगा चलि गेलाह आऽ ओतएसँ बी.ए. कएल। पश्चात् बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुरसँ हिन्दी एवं मैथिलीमे एम.ए. कएलनि। 
१९५६ ई. मे आकाशवाणी पटनामे मैथिली कार्यक्रमक लेल नियुक्त भेलाह। एहि अवधिमे मायानन्द बाबू १० गोट रेडियो नाटक लिखलनि जे अत्यन्त प्रशंसनीय रहल। १९६१ ई.मे ओऽ व्याख्याता, मैथिली विभाग, सहरसा कॉलेज सहरसा, पदपर नियुक्त कएल गेलाह, जतए ई विश्वविद्यालय आचार्य एवं मैथिली विभागाध्यक्षक पदकेँ सुशोभित कएल तथा एक सफल शिक्षकक रूपमे अगस्त १९९४ मे एही विभागसँ अवकाश ग्रहण कएलनि।
छात्रजीवनसँ हिनक सुकोमल गेय गीतक रचना-
“नभ आंगनमे पवनक रथपर कारी कारी बादरि आयल।
देखितहि धरणीक बिषम पियास, सजल-सजल भए गेल आकाश
बिजुरी केर कोमल कोरामे डुबइत सुरुज किरण अलसायल।
झिहरि-झिहरि सुनि गगनक गान, धरणि अधर पर मृदु मुसुकान
आकुल कोमल दूबरि दूभिक मनमे नव-नव आशा उमड़ल।” 
मैथिली काव्य मंचक श्रोताक हृदयकेँ जीति चुकल छल। 

आचार्य रमानाथ झाक “कविता कुसुम” मे ई कविता स्थान पाबि विश्वविद्यालयक पाठ्यक्रममे अध्ययन-अध्यापनक हेतु स्वीकृत भेल। हिनक उद्घोषण-कला आऽ मंच-संचालन कौशलसँ मैथिलीक कोन मंच नहि लाभान्वित भेल होएत। तेँ हिनका मैथिली मंचक सम्राट कहल जाइत छल। १९६० ई.सँ २००० ई. धरि सफलतम मंच संचालन आऽ अपन चुम्बकीय वाणीसँ मैथिली जनमानसकेँ अपना दिस आकृष्ट कएलनि। 
भाषा आन्दोलनक सूत्रधारक रूपमे हिनक सहयोगकेँ मिथिला आऽ मैथिली सेहो सभदिन स्मरण राखत।
पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि।
एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।



 



श्री डॉ. गंगेश गुंजन । (१९४२)

जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ’ उपन्यासकार।
१९६४-६५ मे पाँच गोटे कवि-लेखक “काल पुरुष”(कालपुरुष अर्थात् आब स्वर्गीय प्रभास कुमार चौधरी, श्री गंगेश गुन्जन, श्री साकेतानन्द, आब स्वर्गीय श्री बालेश्वर तथा गौरीकान्त चौधरीकान्त, आब स्वर्गीय) नामसँ सम्पादित करैत मैथिलीक प्रथम नवलेखनक अनियमितकालीन पत्रिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानन्दजी द्वारा देल गेल छल आऽ बाकी चारू गोटे द्वारा अभिहित भेल छल- छपल छल।
ओहि समयमे ई प्रयास ताहि समयक यथास्थितिवादी मैथिलीमे पैघ दुस्साहस मानल गेलैक। फणीश्वरनाथ “रेणु” जी अनामाक लोकार्पण करैत काल कहलन्हि, “ किछु छिनार छौरा सभक ई साहित्यिक प्रयास अनामा भावी मैथिली लेखनमे युगचेतनाक जरूरी अनुभवक बाट खोलत आऽ आधुनिक बनाओत”।
“किछु छिनार छौरा सभक” रेणुजीक अपन अन्दाज छलन्हि बजबाक, जे हुनकर सन्सर्गमे रहल आऽ सुनने अछि, तकरा एकर व्यञ्जना आऽ रस बूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुरुष लोकनि कोनो रूपमे साहित्यिक मान्य मर्यादाक प्रति अवहेलना वा तिरस्कार नहि कएने रहथि। एकाध टिप्पणीमे मैथिलीक पुरानपंथी काव्यरुचिक प्रति कतिपय मुखर आविष्कारक स्वर अवश्य रहैक, जे सभ युगमे नव-पीढ़ीक स्वाभाविक व्यवहार होइछ। आओर जे पुरान पीढ़ीक लेखककेँ प्रिय नहि लगैत छनि आऽ सेहो स्वभाविके।
मुदा अनामा केर तीन अंक मात्र निकलि सकलैक। सैह अनाम्मा बादमे “कथादिशा”क नामसँ स्व.श्री प्रभास कुमार चौधरी आऽ श्री गंगेश गुंजन दू गोटेक सम्पादनमे -तकनीकी-व्यवहारिक कारणसँ-छपैत रहल। कथा-दिशाक ऐतिहासिक कथा विशेषांक लोकक मानसमे एखनो ओहिना छन्हि।
श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित।
हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)। 




 

डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२) 
   ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक, मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। 
हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण, मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत।
सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि, स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे। 

कृति-    लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७।
सम्पादन- १. गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, 

९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८, 

१३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ 

६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.

अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८. 


   

  डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ (१९३८) 


    ग्राम+पोस्ट- हसनपुर, जिला-समस्तीपुर। पिता स्व. वीरेन्द्र नारायण सिँह, माता स्व. रामकली देवी। जन्मतिथि- २० जनवरी १९३८. एम.ए., डिप.एड., विद्या-वारिधि(डि.लिट)। सेवाक्रम: नेपाल आऽ भारतमे प्राध्यापन।
१.म.मो.कॉलेज, विराटनगर, नेपाल, १९६३-७३ ई.। 
२. प्रधानाचार्य, रा.प्र. सिंह कॉलेज, महनार (वैशाली), १९७३-९१ ई.। ३. महाविद्यालय निरीक्षक, बी.आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, १९९१-९८.
मैथिलीक अतिरिक्त नेपाली अंग्रेजी आऽ हिन्दीक ज्ञाता।
मैथिलीमे १.नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास(विराटनगर,१९७२ई.), २.ब्रह्मग्राम(रिपोर्ताज दरभंगा १९७२ ई.), ३.’मैथिली’ त्रैमासिकक सम्पादन (विराटनगर,नेपाल १९७०-७३ई.), ४.मैथिलीक नेनागीत (पटना, १९८८ ई.),
५.नेपालक आधुनिक मैथिली साहित्य (पटना, १९९८ ई.), ६. प्रेमचन्द चयनित कथा, भाग- १ आऽ २ (अनुवाद), ७. वाल्मीकिक देशमे (महनार, २००५ ई.)।
प्रकाशनाधीन: “विदापत” (लोकधर्मी नाट्य) एवं “मिथिलाक लोकसंस्कृति”।
भूमिका लेखन: १. नेपालक शिलोत्कीर्ण मैथिली गीत (डॉ रामदेव झा), २.धर्मराज युधिष्ठिर (महाकाव्य प्रो. लक्ष्मण शास्त्री), ३.अनंग कुसुमा (महाकाव्य डॉ मणिपद्म), ४.जट-जटिन/ सामा-चकेबा/ अनिल पतंग), ५.जट-जटिन (रामभरोस कापड़ि भ्रमर)।
अकादमिक अवदान: परामर्शी, साहित्य अकादमी, दिल्ली। कार्यकारिणी सदस्य, भारतीय नृत्य कला मन्दिर, पटना। सदस्य, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर। भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली। कार्यकारिणी सदस्य, जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान, जनकपुरधाम, नेपाल।
सम्मान: मौन जीकेँ साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार, २००४ ई., मिथिला विभूति सम्मान, दरभंगा, रेणु सम्मान, विराटनगर, नेपाल, मैथिली इतिहास सम्मान, वीरगंज, नेपाल, लोक-संस्कृति सम्मान, जनकपुरधाम,नेपाल, सलहेस शिखर सम्मान, सिरहा नेपाल, पूर्वोत्तर मैथिल सम्मान, गौहाटी, सरहपाद शिखर सम्मान, रानी, बेगूसराय आऽ चेतना समिति, पटनाक सम्मान भेटल छन्हि।
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठीमे सहभागिता- इम्फाल (मणिपुर), गोहाटी (असम), कोलकाता (प. बंगाल), भोपाल (मध्यप्रदेश), आगरा (उ.प्र.), भागलपुर, हजारीबाग, (झारखण्ड), सहरसा, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पटना, काठमाण्डू (नेपाल), जनकपुर (नेपाल)।
मीडिया: भारत एवं नेपालक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे सहस्राधिक रचना प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शनसँ प्रायः साठ-सत्तर वार्तादि प्रसारित।
अप्रकाशित कृति सभ: १. मिथिलाक लोकसंस्कृति, २. बिहरैत बनजारा मन (रिपोर्ताज), ३.मैथिलीक गाथा-नायक, ४.कथा-लघु-कथा, ५.शोध-बोध (अनुसन्धान परक आलेख)।
व्यक्तित्व-कृतित्व मूल्यांकन: प्रो. प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन: साधना और साहित्य, सम्पादक डॉ.रामप्रवेश सिंह, डॉ. शेखर शंकर (मुजफ्फरपुर, १९९८ई.)।
चर्चित हिन्दी पुस्तक सभ: थारू लोकगीत (१९६८ ई.), सुनसरी (रिपोर्ताज, १९७७), बिहार के बौद्ध संदर्भ (१९९२), हमारे लोक देवी-देवता (१९९९ ई.), बिहार की जैन संस्कृति (२००४ ई.), मेरे रेडियो नाटक (१९९१ ई.), सम्पादित- बुद्ध, विदेह और मिथिला (१९८५), बुद्ध और विहार (१९८४ ई.), बुद्ध और अम्बपाली (१९८७ ई.), राजा सलहेस: साहित्य और संस्कृति (२००२ ई.), मिथिला की लोक संस्कृति (२००६ ई.)।
वर्तमानमे मौनजी अपन गाममे साहित्य शोध आऽ रचनामे लीन छथि।

