बेटी के दहेज़ के भार..........
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम - स्नेह के |
अपमानक हम पातक लैत छी, ओहि बेटी के देह के ||
अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || १ ||
बड़ ज्ञानी, बड़ शिष्टाचारी, मानव बनि हम जन्म लेलौं |
नीति - न्याय के परिभाषा हम कयलौं, बड़ सद्कर्म केलों ||
सब यश पर भारी ई अपयश, संतानक कयलौं व्यापार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || २ ||
जेहि बेटी में दुर्गा - कमला और सीता के वास अहि |
ओ बेटी अपना नैहर पर बोझ बनल, उपहास अहि ||
एहन पातकी - पापी छी हम, हाँ, एहि पातक पर धिक्कार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || ३ ||
बेटी के अपमानक ई विष, उपटा देलक जों ई फूल |
हमर - अहाँ के, सबहक आँगन में नाचत विनाश के शूल ||
संकट ई गंभीर भेल अब, करिऔ एहि पर तुरत विचार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || ४ ||
आइ अगर ई व्यथा हमर अछि, काल्हि अहाँ के ई अभिशाप |
एक - एक कय पेरि रहल अछि, सबके एहि ज्वाला के दाप ||
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || ५ ||
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
रचनाकार- अभय दीपराज
3 टिप्पणियां:
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
ehan - ehan lekhak rahait hamr mithila me ee hal kiyak achhi ki ahiwat par gour ka sakait chhi apnek sab ----
Madan Jee, Samaaj kranti ke prateekshaa mein ta achhi kintu......Abhay....
bahut nik jha ji shai lek likh pathak gan ke sujhav delo
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