dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

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बुधवार, 29 फ़रवरी 2012


मिथिलाक गाम घर 

मैथिल बंधू सव केर नमस्कार ,

हम एक टा सरस सलिल सनक मासीक मैथिलि पत्रिका निकालबाक बारे में सोची रहल छि .
अपनेक सब सा आग्रह जे की अहि पत्रिक्का केर की नाम राखाल जाय ताहि में मदद करू .
एक टा बात अओर अपने इहो कहबाक कास्ट करू जे की अपने लोकिन अहि पत्रिका में की सामावेश कैल जाय जाहि सा पाठक सब केर पढाई में नीक लागते .

हमरा पत्रकारिता केर कोनो ताजुर्ब्बा नहीं अछि . अहि हेतु हम ओही मैथिल भाई बंधू सा आग्रह कर्बैं जे की कोनो ने कोनो पत्रिका सा जूरल होइथ से मार्ग दर्शन करी जे की पत्रिका निक्काल्बाक लेल की सब कराय पारित अछि . 

अपनेक मार्ग दर्शन करी आ माँ मिथिला केर लेल आ मैथिलि केर लेल करबाक हाम्रो अवसर दी .
               गजल
मतलब के सब संगी मतलबी छै लोक
कियो मनाबै छै ख़ुशी कियो मनाबै छै शोक

स्वार्थक वशीभूत दुनिया की जाने ओ प्रेम
प्रेम पथ पर किएक कांट बोए छै लोक

सभक मोन में भरल छै घृणाक जहर
दोसर के सताबै में तृष्णा मेटाबै छै लोक

ललाट शोभित चानन गला पहिर माला
भीतर भीतर किएक गला कटै छै लोक

सधुवा मनुखक जीवन भगेल बेहाल
कदम कदम पर जाल बुनैत छै लोक

अप्पन ख़ुशी में ओतेक ख़ुशी कहाँ होए छै
जतेक आनक दुःख में ख़ुशी होए छै लोक

अप्पन दुःख में ओतेक दुखी कहाँ होए छै
जतेक आनक ख़ुशी में दुखी होए छै लोक

अप्पन चिंतन मनन कियो नहि करेय
आनक कुचिष्टा में जीवन बिताबै छै लोक

विचित्र श्रृष्टिक विचित्र पात्र छै सब लोक
"प्रभात" के किएक कुदृष्टि सं देखै छै लोक
.....................वर्ण:-१६ ................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

सोमवार, 27 फरवरी 2012

गीत@प्रभात राय भट्ट

गीत:-
सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना //२
सजनी सजनी ऐ हमर सजनी मुखड़ा //
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना //२


सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना
ह्रिदय में हमर अहिं बास करैतछि
हमर मोनक सभटा आस पुरबैछि
हमर नयनक अहिं तारा छि सजना
हमर जीवनक अहिं सहारा छि सजना //२

सजनी सजनी ऐ हमर सजनी
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना
कहू ने कहू हम सभटा जनैतछि
अहाँक प्रेम पाबी हम हर्षित रहैतछि
अहाँ हमरा मोन में हुलास बढ़बैतछि
अप्पन प्रेम नै टुटत इ बिस्वास हम दैतछि//२


सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना
जन्म जन्म के हम छि पियासल
अहिं सं जीवनक उत्कर्ष अछि बाँचल
अहींक नाम सं खनकैय हमर कंगना
हमर दिल में अहिं धरकै छि सजना//२


सजनी सजनी ऐ हमर सजनी
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना
जन्म जन्म तक हम रहब अहींक संग संग
अहींक प्रीत सं भरल अछि हमर मोनउपवन
अहाँक प्रीतक डोर सं बान्हल रहब रजनी
जीव नै सकब हम अहाँ बिनु सजनी //२


रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012


मिथिलाक  गाम घर :


हमारा लग रहब : १०


मिथिलाक गाम घर :   प्रणव भारी डेग उठबैत बीदा भेल ।  किम्ह्रो कियो नहीं छलैक , नहीं त लाजे आरो मरी गेल रहित ।  पूब मूहक दर्व्वाज्जा स हटी क हवेलिक पछूआर देने अपन पछबारी टोल दिश बीदा भेल ।  मुदा बारीक पछिला गाते पर कियो टोकाल्कैक -- किताब्बे बदला बदली म डांट सुनी गेलहु च च च .....




आन्हारो म माला क स्वर चिनीह लेल किक प्रणव ।  बारीक दर्ब्बजा केर चौखट पर डार पर दूनू हाथ रखने ठाढ़ छलैक ।  ओकरा डेग आगू बढबैत देखि  फेर टोकाल्कैक --- अहू घर स अजीब सम्बन्ध छोऊ तोहर । कानी देह छोला पर हम छाती मारी देने रहियौक आ आई कने कित्ताब्ब मंगला पर बाबूजी दर्ब्बज्जे स खेहारी देल्खून । 




प्रणव तहियो कोनो उत्तर नहीं देलक  । आगू बढ़ चाहलक त माला आर लग सहटी आय्लैक --- मुदा आई चाट नहीं मार्बौक हम ।  छू ले , छु क देख ने । हल्लो नहीं करबौक । ककरो नहीं कहबैक आ ने .....




प्रणव के लागले जेना  हाथ पकरी खीची लेतैक माला । कालू चौधरीक डाट सूनी जे डेग लोथ भ गेल छलैक , फेर जोर स मारलाकैक ।  परायल परायल अपन आँगन में आबी क ठाढ़ भेल ।


दौराल हक्मैत आबैत देखि मामी टोकाल्कैक -- की भेल बौऊ ?  एना परायल कियक आय्लाहू ?
प्रणव कोनो जवाब नहीं देलकैक । की जवाब डिटेक ? चुपे रहल ।






मुदा गामक लोक चुप्प नहीं रहलैक । सभ टोल में फूस फूस , फूस फूस । फेर घोली मची गेलिक । ३ दीन भ गेलिक । झाप टॉप केने छैक , तक्का हारी भ रहल छैक ।


रूदल चौधरी त दालान में सबहक सामने पोछी बैसल्थिन --- की दन सभ सुनैत छि भाई ? मालाक कोनो पता लागल ?


कल्लू चौधरी केरव मूह लाल भ गेलें तामस स । दियादी कातक लेल रूदल के येह अवसर भेटलें  । बेटी , पूतौहक इज्जती झाप्बाक चीज थिकैक , ओकरा एना बाजार में इश्तहार नहीं बाटल जैत छैक । पूछ्बेक छलैन त एकसार में पूछी लितैथ । कोनो आन त नहीं छित रूदल , अपने पित्त्रौत्त थिकाह । बेटी सन छानी माला .....


मुदा मलाक नाम मों पारित देरी तामस्क अस्थान  लाज आ ग्लानी ल लेल्कैं । एहन बेतिक बाप भेला स आई सबहक सोझा गर्दन झुकी गेलें । जनामिते मरी गेल रहितैन तहियो एहन क्लेश नहीं होइतैन ।  बताक अभाव में  कहियो मूह मलिन नहीं भेलैन ।  माला आ शिलाक सभ दीन बेटा जाका राखाल्थिन । सासोंरो नहीं जाई परिक ते दरिद्र आ कूलिं जमे ताक्लैन जे गामे म जथा आ बासक जमीं द बसा देतीं  । मुदा माला त सभटा केर उजारी , सभ पर करिखा पोत्ति निप्पत्ता भ गेल छलैन ।




सोमना अहिल्या स्थानक मेला में बद्रीक संग देखने छलैक । मुदा बदरिया दोसरे दीन मेला स घुरी आयल ।  कतबो डेरा - धमका क कियो पूचाल्कैक , किछो नहीं गछाल्कैक । नुम्बरी पाजी आ लम्पट अछि बदरिया । ओकर थाह भेताब मुस्किल ।


मुदा  पुलकित केर ताः लागी गेल छलैन --- सभ टा बुझी गेल्याई हाउ भाई । इ बदरिया भारी हीरो अछि । छौरी के फूसिला मेला ल गेलिक आ फेर ककरो हाथ बेचीं अपने घुरी आयल ।


बेसी लोक के ई सांगत बूजेलैक । मुदा बदरिया चुप बैसे लोक नहीं छल । ओहो अपना 

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

गजल-जगदानंद झा 'मनु'

कहलन्हि ओ मंदीर में, नहि पिबू एतए शराब
कोनठाम घर हुनक नहि, पिबू जतए शराब

इ नहि अछि खराप, बदनाम एकरा केने अछि
ओ की बुझत, भेटलै नहि जेकरा कतए शराब

मरलाबादो हम नहि पियासल जाएब स्वर्ग में
जाएब जतए सदिखन भेटए ओतए शराब

मारा-मारि भs रहल अछि जाति-पातिक नाम पर
मेल देखक हुए तs देखू भेटए जतए शराब

सब गोटे कए निमंत्रण सस्नेह मनु दैत अछि
आबि जाए-जाउ सबमिल पियब एतए शराब
*** जगदानन्द झा 'मनु'

गीत @प्रभात राय भट्ट

गीत
ऐ सजनी कने घुंघटा उठाऊ ने हमर प्राण प्रिया
पूर्णिमा सन अहांक सूरत देखिला फाटेय हिया //२
थर थर कपैय देह मोर धरकैय करेज पिया
यौ पिया कोना घुंघटा उठाऊ धक् धक् धरकैय जिया //२
...
पहिल प्रेमक पहिल मिलन में एना करैछी किया
ऐ सजनी कने घुंघटा उठाऊ ने हमर प्राण प्रिया
अहि हमर लाजक घुंघटा उठा दिय ने पिया
नजैर कोना हम मिलाऊ धक् धक् धरकैय जिया //२

एकटा बात पुछू पिया कहू साँच साँच कहब तं
हमरा विनु कोना रहब अहाँ जौं हम नै रहब तं
धनि जे बजलौं फेर नै बाजब कहू हाँ कहब तं
अहाँ विनु जिब नै सकब हम जौं अहाँ नै रहब तं //२

संग छुटतै नै अप्पन टुटतै नै पिरितिया
खा कS कहैछी सजना हम इ किरिया
छोड़ी देब दुनिया हम तोड़ी देब जग के रीत
छोड़ब नै अहांक संग सजनी तोड़ब नै प्रीत //२

छोड़ी देब दुनिया हम तोड़ी देब जग के रीत
छोड़ब नै अहांक संग सजना तोड़ब नै प्रीत
अहिं सं जगमग करेय हमर जीवन ज्योति
अहिं छि सजनी हमर मोनक हिरामोती //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

कविता


मनुक्ख (कविता)
जिनगीक कैनभस पर,
अपन कर्मक कूची सँ,
चित्र बनेबा मे अपस्याँत मनुक्ख,
भरिसक आइयो अपन हेबाक
अर्थ खोजि रहल अछि।

हजारो-लाखो बरख सँ,
बहैत इ जिनगीक धार,
कतेक बिडरो केँ छाती मे नुकेने,
भरिसक आइयो अपन सृजनक
अर्थ खोजि रहल अछि।

राजतन्त्र सँ प्रजातन्त्र धरि,
ऊँच-नीचक गहीर खाधि,
सुरसाक मुँह जकाँ बढले अछि,
भरिसक आइयो इ तन्त्र सभक
अर्थ खोजि रहल अछि।

कखनो करेजक बरियारी,
कखनो मोनक राज सहैत,
बढले जाइ छै मनुक्खक जिनगी,
भरिसक आइयो मोन आ करेजक
अर्थ खोजि रहल अछि।

गजल


कहैए राति सुनि लिअ सजन, आइ अहाँ तँ जेबाक जिद जूनि करू।
इ दुनियाक डर फन्दा बनल, इ बहाना बनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ बिन सून पडल भवन बलम, रूसल किया हमरा सँ हमर मदन,
अहाँ नै यौ मुरूत बनि कऽ रहू, हमरा हरेबाक जिद जूनि करू।

इ चानक पसरल इजोत नस-नस मे ढुकल, मोनक नेह छै जागल,
सिनेह सँ सींचल हमर नयन कहल, अहाँ कनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ प्रेम हमर जुग-जुग सँ बनल, हम खोलि कहब अहाँ सँ कहिया धरि,
अहाँ संकेत बूझू, सदिखन इ गप केँ कहेबाक जिद जूनि करू।

कहै छै मोन "ओम"क पाँति भरल प्रेम सँ, सुनि अहाँ चुप किया छी,
इ नोत कते हम पठैब, उनटा गंगा बहेबाक जिद जूनि करू।
(बहरे-हजज)

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२क उद्घाटन कपिल सिब्बल द्वारा/ २१म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी (अवसर बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२, सौजन्य अंतिका प्रकाशन) २५ फरबरी २०१२ सँ ०४ मार्च २०१२ (रिपोर्ट प्रियंका झा)