रामाश्रय झा “रामरंग” (१९२८-२००९ ) 

विद्वान, वागयकार, शिक्षक आऽ मंच सम्पादक छथि।
भारतीय शास्त्रीय संगीतक समर्पित आऽ विलक्षण ओऽ विख्यात संगीतज्ञ पं रामाश्रय झा ’रामरंग’ केर जन्म ११ अगस्त १९२८ ई. तदनुसारभाद्र कृष्णपक्ष एकादशी तिथिकेँ मधुबनी जिलान्तर्गत खजुरा नामक गाममे भेलन्हि।

हिनकर पिताक नाम पं सुखदेव झा आऽ काकाक नाम पं मधुसदन झा छन्हि। रामाश्रयजीक संगीत शिक्षा हिनका दुनू गोटेसँ हारमोनियम आऽ गायनक रूपमे मात्र ५ वर्षक आयुमे शुरू भए गेलन्हि। तकरा बाद श्री अवध पाठकजीसँ गायनक शिक्षा भेटलन्हि।

१५ वर्ष धरि बनारसक एकटा प्रसिद्ध नाटक कम्पनीमे रामाश्रय झा जी कम्पोजरक रूपमे कार्य कएलन्हि। पं भोलानाथ भट्ट जी सँ २५ वर्ष धरि ध्रुवपद, धमार, खयाल, ठुमरी, दादरा, टप्पा शैली सभक विधिवत शिक्षा लेलन्हि।
पं भट्ट जीक अतिरिक्त्त रामाश्रय झा जी पं बी.एन. ठकार (प्रयाग), उस्ताद हबीब खाँ (किराना), पं बी.एस. पाठक (प्रयाग) सँ सेहो संगीतक शिक्षा प्राप्त कएलन्हि।
पं झा १९५४ सँ प्रयागमे स्थाई रूपसँ रहि रहल छथि।

१९५५ ई.मे हिनकर नियुक्त्ति लूकरगंज संगीत विद्यालयमे संगीत अध्यापक रूपमे भेलन्हि। १९६० ई.मे हिनकर नियुक्त्ति प्रयाग संगीत समितिमे भेलन्हि, जतए १९७० धरि प्रभाकर आऽ संगीत प्रवीण कक्षाक शिक्षक रहलाह। १९७०मे इलाहाबाद विश्वविद्यालयक संगीत विभागाध्यक्ष श्री प्रो. उदयशंकर कोचकजी पं झाक संगीत क्षेत्रक सेवासँ प्रभावित भए विश्वविद्यालयमे हिनकर नियुक्त्ति कएलन्हि। पं झा उत्कृष्ट शिक्षक, गायक आऽ आकाशवाणीक प्रथम श्रेणीक कलाकार छथि। हिनकर अनेक शिष्य-शिष्या आकाशवाणीक प्रथम श्रेणीक कलाकार आऽ उत्तम शिक्षक छथि, जेना-
डॉ. गीता बनर्जी, श्रीमति कमला बोस, श्रीमति शुभा मुद्गल, श्रीकान्त वैश्य,श्री शान्ता राम कशालकर, श्री शान्ता राम कशालकर, श्री कामता खन्ना, श्रीमति सत्या दास, डॉ. रूपाली रानी झा, डॉ इला मालवीय, श्री अनिल कुमार शर्मा, श्री रामशंकर सिंह, श्रीमति संगीता सक्सेना, श्री राजन पर्रिकर, श्रीमति रचना उपाध्याय, श्री नरसिंह भट्त, श्री भूपेन्द्र शुक्ला, श्री जगबन्धु इत्यादि।

पं झा संगीत शास्त्र केर श्रेष्ठ लेखक छथि आऽ हिनकर लिखल अभिनव गीतांजलि केर पांचू भाग प्रकाशित भए चुकल अछि, जाहिमे २००सँ ऊपर रागक व्याख्या अछि आऽ दू हजारक आसपास बंदिश अछि।
मिथिलावासी श्री रामरंग राग तीरभुक्त्ति, राग वैदेही भैरव, आऽ राग विद्यापति कल्याण केर रचना सेहो कएने छथि आऽ मैथिली भाषामे हिनकर खयाल ’रंजयति इति रागः’ केर अनुरूप अछि।

