dahej mukt mithila

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शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

देशी बिलाड़ ।। कहानीकार - श्री बद्रीनाथ राय जी

                         



            देशी बिलाड़
मिथिलाञ्चल मे आयल छलाह एक नव अंचल अधिकारी। वितरण केने छलाह गरीबमे, बहुतोँ धोती सारी। किछु जमीन श्रीमानक श्रेयसँ एक भूमिहीनकेँ भेटल छल। खाकऽ दीनताक धऽल बेचारे, छलाह समाजक कृषक सफल।
श्री मान् अंचल अधिकारी एक कट्ठा जमीन दू भूमिहीन मे वितरण कएने छलाह, परञ्च दुनू भूमिहीनकेँ ओतबँहि जमीन मे दस-दस कट्ठा कऽ देने छलाह। ई भूल नञि, महा भूल भेल छल। भूमिहीन केँ नाम राम परीक्षण, राम लोचनन छलनि।
राम लोचन बेचारे भूमिहीन और प्रचण्ड दीन छलाह, परञ्च राम परीक्षण बेटा सबहक प्रसादे भूमिहीन रहितँहु दीन नञि छला। अंचल कार्यालयसँ दुनू जन केँ जमीनक पर्चा (दान पत्र) भेटल छलनि। दुनू जन पर्चा लए घर जा रहल छलाह। राम परीक्षण तीव्र चालिमे चलैत घर एलाह, परञ्च राम लोचन शरीरसँ कमजोर छलाह। हुनक चालि तेज नञि छलन्हि। ओ नहुँ-नहुँ चलैत अपन वार्षिक योजना दिमागमे तैयार करैत आबि रहल छलाह। बाटमे रामलोचन अपन कल्पनाकेँ स्वर बद्ध करैत चलि रहल छलाह।
हुनक स्वर-
लय कऽ पर्चा गीत गबैत,
गृह नगर कयलनि प्रस्थ्ज्ञान।
आबो कि हम रहब अनारी,
देत समाज पंचक स्थान।
तामि कोरि कऽ मरूआ रोपब,
करब गरीबी मे गुजरान।
पाकत मरूआ काटब तकरा
रोपब हम पुनि ओतिमे धान।
घर मे किछुओ खर्चा नञि छल,
नञि तँ करितौँ कन्या दान।
आगा साल ई भार उतारब,
जँ किछुओ भेल मरूआ धान।
कथाकारक स्वर-
बान्हैत वेश मनोरथक पुल,
निज गृह नगर मे एलाह।
हाल सुना सब प्राण प्रिया केँ,
अबितँहि ओ अलसयलाह।
कछ-मछ करैत राति बितौलन्हि,
भोरे लेलन्हि कोदारि।
हमरा लेल किछु जलखई आनब,
घरक काज सम्हारि।
भोरे रामलोचन कोदारि लऽ खेत दिश बिदाह भेलाह तखन हुनक स्वर छलन्हि-
बेचब बकरी छोड़ब नोकरी,
महुँ होयब सफल किसान।
बेटज्ञ केँ इसकूल भेजब हम,
घर मे जे छल महा अकान।
राम लोचन अपन कल्पना केँ स्वर बद्ध करैत खेतपर एलाह। खेत केँ तमनाय आरम्भ केलन्हि। राम परीक्षण हुनका दूरेँ सँ देखि, खेत दिश दौड़लाह आओर बजलाह- ई खेत तँ हमर अछि, सरकार हमर पर्चा देने अछि। तोरा की नञि बुझल छऽ? सङे तँ गेल रहऽ।
राम लोचन बजलाह- एहि खेतक पर्चा हमरो भेटल अछि।
राम परीक्षण गरजि उठलाह- नञि खेत पर तोहर कोनो अधिकार नञि छऽ।
राम लोचन आ राम परीक्षण दुनू केँ कहब यर्थाथ छल, परञ्च झगड़ा तँ अंचल अधिकारी लगौने छलाह। राम लोचन बेचारे घर चलि एलाह। खेत पर घटल घटना अपन प्राण प्रिया केँ सुनौलन्हि। हुनक प्राण प्रिया खेत परहक घटना सुनि कँ बहुत दु:खी भेलीह, परञ्च एकर तत्-काल कोनो उपाय नञि छल। राम लोचन पर्चा लय विदाह भेलाह अंचल कार्यालय। अंचल कार्यालय आबि अंचल अधिकारी सँ कहलनि-
अपने ऋृण सँ ऋृणि रहब
हम यौ अंचल अधिाकरी।
अपनेक द्वारा वितरित पर्चा मे
हम एक पर्चाधारी।
एकहिं जमीन के दू टा पर्चा
दू गरीब केँ देलहुँ।
हमरा सब तँ मुर्ख कहाबी
अपने ई की केलहुँ।
पुनि-पुनि करब एकहि हम विनती,
दीनक काज सुधारू।
दीर्घ भुल अपने कोना केलहुँ,
तकरो कनि विचारू।
अंचल अधिकारी राम लोचन दिश तकैत बजलाह- “तुम कल आओ।”
राम लोचन काल्हि पुन: एलाह, हाकिम सँ भेंट केलन्हि।
हाकिम पुन: वैह बात- “कल आना।”
राम लोचन काल्हियो एलाह, हुनका देखि कऽ हाकिम बजलाह- “तुम फिर आ गए। आज कुछ जरूरी काम में लगें हैं, कल आओ।”
“कम आना, कल आओ।” केँ पर्दा मे रहस्य छल। अंचल अधिकारी किछु द्रव्य चाहि रहल छलाह। हाकिम राम लोचन सँ काग भाषा मे द्रव्य याचना करै छलथिन्ह, परञ्च राम लोचन नञि बुझि पबैत छलथिन्ह। हाकिम केँ अपन आंतरिक ध्येय छलन्हि- “अगर राम लोचन अपने बॉंहु बल से जमीन खरीदता तो कम-से-कम पन्द्रह-बीस हजार व्यय करना पड़ता, लेकिन हमें क्या दिया है?”
“कम-से-कम दस कट्ठा जमीन के लिए प्रतिकट्ठा एक सौ रूपया दें।”
रम लोचन काल्हि अंचल कार्यालय एलाह, परञ्च कार्यालय सँ हाकम नदारद छलाह। राम लोचन दु:खी भेल घर गेलाह।
काल्हि पुन: राम लोचन एक बेरि फेरि अंचल कार्यालय एलाह। संयोग बस हाकिम कार्यालय मे छलाह, किछु सफेद पोश संगे लेन-देन केँ हिसाब मे लीन छलथि। राम लोचन हाकिम सँ आबि कहलथि-
मरि-कटि जायब हम दुनू जन,
केँ जमीन उपजायत।
मरि-कटि जाय जँ परम धाम,
उपजा सब केँ खायत।
आशय अपनेक अछि महान,
कहबैत अंचल अधिकारी।
बोनि छोरि प्रतिदिन आबी तँ,
बेचब लोटा थारी।
हाकिम बजलाह “मुझे न फुर्सत, कल को फिर तुम आना। कार्यालय प्रथम प्रवेश शुल्क मे, लाना कुछ नजराना। ”
राम लोचन केँ आब कनि आशा भेलनि, काल्हि आबि कार्यालय मे प्रवेश केलथि। हिनका देख हाकिम बिगड़ि कऽ बजलाह, “जाओ बाहर बैठो मुझे फुर्सत नहीं है।”
एहि आबा जाही मे कार्यालयकेँ निर्जज्ज लिपिक गण किछु पाइ ऐंठ लेलथि। राम लोचन लिपिक समक्ष गेलाह, अपन दु:खनामा सुनौलन्हि।
एक लिपिक बजलाह, हाकिम काज नञि करतऽ, चलि जाह मधुबनी, डी.सी.एल.आर. सँ भेंट करऽ (भूमि सुधार पदाधिकारी)।