आइ बीसम नव दिल्ली  विश्व पुस्तक मेला २०१२क उद्घाटन कपिल सिब्बल, केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री, भारत सरकार द्वारा हंसध्वनि ओपेन एयर थियेटर, प्रगति मैदान, नव दिल्लीमे कएल गेल। एकर आयोजक रहैत अछि नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत। ई विश्व पुस्तक मेला दू सालमे एक बेर होइत अछि आ ४० साल पहिने १९७२ ई. मे एकर पहिल आयोजन भेल छल।  कपिल सिब्बल कहलन्हि जे ओ एकरा सभ साल कएल जएबाक प्रयास करताह। ओ कहलन्हि जे यूनाइटेड किंगडम आ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिकाक बाद भारत अंग्रेजीमे सभसँ बेसी पोथी छापैत अछि, तकर अतिरिक्त विभिन्न भाषाक लगभग एक लाख पोथी भारतमे सभ साल छपैत अछि। विश्व भरिक १३०० प्रदर्शकक २५०० स्टाल ऐ मेलामे अछि। कार्यक्रमक अध्यक्षता श्री मनोज दास केलन्हि आ श्रीमती मृदुला मुखर्जी सम्माननीय अतिथि रहथि। यूनाइटेड किंगडम आ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिकाक बाद भारत अंग्रेजीमे सभसँ बेसी पोथी छापैत अछि। तकर अतिरिक्त विभिन्न भाषाक लगभग एक लाख पोथी भारतमे सभ साल छपैत अछि।
भारतीय सिनेमाक सए बर्ख, दिल्लीक राजधानी रूपमे सए बर्ख आ रवीन्द्रनाथ टैगोरक १५०म जयन्ती ई तीनू संयोग ऐ बेर एक्के संग पड़ि रहल अछि।
अहाँ मैथिली कथा संग्रह/ उपन्यास (जगदीश प्रसाद मण्डल/ गजेन्द्र ठाकुर/ सुभाष चन्द्र यादव आदि), कविता/ गजल संग्रह (राजदेव मण्डल, विनीत उत्पल, ज्योति सुनीत चौधरी, कालीकान्त झा बूच, आशीष अनचिन्हार आदि), नाटक (विभा रानी/ नचिकेता/ बेचन ठाकुर/ गजेन्द्र ठाकुर/ जगदीश प्रसाद मण्डल आदि), कॉमिक्स (देवांशु वत्स), सचित्र बाल कथा संग्रह (प्रीति ठाकुर/ गजेन्द्र ठाकुर/ जगदीश प्रसाद मण्डल/ अनमोल झा), विदेह सदेह( १०० सँ ऊपर लेखक), अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोश (गजेन्द्र ठाकुर, पञ्जीकार विद्यानन्द झा, नागेन्द्र कुमार झा), मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध (गजेन्द्र ठाकुर, पञ्जीकार विद्यानन्द झा, नागेन्द्र कुमार झा), मैथिलीक पहिल ब्रेल पोथी (सहस्रबाढ़नि, उपन्यास, गजेन्द्र ठाकुर), आ मिथिला/ मैथिलीक इतिहास (राधाकृष्ण चौधरी)..आदि पोथी कीनि सकै छी।

http://www.antikaprakashan.com/ (अंतिका प्रकाशनक साइट- मैथिली प्रकाशक)
http://www.shruti-publication.com (श्रुति प्रकाशनक साइट- मैथिली प्रकाशक)
http://esamaad.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html (समदिया, पहिल मैथिली न्यूज पोर्टल २००४ ई.सँ)


२१म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी (अवसर बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२, सौजन्य अंतिका प्रकाशन) २५ फरबरी २०१२ सँ ०४ मार्च २०१२,प्रतिदिन भोर ११ बजेसँ ८ बजे राति धरि, स्थान- अंतिका प्रकाशन , स्टाल 80-81, हॉल 11, प्रगति मैदान,२०म विश्व पुस्तक मेला 2012 नव दिल्ली


वि‍देह द्वारा मैथि‍ली पोथी प्रदर्शनी-
1. ‘वि‍देह’क पहि‍ल मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 27/09/2009 स्‍थान- नई दि‍ल्‍ली स्‍थि‍त श्रीराम सेन्‍टरक प्रेक्षागृहमे। अवसर- ‘जल डमरू बाजे’ नाटक-मंचन।
2. ‘वि‍देह’क दोसर मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 03/04/2011 स्‍थान- रामानन्‍द युवा कलव, जनकपुरधाम, नेपाल। अवसर- ‘सगर राति‍ दीप जरय’क 69म कथा गोष्‍ठी।
3. ‘वि‍देह’क तेसर मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 12/06/2010 स्‍थान- कवि‍लपुर लहेरि‍यासराय, दरभंगा। अवसर- ‘सगर राति‍ दीप जरय’ 70म कथा गोष्‍ठी।
4. ‘वि‍देह’क 4म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 02/10/2010 स्‍थान- बेरमा (तमुि‍रया) जि‍ला- मधुबनी। अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 71म कथा गोष्‍ठी।
5. ‘वि‍देह’क 5म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2010 स्‍थान- बेरमा (तमुि‍रया) जि‍ला- मधुबनी। 4 दि‍वसीय प्रदर्शनी।
6. ‘वि‍देह’क 6म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2010 स्‍थान- घोघरडीहा (मधुबनी) दुर्गापूजाक मेला परि‍सर। अवसर- दुर्गापूजा-2010
7. ‘वि‍देह’क 7म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2010 स्‍थान- हटनी (मधुबनी) दुर्गापूजाक मेला परि‍सर।
8. ‘वि‍देह’क 8म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 04/12/2010 स्‍थान- व्‍यपार संघ भवन, सुपौल। अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 72म कथा गोष्‍ठी।
9. ‘वि‍देह’क 9म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 05/12/2010 स्‍थान- महि‍षी (सहरसा) अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 73म कथा गोष्‍ठी।
10. ‘वि‍देह’क 10म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 09/07/2011 स्‍थान- अशर्फीदास साहु समाज महि‍ला इंटर महावि‍द्यालय परि‍सर- नि‍र्मली (सुपौल), अवसर- सामानांतर साहि‍त्‍य अकादमी मैथि‍ली कवि‍ सम्‍मेलन-2011
11. ‘वि‍देह’क 11म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 02 नभम्‍बर 2010 स्‍थान- एस.एम. पब्‍ि‍लक स्‍कूल परि‍सर झि‍टकी-वनगामा (मधुबनी), अवसर- स्‍कूल वार्षिकोत्‍सव।
12. ‘वि‍देह’क 12म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- सरस्‍वतीपूजा- 2011 स्‍थान- चनौरागंज (मधुबनी) अवसर- सरस्‍वतीपूजा नाट्य उत्‍सव- 2011
13. ‘वि‍देह’क 13म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 10/09/2011 स्‍थान- हजारीबाग (झारखण्‍ड), अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 74म कथा गोष्‍ठी।
14. ‘वि‍देह’क 14म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2011 स्‍थान- बेरमा (मधुबनी) 4 दि‍वसीय प्रदर्शनी।
15. ‘वि‍देह’क 15म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 02/11/2010 स्‍थान- उच्‍च वि‍द्यालय परि‍सर- खरौआ जि‍ला- मधुबनी। अवसर- महाकवि ‍लालदासक 155म जयन्‍ती समारोह।

16.विदेहक १६म मैथिली पोथी प्रदर्शनी १०-११ दिसम्बर २०११ केँ ७५म सगर राति दीप जरएक अवसरपर ,१० दिसम्बर २०११ केँ साँझ ६ बजेसँ शुरू भेल, स्थान-कॉपरेटिव फेडेरेशन हॉल, निकट म्यूजियम, पटनामे शुरू भेल आ ११ दिसम्बर २०११क भोर ८ बजे धरि चलल।
17.१७म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी:- २२-२४ दिसम्बर २०११ केँ गुवाहाटीमे। २२-२३ दिसम्बर २०११ केँ प्राग्ज्योतिष आइ.टी.ए. सेन्टर, माछखोवा, गुवाहाटी- ७८१००९ (२२ दिसम्बर २०११ केँ ४ बजे अप्राह्णसँ ९ बजे राति धरि आ २३ दिसम्बर २०११ केँ ११ बजे पूर्वाह्णसँ ३ बजे अपराह्ण धरि आ २३ दिसम्बर २०११ केँ फेर ५ बजे अपराह्णसँ देर राति धरि) आ  २४ दिसम्बर २०११ केँ भोरसँ राति धरि स्थान- रूम संख्या २१७,  होटल ऋतुराज, माछखोवा, गुवाहाटीमे। अवसर मि‍थि‍ला सांस्‍कृति‍क समन्‍वय समि‍ति‍क आयोजि‍त "अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन" आ "आठम मिथिला रत्न सम्मान समारोह" ( २२ दि‍सम्‍बर २०११) आ "वि‍द्यापति स्‍मृति‍ पर्व समारोह" (२३ दि‍सम्‍बर २०११) । १७म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी ग्राहकक आग्रहपर एक दिन लेल (२४ दिसम्बर २०११ केँ )  बढ़ाओल गेल।

18..१८म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी-तिथि १४ जनवरी २०१२ स्‍थान- अशर्फीदास साहु समाज महि‍ला इंटर महावि‍द्यालय परि‍सर- नि‍र्मली (सुपौल), अवसर- समानांतर साहि‍त्‍य अकादमी मैथि‍ली साहित्य उत्सव- सह विदेह सम्मान समारोह (समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार)

19.१९म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी- 27 जनवरी 2012 (शुक्र दि‍न), अवसर स्‍थानीय कवि‍ परि‍षद (सलहेसबाबा परि‍सर- औरहा, प्रखण्‍ड- लौकही)क चारि‍म वार्षिकोत्‍सव- 2012

20.२०म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी- जे.एम.एस. कोचिंग सेन्टर , चनौरागंज,झंझारपुर, जिला-मधुबनी, अवसर विदेह नाट्य उत्सव २०१२ दू दिन दिनांक २८.०१.२०१२ आ २९.०१.२०१२


21. २१म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी (अवसर बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२ जखन भारतीय सिनेमाक सए बर्ख, दिल्लीक राजधानी रूपमे सए बर्ख आ रवीन्द्रनाथ टैगोरक १५०म जयन्ती संगे पड़ि रहल अछि, एकर आयोजक रहैत अछि नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत, सौजन्य अंतिका प्रकाशन) २५ फरबरी २०१२ सँ ०४ मार्च २०१२,प्रतिदिन भोर ११ बजेसँ ८ बजे राति धरि, स्थान- अंतिका प्रकाशन , स्टाल 80-81, हॉल 11, प्रगति मैदान,२०म नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2012 नव दिल्ली। ई विश्व पुस्तक मेला दू सालमे एक बेर होइत अछि आ ४० साल पहिने १९७२ ई. मे एकर पहिल आयोजन भेल छल।


मिथिलाक गाम घर :


हमारा लग रहब : ९ 


हमारा लग रहब : ओना प्रणव के देखि क हस्बाक कोनो कारण नहीं छलैक । मोटे कप्राक मुदा देह झाप्वा जोकर पाजामा - कुर्ता देह पर रहित छलैक हरदम । कपरा उघारी क बेत स देह फूल ब बाला नेंग्रा गुरूजी नहीं छलैक आब । क्लास तेअचेर मिर्ज़ा साहेब आ हेड मास्टर साहेब दुनु बार मानित छलैक ओकरा ।  क्लास में सदिखन फर्स्ट करैत छल, आ मोनिटर सेहो छल । सभ पर दाख चालिक ओकर ।  मुदा कम्मे ब्यास में शिल्ला क  जे धाख ओकर मों पर जम्लैक से अइयो छलैक । भरिसक से नहीं छलैक ।  ओकर अहंकारे ओकरा रोकैत  छलैक । दुनु बहिन स नहीं बाजबाक जे सपाट खेने छल से ओकरा बिसरल नहीं छलैक ।  गीदरक  नेरी खाय बाक सपाट खेने छल ओ ।




मुदा सप्पत तोरी देलकैक शिला एक दीन ।  मेट्रिक केर टेस्ट परीक्षा होमय बाला छलैक ।  स्कूल स घुरैत काल शिला टोकी देलकैक ओकरा -  कन्ने अप्पन अन्ग्रेज्जी केर कॉपी दिय त ?




प्रणव केर बिश्बास नहीं भेलैक जे ओकरा टोकने छलैक ।  मोड़ा लग पास आर कियो नहीं छलैक ।  तहियो पूछाल्कैक -- हमारा कहैत छि ? शिला हसल्कैक -- आर दोसर के ठाढ़ अछि अहिठाम ?




प्रणव केर ओ हस्सी आ हसित शिला नीक लाग्लैक । मुदा दुबारा सोझ देख बाक साहाश नहीं भेलैक । कॉपी द देलकैक ।




किछु दीनक बाद हिंदी के , फेर बिग्यानक कॉपी मान्ग्ल्कैक शिला ।  गप - सप होमय लगलैक कक्नो काल , दू, चारी दीन पर । मुदा प्रणव के सभ  दीन प्रतिक्छा रहे लगलैक जे फेर आई तोक्तैक । कॉपी सभ सजा क लिख लाग्लैक जे की फेर मान्ग्तैक ।




एक बेर एक सप्प्ताह धरी नहीं किछु मंगल्कैक शिला ।  प्रणव केर कोना दान लागे लगलैक ।  ओई दीन स्कूल स घर घुरैत काल वैह मांगी बैस्लक -- कने राप्पिद रेअडिंग वाला किताब देब , थे गुड एंड थे ग्रेट हमारा लग नहीं अछि ।




शीला किताब नहीं आन्ने छलैक  । ओकरा गामे पर बाजुल किक साझ में । प्रणव के नहीं जानी कियक खुसी भेलैक ।  गाम पर अपन कॉपी कित्ताब राखी साझ होइते दौराल कल्लू चौधरी केर घर दिश शिल्ला दर्ब्बजे पर ठाढ़ छलैक कित्ताब नेने ।  मोड़ा प्रनावक हाथ में कित्ताब देबाक लेल हाथ उथले छलैक की आँगन स बहराईट कल्लू चौधरी तोकल्थिन -- के अछि ? 