अभिनव गीतांजलि, हुनकर उच्चकोटिक शास्त्र रचना अछि, जे पाँच भागमे अछि। अपन साहित्यिक वाणी, शाब्दिक रूप जे होइत अछि कोनो संगीत रचनाक, आऽ धातु जे अछि स्वरक लयक रचना आऽ एहि सभ गुणसँ युक्त्त छथि “रामरंग”। रामरंगक बंदिश वा रचनामे अहाँकेँ भेटत स्वर, शब्द आऽ मात्राक लयबद्ध बंधन। पुरान ध्रुपद जेकाँ पद्य आऽ स्वरकेँ ओऽ तेनाकेँ बान्हि दैत छथि, जे दुनू एक दोसरमे मिलि जाइत अछि।
हुनकर रचना हुनकर उच्चारणसँ मिलि कए मौलिक तात्त्विक स्थायी भरण, सभ बितैत दिन एकटा नव आत्मनिरीक्षण एकटा नव स्थायी।
रामरंगमे संगीतक लाक्षणिक तत्त्व प्रखर होइत छन्हि। संगीतक व्याकरणक सम्पूर्ण पकड़ छन्हि, जाहिसँ उचित शब्दक प्रयोगक निर्णय ओऽ कए पबैत छथि। 

छन्द शास्त्रक, कोषक, अलंकारक, भावक आऽ रसक वृहत् ज्ञान छन्हि रामरंगकेँ। संगहि स्थानीय संस्कृतिक, विभिन्न भाषाक आऽ ललित कलाक सिद्धान्तक सेहो गहन अध्ययन छन्हि रामाश्रय झा जीकेँ। वादन, गाय आऽ नृत्यक, साधल-कण्ठ, लय-ताल-काल, देशी राग, दोसराक मनसमे जाऽ कए बुझनिहार, नव लय आऽ अभ्व्यक्त्ति, प्रबन्धक समस्त ज्ञान, कम समयमे गीत रचना, विभिन्न मौखिक संरचना निर्माण, आलापक प्रदर्शन आऽ गमक एहि सभटामे पारंगत छथि रामरंग।
 
स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” (१९११-१९९८)
स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” केर जन्म १९११ ई. मे अपन मामागाम सतलखामे भेलन्हि, जे हुनकर गाम तरौनीक समीपहिमे अछि। यात्री जी अपन गामक संस्कृत पाठशालामे पढ़ए लगलाह, फेर ओऽ पढ़बाक लेल वाराणसी आऽ कलकत्ता सेहो गेलाह आऽ संस्कृतमे “साहित्य आचार्य” केर उपाधि प्राप्त कएलन्हि।

तकर बाद ओऽ कोलम्बो लग कलनिआ स्थान गेलाह पाली आऽ बुद्ध धर्मक अध्ययनक लेल। ओतए ओऽ बुद्धधर्ममे दीक्षित भए गेलाह आऽ हुनकर नाम पड़लन्हि नागार्जुन। यात्रीजी मार्क्सवादसँ प्रभावित छलाह। १९२९ ई. क अन्तिम मासमेमे मैथिली भाषामे पद्य लिखब शुरू कएलन्हि यात्री जी। १९३५ ई.सँ हिन्दीमे सेहो लिखए लगलाह। 

स्वामी सहजानन्द सरस्वती आऽ राहुल सांकृत्यायनक संग ओऽ किसान आन्दोलनमे संलग्न रहलाह आऽ १९३९ सँ १९४१ धरि एहि क्रममे विभिन्न
जेलक यात्रा कएलन्हि। हुनकर बहुत रास रचना जे महात्मा गाँधीक मृत्युक बाद लिखल गेल छल, प्रतिबन्धित कए देल गेल।

भारत-चीन युद्धमे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनकेँ देल समर्थनक बाद यात्रीजीक मतभेद कम्युनिस्ट पार्टीसँ भए गेलन्हि। जे.पी. अन्न्दोलनमे भाग लेबाक कारण आपात्कालमे हिनका जेलमे ठूसि देल गेल। यात्रीजी हिन्दीमे बाल साहित्य सेहो लिखलन्हि। हिन्दी आऽ मैथिलीक अतिरिक्त बांग्ला आऽ संस्कृतमे
सेहो हिनकर लेखन आएल। मैथिलीक दोसर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९ ई. मे यात्रीजीकेँ हुनकर कविता संग्रह “पत्रहीन नग्न गाछ”पर भेटलन्हि।

१९९४ ई.मे हिनका साहित्य अकादमीक फेलो नियुक्त कएल गेल।
यात्रीजी जखन २० वर्षक छलाह तखन १२ वर्षक कान्यासँ हिनकर विवाह भेल। हिनकर पिता गोकुल मिश्र अपन समाजमे अशिक्षितक गिनतीमे छलाह, मुदा चरित्रहीन छलाह। यात्रीजीक बच्चाक स्मृति छन्हि, जे हुनकर पिता कोना हुनकर अस्वस्थ आऽ ओछाओन धेने मायपर कुरहड़ि लए मारबाक लेल उठल छलाह, जखन ओऽ बेचारी हुनकासँ अपन चरित्रहीनता छोड़बाक गुहारि कए रहल छलीह। 

