dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

मैथिली मातृभाषा लेल विचार गोष्ठी -



pravin Narayan Choudhary
मैथिली मातृभाषा लेल विचार गोष्ठी - अवसर ‘अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ याने २१ फरबरी - २०१२

"युनेस्को द्वारा एहि दिवसके मनाबय पाछू सुन्दर माहात्म्य यैह जे बांग्लादेश के निर्माण मातृभाषा लेल खूनी आन्दोलन आ संघर्ष उपरान्त भेल - प्राकृतिक स्वरूप पर बनावटी बोझ केकरहु नहि पसिन्न पड़ैत छैक, जेना पूर्वी पाकिस्तानमें बंगला मातृभाषा ऊपर उर्दु के बोझ - अरबी के बोझ केवल इस्लाम धर्म के अनुसरणके क्रममें मान्य नहि भेल आ फलस्वरूप लोक संघर्ष कयलक आ १९७१ में युद्ध तक भेल आ तदोपरान्त बांग्लादेश के सृजन भेल।"

मैथिल संग सेहो किछु एहने दमन भऽ रहल छन्हि। क्रमशः चिन्ता बढय लागल छैक। समृद्ध इतिहास आ साहित्यके रहैत मैथिली भाषा हासिया पर जा रहल छैक। दोषी के - दोषी के - लोक चीख-पुकार आ हो-हल्ला मचा रहल छथि। केओ फल्लाँ जाइत चौपट केलक तऽ फल्लाँ एकरा पौतीमें मुनलक आदि कहैत एक-दोसर पर भाला-बरछी तानय लागल छथि; केओ राज्य-पक्षके जिम्मेदार मानैत छथि, केओ किछु तऽ केओ किछु। अफरातफरी मचल जा रहल अछि। मनुष्य अपन गलती जल्दी नहि देखैत छैक - कहबी छैक जे अपन टेटर नहि सुझैत छैक। आत्मालोचना केवल ऋषि-संत तक रहि गेलैक अछि। जनकल्याण कयनिहार लोक अक्सर आत्मालोचना करैत नवनिर्माण लेल गलतीके सुधार करैत आगू बढैत छथि। केवल गुँहाकिच्ची कयला सँ बात सम्हरैत कम छैक, बिगड़ैत अवश्य छैक। राजनीति आइ गन्दगीके पर्यायवाची केवल एहि लेल बनल छैक जे लोक दोसरके विश्वास जीतय लेल कम बल्कि तोड़य लेल आ मानमर्दन लेल मात्र प्रयोग करैत छैक। बोली-भाषणमें बड़ पैघ-पैघ बात करैत छैक, मुदा सभटा लेल दोसरेके दोषी मानैत छैक आ अपन दोष - अपन प्रतिबद्धता - अपन श्रेष्ठ प्रदर्शन आदि लेल मुँहपर माछी भिनैक उठैत छैक। ततबा अन्तर्विरोध आ दोषारोपण होइत छैक जे योगदान देनिहार के सेहो हृदयाघातकारी होइत छैक। अरे भाइ! दम छौ तऽ कऽ के देखा। दम छौ तऽ जोड़ि के देखा। खाली दोषारोपण? एहि तरहक वार्तालाप - आलाप-प्रलाप के त्याग करब बहुत जरुरी छैक। हम सीधा कहय चाहब जे कोनो दोष यदि विशेष जातिके छैक तऽ अपन योगदान कि सेहो बाजब जरुरी। यदि केकरो में कोनो कमजोरी देखलियैक तऽ स्वयं सम्हारय लेल कि कदम उठेलहुँ से जाहिर करब जरुरी। यदि जातीयता के बात करैत भाषा के पछरैत देखैत छी तऽ जातिय सौहार्द्र लेल आइ धैर कि कयलहुँ से जगजाहिर होयब बेसी जरुरी। दोष नहि छैक वा नहि हेतैक हम ताहिपर किनकहु नहि रोकि रहल छी चर्चा करय सँ, लेकिन दोष मात्र आंगूरपर गानब आ सकारात्मकता हेतु जे करनी कयलहुँ से नहि बतायब तखन अहाँ स्वयं दोषी छी। अहाँ अपन टेटर नहि देखैत खाली योगदान कयला उपरान्त नून-चीनी कय रहल छी। सावधान मैथिल! बहुत खंडी बनलहुँ। घरके तहस-नहस कयलहुँ। दोसरके योगदान के मूल्य बुझू। करनी शून्ना आ बाजब दून्ना - छोड़ू एहि प्रवृत्तिकेँ। धन्यवाद दियौक ओहि योगदानकर्ताकेँ जे अहाँक मातृभाषा के समुद्र सऽ बेसी गहिंर बनौलक। हर बातमें खाली छिद्रान्वेषी बनब एहि प्रवृत्तिके त्याग अहाँलेल एकदम जरुरी अछि। वरना अहाँ के तीक्ष्ण बौद्धिक क्षमता रहैत धोबीके कुकूर जेकाँ बिना घर ओ घाटके बीच मझधार अहाँ फँसल त्राहि-त्राहि करब आ ईश्वरके सेहो अहाँपर दया नहि औतैन। फेर सीताजी नहि अवतार लेती अहाँके धरासँ। स्मरण करू - जनकजी ओहिना नहि प्रण कयने छलाह जे हिनक विवाह एहेन पुरुष संग करायब जे ताहि शिवधनुष जेकरा सियाजी सहजरूपें बायाँ हाथ सँ उठाके पिता जनकलेल पूजा करै सऽ पहिने गाय-गोबर सऽ नीप देने छलीह। जगाउ अपन आत्मसम्मान के। सिखाउ अपन संतानके - मैथिली संग प्रेम करू - राजनीतिके शिकार जुनि बनू। ई जातीयताके बात कय के अहाँके मौलिक अधिकार हनन करय लेल केकरहु सहज अधिकार प्रदान नहि करू। भाषा आ भाषिका एक-दोसरक सम्पूरक होइछ। केओ बहुत सुसंस्कृत भाषण करैछ, केओ ततेक वैयाकरणीय नहि रहैछ। लेकिन सत्य तऽ यैह छैक ने जे कोनो भाषाके सम्पन्नता साहित्य सँ होइछ, साहित्य के दू प्रमुख स्तम्भ व्याकरण आ शब्दकोष होइत छैक। जे जतेक प्रखर से ततेक सम्पन्न! एहिमें जाति के कोनो बाधा कदापि नहि। बेशक जे अगड़ा छैक ओ अगड़ा स्वभावके कारण आगू भागैत छैक। एहि में ईर्ष्या नहि, बल्कि अनुकरण आ अपन कमजोरी संग संघर्ष करब एहि लेल प्रेरणा के संचरण करू। झगरलगौन काज कम करैछ आ झगरा लगा के अपन बन्दरबाँट करयमें लागैछ।

