सुन्दरि यौवन धन दिन चारि ।
यावत तन संचित रस - रंगहुँ
तावत तृषित मुरारि ।।
गोधन गजधन बाजि रतन धन
सकल विदित जग जान ।
पर यौवन-धन पाय सकल धन
तेजहुँ धुरि समान ।।
यौवन धन लखि कलि मादक मन
अलि - कुल कर सम्माने ।
छूछ पराग पूछ नहि एकहूँ
बाद करहुँ अनुमाने ।।
हे कामिनि मद - मान बिसारहुँ
लघु यौवन - धन रुपे ।
नमहुँ पाबि तरुअर फल सुन्दरि
निरखहुँ श्याम सरूपे ।।
"रमण" सुमन अलि प्रीत जेमाओल
कयलहुँ सरबस दाने ।
ई यौवन पुरुषक थिक सुन्दरि
तो जनि करह गुमाने ।।
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
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