!! हे हंस वाहिनी माँ शारदे !!
हे हंस वाहिनी श्वेत वर्णी माँ शारदे
कर कृपा माँ ज्ञान का अधिकार दे ।
हे हंस वाहिनी श्वेत वर्णी माँ शारदे ।।
बहती तुमसे ही स्वर काव्य की धारा
उठती तुमसे ही गीतों की झनकार माँ ।
हे शारदे संगीत तुमसे हर शब्द तुमसे
तुम ही साधक साधना का आधार माँ ।।
हे वीणा धारिणी कमल आसन भारती
अज्ञानता पर डाल दृष्टि माँ मुझे प्यार दे ।
हे हंस वाहिनी........2
अलंकृत छवि मुख शारदे तेज विराजे
हाथ मे पुस्तक शोभित सिर मुकुट साजे ।
कितने मूर्ख अधम पर तुमने कृपा बरसाई
क्यों फेरा मुख तुमने जब मेरी बारी आई ।।
ह दास अब शरण , चरण में जा लिपटा
अज्ञानता के अन्धकार से अब माँ तार दे ।।
हे हंस वाहिनी.......2
गीतकार-
निशान्त झा "रमण"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें