dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

apani bhasha me dekhe / Translate

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

मैंने गांधी को क्यों मारा

सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने पर प्रकाशित किया गया 

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम गोडसे 

का अंतिम भाषण -     


    #मैंने_गांधी_को_क्यों_मारा !

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुए बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया 

नाथूराम गोड़से समेत 17 देशभक्तों पर गांधी की हत्या का मुकदमा चलाया गया इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान #न्यायमूर्ति_खोसला से नाथूराम जी ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह कोर्ट परिसर तक ही सिमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया l

                     *मैंने गांधी को क्यों मारा*

नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 

150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की

नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश....

नाथूराम जी का विचार था कि गांधी की अहिंसा हिन्दुओं 

को कायर बना देगी कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे नाथूराम गोड़से को भय था गांधी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को 

कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी 

प्राप्त नहीं कर पायेंगे...

1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड 

के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ 

आक्रोश उफ़ान पे था...

भारतीय जनता इस नरसंहार के #खलनायक_जनरल_डायर 

पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी के पास गयी 

लेकिन गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन 

देने से साफ़ मना कर दिया 

महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया  महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो #केरल_के_मोपला_मुसलमानों द्वारा वहाँ के 

1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं 

को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध 

तक नहीं कर सके 

कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में #नेताजी_सुभाष_चन्द्रबोस 

को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी ने #अपने_प्रिय_सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे गांधी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया...

23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को 

टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया 

गांधी #कश्मीर_के_हिन्दू_राजा_हरि_सिंह से कहा कि 

#कश्मीर_मुस्लिम_बहुल_क्षेत्र_है_अत:वहां का शासक 

कोई मुसलमान होना चाहिए अतएव राजा हरिसिंह को 

शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने जबकि  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था गांधी जी की नीतियाँ 

धर्म के साथ बदलती रहती थी उनकी मृत्यु के पश्चात 

सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को 

भारत में मिलाने का कार्य किया गांधी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता 

पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया 

महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा 

के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर 

तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके 

लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय 

प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया गांधी अपनी मांग 

को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात 

न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम 

निकलवाने में माहिर थे इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे

14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था लेकिन गांधी ने वहाँ पहुँच कर 

प्रस्ताव का समर्थन करवाया यह भी तब जबकि गांधी  

ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश 

पर होगा न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों 

निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी 

ने कुछ नहीं किया....

धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी+उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे  बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का 

चलन शुरू हुआ...

कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने 

पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत 

का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया 

गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी महाराणा प्रताप व 

गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा वही दूसरी 

ओर गांधी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम 

कहकर पुकारते था

कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के 

लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने 

सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का 

राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी 

की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया 

जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ 

मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य 

भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव 

को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला 

भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये 

दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की 

राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने 

विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान 

को दे दी महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान 

के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में 

खड़े रहे फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या 

नाजायज गांधी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की 

उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम 

गोड़से जी ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित 

ठहराने का प्रयास किया...

नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की  

मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त 

को देश के टुकड़े करने के एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ गांधी की हत्या के 

सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था...!!

#नाथूराम_गोड़सेजी द्वारा अदालत में 

दिए बयान के मुख्य अंश...

मैने गांधी को नहीं मारा

मैने गांधी का वध किया है..

वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के 

लिए घातक साबित हो रहे थे...

जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी 

में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है...

मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति 

के प्रति गांधी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे 

मजबूर किया...

पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने की 

गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी अनशन पर बैठे..

बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती 

और दुर्दशा ने मुझे हिला के रख दिया था...

अखंड हिन्दू राष्ट्र गांधी के कारण मुस्लिम लीग 

के आगे घुटने टेक रहा था...

बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना 

विभाजित होना असहनीय था...

अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे..

मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को 

गांधी मानते जा रहे थे..

मैने ये निर्णय किया कि भारत माँ को अब और 

विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है 

तो मुझे गांधी को मारना ही होगा

और मैने इसलिए गांधी को मारा...!!

