गजल@प्रभात राय भट्ट
अप्पन वितल हाल चिठ्ठीमें लिखैतछी
मोनक बात सभटा अहिं सँ कहैतछी
मोन ने लगैय हमर अहाँ बिनु धनी
कहू सजनी अहाँ कोना कोना रहैतछी
अहाँक रूप रंग बिसरल ने जैइए
अहिं सजनी सैद्खन मोन पडैतछी
गाबैए जखन जखन मलहार प्रेमी
मोनक उमंग देहक तरंग सहैतछी
अप्पन ब्यथा वेदना हम ककरा कहू
अपने उप्पर दमन हम करैतछी
जुवानी वितल घरक सृंगारमें धनी
हमरा बिनु अहाँ कोना सृंगार करैतछी
जीवनक रंगमहल वेरंग भेल अछि
ब्यर्थ अटारी में रंग रोगन करैतछी
जल बिनु जेना जेना तडपैय मछली
अहाँ बिनु हम तडैप तडैप जिबैतछी
दुनियाक दौड़में "प्रभात" लिप्त भेल अछी
अप्पन जिनगी अप्पने उज्जार करैतछी
वर्ण:-१५
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें