dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

apani bhasha me dekhe / Translate

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत -

          बेटी   के   दहेज़  के भार..........

बनल   असह्य   संताप   समाजक,   बेटी   के   दहेज़  के भार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार ||

जे     बेटी     जननी    समाज    के,    मूल    प्रेम - स्नेह    के |
अपमानक   हम   पातक  
लैत  छी,   ओहि  बेटी  के  देह  के ||
अपन   मान   सँ  हम   अविवेकी,  अपने  कयलौं   दुर्व्यवहार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || १ ||

बड़  ज्ञानी,  बड़  शिष्टाचारी,  मानव  बनि   हम   जन्म   लेलौं |
नीति - न्याय  के  परिभाषा  हम  कयलौं,  बड़  सद्कर्म केलों ||
सब   यश   पर   भारी   ई अपयश,  संतानक  कयलौं व्यापार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || २ ||

जेहि   बेटी   में   दुर्गा - कमला   और   सीता   के   वास  अहि |
ओ   बेटी   अपना   नैहर   पर   बोझ   बनल,   उपहास   अहि ||
एहन  पातकी - पापी  छी  हम,  हाँ,  एहि पातक पर धिक्कार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ३ ||

बेटी   के   अपमानक   ई   विष,   उपटा   देलक   जों  ई  फूल |
हमर - अहाँ  के,  सबहक  आँगन  में  नाचत  विनाश के शूल ||
संकट  ई  गंभीर  भेल  अब,  करिऔ  एहि  पर  तुरत  विचार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ४ ||

आइ अगर ई व्यथा हमर अछि,  काल्हि अहाँ के  ई अभिशाप |
एक - एक कय पेरि रहल अछि,  सबके  एहि  ज्वाला के दाप ||
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ५ ||

बनल   असह्य   संताप   समाजक,   बेटी   के   दहेज़  के भार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार ||

                          रचनाकार- अभय दीपराज 

3 टिप्‍पणियां:

MADAN KUMAR THAKUR ने कहा…

बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
ehan - ehan lekhak rahait hamr mithila me ee hal kiyak achhi ki ahiwat par gour ka sakait chhi apnek sab ----

Abhay Deepraaj ने कहा…

Madan Jee, Samaaj kranti ke prateekshaa mein ta achhi kintu......Abhay....

anand kumar mishra ने कहा…

bahut nik jha ji shai lek likh pathak gan ke sujhav delo