मुझे पता है इसके लिए मुझे फाँसी ही होगी 

और मैं इसके लिए भी तैयार हूं...

और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे 

तो मै यह अपराध बार बार करूँगा हर बार करूँगा ...

और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने 

लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना...!!

मुझे  फाँसी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज 

और दूसरे हाथ में #अखंड_भारत का नक्शा हो...

मै फाँसी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय 

जयकार बोलना चाहूँगा...!!

हे भारत माँ मुझे दुःख है मै तेरी इतनी 

ही सेवा कर पाया....!!

#नाथूराम_गोडसे

🙏 

शनिवार, 19 अप्रैल 2025

जानिए क्या है आर्टिकल 142, उपराष्ट्रपति ने क्यों बताया ‘न्यूक्लियर मिसाइल’.

   


लोकसभा स्पीकर के बराबर हैं CJI, फिर राष्ट्रपति को आदेश दे सकता है सुप्रीम कोर्ट.? जानिए क्या है आर्टिकल 142, उपराष्ट्रपति ने क्यों बताया ‘न्यूक्लियर मिसाइल’...*

*केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बनाए गए वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति को भी समय सीमा देते हुए निर्देश जारी किया था। अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर फिर से निशाना साधा है और कहा कि वह अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर विधायिका के मामले में हस्तक्षेप कर रही है।*

*उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक ‘परमाणु मिसाइल’ बन गया है, जो न्यायपालिका के पास 24 घंटे उपलब्ध होता है।। उपराष्ट्रपति का बयान ऐसे समय में आया है, जब संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई और उसे रोकने की बात कही।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “हाल ही में एक निर्णय के माध्यम से राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहाँ जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमने लोकतंत्र के लिए इस दिन की कभी उम्मीद नहीं की थी। हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएँगे, कार्यकारी कार्य करेंगे, सुपर-संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहाँ आप (सुप्रीम कोर्ट) भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें। वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है।” उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 145(3) के अनुसार किसी महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर कम-से-कम 5 न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब पाँच न्यायाधीशों वाली पीठों का निर्णय निर्धारित किया गया था, तब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ थी। धनखड़ ने बिल के संबंधित मामले को लेकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ निर्णय दो न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा दिया गया था। अब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है।

उन्होंने यहाँ तक कहा कि संविधान पीठ में न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 145(3) में संशोधन करने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को बिल पर तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो संबंधित राज्यपाल द्वारा भेजा गया विधेयक कानून बन जाता है।

न्यायपालिका की वर्तमान हालात पर बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने न्यायाधीश यशवंत वर्मा का भी जिक्र किया। ये वही जज हैं, जिनके घर पर इस साल होली के दिन नोटों से भरे बोरों में आग लग गई थी। मामले में भारी विवाद के बाद भी सुप्रीम कोर्ट उन्हें दिल्ली से इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया और मामले की जाँच के लिए आंतरिक कमिटी बना दी गई।

धनखड़ ने कहा, “14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर एक घटना घटी। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। इसमें हुई देरी को क्या समझा जा सकता है? क्या यह क्षमा योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य स्थिति में और सामान्य परिस्थितियाँ कानून के शासन को परिभाषित करती हैं।”

अनुच्छेद 142, जिसे उपराष्ट्रपति ने परमाणु मिसाइल कहा

संविधान के अनुच्छेद 142 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और डिक्री को देने का अधिकार और उसे लागू करने आदि से संबंधित से संबंधित है। अनुच्छेद 142 के उपबंध-1 सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि उसके पास आए किसी भी मामले में वह न्याय के लिए डिक्री या आदेश पारित कर सकेगा। यह डिक्री या आदेश पूरे भारत में लागू होगा।

इसके उपबंध-2 में कहा गया है कि इस संंबंध में संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए सुप्रीम कोर्ट पूरे भारत के किसी भी क्षेत्र के किसी व्यक्ति को हाजिर होने, दस्तावेज प्रस्तुत करने, अवमानना की जाँच करने या दंड देने का समस्त अधिकार उसके पास होगा। इस तरह अनुच्छेद 142 में स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा पारित कानून के दायरे में ही काम करना है।

