dahej mukt mithila

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शनिवार, 5 नवंबर 2011

शराब नैन स पिया दैतो


 भोरे-भोरे उठी क शराब पीनाय कैलो हँन चालु
 
प्रभाकर जी आहा कहु जे इ पैग में कते पैन डालु

 
आहा ठंडा पैन स अपन आँखी धो क लाली त हटाबु
 
फ्रिज में स नबका बैगपेपर (दारू) के बोतल त पकराबु

 
रोज राति क सपना में हम ठेका पर जय छी
 
सबटा खेत और घरारी भरना लगा दैत छी

 
खेत और घरारी कखनो हम भरना नहीं लगैतो
 
आहा जे एक बेर अपन शराबी नैन स पिया दैतो

 
मानलो हम आहा के बहुत दूख-दर्द देलो
 
मुदा आहु त हमरा स पूरा प्रेम नहीं केलो

 
मानलो की आहा सुंदर-सुशिल हमर कनिया भेलो
 
मुदा आहा स ज्यदा हम दारू स प्रेम केलो

 
आब नहीं सताबु आबी जाऊ अपन घरे में रहब
 
भले दारू छोरी , दोस्त छोरी आहा के मारी सहब 

रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)
 

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