दोसर लिपिक सेहो बात केँ सम्पुष्टि करकैत कहलथिन्ह-
डी.सी.एल.आर. छथि हाकिम एकटा मधुबनी मे बैठल।
दु:खिया सबकेँ दु:ख सुनै छथि,
नञि छथि कनियो ऐंठल।
राम लोचन अंचल अधिकारी केँ अवाच्य कथा कहैत मधुबनी प्रस्थान केलथि।
बिनोवा परिवहन मे भ्य सवार,
ओ आबि गेलाह मधुबनी।
भुख सँ देह भेल छल जर्जर,
सङ मे नञि चौबन्नी।
राम लोचन पद यात्रा करैत मधुबनी पहुँचलाह। लिपिक केँ सिखाओल बात, डी.सी.एल.आर. शब्द बेचारे बिसरि गेलाह। तामसे अपन केस नोंचलन्हि, नाक पर हाथ देलाह, परञ्च लिपिक केँ सिखाओल बात पुन: स्मरण मे नञि आनि सकलाह। थकमका कऽ बैसि गेलाह, बहुत पछतावा भेलन्हि। बहुत दिमाग मे मन्थन केलाक बाद हुनका मनमे भेलन्हि, सायद ओ हमरा देशी विलाड़ कहने छलाह। मन खुब हरिअर भऽ गेलन्हि। पुर्ण आस्वस्त भेलाह, जे ओ हमरा निश्चित रूपें देशी विलाड़े कहने छलथि। राम लोचन मने मन पुन: कहलनि- ठीक! ठीक! हँ-हँ देशी विलाड़।
एक ब्रासलेट धोती वाला सँ राम लोचन अपन दीन स्वर मे पुछलनि, हाकिम देशी विलाड़ साहिब केँ ऑपिस कतऽ छन्हि?
ओ ब्रासलेट धोती वाला हिनका दिश ताकि मने-मन किछु कहि चलि देलथि।
आगा जाय दोसरो सँ पुछलन्हि केओ देशी विलाड़क ऑफिस नञि बता सकलथि। वास्तव मे भेटबोक नञि चाही।
किछु आगु बढ़ि समाहरनालय समक्ष आबि ठाढ़ भेलाह, देखै छथि जे एक अपचेष्ट नेता पान लगठैत, ढेकरैत, गॉंधी वस्त्र लगौने समाहरनालय द्वार सँ वाहर आबि रहल छथि जिनक वेश-भूषा साक्षात गॉंधी जी सदृश, परञ्च धोती कुर्ता पर ठाम-ठाम पानक पीक पड़ल छलन्हि।
पहिर कऽ कारी चश्मा नेता,
दिन केँ राति बनौने।
द्वार सँ बाहर आबि रहल छलाह,
अपन ऑंखि अन्हरौने।
राम लोचन नेता सँ करूण स्वर मे गरीबी राखि कहलन्हि, सरकार हम नञि देशी विलाड़ साहिब केँ ऑफिस जाय चाहैत छी, कने कष्ट कऽ केँ देखा देल जाय।
नेता जी ऑंखि गुम्हरैत बजलाह-
“कहॉं जाना है?”
राम लोचन कहलथि- सरकार देशी विलाड़ हाकिम सँ किछु काज अछि। नेता- “अरे यार क्या बकता है। सही-सही बोलो।”
राम लोचन ओहि शब्द केँ दोहरा कऽ बजलाह।
नेता आब महान धनचक्कर मे पड़ि गेलाह, आओर राम लोचन सँ कहलन्हि-
देशी विलाड़! देशी विलाड़! कहॉं छन्हि हुनक ऑपिस।
नेता एहि बेर आओर फेर मे पड़ि गेलाह, आओर तामसे ऑंखि लाल करैत बजलाह- “कहॉं जाना है? एस.पी. साहब के पास?”
राम लोचन- नञि सरकार।
नेता- “डी.एम. के पास जाओगे क्या?”
राम लोचन- नञि यौ सरकार।
नेता- “तब कहॉं जाओगे एस.डी.ओ. के पास?”
राम लोचन-  नञि हाकिम।