हालाँकि, बात यहीं खत्म नहीं होती। कॉलेजियम के तर्ज पर सुप्रीम कोर्ट ने इसकी भी काट निकाली है। पिछले कुछ वर्षों में अनुच्छेद 142 की व्याख्या और उसके प्रयोग के विभिन्न उदाहरण पेश किए गए। हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में निर्णय देकर एक कानूनी ढाँचा विकसित किया।

यह ढाँचा संविधान के अनुच्छेद 142 की व्याख्या और उसके प्रयोग से संबंधित था। इस निर्णय ‘एशियन रीसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम सीबीआई के पिछले निर्णय से बिल्कुल उलट था। सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट बार के फैसले में एशियन रीसर्फेसिंग के निर्णय को पलट दिया था। इसमें अनुच्छेद 142 के तहत नए दिशा-निर्देश जारी करने के अलावा अंतरिम आदेशों से संबंधित पहलुओं को भी शामिल किया।

इसमें विचार किया गया कि अंतरिम आदेश को रद्द करने या संशोधित करने का हाई कोर्ट का अधिकार क्या है और क्या अंतरिम आदेश किसी विशेष समय की समाप्ति पर खुद ही समाप्त हो सकता है। एशियन रिसर्फेसिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर विचार किया था। उस दौरान शीर्ष न्यायालय ने माना था कि जब तक अंतरिम आदेश का समय ना बढ़ाया न जाए, वह आदेश की तारीख से 6 महीने बाद स्वतः समाप्त हो जाता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले को उलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एशियन रीसर्फेसिंग मामले में निर्धारित समय बीत जाने पर अंतरिम आदेशों की स्वतः समाप्ति की शर्त लागू रहने योग्य नहीं थी और इसलिए इसे खारिज कर दिया। इसके बाद अनुच्छेद 142 में दिए गए अधिकारों के तहत उसने नए दिशा-निर्देश जारी किए।

इसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्या कोई न्यायालय अंतरिम आदेश पारित करते समय कोई समय सीमा तय कर सकता है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का उपयोग प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को दबाने या वादियों के मूल अधिकारों को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग विवेक से और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए, ताकि विवादों का निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाधान निकाला जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि अनुच्छेद 142 द्वारा दी गई शक्तियों का उद्देश्यपूर्ण न्याय सुनिश्चित करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने एशियन रीसर्फेसिंग में पहले दिए गए निर्णय को खारिज करते हुए कहा कि अनुच्छेद 226(3) के तहत पारित स्थगन आदेश को रद्द करने के लिए अनिवार्य शर्त स्थगन आदेश हटाने के लिए आवेदन दाखिल करना और न्यायालय द्वारा न्यायिक विवेक का प्रयोग करना है। इस आवेदन पर दो सप्ताह के भीतर निर्णय नहीं लिया जाता है तो स्थगन आदेश स्वतः समाप्त नहीं होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थगन आदेश तब तक प्रभावी रहता है, जब तक कि इसके रद्द करने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए आवेदन का कारणों के साथ निपटारा नहीं हो जाता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालतों को मामलों के निपटान के लिए कठोर समय-सीमा नहीं लगानी चाहिए, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न हो।

*अपने इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने जो नया गाइडलाइन तय किया उसके अनुसार, अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग न्यायालय द्वारा अपने समक्ष पक्षकारों के लिए पूर्ण न्याय करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन ऐसा करने में न्यायालय अन्य अधिकार क्षेत्रों में अन्य वादियों के पक्ष में पारित वैध न्यायिक आदेशों को रद्द नहीं करेगा।*

*राष्ट्रपति को निर्देश देने के लिए उपराष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट पर क्यों भड़के???

