ग़ज़ल
कहू कोना ? जे, आम आदमी बनि कय की - की भोगलौं हम |
खून - खुनामह भेल करेजा, कोना - कोना क ? जोगलौं हम ||
बड़ उल्लास भेल बचपन में, हम बड़ सुन्दर, काबिल छी,
गौरव छल जे - बाबू - बौआ बनि, कोरा में झुललौं हम ||
भेलौं किशोर, मोंन बड़ हुलसल, मुट्ठी में संसार छलय,
धरती सँ आकाश लोक धरि, लहरेलौं और बुललौं हम ||
जखन वयस्क भेलौं और आयल कंधा पर दुनिया के भार,
यौवन के गौरव में डूबल, अपन शक्ति के खोजलौं हम ||
देश - समाजक और कुटुम्बक, अनुभव के कड़वाहट में,
बेर - बेर बनि कय अभिमन्यु , चक्र - व्यूह में फँसलौं हम ||
जाहि घडी तक आन लोक सब दुश्मन छल, मदमस्त छलौं,
बज्र माथ पर बजरल लेकिन, ओकरो सहि कय बचलौं हम ||
अपन खून सँ चोट जे लागल, सब बुद्धि - बल बिसरायल,
सुनल बात छल एक बेर के, लाख बेर पर मरलौं हम ||
जीवन सच में बड़ भारी छल, आदर्शक पथ और कठिन,
राम - नाम अवलंब रहल त, कुहरि -कुहरि क कटलौं हम ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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