नेता- “आखिर तुम्हें काम क्या है?”
राम लोचन सबटा कहि सुनौलन्हि।
नेता-
परम अनारी महा मुर्ख हो,
पढ़ना लिखना सीखो।
दुनिया विकास किया है कितना,
विश्व क्षितीज पर देखो।
नेता- तुम्हारा कम डी.सी.एल.आर. करेंगे।
राम लोचन- ठीक! ठीक! अपने जे बजलहुँ अछि हाकिम, सैह तँ हमरो कहब थीक। मुँहक दॉंत टुटल अछि सबटा, दीनक बाजब नञि अछि नीक।
नेता-देखते हो, वह जो गेट पर एक आदमी बैठा है, उसी के भीतर डी.सी.एल.आर....।
राम लोचन कार्यालय द्वारा समक्ष गेलाह। द्वारपाल सँ पुछलन्हि, हाकिम हमरा बाजऽ नञि अबैत अछि, देशी विलाड़ साहिब एहि मे छथि।
द्वारपाल- भागो यहॉं से बेहुदा नहीं तो...।
हाकिम भीतर बैठल छलाह, किछु कागजात पर ध्यान छलन्हि परञ्च अपन द्वारपाल केँ कड़कल आवाज सुनि गेलाह, द्वारापाल केँ बजा कऽ पुछलन्हि-
“कौन आया था, क्यों भगा दिया?”
द्वारपाल- “सर देहाती आदमी थ्ज्ञा, बोलने नहीं आता है।”
डी.सी.एल.आर.- “इसका क्या मतलब? पढ़ा लिखा नहीं होगा, बोलने नहीं आता होगा। बुलाओ उसे कोई काम होगा।”
द्वारापाल राम लोचन केँ जोर सँ कहलन्हि- “ए जी सुनो इधर।”
राम लोचन डेराइत एलाह द्वारपाल केँ प्रणाम केलथिन्ह। द्वारपाल- “भीतर जाओ साहब बुलाते हैं।”
राम लोचन भीतर गेलाह, हाकिम केँ प्रणाम केलथि।
हाकिम- “कहॉं आया था?”
राम लोचन- हाकिम देशी विलाड़ साहिब सँ भेंट करबाक छल, किछु काज अछि, अपने थिकहुँ- देशी विलाड़ साहिब?
डी.सी.एल.आर.- “देखें कागजात क्या काम है?”
हाकिम कागज केँ तजबीज केलन्हि, एहि बीच राम लोचन अपन सब दु:खरा हाकिम केँ सुना देलथि।
राम लेाचनक कार्य केँ देखि हाकिम बजलाह- “काम तुम्हारा हम कर देते हैं। थोड़ा देर बाहर बैठो।”
राम लोचन बाहर आबि बैठ गेलाह। कार्य भेलाक बाद हाकिम पुन: राम लोचन केँ बजौलथिन्ह। राम लोचन भीतर गेलाह।
हाकिम- “तुम्हरा सभी काम हम कर दिये हैं, अब यहॉं आने कि जरूरत नहीं है बॉंकि सब कार्य तुम्हारा अंचल अधिकारी कर देंगे। यहॉं कभी मत आना।”
राम लोचन केँ हाकिम किछु कागजात देलथि। राम लोचन कागजात लऽ अंचल कार्यालय एलाह आओर सबटा कागजात अंचल अधिकारी समक्ष पसारि देलन्हि। डी.सी.एल.आर. केँ हस्ताक्षर आओर अनुसंशा देखि अंचल अधिकारी भय सँ सब कार्य शीघ्रहि सम्पादन कऽ देलथि। राम लेाचन कागज लऽ घर एलाह आओर जीमन दखल केलन्हि। 
कथाकार
बद्री नाथ राय ‘अमात्य’
ग्रा.+पो. – करमौली
जिला- मधुबनी।
(बिहार)

1 टिप्पणी:

JAGDAMBA DEVI THAKUR ने कहा…

Ati sunar , kahani me rahsy achhi , aur sharthak achhi