|| दीपहुँ देल जगाय ||
निन्दक सुतल जगाओल सजनी के
दीपहुँ देल जगाय ।
पहिलुक पहुँक समागम सजनी गे
जे सुख कहलो ने जाय ।।
मोर कमल कलि कुलिसहि सजनी गे
कर दुहू धयल उरोज ।
ताहि तर ताहि मडोरल सजनी गे
नव अधखिलित सरोज ।।
पल्लव चारि एक भेल सजनी गे
लपटल चारि भुजंग ।
दुहुँ प्रतिबिम्ब दुहू पर सजनी गे
दुइ मिलि भेल एक अंग ।।
सोलह चढल बढ़ल मद सजनी गे
सोलह छल श्रृंगार ।
सात स्वर्ग सुख अपवर्गक अछि
"रमण" सुमन अलि सार ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
निन्दक सुतल जगाओल सजनी के
दीपहुँ देल जगाय ।
पहिलुक पहुँक समागम सजनी गे
जे सुख कहलो ने जाय ।।
मोर कमल कलि कुलिसहि सजनी गे
कर दुहू धयल उरोज ।
ताहि तर ताहि मडोरल सजनी गे
नव अधखिलित सरोज ।।
पल्लव चारि एक भेल सजनी गे
लपटल चारि भुजंग ।
दुहुँ प्रतिबिम्ब दुहू पर सजनी गे
दुइ मिलि भेल एक अंग ।।
सोलह चढल बढ़ल मद सजनी गे
सोलह छल श्रृंगार ।
सात स्वर्ग सुख अपवर्गक अछि
"रमण" सुमन अलि सार ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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