हम छि प्रणव , मुन्नार झांक भागीं । सक्पकाईट बाजल ओ आ शिला डरे सिकूरिक ठाढ़ भ गेल ।




एना अन्हार में कियक आयल छै , कोण काज छू ?  कालू चौधरी केर स्वर रूछ छलैन । प्रणव आरो सक्पकाईट बाजल -- कित्ताब्ब लेबे आयल रही , शिला बाजूने छली ।




चुप्प निर्लज्ज , बाजैत लाजो नहीं होइत छोऊ । आ तो की ठाढ़ छै अतए , भाग अंगना । कल्लू चौधरी गरज्लाह ।  शिला आँगन परा गेलिक । प्रणव काठ भेल ठाढ़ रहल ।  अपमान आ भय स मूह स्याह  भ गेलिक आ देग लोथ ।


एना गाछ जाका थाद्ग कियक छे ? भाग जल्दी ।  आ खबर दार  जे फेर दर्ब्बजा पर पयर देले , हाथ पयर तोरी देबौक । कल्लू चौधरी फेर गर

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

गीत:-
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२

देह देखार देख कS एकर
चढ़ल हमरा बोखार रौ
कोना उतरतै हमर बोखार
करहि कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२

छ इन्चक घघरी पर
पेन्है छै तिन इन्चक चोली
चढ़ल जोवन सँ मारै छै
छौरा सभक दिल पर गोली
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२

देख कS एकर चालढाल
सगरो मचल छै बबाल रौ
जर जुवानक बाते छोड़
बुढबो एकरा पाछू बेहाल रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२

अजब गजब छै रूप रंग
देखही चलै छै कोना उतंग रौ
बेलाईती बिलाई सन केस लगै छै
देसी बिलाई सन आइंख रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२

चौक चौराहा हाट बाजार
सभ करै छै एकरे इन्तजार रौ
सुन रे भजना सुन रे फेकना
कर ने हमरो लेल कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

गजल


हमर मुस्कीक तर झाँपल करेजक दर्द देखलक नहि इ जमाना।
सिनेहक चोट मारूक छल पीडा जकर बूझलक नहि इ जमाना।

हमर हालत पर कहाँ नोर खसबैक फुरसति ककरो रहल कखनो,
कहैत रहल अहाँ छी बेसम्हार, मुदा सम्हारलक नहि इ जमाना।

करैत रहल उघार प्रेमक इ दर्द भरल करेज हमरा सगरो,
हमर घावक तँ चुटकी लैत रहल, कखनहुँ झाँपलक नहि इ जमाना।

मरूभूमि दुनिया लागैत रहल, सिनेहक बिला गेल धार कतौ,
करेज तँ माँगलक दू ठोप टा प्रेमक, किछ सुनलक नहि इ जमाना।

कियो "ओम"क सिनेहक बूझतै कहियो सनेस पता कहाँ इ चलै,
करेजक हमर टुकडी छींटल, मुदा देखि जोडलक नहि इ जमाना।
(बहरे-हजज)
ओम प्रकाश, गजल

मिथिलाक गाम घर :


हमारा लग रहब : ८ 


मिथिल्लक गाम घर :  बिबाहक बाद लाज दाख केर एकदम ताख पर राखी देलकैक माला । बात घाट भेट भेला पर तेना मूस्किया उठैक , ततेक आक्रामक मुद्रा में झाप्तैक जे प्रणव के पहिने स बेशी डर भ जैक ?  गाम में अधिक काल बौआइते रहित छलैक माला आ ओकर छाह स छिह काटैत रहित छल प्रणव । नहीं जानी कतेक डर पीसी गेलिक ओकरा मों में ।




मुदा शिला स्कूल जाइते रह्ल्कैक । कहूना पास करैत मेट्रिक धरी पहूची गेलिक ,  बीच में माला एक बेर द्विरागमन में नाम लेल सासुर गेलिक आ नवे दिन में घुरी क जे आय्लैक से फेर सासुर जयबाक नाम नहीं लेलकैक । बहूत रास खिस्सा पसरी गेलिक ओकरा बारे म ।  प्रणव के दोस्त महिम , सभ टा गाम के छुरा सभ , छुरे नहीं जूआँ को - बूध्बो  सभ खिस्सा में रस लेब  लाग्लैक । खिस्सा नम्रित गेलिक ।




मुदा शिल्ला दोसरे रंगक बहरेलैक । प्रणव स 2 बर्षक छोट छलैक ओ ।  माला ओकरे बतारी रहैक । मुदा देह स दुब्बरी पातरी भ ओ के शिला अपन ब्यास स पिघ लागेक ।  एकदम गंभीर आ शांत ।  पिंद्दसयाम मुदा चमकैत रंग । पातर  लाल थोर , कनेक उथल सन छोट नाक ।  पिघ पिघ दब दब करैत आखी ।  हासिक टी एकदम छोट नेना  सन भ जैक आकृति मुदा , अधिक काल थोर स थोर सटल ।  सलवार फ्रोक्क  बदला में हाई स्कूल आबैत देरी साड़ी पहीर लागल रहैक , से आर  पैघ लागेक ।




प्रणव के ओही स बेसी नीक त वैह शिला लागैत छलैक  जे ओकरा पीठ पर बेत लागला स खिल खिला क हसित छलैक । ओही शिला स ओतेक दर नहीं होइत छलैक  ओकरा । मुदा अई शांत गूम शुम  शिल्ला स ओकरा ब़र दर होइत छलैक ।  क्लास में ओकरा दिश  तकबाक साहसे  नहीं होइत छलैक ।




ओना कखनो काल  धोका धाखी स यदि ओम्हर दृष्टी चल जैक त किक बेर लागेक जेना ओ ओकरे देखि रहल छलैक आ ओकर सटल ठोर पर   कने मुस्की छलैक । मुदा फेर नीक  स dekh laa  पर लागेक जेना ओकर bharam  छलैक । ओ त ohinaa गंभीर आ शांत  छलैक आ ठोर parr ठोर saataal  छलैक  

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

मैथिली मातृभाषा लेल विचार गोष्ठी -



pravin Narayan Choudhary
मैथिली मातृभाषा लेल विचार गोष्ठी - अवसर ‘अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ याने २१ फरबरी - २०१२

"युनेस्को द्वारा एहि दिवसके मनाबय पाछू सुन्दर माहात्म्य यैह जे बांग्लादेश के निर्माण मातृभाषा लेल खूनी आन्दोलन आ संघर्ष उपरान्त भेल - प्राकृतिक स्वरूप पर बनावटी बोझ केकरहु नहि पसिन्न पड़ैत छैक, जेना पूर्वी पाकिस्तानमें बंगला मातृभाषा ऊपर उर्दु के बोझ - अरबी के बोझ केवल इस्लाम धर्म के अनुसरणके क्रममें मान्य नहि भेल आ फलस्वरूप लोक संघर्ष कयलक आ १९७१ में युद्ध तक भेल आ तदोपरान्त बांग्लादेश के सृजन भेल।"

मैथिल संग सेहो किछु एहने दमन भऽ रहल छन्हि। क्रमशः चिन्ता बढय लागल छैक। समृद्ध इतिहास आ साहित्यके रहैत मैथिली भाषा हासिया पर जा रहल छैक। दोषी के - दोषी के - लोक चीख-पुकार आ हो-हल्ला मचा रहल छथि। केओ फल्लाँ जाइत चौपट केलक तऽ फल्लाँ एकरा पौतीमें मुनलक आदि कहैत एक-दोसर पर भाला-बरछी तानय लागल छथि; केओ राज्य-पक्षके जिम्मेदार मानैत छथि, केओ किछु तऽ केओ किछु। अफरातफरी मचल जा रहल अछि। मनुष्य अपन गलती जल्दी नहि देखैत छैक - कहबी छैक जे अपन टेटर नहि सुझैत छैक। आत्मालोचना केवल ऋषि-संत तक रहि गेलैक अछि। जनकल्याण कयनिहार लोक अक्सर आत्मालोचना करैत नवनिर्माण लेल गलतीके सुधार करैत आगू बढैत छथि। केवल गुँहाकिच्ची कयला सँ बात सम्हरैत कम छैक, बिगड़ैत अवश्य छैक। राजनीति आइ गन्दगीके पर्यायवाची केवल एहि लेल बनल छैक जे लोक दोसरके विश्वास जीतय लेल कम बल्कि तोड़य लेल आ मानमर्दन लेल मात्र प्रयोग करैत छैक। बोली-भाषणमें बड़ पैघ-पैघ बात करैत छैक, मुदा सभटा लेल दोसरेके दोषी मानैत छैक आ अपन दोष - अपन प्रतिबद्धता - अपन श्रेष्ठ प्रदर्शन आदि लेल मुँहपर माछी भिनैक उठैत छैक। ततबा अन्तर्विरोध आ दोषारोपण होइत छैक जे योगदान देनिहार के सेहो हृदयाघातकारी होइत छैक। अरे भाइ! दम छौ तऽ कऽ के देखा। दम छौ तऽ जोड़ि के देखा। खाली दोषारोपण? एहि तरहक वार्तालाप - आलाप-प्रलाप के त्याग करब बहुत जरुरी छैक। हम सीधा कहय चाहब जे कोनो दोष यदि विशेष जातिके छैक तऽ अपन योगदान कि सेहो बाजब जरुरी। यदि केकरो में कोनो कमजोरी देखलियैक तऽ स्वयं सम्हारय लेल कि कदम उठेलहुँ से जाहिर करब जरुरी। यदि जातीयता के बात करैत भाषा के पछरैत देखैत छी तऽ जातिय सौहार्द्र लेल आइ धैर कि कयलहुँ से जगजाहिर होयब बेसी जरुरी। दोष नहि छैक वा नहि हेतैक हम ताहिपर किनकहु नहि रोकि रहल छी चर्चा करय सँ, लेकिन दोष मात्र आंगूरपर गानब आ सकारात्मकता हेतु जे करनी कयलहुँ से नहि बतायब तखन अहाँ स्वयं दोषी छी। अहाँ अपन टेटर नहि देखैत खाली योगदान कयला उपरान्त नून-चीनी कय रहल छी। सावधान मैथिल! बहुत खंडी बनलहुँ। घरके तहस-नहस कयलहुँ। दोसरके योगदान के मूल्य बुझू। करनी शून्ना आ बाजब दून्ना - छोड़ू एहि प्रवृत्तिकेँ। धन्यवाद दियौक ओहि योगदानकर्ताकेँ जे अहाँक मातृभाषा के समुद्र सऽ बेसी गहिंर बनौलक। हर बातमें खाली छिद्रान्वेषी बनब एहि प्रवृत्तिके त्याग अहाँलेल एकदम जरुरी अछि। वरना अहाँ के तीक्ष्ण बौद्धिक क्षमता रहैत धोबीके कुकूर जेकाँ बिना घर ओ घाटके बीच मझधार अहाँ फँसल त्राहि-त्राहि करब आ ईश्वरके सेहो अहाँपर दया नहि औतैन। फेर सीताजी नहि अवतार लेती अहाँके धरासँ। स्मरण करू - जनकजी ओहिना नहि प्रण कयने छलाह जे हिनक विवाह एहेन पुरुष संग करायब जे ताहि शिवधनुष जेकरा सियाजी सहजरूपें बायाँ हाथ सँ उठाके पिता जनकलेल पूजा करै सऽ पहिने गाय-गोबर सऽ नीप देने छलीह। जगाउ अपन आत्मसम्मान के। सिखाउ अपन संतानके - मैथिली संग प्रेम करू - राजनीतिके शिकार जुनि बनू। ई जातीयताके बात कय के अहाँके मौलिक अधिकार हनन करय लेल केकरहु सहज अधिकार प्रदान नहि करू। भाषा आ भाषिका एक-दोसरक सम्पूरक होइछ। केओ बहुत सुसंस्कृत भाषण करैछ, केओ ततेक वैयाकरणीय नहि रहैछ। लेकिन सत्य तऽ यैह छैक ने जे कोनो भाषाके सम्पन्नता साहित्य सँ होइछ, साहित्य के दू प्रमुख स्तम्भ व्याकरण आ शब्दकोष होइत छैक। जे जतेक प्रखर से ततेक सम्पन्न! एहिमें जाति के कोनो बाधा कदापि नहि। बेशक जे अगड़ा छैक ओ अगड़ा स्वभावके कारण आगू भागैत छैक। एहि में ईर्ष्या नहि, बल्कि अनुकरण आ अपन कमजोरी संग संघर्ष करब एहि लेल प्रेरणा के संचरण करू। झगरलगौन काज कम करैछ आ झगरा लगा के अपन बन्दरबाँट करयमें लागैछ।

मैथिली भाषा के प्रवर्धन में व्यवसायीकरण के आवश्यकता देखि रहल छी। भारतमें संघ लोकसेवा आयोगमें मैथिली विषय के चुनाव करैत अमैथिल सहजरूपेण प्रशासक बनैत छथि। मैथिलीके पोषण एना भऽ रहल छैक। विभिन्न प्रकाशन सँ मैथिली लेखनके प्रकाशन भऽ रहल छैक, लेखकके मात्रामें वृद्धि एना भऽ रहल छैक। धिया-पुताकेँ भारी सऽ भारी शास्त्रोपदेश-पठन-पाठन अपन मातृभाषामें अत्यन्त सहज आ दीर्घकाल लेल हितकारी होइछ - एना मैथिली प्रति आकर्षण मैथिल में होयब स्वाभाविक छैक। मैथिलीभाषामें यदि मिडिया कार्यरत हेतैक - ५००-१००० लोककेँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त हेतैक, मैथिलीके पोषण आ मिडिया-विकास एना संभव हेतैक। अपन संस्कृति प्रति लोकमें जागरुकता आ संवरण हेतु प्रयास आ प्रदर्शन हेतैक, मैथिली एना आगू बढतैक। मैथिली फिल्म, मैथिली गीत, मैथिली पारंपरिक गायन-संगीत आदिके व्यवसायीकरणमें अपन हिस्साके योगदान देबैक तखन मैथिली के बढय सऽ केओ नहि रोकि सकैत छैक। आन संग देक्सीमें आन्दोलन करयलेल पाछू रहैय सऽ बहुत नीक छैक जे अपन मातृभाषा प्रति एक सटीक नीति बनबैत राज्य द्वारा उपेक्षा विरुद्ध संघर्ष करब - हिंसा व अहिंसा के तर्कबुद्धि सँ दूर केवल जायज लेल लड़बाक प्रवृत्ति आनब तखन मैथिलीके संवर्धन हेतैक, सम्मान भेटतैक। अतः मातृभाषा के सम्मान सभके लेल छैक, एहिमें केकरो ऊपर दोषारोपण करब आ अपन कर्म करयमें पाछू पड़ब साक्षात्‌ बेईमानी थिकैक, एहि बात केँ मनन करब।

राजविराजमें जल्दिये राष्ट्रीय सम्मेलन हेतैक आ एहिठामसँ मैथिली के समुचित सम्मान लेल आ आपसी एकताक लेल बिगुल बजतैक। एकर अपूर्व सफलता लेल शुभकामना देल जाउ|

गजल @प्रभात राय भट्ट

गजल
एसगर कान्ह पर जुआ उठौने,कतेक दिन हम बहु
दर्द सं भरल कथा जीवनके,ककरा सं कोना हम कहू

अपने सुख आन्हर जग,के सुनत हमर मोनक बात
कहला विनु रहलो नै जाइय,कोना चुपी साधी हम रहू

अप्पन बनल सेहो कसाई,जगमे भाई बाप नहीं माए
सभ कें चाही वस् हमर कमाई,दुःख ककरा हम कहू

देह सुईख कS भेल पलाश,भगेल हह्रैत मोन निरास
बुझल नै ककरो स्वार्थक पिआस,कतेक दुःख हम सहु

मोन होइए पञ्चतत्व देह त्यागी,हमहू भS जाए विदेह
विदेहक मंथन सेहो होएत,कोना चुपी साधी हम रहू

नैन कियो करेज,कियो अधिकार जमाएत किडनी पर
होएत किडनीक मोलजोल, सेहो दुःख ककरा हम कहू

बेच देत हमर अंग अंग, रहत सभ मस्ती में मतंग
बजत मृदंग जरत शव चितंग सेहो कोना हम कहू
.........................वर्ण:-२२.............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

रूबाइ


कोना कऽ रंगलक करेज केँ इ रंगरेज, रंग छूटै नै।
नैन पियासल छोडि गेल, मुदा आस मिलनक टूटै नै।
हमरा छोडि तडपैत पिया अपने जा बसला मोरंग,
बूझथि विरहक नै मोल, भाग्य इ ककरो एना फूटै नै।

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

गीत


शिवरात्रिक अवसर पर एकटा प्रस्तुति-

गौरी रहि-रहि देखथि बाट, कखन एता भोलेनाथ।

आंगन मे मैना कानि रहल छथि,
मुनि नारद केँ कोसि रहल छथि।
ताकि अनलाह केहन बर बौराह,
गौराक जिनगी भेल आब तबाह।
मैना पीटै छथि अपन माथ, कखन एता....................

भूत-बेतालक लागल अछि मेला,
प्रेत पिशाचक अछि ठेलम ठेला।
पूडी पकवान कियो नै तकै छै,
सब भाँग धथूरक खोज करै छै।
कियो नंगटे, कियो ओढने टाट, कखन एता...................

कोना कऽ गौरी अपन सासुर बसतीह,
विषधर साँप सँ कोना कऽ बचतीह।
पिताक घरक छलीह जे बनल रानी,
कोना लगेतीह आब ओ बडदक सानी।
आब तऽ किछ नै रहलै हाथ, कखन एता.....................

गौरीक मोनक आस आइ पूरा हएत,
बर बनि अयलाह शम्भू त्रिभुवन नाथ।
जगज्जननी माँ गौरी शंकर छथि स्वामी,
जग उद्धारक शिव छथि अन्तर्यामी।
फेरियो हमरो माथ पर हाथ, कखन एता.......................

"ओम" बुझाबै, सुनू हे मैना महारानी,
इ छथि जगतक स्वामी औढरदानी।
भोला नाथक छथि नाथ कहाबथि,
सबहक ओ बिगडल काज बनाबथि।
शिव छथि एहि सृष्टि केर नाथ, कखन एता...................

गजल


कतौ बैसार मे जँ अहाँक बात चलल।
तँ हमर करेज मे ठंढा बसात चलल।

विरह देख हमर झरल पात सब गाछ सँ,
सनेस प्रेमक लऽ गाछक इ पात चलल।

मदन-मुस्की सँ भरल अहाँक अछि चितवन,
करेजक दुखक भारी बोझ कात चलल।

बुझाबी मोन केँ कतबो, इ नै मानै,
अहीं लेल सब आइ धरि शह-मात चलल।

छल घर हमर इजोत सँ भरल जे सदिखन,
जखन गेलौं अहाँ, "ओम"क परात चलल।
(बहरे हजज)

गजल


किछ हमर मोन आइ बस कहऽ चाहै ए।
अहींक बनि कऽ सदिखन तँ इ रहऽ चाहै ए।

इ लाली ठोरक तँ अछि जानलेवा यै,
अछि इ धार रसगर, संग बहऽ चाहै ए।

अहाँ काजर लगा कऽ अन्हार केने छी,
बरखत सिनेह घन कखन दहऽ चाहै ए।

अहाँ फेंकू नहि इ मारूक सन मुस्की,
बिना मोल हमर करेज ढहऽ चाहै ए।

बिन अहाँ "ओम"क सुखो छै दुख बरोबरि,
सब दुख अहाँक इ करेज सहऽ चाहै ए।
(बहरे-हजज)

गीत -जगदानंद झा 'मनु'

भोलेबाबा हौ
खोलबअ केखन अपन द्वार ) -२

हम दुखिया जन्मे कए दुखल
एलहुँ तोहरे द्वार
भोलेबाबा हो - - - - - अपन द्वार

तन दुखिया अछि मन अछि दुखिया
दुखिए जन्म हमार
सुनि महिमां भोले एलहुँ तोरे द्वारे
करबअ केखन हमर उद्धार
भोलेबाबा हो - - - - - अपन द्वार

मुनलह तु अपन नयना
मुनलह हमर कपार
एलहुँ भटकैत,भटकैत तोरे द्वारे
मुनलह किएक अपन केबार

भोलेबाबा हो - - - - - अपन द्वार ) -२

***जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चर्चाके लाभ दूरगामी असर छोड़ैछ!


Pravin Narayan Choudhary

चर्चाके लाभ दूरगामी असर छोड़ैछ!

हरेक १० गोटा के बात पढला-सुनला सऽ ई सुनय लेल भेटैत छैक जे दहेज के विरोध तऽ कइयेको वर्ष सऽ भऽ रहल छैक, कतेको सुपर हिट चलचित्र बनलैक, कतेको नाटक बनलैक, कतेको कथा-उपन्यास लिखेलैक, कतेको समाज-परिवारमें संकल्प लियेलैक... मुदा फेर जखन बियाहके बेर अबैत छैक तऽ सभटा नियम-आदर्श-संकल्प ताखपर राखि के लोभ आ लालचमें लोक फंसैत छथि आ दहेजरूपी दानव अपन अट्टहास एहि करबटे वा ओहि करबटे लैते रहैत अछि। लोक निर्लज्ज बनि जाइत छथि। आदि-आदि।

सीधा देखब तऽ अवश्य उपरोक्त बात सत्य प्रतीत होयत। दहेज के व्यवस्था अप्राकृतिक नहि छैक। प्राकृतिक अधिकार के संवरण थिकैक आ ताहि घड़ी दहेज के प्रतिकार नहि बल्कि सत्कार मात्र होइत छैक। लेकिन दहेज के विरोध तखन उठैत छैक जखन माँगरूपी दहेज लादल जाइत छैक। आ माँग के न्याय कि?

बेटावाला के ई दावी जे हमर बेटा बड़ होशियार,
बहुत पैघ हाकिम बहुत पैघ ओहदेदार,
एकर हिस्सामें जमीन के रसदार,
गाममें इज्जत के मारामार,
कर-कुटुम्ब के सेहो भरमार,
तखन कोना ने दहेजक व्यवहार?

एतेक बात सोचैत समय बेटावालाके बिसरा जाइत छैन जे बेटीवाला के संगमें सेहो छैक लाचारी आ बेटीके सेहो अस्तित्व छैक। हुनकहु में कला-कौशल-बुद्धिमानी-होशियारी आदि छैक। हुनकहु खानदान आ विवेकशीलता आबयवाला समय में बेटावाला के खानदान-कुल-शील के निर्वाह करयमें सहायक बनतैक। लेकिन नहि... एतेक सोचब सभके वश के बात नहि छैक। बस मोट में अपन समस्यापर नजैर रहैत छैक आ अहाँ मरैत छी तऽ मरू।

तखन कि चर्चा-परिचर्चा सऽ कोनो सुधार नहि भेलैक? एतेक जागृतिमूलक प्रयास सऽ‍ कतहु जागृति नहि एलैक??? एलैक आ खूब एलैक। आइ गाम-गाम बेटी सभ पढाई के प्रथम अधिकार बुझैत छैक। अभिभावक सेहो लाजे पाछू बेटीके पढाबय लेल आतुर रहैत छथि। दहेज के बात दोसर श्रेणीमें चलि गेलैक अछि। हलाँकि इ बात शायद ५०% में मात्र अयलैक अछि, बाकी ५०% आइयो बेटीके अधिकारके दमन करैत दहेज के चिन्तामें डूबल रहैत छथि। ई नहि सोचैत छथि जे जौँ बेटी पैढ-लिख लेत तऽ संसार ओकर अनुसारे चलतैक। ओ केकरहु सऽ पाछाँ नहि रहत। अपन रोजगार करैत एहेन संसार बनाओत जे मिथिलाके दंभी दृश्य नहि बल्कि असल मजबूत नींब आ ताहिपर बनल सुन्दर महल के प्रदर्शन करत। आइ मिथिला यदि विपन्न अछि तऽ बस एहि लेल जे एतुका बेटीपर अत्याचार कैल गेल, शिक्षा सऽ वंचित राखल गेल, गार्गी, मैत्रेयी, भारती आदि के संख्या में भारी कमी आयल... बस केवल एक चिन्ता जे विवाह कोना हेतैक... एतबी में डूबल अभिभावक सदिखन अपना के जुवा खेलैत वर तकैयामें मस्त रखलैथ आ बेटीके विवाह याने गंगा-स्नान - आफियत! एहि मानसिकता के संग आगू बढैत रहलैथ जे मिथिलाके घोर विपन्न बनौलक। लेकिन आब परिवर्तन के वयार चैल चुकल छैक। आब तऽ इहो सुनयमें आ देखयमें अबैत अछि जे घरवाला घरवाली के स्थान लय रहल छथि। भले धुआँवाला चुल्हा नहि फूकय पड़ैन, लेकिन गैस चुल्हापर लाइटर खटखटा रहल छथि आ छोलनी-करछुल भाँजि रहल छथि - मेमसाहेब लेल चाय सऽ लऽ के खाना आ धियापुता के हग्गीज तक चेन्ज कय रहल छथि। बेटी केकरहु सऽ कम नहि रहल आब। बेटाके आवारागर्दी के सेहो बेटी नकैर रहल छथि। ई सभ चर्चा-परिचर्चा आ जागृतिके पसारयवाला अभियानके असर थिकैक। एहने असर लेल दहेज मुक्त मिथिला अग्रसर छैक। आउ एहि मुहिममें अहुँ सभ अपन योगदान दियौक। अपन-अपन स्तर सऽ लोक के जागृतिमें असरदार बनू।

चल रइ बौआ गाम पर

चल रइ बौआ गाम पर 


चढलें किये लताम पर 
कहबय चल कक्का के जा क 
बैसल छथिन्ह दालान पर 
चल ....................................
उम्हर एमहर कत तकई छें
लताम छलय ये थुर्री
खूब खेलो घुरमौरी
कानक निचा थापर लगतऊ
नै त चलय ने ठाम पर
चल .........................
केहन बेदर्दी भेलें रउ छौंरा
पतों के तू झट्लें
अखनो धरी नै हटलें
देखही देखही भैय्या एल्खिन
मार्थुन छौंकी टांग पर
चल ...........................
लेखक

आनंद झा

एही रचना के कोनो ता भाग के उपयोग हमरा स बिना पूछने नै करी

एकर सब टा राईट हमरा लग अछि अपन विचार जरुर दी यदि कोनो ग

मिथिलाक गाम घर : 


