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शनिवार, 11 जनवरी 2020

देखब हम सासुर केर भाड़....।। रचनाकार - बद्रीनाथ राय "अमात्य"

                                            !! सासुर कै भाड़ !!
                         
           

     देखब हम नौआ , कुचरै छल कौआ
     तपन  बुझायब  नयन  जरै  छल ।
     नौआ    संग    के      देवर    बौआ
     केहेन     पालकी     केहेन    कहार ।।
                      देखब हम सासुर केर भाड़....
    दिन  बितै  छल      युग  सन  सजनी
    काल समान छल दिन आओर रजनी
    भेल    बलाय    छल    यौवन   भाड़
                       देखब हम सासुर केर भाड़....
    कञ्चन नुपुर नव वस्त्र पहिरब देख पहुँ केs नयन जुराईव
    छल प्रतिक्षा बहुँत दिन सँ मन मे सोचने छलौ से पाइव,
    हृदय बहै छल गर्म वयार ।।
                        देखब हम सासुर केर भाड़....
    मन छल विकल नयन छल पियासल
    नञि   कs   सकै   छलौ   हरिबासल
    विष बढै छल बेसुमार ।।
                        देखब हम सासुर केर भाड़....
    प्रियतम  भेल   छला   सम   द्वितिया
    प्यासल  मन  छल  आयल  सेवतिया
    जीवन   मे   नञि   छल   किछु  सार
                        देखब हम सासुर केर भाड़....
    देह   जरै   छल   विरहानल  में
    अस्य  पीड़ छल मर्म स्थल में
     हृदय  सूखै  छल  जेना  पथार
                        देखब हम सासुर केर भाड़....
    मन भयभित रहै छल, सदखन आँगन में,आओर भीतर-बाहर
    नित मंजन करैत छलौ हम,कटि कs दँतमनि भाँटी आओर साहर
    नञि भावै छल वादय सितार ।।
                         देखब हम सासुर केर भाड़....
    कमल सदृग तारुण्य कोमल,छल वेश भेल छल कुसुम समान
    मारि रहल छला युवकगण सब,बाट धाट  में नयन कै बाण
    नञि कs सकै छलौ प्रतिकार ।।
                          देखब हम सासुर केर भाड़....
    भैया - भौजी देखवैत छला, हरदम हमरा अपन गुमान
    हम सोचैत छलौ कहिया आओत हमरा जीवन मे नव विहान
    पिता करै छला , वचन प्रहार ।।
                          देखब हम सासुर केर भाड़....
    परसब हम अपना टोल - परोस में,खीर मिष्ठान आओर पकमान
    हृदय करै छनि स्वागत हुनकर पहिरब हम नव - नव परिधान
    तुकि  लेबs  बाजs  कहार ।।
                          देखब हम सासुर केर भाड़....
     रंग विरंग तरकारी तरि कs ,करबनि हुनक खतिरमान
     छत्तीस व्यंजन सजा देवनि हम, कते खेता अतिरिक्त मेहमान
     मंगल गावि रहल अछि मनुआ हृदय भेल अछि जेना पहाड़ ।।
                           देखब हम सासुर केर भाड़....
     शास्त्र पुरानक उक्ति कहै छथि, पहुँ होइय परमेश्वर
     हमरा नञि चाही अलस्कारे ओ स्वयं छथि रत्नेश्वर
     आँचर स हुनक डगर बहारब, रचि रचि सोलह श्रृंगार
                              देखब हम सासुर केर भाड़....
     मन - वीणा केर तार टूटल छल, गरमी में लागै छल जाड़
     बेली पुष्प सँ सेज सजायब, आँजू पहुँ संग करब विहार ।।
                               देखब हम सासुर केर भाड़....

     लेखक - बद्री नाथ राय "अमात्य"
      ग्राo +  पो0 - करमोली
     भाया - कलुआही
     जिला - मधुबनी
        ( बिहार )




             

                

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