आएल पानी गेल पानीबाटही बिलाएल पानी
मेघक अछि खेल इ
लेनही पडायल पानी !
धरती पियाशल आ
धिपल आकाश अछि
बुत्रक बाजार लुटीबाटही शुखायल पानी !
घास पात सरकैत
बारकैए खेत खेत
नदी नाला पोखरी में
लागाए हेराएल पानी!
धरती केर कोखी सोखी
कयलहूँ पटौनी
भाफ बनल उडल सकल
घर घर बटायल पानी !
गंगा आ यामुनके
भरल गदौस स
कोशिक किछेर तोड़ी
भागल छेकयल पानी !
आएल पानी गेल पानीबाटही बिलाएल पानी
मेघक अछि खेल इ
लेनही पडायल पानी !
धरती पियाशल आ
धिपल आकाश अछि
बुत्रक बाजार लुटीबाटही शुखायल पानी !
घास पात सरकैत
बारकैए खेत खेत
नदी नाला पोखरी में
लागाए हेराएल पानी!
धरती केर कोखी सोखी
कयलहूँ पटौनी
भाफ बनल उडल सकल
घर घर बटायल पानी !
गंगा आ यामुनके
भरल गदौस स
कोशिक किछेर तोड़ी
भागल छेकयल पानी !
आएल पानी गेल पानीबाटही बिलाएल पानी
2 टिप्पणियां:
लोक भाषा का अपना रास रंग मिजाज़ है धड़कन है शिद्दत से महसूस हुआ .
बहुत बढ़िया लगा ! बेहतरीन प्रस्तुती!
एक टिप्पणी भेजें