हमारा लग रहब : ७


मिथिलाक गाम घर :   प्रणव दीन भरी दूकन्हा पर सूतल रही गेल ।   रातियो क आँगन में पतिया पर परल - परल मालाक चाट आ ओकर बात ओकरा आसांत कयने रहलैक ।  नेंग्रा गुरुजी कतेको बेर बेत्त स देह फूला देने छलैक , लल्बित्थूआ स सौसे देह लहरा देने छलैक , मुदा मालाक चाट आ बातक लहरी ओही स बढ़ी क छलैक ।  कियक मारलक एना हमरा ?  मामिक देह स चिक्कन देह छैक ओकर ?  की बेशी सोंनर अछि मामी स ? आ हमर हाथ कोनो कारी खोर्नाथ अछिं जे दाग लागी जेतैक ?  बरका घरक बेटी अछि त अपना घर  ।   कोनो हम खुसामद करे गेल  छलियैक ? अपने मोछक झक्का आ तेतारिक चटनी लेल जान देत ,  हाथ - पैर जोरत आ काम निकला पर एहन एट्ठी  ?  आब हमहू मजा चखा दबाएँ दूनू बहिन केर । लाख मानों करतीह , नहीं दबाएँ तोरी के , नहीं चाद्धबानी गाछ पर । बज्बो नहीं करबैक दूनू स । दूनू एथ्लाही अछि । जेहने पढबाक में भूस्कोल , तेहने लूरी में । गोबरक चोट अछि ओ दूनू । हमरा कथीक खुसामद ? देखा दबानी आब ?  नेंग्रा गुरूजी क बाले खिल्खिलैत्त छित -- खिल्खिलाईट रहौथ । पर्बाही केकरा छैक ? जे दूनू स बाजे से गीदरक नेरी खाय ।








सट्टे नहीं बज्ल्कैक दूनू बहिन स ५ वर्ष ।   अप्पर प्रिम्मारी हाई स्कूल में आबी गेल , १० मा पास क मत्रिच्क  क तय्यार्री म लागी गेल , मुदा अपन सपाट मों रहलैक प्रणव के ।   माला त तीने वर्षक बाद स्कूल छोरी देलकैक ।  ९ वे में छलैक की बिबाह भ गेलिक । बार एकदम बूधाठ छलैक --४० या ४५ बरखक , माथक आधा केश पाकल । कारी रंग आ एक टा दात उंच  ।  कोनो बरका जाती बाला  छलैक --महादेब झा पाजी ---बाद में ओ बूझाल्कैक ।   जाती लेल ओई दरिद्र आ कुरूप वर के उठा अन्ने छलथिन ।  कतबो कियो मना कयल्कन , नाही मनाल्थिन -- पूरूखाक कतहू रूप देखल गेलिक अछि ।  आ सम्पति हम द देबैक , १००-५० बिघाक कोण गन्ना छैक ?  मुदा कहां बार के आन्लाहू अछि से ने देखू ।   महादेव झा पाज्जी -------




मुदा प्रणव के ओही बार के देखि हसी लागी गेलिक ।  जोर स हसाल ।  ईक्छा भेलैक जे की ओत्बाही जोर स हसैक जतेक जोर स ओकरा देह पर बेत लागला पर माला हसित छलैक ।  मुदा ओकर हसी बीला गेलिक ।  मों पर्लैक जे बेत लागल देह कोना ओही खिल खिल हस्सी स लहरी उठैत छलैक ।  भेलैक जे की आई माला ओहिन छात्पत्ता रहल हेतैक । एहन बार केर देखि ओकर  मोंन आ देह  अहिना छात्पत्ता रहल हेतैक ।  ओकरा मों भेलैक जे आई अपन कसम तोरी दियअ आ माला स पूछैक --- तोरो दर्द होइत छौक ?


मुदा माला हवेलिक भित्तर माला कनिया बनल बैसल छलैक । दर्ब्बज्जा पर बर्यातिक संग दत्त उंच बूधाठ बार बैसल छलैक ।   आ बेहाल आप्स्यात कालू चौधरी छलाह ।   ओकर साहश नहीं भेलैक जे भित्तर जा क कनि माला क देखैक ।  कतेक दीन धरी तक उदास रही गेल परनव ।




मोड़ा बिबाहक किछु दीनका बाद माला केर देखाल्कैक त अवाक रही गेल । बिबाहक बाद स्कूल गेनाई छोरी देने छलैक माला ।   ओई दिन मंदिर लग देखाल्कैक प्रणव त अपना पर तामस भेलैक  । अहि माला लेल उदाश छल ओ ।  ओ त जेना खुशी स आर गूद्गरी भ गेल छलैक ।  रांगल थोर आ मूह , कान आ सौसे देह गहना । जरीदार साड़ी में खुसी स चमकैत आकृति । आखी में बैह दूस्त्ता भरल हस्सी आ ओई हसी म मिल्ली गेल एक टा आमंत्रण । प्रणव के अपन भाबूकता क्रोधक संग संग लाजो भेलैक ।











शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

हिला दही सौंसे दुनियां के, उखरल खुट्टा गैर क


बरका बरका बात करइ सब  ,छोटका के के पुछतयी
सब परेलई छोरी छारी क ,मिथिला ले के सोचतयी
सुन  रऊ बुआ सुन गे बुच्ची ,करही किछ विचैर क 
हिला दही सौंसे दुनियां के, उखरल  खुट्टा गैर क 
हिला दही सौंसे दुनियां के..................................
अपने पेट भरई के खातिर , नगरी नगरी भटकई छें   
मात्री भूमि के काज नै एलें, तहि दुआरे तरसय छें
अप्पन मिथिला राज्य बना ले, मिलतौ छप्पर फाड़ी क 
हिला दही सौंसे .....................................................
अपने भाय  के टांग जं  घिचबें, कोना क आगा बढ्बें रऊ
अनका खातिर खैधि खुनई छें, ओही खैधि में खसबें रऊ
कदम बढा तों हाथ मिला क चल ने फेर सम्हारी क 
हिला दही सौंसे ..................................................
मिथला में जं जनम लेलौं आ , काज एकर जं  नै एलौं 
जीवन सुख  पिपासा में, नै जानि कत हम फसी गेलौं 
देख इ दुनियां कोना बैसल छौ मिथिला के उजारी क 
हिला दही सौंसे ....................................................
जनक भूमि  सीता के धरती , कनई छौ कोना तरपी तरपी  
तू बैसल छे रइ बौरह्बा दोसर लेलकौ संस्कार  हरपी 
जाग युवा आ जागय बहिना , सोच नै तों उचारी क 
हिला दही सौसे .................................................
एम्हर उम्हर नै तों तकई  बस मिथिला के बात करइ
अप्पन भाषा मैथिलि भाषा जत जायी छें ओतय बजय
एक दिन "आनंद" के पेंबे मिथिला में तो जाय क 
हिला दही सौंसे ..........................आनंद ..................

   
इ रचना  आनंद झा द्वारा लिखल गेल अछि यदि अपने एकर कोनो ता अंश या पूरा कविता के उपयोग कराय चाही त बिना हरा स पूछने नै करी :

मिथिलाक गाम घर :


हमारा लग रहब : ६


मिथिलाक गाम घर :मीना के पहिने किछु नहीं बूझल छलैक । जहिया पहिल दीन कनैत घर आयालैक प्रणव , तहिये बूझाल्कैक ओ । बिशन्पूर बाली काकी आ भोज पारौल बाली दीयादनी कहलकैक ओकरा जे कहां कसाई चैक नेंग्रा गुरूजी ।  एक बेर एक टा छौरा केर मूह में कंठ तक छारी घुसिया  देने रहैक आ एक बेर गलफर में अंगूर द चिरी देने रहैक ।मीना सूनी क डरे बेहाल भ गेल । प्रणव के स्कूल पठूनई बन्न क देलकैक ।  मुदा मुनर झा बिगरी गेल्थिन -- एना त छौरा अबन्द्द भ जायत । चारी आखर पढ़ दियौ , नहीं त हमारे जका महीश चराबिते रही जायत ईहो ।




बात मीणा केर लागी गेलिक । महीश चारा घरे - घर दूध बेचैत छलखिन मुनर झा से ओकरा पसीन्न नहीं छलैक । मुदा ओ अपने महिष किन्नी देने रहथिन । बाप कालू चौधरी के भनसिया चलतीं । भरी गाम भोज भात में मोनक मों अन्न रानिह देत छलखिन । अइयो काल्हि मुनर झा पकरा जैत छलाह । तीमन - तरकारी क लूरी तेहन्न नहीं छलैन , मुदा भात त पासा लैत छलाह , कठमस्त देह छलैन ।  मुदा से सभ मीना केर नीक नहीं लागैत छलैक ।  प्रणव स्कूल जाय्तैक , आब्बसे पध्तैक , एहन सोन सन छौरा भनसिया नहीं बनतैक , महीश नहीं चरौतैक .... किन्न्हू नहीं ...


आ प्रणव स्कूल जायत रहल , मामिक स्नेहक छाहरी तर बाधित रहल । कियो पूछैक ---- बियाह करबे प्रणब ?

झट कहैक -- हँ

--- ककरा स ।

मामी स । प्रणव सभ बेर एक्के जवाब देत छलैक । सूनी क मीना हँसा लागैत छलैक आ फेर हसित - हसित गंभीर भ दूनो हाथे ओकर मूह ध कहैत छलैक --- अब्बसे करब आहा संग बियाह । एहन राजकुमार सन बार हमारा कता भेटत ? आ फेर हसी क कहैत छलैक ? कानी जल्दी - जल्दी पिघ होऊ नहीं त बुध भ जायब हम । तखन बुधिया कनिया स वियाह कर परत ।


आ सत्ते जल्दी - जल्दी बढ़ी गेल प्रणव । १० बरखक होयते - होयते , पच्मा क्लास में पहूचैत - पहूचैत सचेस्स्ट भ गेल ओ ।   तखन मामी पूछैक --- हमारा संग बियाह करब ? आब त मोछो पमह देने जाइए ।
धत्त प्रणव एकदम लज्जा क कहैक --- मामी केर संगे कत्तौ बियाह भेलई ए।

देखू आब अपन बात बदली रहल छि आहा ? बुढिया कनिया मुदा पींड नहीं छोरत ।

आ प्रणव हँसा लागे आ हँसैत देखे जे अई पाच बरख में मामिक रंग जेना आर चमकी गेल होई , देह आर गमकी गेल होई । ओई आन्गंबाली नानी हरदम कहैक प्रणव के ---तोहर माई एहने छ्लौक , अनमन तोरे मामी सन , एहने सुनर आ एहने बूझ्नूक । प्रणव मामिक चेहरा में माई केर ताकैत बाजय ---माई बताक कतहू बियाह भेलाही ए ? आहा मामी थोरे छि हमर ---आहा त माय छि ।




आ मीना करेज स सत्तालैक  ओकरा । ओही  अस्पर्शक नरमी आ ओही देहक  सुगंध में डूबल प्रणव ठाढ़ रही जाय ।  जोर स धर्धरात मामिक छातिक स्वर ओकर कान में बजैक मुदा कोनो अर्थ नहीं लागेक ।




मुनर झा देखि लेलथिन त दाट्बो करतीं कतेक बेर --- कियैक एना दूरि क रहल छिये एकरा ?  कोनो बचा अछि आब  जे एना कोरा में लेने रहित छियैक ।




मिन्ना हस्सी क टारि दैक ।



मुदा माला त अतःतः  क देलकैक ओही दीन । कने हाथ छुआ गेलिक त सम्धानिक चाट लगा देलकैक --- सुख ने देखू । हमर देह छूता । मखानक पात स मूह पोछी आ पहिने ।



गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

लेख : मिथिलामे जाति-पाति

ई मात्र विडंबना कहु वा कोनो अभिशाप, जे राजनैतिक आजादी भेटलाक ६५ वर्ष बादो हम मिथिलाबासी अपन सोचकेँ जाति-पातिसँ ऊपर नै उठा पाबि रहल छी |
मात्र राजनैतिक आजादी ऐ कारणे जे राजनैतिक रूपसँ हम स्वतन्त्र छी परञ्च आर्थिक रूप सँ हम एखनो पराधीन छी | आर्थिक पराधीनता | अर्थात हम अपन इच्छानुसार खर्च नहि कय सकै छी, मने धनक अभाब | हमर मोन होइए अपन बच्चा कए कॉन्वेंट स्कूल मे पढाबी मुदा नहि पढ़ा सकै छी, इ थिक आर्थिक पराधीनता | हमर मोन होइए नीक मकान मे रही मुदा नहि किन सकै छी, इ थिक आर्थिक पराधीनता | हमर मोन होइए हमरो लग मोटर साईकिल, कार हुए, हमरो कनियाँ-बच्चा नीक कपड़ा पहिरथि मुदा नहि, इ थिक आर्थिक पराधीनता |
स्वाधीनता कए ६५ वर्ष बादो आर्थिक पराधीनता किएक ?
की हमरा लग बिद्या कम अछि ?
की हम कोनो राजनेता नहि बनेलहुँ ?
की हम प्राकृतिक रूपेण उपेक्षित छी ?
उपरोक्त सब बात गलती अछि | विद्या मे हम केकरो सँ कम नहि छी | राजनीती कए खेती अपने खेत मे होइए | प्राकृतिक कृपा अपन धरती पर पूर्ण रूपेण अछि |
तखन किएक ? किएक हम स्वाधीनता कए ६५ वर्ष बादो, आर्थिक पराधीनताक जीबन जिबैक लेल बेबस छी |
एखनो बच्चा कए चोकलेट नहि आनि हम कहैत छीयै, दाँत खराप भय जेतौ | कमी चोकलेट मे नहि, कमी हमर जेबी मे अछि |
आ इ आर्थिक पराधीनताक एक मात्र कारन अछि, हम मिथिला बासिक सोचब तरीका |आजुक युग मे जहिखन मनुख चान-तारा पर अपन पैर राखि चुकल अछि, हम मिथिलाबासी एखन तक जाति-पाति कए सोचि सँ ऊपर उठै हेतु तैयार नहि छी |
बाभन-सोलकन्ह कए नाम पर बिबाद | अगरा-पिछरा कए नाम पर बिबाद | ऊँच-नीच कए नाम पर बिबाद |
कोनो काज कए लय क आगु बढ़ू, जेकरा नापसन्द भेल, जाति-पाति कए नाम पर बबाल खड़ा कय देत | आ इ कोनो अशिक्षित नहि बहुत पढ़ल-लिखल वर्गों सँ नहि दूर भय रहल अछि | शिक्षित माननीयव्यक्ति सब चाहे कोनो जातिक हुअए, अपन-अपन जाति कए झंडा लय कऽ आगु आबि जाइत छथि |
यदि हम स्वयं व अपन मिथिला समाज कए विकसित व विकासशील देखए चाहै छी त जाति-पाति कए झंझट सँ निकलि क एक जुट भय आगु बढ़य परत |
एक संगे चलै मे मतभेद स्वभाबिक छै आ ओकरा दुर केनाई निदान्त आबश्यक छै |मुदा ओई मतभेद मे जाति कए बिच मे नहि आनि क व्यक्तिगत आलोचना, समालोचनाकरबाचाहि |
की कोनो गोट सफल व्यक्ति कए ओकर जाति कए नाम सँ जानल जाई छै ? नै, त सफलता कए सीढ़ी पर चलै लेल जाति-पातिक सहारा किएक |
इ जाति-पातिक रस्ता किछु मुठी भरि राजनेताक चालि छैन | हुनकर बात मानि त हम सब अपन विकास छोरि जाति-पाति मे लरैत रहि आ ओ दुस्त राज करैत हमरा सब कए सोधैत रहत |
लेख -जगदानंद झा 'मनु'
('विदेह' १०० म अंक १५ फरबरी २०१२, में प्रकाशित)

मिथलाक गाम घर : 


गामक छठ पूजा : ४ 


मिथलाक गाम घर : सांझ खन जखन हम बाबा पोखरी पर पहून्च्लाऊ टी ओही थाम बहुतो चौरा - मारे सब बैसल छल ।  ओही सब गोते म हमर मसिऔत जेकर नाम मुकेश अछि सेहो बैसल छल । हमारा देखैत देरी ओ बाजल , भेजी मनू कहैत छल जे की अहू थाम प्रोग्ग्रामे होयत ? ई बात साचो थिक वा झूठ ? अहि गपक कोनो उतर नहीं द हम ओकरा स एकटा सवाल पोछ्लियैक । अगर अहि ठाम प्रोग्ग्राम  होयत त आहा हमारा लोकानी दिश रहब वा जगरनाथ - प्रवीन दिश ? अहि प्रश्न के सूनी मुकेश कहलक जे की देखियो भाईजी , हम ओही ठाम चंदा देबाक हेतु हामी द चुकल छि । मुदा , आहा सब जद्दी अहू ठाम प्रोग्र्रमे करब त हम अहू सब के चन्दा अवस्य देब ई हमर बचन थिक । किछो देरक उपरांत हम कहलियैक , देखू मुकेश चन्दा त हम लेबे करब आहा स मुदा हमारा लोकानी केर चन्दा स बेशी अपनेक सहयोग चाहि । मुकेश कहलक जे की भाईजी हम कोनो तरहक सहोयोग देबाक लेल सदिखन प्रस्तुत छि । ओही ठाम हम ५ गोटे निर्णय कयलोऊ जे की सब गोटे भोर में अहि बाबा पोखरी केर घाट पर ईकट्ठा होयब आ आगू की कोना होयत तकर निर्णय सर्व सम्मत स लेब ।


नहीं जानी कोना नहीं कोना अहि गपक भाझ परवीन आ जगरनाथ के लागी गेलै । ओ सब गोटे आपस में मंथन कर लागल जे की आगू की होयत । हुनका लोकिन के अहि गपक डर छलैन जे की आब हुनका लोकनिक चन्दा पूरत वा नहीं । प्रवीन केर एक टा चाचा छलखिन जिन कर नाम मोहन छलैन ओ हुनका दुनु गोटे केर ई कही निर्भीक केलकैन जे की अहि में चिंता केर कोण गप अछि । प्रविनक कथन छल जे की मोहन चा आहा गप केर नहीं बुझी रहल छियैक । ओ मोहन चा स एक टा सबाल पोछाल्कैक ? मोहन चा जिनकर - जिनकर घाट बाबा पोखरी पर होयत अछि से सब गोटे हमारा लोकानी के चन्दा कियक देत ?  मोहन चा अहि गप पर काफी चिंतित आ गंबीर भ कहलें , गप त तोहर ठीक छोऊ मुदा एकर कोनो समाधानों त नहीं अछि ।


भोर में जखन हम पाय्खाना करबाक हेतु बिडदा भेलाहू त सब गोटे हमारा बटाऊ बाबा केर दालान पर भेट भ गेलाह । हुनका सब गोटे क ५ मिनट कही हम कलम दिश बढ़ी गेलहू ।


बताऊ बाबा केर नाम त किछु आर छल मुदा सब गोटे हुनका बटाऊ कही शोर पारैत छलैन । बटाऊ बाबा नवल काका के पिताजी छलखिन आ हमर गाम वाला पिशा केर अपन छोट काका सेहो छलखिन ।


हम जखन कलम दिश स आय्लाऊ त सब गोटे बाबा पोखरी केर घाट पर भेट भ गेलाह । मनू कहलक भाईजी हम लिस्ट बना चुकल छि । हम ओकरा दिश बेशी ध्यान नहीं द हाथ में माटि ल पोखरी में हाथ मटियाब लाग्लोऊ । हाथ मतियेबाक उपरानत हम ओकरा स लिस्ट ल ओही लिस्ट केर बार गौर स देख लाग्लोऊ । लिस्ट देखबाक बाद हम मुकेश स पूचालियैक आ गप शाप करिते - करिते बताऊ बाबा के दालान पर आबी गेलहू ।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

गहीर आँखिक व्यथा (कथा)


आइ-काल्हि शहरी मध्यवर्गक भोरका रूटीन सब ठाम एक्के रहै ए। चाहे ओ छोट शहर हुए वा महानगर। जँ घर मे स्कूल जाइवाला बच्चा आछि तँ भोरे-भोर उठू आ बच्चा केँ तैयारी मे लागि जाउ। एक नजरि घडी दिस रहै छै जे कहीं लेट नै भऽ जाइ। बस स्टाप पर अलगे भीड आ जे अपने सँ स्कूल पहुँचाबै छथि, हुनकर सभक भीड स्कूल गेट पर। कम बेसी सभ शहरक हाल एहने रहै ए। भागलपुर सेहो एहि सब सँ फराक नै छै। भोर मे सात बजे सँ लऽ कऽ साढे आठ बजे तक सौंसे ट्रैफिक जाम आ भीड भाड रहै छै। संजोग सँ हमहुँ एहि भीड भाडक एकटा हिस्सा रहै छी। छोटकी बेटी केँ स्कूल पहुँचेबाक हमरे ड्यूटी रहै ए। अलार्म लगा कऽ भोरे भोर छह बजे उठि जाइ छी। जौं छह सँ आगू सुतल रहलौं, तँ श्रीमतीजीक सुभाषितानि शुरू भऽ जाइ छै जे हे देखियौ आइ स्कूल छोडेलखिन्ह। जखन सात पर घडीक काँटा आबि जाइ ए तखन हबड हबड बेटीक डैन पकडने स्कूल दिस भागै छी आ जँ समय पर गेटक भीतर ढुका देलियै, तँ बुझाइत अछि जे दुनिया जीत लेलौं। इ तँ भेल नित्यक कार्यक्रम। आब किछ विशेष। स्कूलक इलाका मे नित्य भोरे बहुत रास अभिभावकक जुटान हेबाक कारणेँ गपक छोट छोट ढेरी टोल बनल रहै ए। सभक अपन अपन ग्रुप छै आ इ ग्रुप सभक जुटान हेबा लेल ढेरी चाह आ पानक दोकान सभ सेहो। अस्तु, तँ हमरो एकटा ग्रुप बनि गेल अछि, जाहि मे ब्लाक वाला ठाकुरजी, कालेजक प्रोफेसर दासजी, पोस्ट आफिस वाला शर्माजी, कपडा दोकान वाला मोहन सेठ, सर्वे वाला मेहताजी आ आरो किछ गोटे शामिल छथि। हम सब नित्य बच्चा केँ स्कूल छोडलाक बाद ओतुक्का घनश्यामक चाह दोकान पर जुटै छी आ चाहक संग भरि पोख गपक सेहो रसास्वादन करै छी। निजी समस्या सँ लऽ कऽ देशक राजनीति, अमेरिकाक दादागीरी, सचिनक सेनचुरी, आर्थिक समस्या, टूटल रोड, बिजलीक कमी, मँहगीक मारि, कम दरमाहा आदि बहुते विषय सब पर नित्य अंतहीन बहस होइत रहै ए। कहियो काल जँ बेसी लेट भऽ जाइ ए तँ घरनीक तामस सँ भरल फोन हमर सभक सभा भंग कऽ दैत ए। कखनो कऽ मोबाईल फोन पर तामसो होइ ए जे केहन सुन्नर बहस चलै छल आ बहसक असमय मृत्यु भऽ जाइ ए एकटा फोन काल पर। खैर इ भेल हमर भोरका नित्य कार्य। आब हम मूल कथा दिस बढै छी।

घनश्यामक चाह दोकान पर एकटा छोट बच्चा काज करै छल। नाम छलै बिनोद आ हमरा सब लेल ओ छल छोटू। घनश्याम कहै छलै बिनोदबा। इ बिनोद, बिनोदबा वा छोटू जे कहियै दस बरखक हएत। एक दिन बहसक विषय वस्तु छल चाइल्ड लेबर। हम सब अपन चिन्ता प्रकट करै छलौं। ठाकुरजी बजलाह जे यौ ऐ दोकान मे जतय छाह पीबै छी सेहो एकटा बाल मजदूर काज करै ए। एकाएक हमरा सभक धेआन छोटू पर चलि गेल। एतेक दिन सँ इ गप नजरि मे किया नै आबै छल, यैह सोचऽ लगलौं। ठाकुरजी घनश्याम केँ कहलखिन्ह जे बाउ इ गलती काज केने छी अहाँ। पुलिस पकडत आ मोकदमा सेहो हएत। घनश्याम बाजल जे अहाँ जूनि चिन्ता करू। हमर पूरा सेटिंग अछि। लेबर आफिसक बडा बाबू हमर ग्राहक छथि आ कोतवालीक दरोगा सेहो एतय आबै छथि। आइ तक तँ किछ नै कहलाह आ आगू देखल जेतै। हम बजलौं- "से तँ ठीक ए, मुदा इ कहू जे एते छोट बच्चा सँ काज करेनाई अहाँ के नीक लगै ए।" घनश्याम- "जखन एकर बापे केँ नीक लगै छै तखन हमरा की जाइ ए। तीन सय टाका महीनवारी दय छियै।"

हम धेआन सँ बिनोद केँ देखलौं। ओकर आँखि बड्ड गहीर छलै। कोनो सुखायल सपना जकाँ ओकर आँखि मे काँची सुखा कऽ सटल छलै। हमर हृदय करूणा सँ भरि गेल। हमरा रहल नै गेल। हम ओकरा लग बजेलियै आ पूछलियै- "बउआ कोन गाम घर छौ।" बिनोद बाजल- "हम्मे जगतपुरो केँ छियै।" हम- "बाबूक की नाम ए।" बिनोद- "हमरो बाबूरो नाम जीबछ दास छै।" हम- "पढै नै छी अहाँ? किया काज करै छी?।" बिनोद- "हमरो बाबू कहलकौं जे काम नै करभीं, त घरो मे चूल्ही नै जरथौं। ऐ सँ हम्मे काम पकडी लेलियै।" हम- "हम अहाँक बाबू सँ भेंट करऽ चाहै छी।" बिनोद ताबत हमरा सँ नीक जकाँ गप करऽ लागल छल आ मुस्की दैत कहलक- "हमरो बाबू आज अइथौं। थोडा देर रूकी जा, भेंट होइ जेथौं।"