हमने अपने पिछले आर्टिकल में बताया था कि क्या सुप्रीम कोर्ट भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति को निर्देश सकते हैं या नहीं। इस आर्टिकल में हमने कई कानून पहलुओं पर विचार किया था। कई लोगों के मन में सवाल उठता होगा कि भारत में पदों की वरीयता क्रम क्या है। इससे भी साफ हो जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश दे सकता है या नहीं।

अगर वरीयता क्रम की बात की जाए तो राष्ट्रपति को देश का सर्वोच्च पद है। राष्ट्रपति को भारत का पहला नागरिक कहा जाता है। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति और संसद को मिलाकर ही भारत बनता है और वह संघ के प्रशासन का प्रमुख होता है। इसी प्रशासन का एक अंग न्यायपालिका भी है। इस तरह देश का सर्वोच्च राष्ट्रपति का होता है।

भारत में राष्ट्रपति और राज्यपाल ही ऐसे दो पद हैं, जिनके खिलाफ अदालती कार्रवाई नहीं की जा सकती है। भारत के संविधान ने अनुच्छेद 361 के तहत इसका प्रावधान किया है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति और राज्यपालों के खिलाफ अदालती कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ना ही इन दोनों को किसी मामले में नोटिस जारी कर सकता है और ना ही निर्देश दे सकता है।

राष्ट्रपति के बाद देश में दूसरा सर्वोच्च पद उपराष्ट्रपति का होता है। इसके बाद तीसरे नंबर पर प्रधानमंत्री आते हैं। देश का चौथा सर्वोच्च पद राज्यपाल का होता है, जो उनके कार्य वाले राज्यों में होता है। इसके बाद वरीयता क्रम में पाँचवें स्थान पर पूर्व राष्ट्रपति आते हैं। इसके बाद भारत के उपप्रधानमंत्री का पद वरीयता क्रम में 5A स्थान पर आता है।

*केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और लोकसभा स्पीकर का पद एक समान होता है। दोनों वरीयता क्रम में छठे नंबर पर आते हैं। इसके बाद सातवें नंबर पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्यों में होते हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री, राज्यसभा और लोकसभा में विपक्ष के नेता भी सातवें क्रम पर ही आते हैं।*

भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति का क्रम 7A होता है। आठवें क्रम में राजदूत, भारत द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रमंडल देशों के आयुक्त, अपने राज्य के बाहर मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल होते हैं। नौंवें क्रम पर सुप्रीम कोर्ट के आते हैं। इसके बाद 9A पर संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, मुख्य चुनाव आयुक्त और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) आते हैं।

*वरीयता क्रम मेें 10वें स्थान पर राज्यसभा के उपसभापति, राज्यों के उपमुख्यमंत्री, लोकसभा के उपसभापति, योजना आयोग (वर्तमान में नीति आयोग) के सदस्य और केंद्र सरकार के राज्यमंत्री आते हैं। वहीं, 11वें स्थान पर भारत के अटॉर्नी जनरल, कैबिनेट सचिव और अपने-अपने केंद्रशासित प्रदेशों के भीतर लेफ्टिनेंट गवर्नर (उपराज्यपाल) तक शामिल हैं। वरीयता क्रम में 12वें स्थान पर पूर्ण जनरल या समकक्ष रैंक के पद पर कार्यरत चीफ ऑफ स्टाफ।*

Devender Singh जी ✍️✍️

साभार!!

कैसी संसद और उसके द्वारा बनाया क़ानून?

*कौन राज्यपाल?*

*कौन राष्ट्रपति ?*

*कौन प्रधानमंत्री ?*

*कैसी संसद और उसके द्वारा बनाया क़ानून?

*पार्थ*

आँखें खोलो और मेरा विराट रूप देखो. 

मैं ही हूँ जो खुद को नियुक्त करता हूँ. 

मैं ही हूँ जो खुद का प्रमोशन करता हूँ. 

मेरे ही भाई बंधू हैं जो अधोवस्त्र उतार कर महिला वकील को जज बना सकते हैं. 

मेरे ही घर से करोड़ों के जले नोट निकलते हैं. 

मैं ही हूँ जो आधी रात पाजामे में आतंकवादी का केस सुनता हूँ 

मैं ही हूँ जो आम जनता के मुकदमो को दसियों साल लटकाता हूँ 

हे पार्थ 

मेरी ही उपासना करो. 

मैं ही हूँ ब्रह्माण्ड का निर्माता और उसको चलाने वाला. 

मैं स्वयं साक्षात प्रभु हूँ.