यात्रीजी मात्र छ वर्षक छलाह जखन हुनकर माए हुनका छोड़ि प्रयाण कए गेलीह। यात्रीजीकेँ अपन पिताक ओऽ चित्र सेहो रहि-रहि सतबैत रहलन्हि जाहिमे हुनकासँ मातृवत प्रेम करएबाली हुनकर विधवा काकीक, हुनकर पिताक अवैध सन्तानक गर्भपातमे, लगभग मृत्यु भए गेल छलन्हि। के एहन पाठक होएत जे यात्रीजीक हिन्दीमे लिखल “रतिनाथ की चाची” पढ़बाक काल बेर-बेर नहि कानल होएताह। पिता-पुत्रक ई घमासान एहन बढ़ल जे पुत्र अपन बाल-पत्नीकेँ पिता लग छोड़ि वाराणसी प्रयाण कए गेलाह। 

कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप हम टा संतति, से हुनक पाप ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप अनको बिसरक थिक हमर नाम माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम! (काशी/ नवंबर १९३६) काशीसँ श्रीलंका प्रयाण “कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप” ई कहि यात्रीजी अपन पिताक प्रति सभ उद्गार बाहर कए दैत छथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी पत्नी, अपराजिता, लग आबि गेलथि।
१९४१ ई. मे यात्रीजी दू टा मैथिली कविता लिखलन्हि- “बूढ़ वर” आऽ विलाप आऽ एकरा पाम्फलेट रूपमे छपबाए ट्रेनक यात्री लोकनिकेँ बेचलन्हि।जीविकाक ताकिमे सौँसे भारत दुनू प्राणी घुमलाह। पत्नीक जोर देलापर बीच- बीचमे तरौनी सेहो घुमि कए आबथि। आऽ फेर अएल १९४९ ई. अपना संग लेने यात्रीजीक पहिल मैथिली कविता-संग्रह “चित्रा”। 

१९५२ ई. धरि पत्नी संगमे घुमैत रहलथिन्ह, फेर तरौनीमे रहए लगलीह। यात्रीजी बीच- बीचमे आबथि। अपराजितासँ यात्रीजीकेँ छह टा सन्तान भेलन्हि, आऽ सभक सभ भार ओऽ अपना कान्हपर लेने रहलीह। यात्रीजी दमासँ परेशान रहैत छलथि। हम जखन दरभंगामे पढ़ैत रही तँ यात्रीजी ख्वाजा सरायमे रहैत छलाह। हमरा मोन अछि जे मैथिलीक कोनो कार्यक्रममे यात्रीजी आएल छलाह आऽ कम्युनिस्ट पार्टीबला सभ एजेन्डा छीनि लेने छल। 

अगिले दिन यात्रीजी अपनाकेँ ओहि धोधा- धोखीमे गेल सभाक कार्यवाहीसँ हटा लेलन्हि। एमर्जेन्सीमे जेल गेलाह तँ आर.एस.एस. केर कार्यकर्ता लोकनिसँ जेलमे भेँट भेलन्हि। आऽ जे.पी.क सम्पूर्ण क्रान्तिक विरुद्ध सेहो जेलसँ बाहर अएलाक बाद लिखलन्हि यात्रीजी। 

यात्रीजी मैथिलीमे बैद्यनाथ मिश्र "यात्री" आऽ हिन्दीमे नागार्जुन केर नामसँ रचना लिखलन्हि। “पृथ्वी ते पात्रं” १९५४ ई. मे “वैदेही”मे प्रकाशित भेल छल, हमरा सभक मैट्रिकक सिलेबसमे छल। यात्रीजी लिखैत छथि- “आन पाबनि तिहार तँ जे से। मुदा नबान निर्भूमि परिवारकेँ देखार कए दैत छैक। से कातिक अबैत देरी अपराजिता देवीक घोघ लटकि जाइन्हि। कचोटेँ पपनियो नहि उठा होइन्ह ककरो दिश! बेसाहल अन्नसँ कतउ नबान भेलइए”?

आऽ अन्तमे यात्रीजीक संस्कृत
पद्य:- वासन्ती कनकप्रभा प्रगुणिता
पीतारुर्णेः पल्लवैः
हेमाम्भोजविलासविभ्रमरता
दूरे द्विरेफाः स्ता
यैशसण्डलकेलिकानन कथा
विस्मरिता भूतले
छायाविभ्रमतारतम्यतरलाः
तेऽमी “चिनार” द्रुमाः॥
बसंतक स्वर्णिम आभा द्विगुणित भऽ गेल
अछि पीयर-लाल कोपड़सँ। स्वर्णकाल भ्रममे
भौरा सभ एकरासँ दूर-दूर रहैत अछि। नन्दनवनक विहार जे
पृथ्वीपर बिसारि दैत छथि, छाह झिलमिल घटैत-बढ़ैत
जिनक डोलब अछि चंचल आ तरल। ओही चिनारकेँ
हम देखने छी अडिग भेल ठाढ़।

        तारानन्द वियोगी (१९६६)

महिषी, सहरसामे जन्म। मैथिलीक समर्थ कवि, कथाकार आऽ समालोचक। पिता श्री बद्री महतो, माता श्रीमति बदामी देवी।
संस्कृत साहित्यमे आचार्य, एम.ए., पी.एच.डी. आदि कयलाक बाद केन्द्रीय विद्यालयमे अध्यापक भेलाह। सम्प्रति बिहार प्राशासनिक सेवामे छथि। १९७९ ई.मे पहिल रचना “मिथिला मिहिर”मे प्रकाशित भेलन्हि। ताहिसँ पहिने संगी लोकनि हिनकर एकटा कविता संग्रह छापि चुकल छलाह।
पहिल पोथी अपन युद्धक साक्ष्य (गजल संग्रह) १९९१ मे प्रकाशित। अन्य पुस्तक हस्तक्षेप (कविता-संग्रह), अतिक्रमण (कथा-संग्रह), शिलालेख(लघुकथा संग्रह), कर्मधारय। रमेशक संग राजकमल चौधरीक कथाकृति एकटा चंपाकली एकटा विषधर कऽ संपादन कयलनि।
स्वातन्त्र्योत्तर मैथिली कथा संग्रह देसिल बयनाक संपादन। कहियो काल हिन्दीमे लिखैत छथि। अपन हिन्दी कविताक लेल वर्ष १९९५ मे “मुक्तिबोध पुरस्कार”सँ सम्मानित। मैथिलीक श्रेष्ठ साहित्यकेँ राष्ट्रीय धरातलपर अनूदित-प्रसारित करबामे विशेष रुचि। पं. गोविन्द झाक महत्वपूर्ण उपन्यास भनहि विद्यापति तथा मैथिली की प्रतिनिधि कहानियाँ अनूदित-संपादित।
एक संपादित कृति राजकमल चौधरी: सृजन के आयाम। समय-समयपर मैथिली हिन्दीमे कैक गोट पत्रिका/ संकलनक संपादन कयलनि। किछु रचना बंगला, तेलुगु, अंग्रेजीमे अनूदित भेलनि अछि।




   


भालचन्द्र झा
ए.टी.डी., बी.ए., (अर्थशास्त्र), मुम्बईसँ थिएटर कलामे डिप्लोमा। मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दी, मराठी, अग्रेजी आऽ गुजरातीमे निष्णात।
१९७४ ई.सँ मराठी आऽ हिन्दी थिएटरमे निदेशक। महाराष्ट्र राज्य उपाधि १९८६ आऽ १९९९ मे। थिएटर वर्कशॉप पर अतिथीय भाषण आऽ नामी संस्थानक नाटक प्रतियोगिताक हेतु न्यायाधीश।
आइ.एन.टी. केर लेल नाटक “सीता” केर निर्देशन। “वासुदेव संगति” आइ.एन.टी.क लोक कलाक शोध आऽ प्रदर्शनसँ जुड़ल छथि आऽ नाट्यशालासँ जुड़ल छथि विकलांग बाल लेल थिएटरसँ।
निम्न टी.वी. मीडियामे रचनात्मक निदेशक रूपेँ कार्य- आभलमया (मराठी दैनिक धारावाहिक ६० एपीसोड), आकाश (हिन्दी, जी.टी.वी.), जीवन संध्या (मराठी), सफलता (रजस्थानी), पोलिसनामा (महाराष्ट्र शासनक लेल), मुन्गी उदाली आकाशी (मराठी), जय गणेश (मराठी), कच्ची-सौन्धी (हिन्दी डी.डी.), यात्रा (मराठी), धनाजी नाना चौधरी (महाराष्ट्र शासनक लेल), श्री पी.के अना पाटिल (मराठी), स्वयम्बर (मराठी), फिर नहीं कभी नहीं( नशा-सुधारपर), आहट (एड्सपर), बैंगन राजा (बच्चाक लेल कठपुतली शो), मेरा देश महान (बच्चाक लेल कठपुतली शो), झूठा पालतू(बच्चाक लेल कठपुतली शो),
टी.वी. नाटक- बन्दी (लेखक- राजीव जोशी), शतकवली (लेखक- स्व. उत्पल दत्त), चित्रकाठी (लेखक- स्व. मनोहर वाकोडे), हृदयची गोस्ता (लेखक- राजीव जोशी), हद्दापार (लेखक- एह.एम.मराठे), वालन (लेखक- अज्ञात)।
लेखन-
बीछल बेरायल मराठी एकांकी, सिंहावलोकन (मराठी साहित्यक १५० वर्ष), आकाश (जी.टी.वी.क धारावाहिकक ३० एपीसोड), जीवन सन्ध्या( मराठी साप्ताहिक, डी.डी, मुम्बई), धनाजी नाना चौधरी (मराठी), स्वयम्बर (मराठी), फिर नहीं कभी नहीं( हिन्दी), आहट (हिन्दी), यात्रा ( मराठी सीरयल), मयूरपन्ख ( मराठी बाल-धारावाहिक), हेल्थकेअर इन २०० ए.डी.) (डी.डी.)।
थिएटर वर्कशॉप- कला विभाग, महाराष्ट्र सरकार, अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद, दक्षिण-मध्य क्षेत्र कला केन्द्र, नागपुर, स्व. गजानन जहागीरदारक प्राध्यापकत्वमे चन्द्राक फिल्मक लेल अभिनय स्कूल, उस्ताद अमजद अली खानक दू टा संगीत प्रदर्शन।
श्री भालचन्द्र झा एखन फ़्री-लान्स लेखक-निदेशकक रूपमे कार्यरत छथि।