हम ओतै बिलमि गेलौं। कनी काल मे कनियाँ फोन केलथि- "आइ आफिस नै जेबाक ए।" हम- "बस आधा घण्टा मे आबै छी।" कनियाँ- "इ महफिल आ चौकडी अहाँ केँ बरबादे कऽ कऽ छोडत। जे फुराइ ए सैह करू।" हम देखलौं जे मण्डलीक सब सदस्यक मोबाईल टुनटुनाईत छल। खैर कनी कालक बाद एकटा दीन हीन व्यक्ति दोकान पर आयल। बिनोद कहलक- "हमरो बाबू आबी गेल्हौं। जे गप करना छौं, करी लए।" हम ओहि व्यक्ति सँ पूछलौं- "अहीं जीबछ दास थिकौं।" ओ बाजल- "जी मालिक। केहनौ खोजी रहलौं छलियै हमरा।" हम- "अहाँ अपन छोट बच्चा सँ मजदूरी कियाक करबै छियै? ओकर पढै लिखैक उमरि छै। आओर सरकारी कानून सेहो बनि गेल अछि जे अहाँ बच्चा सँ मजदूरी नै करा सकै छी।" जीबछ- "अरे मालिक सरकारो की करतै? फाँसी लटकाय देतै? घरो रहतै त भूखले मरी जेतै।" हम- "कतेक बाल बच्चा अछि अहाँक?" जीबछ- "पाँच गो बेटा औरो दू गो बेटी छै।" हम- "ककरो पढबै छियै की नै?" जिबछ बिहुँसैत कहलक- "पहीले खाना पीना पूरा होतै तभें नी पढाई होतै।" हम- "एते जनसंख्या कियाक बढेने छी?" जीबछ- "आब होइ गेलै त की करभौं। हमे भी बच्चा मे मजदूरीये केलियौं मालिक। हमरा और के भाग मे यही लिखलो छौं।" हम- "देखू जे भेल से भेल। बच्चा केँ मजदूरी छोडाउ आ स्कूल मे भर्ती करू। सरकार दुपहरियाक खेनाई सेहो दै छै। नै तँ हम लेबर विभाग मे खबरि कऽ देब। कनी एक बेर बिनोदक आँखिक सपना दिस देखियौ। ओकर की दोख छै? कमे अवस्था मे केहन लागै छै। अहाँक दया नामक वस्तु नै ए की? अहींक बच्चा थीक। सरकारक ढेरी योजना छै। अहाँ लोन लऽ सकै छी। अपन कारोबार कऽ सकै छी। नरेगा मे रोजगारक गारण्टी छै। इंदिरा आवास मे मकान लऽ सकैत छी।" पता नै हम की सब कहैत चलि गेलौं। हमरा चुप भेलाक बाद जीबछ बाजल- "मालिक अपने सब ठीके कहलियै। लेकिन सबे जगहो पर कमीशनो खोजै छै। हमे कहाँ से देभौं कमीशन। ढेरी इनक्वाइरी औरो चिट्ठी पतरी होइ छौं। एतना लिखा पढी औरो दौडा दौडी हमरा से नै सपरथौं।" हम- "ठीक छै, एखन तँ हम जाइ छी, मुदा अहाँ केँ जे कहलौं से करब आ कोनो दिक्कत हएत तँ हमरा सँ भेंट करब। हम अहाँक चिट्ठी बना देब आ जतय कहऽ पडत कहि देब।" फेर हम घर चलि गेलौं। सभा विसर्जित भऽ गेल छल।

दोसर दिन जखन स्कूल गेलौं, तँ फेर सँ घनश्यामक दोकान पर चाहक जुटान भेल। आइ बिनोद दोकान पर नै छल। हम गर्व सँ बाजलौं- "देखलियै बिनोदक मुक्ति भऽ गेल। आब ओकर गहीर आँखिक सपना फेर सँ हरिआ जाएत।" घनश्याम कहलक- "नै सर, बिनोदबाक बाप अहाँ सब सँ डरि गेल आ हमरा ओतय सँ हटा लेलक। कहै छल जे कहीं साहब सब पकडबा नै दैथ, तैं एकरा कोनो दोसर ठाम रखबा दैत छियै।" हम अवाक रहि गेलौं। बिनोदक गहीर आँखिक सपना हमरा नजरिक सामने ठाढ भेल हमरा पर हँसि कऽ कहै छल- "सब सपना पूरा होइ लेल थोडे होई छै। किछ सपनाक अकाल मृत्यु भऽ जाइ छै। हमरो अकाल मृत्यु भऽ गेल अछि। अहाँ व्यर्थ हमरा जीयेबाक प्रयास कऽ रहल छी।" हम हताश भऽ गेलौं। ओहि दिन सँ बिनोद केँ बहुत ताकलियै, मुदा पूरा भागलपुर मे ओ कतौ नै भेंटल। बच्चा सबहक बडा दिनक छुट्टी मे एकटा भाडाक गाडी सँ गाम जाइ छलौं। बाट मे नारायणपुर मे चाह पीबा लेल गाडी रोकलौं, तँ देखै छी जे बिनोद ओहि चाहक दोकान पर काज करैत छल। हम ओकरा दिस बढलौं की ओ जोर सँ कानऽ लागल। दोकानक मालिक हमरा कहलक- "बच्चा केँ किया डरबै छियै?" हम- "नै डरबै नै छियै। हम ओकरा जानै छियै।" दोकानक मालिक- "से तँ हम देखिये रहल छी। चुपचाप चाह पीबू आ अपन गाम दिस जाउ।" ताबत कनियाँ सेहो आबि गेली आ कहऽ लागली- "अहाँ केँ बताह हेबा मे आब कोनो कसरि नै रहि गेल। चलू तँ चुपचाप।" हम देखलौं जे बिनोद कतौ नुका गेल छल अपन गहीर आँखिक सपना समेटने आ हम चुप भऽ गाडी मे बैसि गेलौं।

गजल


बाहरक शत्रु हारि गेल मुदा मोन एखनहुँ कारी अछि।
नांगरि नहि कटा कऽ मुडी कटबै कऽ हमर बेमारी अछि।

तेल सँ पोसने सींग रखै छी व्यर्थ कोना हम होबय देबै,
खुट्टा अपन गाडब ओतै जतऽ सभक सँझिया बाडी अछि।

पेट भरल अछि तैं खूब भेजा चलै ए, नै तऽ हम थोथ छी,
ढोलक कियो बजाबै, मस्त भेल बाजैत हमर थारी अछि।

जीतबा लेल ढेरी रण बाँचल, एखन कहाँ निचेन हम,
केहनो इ व्यूह होय, टूटबे करतै जँ पूरा तैयारी अछि।

डाह-घृणा केँ अहाँ कात करू, इ अस्त्र शस्त्र नै कमजोरी छै,
आउ सब ओहिठाम जतय रहै "ओम" प्रेम-पुजारी अछि।
सरल वार्णिक बहर वर्ण २२

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल
कतय भेटत एहन प्रेम जे मीत अहाँ देलौं
मित्रताक कर्मपथ पर मोन जीत अहाँ लेलौं
स्वार्थक मीत जग समूचा,मोन मीत नहीं कियो
धन्य सौभाग्य हमर मोन मीत बनी अहाँ एलौं

स्वार्थक मेला में भोगलौं हम वर वर झमेला
हर झमेला में बनिक सहारा मीत अहाँ एलौं

मजधार डूबैत हमर जीवनक जीर्ण नाव
नावक पतवार बनी मलाह मीत अहाँ एलौं

निस्वार्थ भाव अहाँ मित्रताक नाता जोड़ी लेलहुं
हर नाता गोटा सं बड़का रिश्ता मीत अहाँ देलौं

नीरसल जिन्गीक हर क्षण भेल छल उदास
उदास जिन्गीक ठोर पर गीत मीत अहाँ देलौं

संगीतक ध्वनी सन निक लगैय मीतक प्रीत
कृष्ण सुदामाक प्रतिक बनी मीत अहाँ एलौं
...............वर्ण:-१८.....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल
कतय भेटत एहन प्रेम जे मीत अहाँ देलौं
मित्रताक कर्मपथ पर मोन जीत अहाँ लेलौं
स्वार्थक मीत जग समूचा,मोन मीत नहीं कियो
धन्य सौभाग्य हमर मोन मीत बनी अहाँ एलौं

स्वार्थक मेला में भोगलौं हम वर वर झमेला
हर झमेला में बनिक सहारा मीत अहाँ एलौं

मजधार डूबैत हमर जीवनक जीर्ण नाव
नावक पतवार बनी मलाह मीत अहाँ एलौं

निस्वार्थ भाव अहाँ मित्रताक नाता जोड़ी लेलहुं
हर नाता गोटा सं बड़का रिश्ता मीत अहाँ देलौं

नीरसल जिन्गीक हर क्षण भेल छल उदास
उदास जिन्गीक ठोर पर गीत मीत अहाँ देलौं

संगीतक ध्वनी सन निक लगैय मीतक प्रीत
कृष्ण सुदामाक प्रतिक बनी मीत अहाँ एलौं
...............वर्ण:-१८.....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मिथलाक गाम घर :


हमरा लग रहब : ५ 

मिथलाक गाम घर :  बुध बाप के ई दुख बर्दाश्त नहीं भेलैन आ ओहो २ मॉस में अई लोक स बिदा भ गेलाह ।  तकर तेशरे मॉस प्रनावक जनम भेलैक । मुनर झा दौराल कूसूमपूर गेलाह ---चम्पाक सासूर ।  दर्बज्जो पर नहीं चाढ़ा देलखिन श्रीमंत चौधरी , चम्पक भेसूर -- साहश कोना भेल आहा के अहि गाम में पैर देबाक आहा के ?  नहीं जानी केकर पापक हमर कुलक नाम देबाक लोभ में दौराल आयल छि । २ मॉस पहिने नेना भेल आ आई खबरी देबा आयल छि । आ बिबाहक आठममॉस में नेना भेल कोना ?  अहि पाप के लाद लेल तहमर मदन के फसौने छलिऐन आहासभ । प्राण स प्रिये छलाह हमर , जिद्द मानी लेलियें । मुदा हुनके संग ओ खिस्सा खतम्म । फेर नाम लेब अहि कूलक कहियो ते जीह काटी लेब ।


अपमानित आ हताश मुनर झा घुरी क अपन गाम आय्लाह ।  ककरो किछू नहीं कहलथिन , चंपो के नहीं ।  मुदा चम्पा सब बूझी गेलिक । सौरी स बाहर नहीं भेलैक , छाठिहारो नहीं देखाल्कैक नेना के ।


मुनर झाक काकी पोसल्थिन बिन मायक नेना क ५ वर्ष । मुनर झा सभ साल सभ दौर्लाह, मुदा कोनो कन्यागत ध्यान नहीं देलकैन । ५ वर्ष बाद चम्पा क सभ गहना बेचीं २००० देलैन आ १५ सालक मीनाक बिबाह - द्विरागमन बाद अंगना आन्लैन । ३५ वर्षक मुनर झाक १५ वर्षक कनिया मीना । कमालपुर बाली कनिया --मीना । जे देखाल्कैक अकचका क रही गेल ।  कारी भुजंग , भूट आ करी मुनर झा क आँगन में एहन सों सन कनिया ।  सों सन रंग आ चन सन मूह । मुदा हाथ पैर फूल सन होयतो ओहन कोमल नहीं छलैक , एक दम सक्कात आ कर्मठ छलैक । आबैत देरी सबटा सम्म्हारी लेलकैक -- ऊज्रल घर गिरश्थी आ बिन मायक प्रणव । गहना बेचला स बाचल किछो ताका छलैन , जकरा मुनर झा हरदम डार में खोसने रहित छलाह । ताका देखा नव कनियाक मनोन करैत छलाह -- साड़ी आ गाहनाक प्रलोभन देत छलखिन ।  सभ टा टाका ल लेल्कैं मीना आ किनी देलकैन एक टा लघारी महीश । मुनर झा क चारी कंचा कमेबाक बियौत भेलैन त आखी खूज्लें । खूब म्हणत कर लागलैन-- बारी झारी आ १० कट्ठा खेत में आ महिसक पोश में ।


आ मीना ओही ऊज्रल - बिल्तल आँगन के फेर स चमका लेलैने । पोछी- पाछी, निप्पी -नापी , ओही टाटक घर के चम्कोलैन आ हर्दुम पोटा बह्बैत माती - कादो में ओन्घ्राइत प्रणव के सेहो तेल - कूर डी अपन ममता भरल हाथ स चमका देल्थिन ।


प्रणव त मामी लेल जान देब लागल । हरदम ओकरे लग सटल रहे । मुनर झा खौझैतो छलखिन । मुदा मीणा हरदम सतौने रहित छलैक अपना लग । मुनर झा क  खोजी बढ़ लागलैन आ प्रणब ६ बरखक भ गेल , त एक दीन स्कूल पठा देलकैक ओकरा । गामक अप्पर प्रिम्मारी स्कूल जकरा गामक छौरा सभ नेंग्रा गुरूजी बाला स्कूल कहैत छलैक । नेंग्रा गुरूजी क  लल्बिथूआआ छारी नामी छलैन । जकरा एक लाल बित्थूआ देत छलथिन , ७ दीन तक ओतूका मौश आ चमरी लहरित रहित छलैक आ ख्जूरक छारी हरदम हाथ में रहैत छलैन । मारी सत्त्की स देह फूला देत चलतीं ।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

MAITHILI KAVYA: MITHILAKSHAR

MAITHILI KAVYA: MITHILAKSHAR

गजल


मधुर साँझक इ बाट तकैत कहुना कऽ जिनगी बीतैत रहल हमर।
पहिल निन्नक बनि कऽ सपना सदिखन इ आस टा टूटैत रहल हमर।

कछेरक नाव कोनो हमर हिस्सा मे कहाँ रहल कहियो कखनो,
सदिखन इ नाव जिनगीक अपने मँझधार मे डूबैत रहल हमर।

करेज हमर छलै झाँपल बरफ सँ, कियो कहाँ देखलक अंगोरा,
इ बासी रीत दुनियाक बुझि कऽ करेज नहुँ नहुँ सुनगैत रहल हमर।

रहै ए चान आकाश, कखनो उतरल कहाँ आंगन हमर देखू,
जखन देखलक छाहरि, चान मोन तँ ओकरे बूझैत रहल हमर।

अहाँ कहने छलौं जिनगीक निर्दय बाट मे संग रहब हमर यौ,
अहाँक गप हम बिसरलहुँ नहि, मोन रहि रहि ओ छूबैत रहल हमर।
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) - ५ बेर प्रत्येक पाँति मे।

मिथिलाक गाम घर :


गामक छठ पूजा :3

मिथिलाक गाम घर  :  एक दिनक गुप अछि । हम हाथ में साबुन ल बाबा पोखरी दिश अश्नान करबाक उदेश्य स बिदा भेलहु । हम जखन पोखरी केर घाट पर पहून्च्लाऊ त ओही थाम मन्नू , सोनू , आ मन्नू केर छोट भाई कपरा फिची रहल छल । ओ लोकिन कोनो दोसर मुदा पर चर्च क रहल छलाह ।  नहीं जानी कोना ने कोना छठ पाबैन केर गुप होमअ लागल ?  सोनू कहलक भेजी एक टा गप कहू ? जखन बजरंग बली ठान में ओर्चेशत्रा आओत त अहि ठाम टीवी -सीडी देखैक लेल के रहत ।
हम कहलियैक सोनू गप त तोहर १६ आन्ना ठीक छोऊ , मुद्दा हम वा तू ओही में की क सकैत छियैक ? मन्नू कहलक जे की भाईजी एना नहीं भ सकैत अछि जे की , हम हूँ सब गोते अपना घाट पर किछु छोट - चीन प्रोग्ग्रमक आयोजन करी । आयोजन त क सकैत छियैक मुद्दा मानू एक टा गप कह , सब गोते चन्दा देथूं वा नहीं ?

