ग़ज़ल
आज शान से इस दुनिया में, खोटा सिक्का ही चलता है |
आस्तीन का साँप यहाँ जो बन ले, दुनिया में पलता है ||
गलत मुकद्दमा हो तो प्यारे, एक मिनिट में निपट जाएगा,
सच की होंगी सौ तारीखें, यहाँ फैसला यूँ टलता है ||
बाग़ सुगन्धित मीठे फल के, सड़ा खाद पाकर फलते है,
साफ़-सफाई से तो प्यारे, बाग़ सूखता और जलता है ||
क्या राजा, क्या प्रजा, सभी को, प्यार यहाँ है अपने हित से,
जो मूरख परहित की सोचे, व्यर्थ झुलसता और गलता है ||
दानव जीते यहाँ शान से, मानवता है विकृति - गरीबी,
सीधा - सच्चा बनकर जीना, दुनिया में सबको खलता है ||
स्त्रोत प्यार के सूख गए है, फूल यहाँ मसले जाते है,
आज ज़माना उसका है जो पत्थर बनकर के घलता है ||
दर्द बना जीवन मानव का, आँसू हैं उसकी आँखों में,
युग ने ऐसी करवट ली है, कण-कण मानव को छलता है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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