   


श्री रामभरोस कापड़ि “भ्रमर” (१९५१) 



जन्म-बघचौरा, जिला धनुषाटी (नेपाल)। सम्प्रति-जनकपुरधाम, नेपाल। त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ एम.ए., पी.एच.डी. (मानद)।


हाल: प्रधान सम्पादक: गामघर साप्ताहिक, जनकपुर एक्सप्रेस दैनिक, आंजुर मासिक, आंगन अर्द्धवार्षिक (प्रकाशक नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, कमलादी)।
मौलिक कृति: बन्नकोठरी: औनाइत धुँआ (कविता संग्रह), नहि, आब नहि (दीर्घ कविता), तोरा संगे जएबौ रे कुजबा (कथा संग्रह, मैथिली अकादमी पटना, १९८४), मोमक पघलैत अधर (गीत, गजल संग्रह, १९८३), अप्पन अनचिन्हार (कविता संग्रह, १९९० ई.), रानी चन्द्रावती (नाटक), एकटा आओर बसन्त (नाटक), महिषासुर मुर्दाबाद एवं अन्य नाटक (नाटक संग्रह), अन्ततः (कथा-संग्रह), मैथिली संस्कृति बीच रमाउंदा (सांस्कृतिक निबन्ध सभक संग्रह), बिसरल-बिसरल सन (कविता-संग्रह), जनकपुर लोक चित्र (मिथिला पेंटिङ्गस), लोक नाट्य: जट-जटिन (अनुसन्धान)।


नेपाली कृति: आजको धनुषा, जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदाहरु (आलेख-संग्रह), भ्रमरका उत्कृष्ट नाटकहरु (अनुवाद)।
सम्पादन: मैथिली पद्य संग्रह (नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान), लाबाक धान (कविता संग्रह), माथुरजीक “त्रिशुली” खण्डकाव्य (कवि स्व. मथुरानन्द चौधरी “माथुर”), नेपालमे मैथिली पत्रकारिता, मैथिली लोक नृत्य: भाव, भंगिमा एवं स्वरूप (आलेख संग्रह)। गामघर साप्ताहिकक २६ वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन, “अर्चना” साहित्यिक संग्रहक १५ वर्ष धरि सम्पादन-प्रकाशन। “आँजुर” मैथिली मासिकक सम्पादन प्रकाशन, “अंजुली” नेपाली मासिक/ पाक्षिकक सम्पादन प्रकाशन।


अनुवाद: भयो, अब भयो (“नहि आब नहि”क मनु ब्राजाकीद्वारा कयल नेपाली अनुवाद)


सम्मान: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा पहिल बेर १९९५ ई.मे घोषित ५० हजार टाकाक मायादेवी प्रज्ञा पुरस्कारक पहिल प्राप्तकर्ता। प्रधानमंत्रीद्वारा प्रशस्तिपत्र एवं पुरस्कार प्रदान। 


विद्यापति सेवा संस्थान दरिभङ्गाद्वारा सम्मानित, मैथिली साहित्य परिषद, वीरगंजद्वारा सम्मानित, “आकृति” जनकपुर द्वारा सम्मानित, दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषाद्वारा सम्मानित, जिल्ला विकास समिति धनुषा द्वारा दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल पुरस्कृत एवं सम्मानित, नेपाली मैथिली साहित्य परिषद द्वारा २०५९ सालक अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मुम्वई द्वारा “मिथिला रत्न” द्वारा सम्मानित, शेखर प्रकाशन “पटना” द्वारा “शेखर सम्मान”, मधुरिमा नेपाल (काठमाण्डौ) द्वारा २०६३ सालक मधुरिमा सम्मान प्राप्त। काठमाण्डूमे आयोजित सार्कस्तरीय कवि गोष्ठीमे मैथिली भाषाक प्रतिनिधित्व।


सामाजिक सेवा : अध्यक्ष-तराई जनजाति अध्ययन प्रतिष्ठान, जनकपुर, अध्यक्ष- जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपाध्यक्ष- मैथिली प्रज्ञा प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपकुलपति- मैथिली अकादमी, नेपाल, उपाध्यक्ष- नेपाल मैथिली थाई सांस्कृतिक परिषद, सचिव- दीनानाथ भगवती समाज कल्याण गुठी, जनकपुर, सदस्य- जिल्ला वाल कल्याण समिति, धनुषा, सदस्य- मैथिली विकास कोष, धनुषा, राष्ट्रीय पार्षद- नेपाल पत्रकार महासंघ, धनुषा।





प्रोफेसर उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’
जन्म-१९५१ ई. कलकत्तामे।
शिक्षा- बी. ए. (सम्मान) भाषाविज्ञान (प्रथम ईशान स्कॉलर) कलकत्ता विश्वविद्यालय, कलकत्ता
एम.ए. भाषाविज्ञान, पी-एचडी. भाषाविज्ञान, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली ।
रचना संसार- मैथिली साहित्य मध्य छद्म नाम ‘नचितकेता’क नामे, मैथिली आ बंगला साहित्यक कवि आ नाटककारक रूपमे प्रख्यात श्री सिंह एखन धरि चारि कविता संग्रह, एगारह गोट नाटक (मैथिलीमे), छओ साहित्यिक निबंध आ दू टा कविता संग्रह (बांग्लामे), एकर अतिरिक्त एहि दुनू भाषामे आ अंग्रेजीमे कतोक पुस्तकक अनुवाद क’ चुकल छथि।
१९६६ मे १५ वर्षक उम्रमे पहिल काव्य संग्रह ‘कवयो वदन्ति’। १९७१ ‘अमृतस्य पुत्राः’ (कविता संकलन) आऽ ‘नायकक नाम जीवन’ (नाटक)| १९७४ मे ‘एक छल राजा’/ ’नाटकक लेल’ (नाटक)। १९७६-७७ ‘प्रत्यावर्त्तन’/ ’रामलीला’(नाटक)। १९७८मे जनक आऽ अन्य एकांकी। १९८१ ‘अनुत्तरण’(कविता-संकलन)। १९८८ ‘प्रियंवदा’ (नाटिका)।
१९९७-‘रवीन्द्रनाथक बाल-साहित्य’(अनुवाद)। १९९८ ‘अनुकृति’- आधुनिक मैथिली कविताक बंगलामे अनुवाद, संगहि बंगलामे दूटा कविता संकलन। १९९९ ‘अश्रु ओ परिहास’। २००२ ‘खाम खेयाली’। २००६मे ‘मध्यमपुरुष एकवचन’(कविता संग्रह। २००८ ई. मे नाटक “नो एण्ट्री: मा प्रविश” सम्पूर्ण रूपेँ “विदेह” ई- पत्रिकामे धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भए एकटा कीर्तिमान बनेलक। भाषा-विज्ञानक क्षेत्रमे दसटा पोथी आऽ दू सयसँ बेशी शोध-पत्र प्रकाशित। १४ टा पी.एच.डी. आऽ २९ टा एम.फिल. शोध-कर्मक दिशा निर्देश।
आन साहित्यिक गतिविधि- प्रो. सिंह बांगलादेश, कॅरबियन आयलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, सिंगापुर, स्वीडन, थायलैंड आर अमेरिकामे विविध विषय पर अपन व्याख्यान देने छथि।
इंडो-इटैलियन कल्चरल एक्सचेंज फॉर क्रिएटिव रायटर्सक सदस्य(1999), त्रिनिदाद आर टॉबेगो मे कार्यालयी प्रतिनिधिक सदस्य (2002), आ मॉरीशस (2005), फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेलामे आमंत्रित कवि, जतय ‘इंडिया गेस्ट ऑफ ऑनर’ सँ सम्मानित भेलाह (2006), हालहिमे चीन मे संपन्न एगारह लेखकक सांस्कृतिक प्रतिनिधिक प्रमुखक रूपमे भाग नेने छलाह।
कार्यक्षेत्र- महाराजा सियाजी राव विश्वविद्यालय,बड़ौदा,(1979-81), दक्षिणी गुजरात विश्वविद्यालय (1981-85), दिल्ली विश्वविद्यालय,दिल्ली (1985-87), हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद,(1987-2000) मे भाषाविज्ञानक प्रोफेसर, ओ अतिथि प्रोफेसरक रूपमे इंडियन इन्स्टीच्यूट ऑफ एडवांस स्टडी, शिमला (1989) मे काज करैत वर्तमानमे केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर मे निदेशकक पद पर आसीन छथि।