dahej mukt mithila

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शुक्रवार, 18 मार्च 2011

Abhay Kant Jha Deepraaj ke hindi Ghazal -


                           ग़ज़ल

चक्र प्रगति का ऐसा घूमा जगत आज श्मशान   हुआ है |
ढूंढ - ढूंढ   कर   यहाँ   बसेरा  धर्म  आज हलकान   हुआ है ||

कहाँ न्याय का मंदिर, मंदिर ? सेवा भाव कहाँ अब सेवा ?
ख़ूनी   पंजों  के  नाखूनों  पर   हमको   अभिमान  हुआ  है ||

अब   विश्वास  विषैला  होकर,  बन विश्वास-घात मिलता है,
मानव   मन   ही,  मानवता के  भावों से अनजान हुआ है ||

धरती,  अम्बर   और   सागर   का   बंटवारा   करते - करते,
हवस  स्वार्थ  का  बढा और मन चिंतन से वीरान हुआ है ||

भूल  गए  कर्त्तव्य  आज  हम,  कुल   का   गौरव  बनने  का,
वो   संतान  बने  हम  जिनसे हर माँ का अपमान हुआ है || 



                        रचनाकार - अभय दीपराज





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