ताबत एक टा बृध बाबा घाट पर अछिन्जल लेबाक हेतु आयल छलैक । ओ हमारा लोकिन केर गप सूनी उत्तर देलखिन ।

भरी गाम स मंग्बाक कोण प्रायोजन , आहा लोकनी हुनके सब स  चन्दा मांग योक जिनकर - जिनकर घाट अहि पोखरी पर होइत अछि । हुनकर इ कथन सब गोते केर बार निम्मान्न लागल ।

हम सब गोते अस्नान कैलो आ अपन -अपन आँगन चली आइलाऊ । ताबत धरी अहि गप केर निर्णय नहीं भेल जे की प्रोग्ग्रमे होयत  वा नहीं ।


मानू केर घर आ हमर घर एकदम सत्ताल अछि ।  हम अपन आँगन में बैसी भोजन क रहल छलौ की मानू दालान पर स हमरा शोर कैलक । भाईजी आँगन में छि की नहीं ? हम खाइते - खाइत ओकरा चिकार्लियैक । मानू हम आंगन में छि , आब अ ने की बात अछि ? की सोचलियेक ? किछो छान चुप रहबाक बाद हम कहलियैक देख मन्नो एना काम नहीं चलताऊ, सब स पहिने एक टा काम कर । से की भाईजी  ? ओ हमारा दिश ताकैत बाजल । एक टा कागज़ - कलम ल क एक टा लिस्त्व बना जाही में ओही सब घर केर नाम हेबाक चाहि  जिनकर - जिनकर घाट बाबा पुकारी पर होयत अछि । ठीक छाई भाईजी हम राती भर में अहि काज केर संपन्न क लेब आ भिनूसर्बा में  अपनेक स भेट करब । ई गप कही मानू हमरा आंगन स चली गेल । मानू केर आंगन स गेलाक उपरान माँ हमरा समझाब - बूझाब लागली । ओ कहलें जे की देख गामक बार खाराप अछि । आहा सब काठी केर लेल अहि पचरा में परैत छि । हम माँ केर गप पर कोनो ध्यान नहीं देलऔ आ आंगन स चुप - चाप बाहर भ गेलोऊ ।

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

अजीव बात अछि ना


अजीव  बात अछि  ना 

पद-चिन्ह

 
" पद-चिन्ह "
नै कान तूँ! नै कान तूँ !
एक दिन करबाए नाम तूँ
आई कष्ट काटि रहल छें तूँ
एक दिन करबाए नाम तूँ
नै कान तूँ ! नै कान तूँ !
शिव धनुष तोड़बा लेल
बनि जो आई राम तूँ
परुशरामक क्रोध खाइयो कें
मुदा नै हार मान तूँ
नै कान तूँ ! नै कान तूँ !
सूरज डूबि फेर उगई छै
नदी सूइख फेर भड़ई छै
गाछो मे पतझड़ होइत छै
फेर किएक छें उदास तूँ
नै कान तूँ !नै कान तूँ !
की केयो मनुष कह्तौ तोड़ा
जँ मात्र खा-पी मईर जेबें तूँ ?
जँ जन्म लेलें एहि धरती पर
त किछु नव- पथ करै निर्माण तूँ
नै कान तूँ ! नै कान तूँ !
कह! तोरा-ओकरा मे कुन अन्तर
जँ एकहि पथ कें राही तूँ
जँ छोड़बाक छौ किछु पद-चिन्ह
त चल भीड़-भाड़ सँ बाहर तूँ
कान तूँ ! नै कान तूँ !!!!!!

:गणेश कुमार झा "बावरा"

गुवाहाटी


MAITHILI KAVYA: KAVITA

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

मिथिला हाट


सबटा सामान  लअके  हाजिर  अछि  अपनेक  नगरी  में   http://www.mithila-haat.कॉम  एक  बेर  आओ  और  देखू  तहन खरीदू या  आडर करू 

सानुनय विनीत निवेदन -
प्रिय सुधिजन,
प्रत्येक ग्रुप के निर्माण के पाछू निर्माताक जनहित उद्देश्य निहित होइत छैक, एकरा व्यर्थ नई होमय दी I मिथिला, मैथिली और मैथिल से सम्बंधित जतेक ग्रुप अछि ओहि पर पोस्ट करबा काल निम्न बातक ध्यान अवश्य राखी -
१. की अपनेक पोस्ट ओहि ग्रुपक उद्देश्य के दिशाहीन/शक्तिहीन त' नई बना रहल ?
२. की अपनेक पोस्ट ग्रुप के उद्देश्य में नव शक्ति प्रदान क' रहल ?
३. की अपनेक पोस्ट कोनो दृष्टिकोण सँ मिथिला, मैथिली और मैथिल सँ सम्बंधित अछि ?
४. अपनेक पोस्ट या त' स्वरचित अथवा अन्यान्य द्वारा रचित किन्तु - मिथिला हित के हो यथा - website / blog / group / page / thoughts तखने टा पोस्ट करी I

मिथिला हित में .......
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विदित हो,
मिथिला-हाट संपूर्ण मैथिल स्टोर, पहिल आ अद्वितीय मैथिल उत्पाद के विपणन हेतु संस्था अछि जाहि ठाम मिथिला क पाँच तरहक उत्पाद ऑनलाइन अथवा ऑफलाइन माध्यमें कीनल जा सकैत अछि -
मिथिला - पोथी =
मिथिला, मैथिली अथवा मैथिल सँ कोनो तरहे सम्बंधित जे कोनो भाषा में पोथी आ पत्रिका ..
मिथिला - कला =
मिथिलाक सुवासित लोक-कला क सभ रूप जेना - मिथिला पेंटिंग्स, मञ्जूषा कला, सिक्की कला, बांस क उत्पाद इत्यादि ..
मिथिला - शुभ संस्कार सामग्री =
मैथिल समाज के सभ वर्णक सभ शुभ संस्कार आ पावनि-तिहार यथा - उपनयन, कन्यादान, बरसाइत, मधुश्रावणी, कोजागरा, छईठ, सामा चकेवा इत्यादि में प्रयोजनीय बस्तु ..
मिथिला - ऑडियो - विडियो =
मिथिला आ मैथिली सँ सम्बंधित सभ तरहक उपलब्ध भाषा में ऑडियो आ विडियो, आ
मिथिला - आहार =
मिथिलाक पारंपरिक भोज्य सामग्री जेना अरिकोंच(बीड़िया), अदौरी, तिसियौरी, चरौरी, मखान इत्यादि ..
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मिथिला हाट

गजल


चढल फागुन हमर मोन बड्ड मस्त भेल छै।
पिया बूझै किया नै संकेत केहन बकलेल छै।

रस सँ भरल ठोर हुनकर करै ए बेकल,
तइयो हम छी पियासल जिनगी लागै जेल छै।

कोयली मधुर गीत सुना दग्ध केलक करेज,
निर्मोही हमर प्रेम निवेदन केँ बूझै खेल छै।

मद चुबै आमक मज्जर सँ निशाँ चढै हमरा,
रोकू जुनि इ कहि जे नै हमर अहाँक मेल छै।

प्रेमक रंग अबीर सँ भरलौं हम पिचकारी,
छूटत नै इ रंग, ऐ मे करेजक रंग देल छै।
सरल वार्णिक बहर वर्ण १८
फागुनक अवसर पर विशेष प्रस्तुति।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012





हमरा लग रहब : ४


मिथिलाक गाम घर        मुदा मामी भरी गाम घोल मचा देल्थिन - नहीं जानी नेना कता चली गेल ? अबस्से कस्सैया गुरूजी फेर दंगौने हेतैक आ हमर नेना दुःख स बत्ताह भेल किम्ह्रो परा गेल हैत । अपनों घरे - घर ताकल्खिन । धारो काट धरी तक आयाल्खिं मामा । हुनका गेलापर ओ चुपचाप गाछ पर स उत्तरल आ अपन आँगन में जा ठाढ़ भ गेल मामिक सोझा - काहा गेल छलैन दिन भरी ? मामी केर चिंता तामस में बदली गेल छलैन । प्रणव चूप , घेत झुकोने ठाढ़ ।




अईयो मार्लाको नेंग्रा ? मामी लग आबी गेलिक ।
प्रणव जोर स मुरी झात्लक । मामिक स्वर आर तमास्सा गेलें - तखन कहा छलैह दिन भरी बहुकल प्यासल ?  अंदेशा स अखनो कोढ़ धरधरा रहल अछि ।




प्रणव बुक भेल ठाढ़ रहल ।आब मामिक बेशी चिंता भेलैक । एकदम सटी हाथ स देह छूबैत पूछाल्कैक - मों खराब छौक ?




नहीं , अहि बेर प्रनावक बोल फुत्लैक ... एक टा संगी संग धारक ओही पार चली गेल रही , ओ अपन घर बाजूने छल ।  ओताही खा लेलियाई आई । नहीं जानी कियक झूठ बाजी गेल ओ ?  मुदा मामिक जेना बिश्वास नहीं भेलैन ।   जिरह करैत पुछाल्खिं --खेने ,पिने छे टी एना मूह कियक सूखायल छोऊ?




प्रणव जबरदस्ती हसल -- दिन में जे खेलियक से की पेट में धेले अछि ?  सांझ भेलै । किछु दिय ने खाय लेल ।


ओकरा हसित देखि मामिक चिंता जेना दूर भा गेलिक ।  जलखई देलकैक आ  भानस - भात में लागी गेलैक । मुदा प्रनावक मों ओही दिन कथू में नहीं लाग्लैक ।  गर्मी मॉस छलैक ।  आँगन में पट्टिया बिछा ईजोरिया में परि रहल । हबो सिह्कैत रहैक । तहियो प्रणव कछ्मछैत रहल । ओकरा बेबे बेर मों पारित रहलैक अपन देह पर बज्रैत छरी आ आर्त्नादक स्वरके दबा पसरित खिल खिल हसी । आ तकर बाद गाल पर एक टा सम्धानल चाट आ चाटक संग आगि सन बोल - साख ने देखू , हमर देह चूताह , पहिने मखानक पात स मूह पोछी आ ।


ओना प्रनावक मूह एकदम पोछल - पाछल आ चिक्कन छलैक । भबूका गोराई आ नंगर देह । मूह कान खूब निख्रल । ममी कहैत छलथिन - रंगल- धोरल , लिखल पढ़ल मूह । टेमी स लिखल ।




ओना मुनर झाक मूह सेहो रंगले - धरौल छलैन - एकदम पकिया रंग स । कारी आ चाकर मूह । नाक सेहो चतरल । ग्स्सल बाही आ चौरा छाती में सौसे केश , एकदम कंठ धरी आ पीठ पर सेहो दुनु काट । कान आ हाथ पैरक अंगूर पर सेहो पिघ पिघ केश । मुदा माथक केश अधिक काल अस्तूरा स मूर्बा लेत छलाह । कारी - कारी झामत्गर केश छलैन , गर्मी मॉस से सौसे माथो में घम्हौरी भ जैत छलैन , मुदा छिल्बा लैत छलाह ।




मुन्नार झाक बहिन , प्रनावक माइयो एकदम गोर भभूका छलैक ।  देखबा में सेहो तेहने सून्नारी । १५ बर्ष छोट छलैक मून्नर झा स , मुदा विआह स पहिने ओकरे भेलैक , १४ हम बरख में । धनिक घर आ सूँनर वर । जमिन्न्दारक खानदान छलैक , कालू चौधरीक नोत - पात पर आयल छलखिन प्रनावक बाप । मून्नर झाक बहिन के  देखाल्खीं आ अपन जेठ भाई लंग जीद क देलखिन । कालू चौधरीक भनसियाक बेटी , मुन्नार झाक बहिन चंपा एकता बरका घर में पूत्हू बनी गेलीह -- कालू चौधरी स पैघ जमिन्दारक घर ।

मिथलाक गाम घर :




मुदा भोग नहीं भेलैन । ६ बे मासक बाद बिध्बा भ गेली । कनिए ज्वर भेलैन आ वैह काल भ गेलें । उपचार - ईलाज , झार-फूक किछुओ नहीं सुनाल्कैं आ चम्पा ५ मासक पेट नेने शीथ पोछी नैहर घुरी आय्लिः ।  घुरी नहीं आय्लिः बल्कि जबरदस्ती घर स निकाली देल गेल्ही । भसूर के मौका भेटी गेलें - अल्लछ दाइने कही नैहर स बिदा क देल्थिन ।