मैथिली भाषा के प्रवर्धन में व्यवसायीकरण के आवश्यकता देखि रहल छी। भारतमें संघ लोकसेवा आयोगमें मैथिली विषय के चुनाव करैत अमैथिल सहजरूपेण प्रशासक बनैत छथि। मैथिलीके पोषण एना भऽ रहल छैक। विभिन्न प्रकाशन सँ मैथिली लेखनके प्रकाशन भऽ रहल छैक, लेखकके मात्रामें वृद्धि एना भऽ रहल छैक। धिया-पुताकेँ भारी सऽ भारी शास्त्रोपदेश-पठन-पाठन अपन मातृभाषामें अत्यन्त सहज आ दीर्घकाल लेल हितकारी होइछ - एना मैथिली प्रति आकर्षण मैथिल में होयब स्वाभाविक छैक। मैथिलीभाषामें यदि मिडिया कार्यरत हेतैक - ५००-१००० लोककेँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त हेतैक, मैथिलीके पोषण आ मिडिया-विकास एना संभव हेतैक। अपन संस्कृति प्रति लोकमें जागरुकता आ संवरण हेतु प्रयास आ प्रदर्शन हेतैक, मैथिली एना आगू बढतैक। मैथिली फिल्म, मैथिली गीत, मैथिली पारंपरिक गायन-संगीत आदिके व्यवसायीकरणमें अपन हिस्साके योगदान देबैक तखन मैथिली के बढय सऽ केओ नहि रोकि सकैत छैक। आन संग देक्सीमें आन्दोलन करयलेल पाछू रहैय सऽ बहुत नीक छैक जे अपन मातृभाषा प्रति एक सटीक नीति बनबैत राज्य द्वारा उपेक्षा विरुद्ध संघर्ष करब - हिंसा व अहिंसा के तर्कबुद्धि सँ दूर केवल जायज लेल लड़बाक प्रवृत्ति आनब तखन मैथिलीके संवर्धन हेतैक, सम्मान भेटतैक। अतः मातृभाषा के सम्मान सभके लेल छैक, एहिमें केकरो ऊपर दोषारोपण करब आ अपन कर्म करयमें पाछू पड़ब साक्षात्‌ बेईमानी थिकैक, एहि बात केँ मनन करब।

राजविराजमें जल्दिये राष्ट्रीय सम्मेलन हेतैक आ एहिठामसँ मैथिली के समुचित सम्मान लेल आ आपसी एकताक लेल बिगुल बजतैक। एकर अपूर्व सफलता लेल शुभकामना देल जाउ|

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