देखि हुनकर असल रंग, भक हमर टूटि गेल।
पोखरि मे सब नंग-धडंग, भक हमर टूटि गेल।
सभ आँखिक नोर सुखायल, आगि एहेन छै लागल,
देखि केँ कानैत यमुना-गंग, भक हमर टूटि गेल।
बूझलौं अपना केँ कपरगर, एकटा संगी भेंटल,
छोडि देलक ओ जखन संग, भक हमर टूटि गेल।
कते बियोंत लगाबै छलौं अहाँ केँ अंग लगाबै लेल,
जखन लगेलौं अंग सँ अंग, भक हमर टूटि गेल।
मस्तीक नाव भसिया गेल छै समयक ऐ प्रवाह मे,
छलौं यौ हमहुँ मस्त-मलंग, भक हमर टूटि गेल।
----------------- वर्ण २० --------------------
1 टिप्पणी:
शुक्रवारीय चर्चा-मंच पर है यह उत्तम प्रस्तुति ||
charchamanch.blogspot.com
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