कक्का हमर उचक्का ।
( होली पर हास्य कविता)
ओंघराइत पोंघराइत हरबड़ाइत धड़फराइत धांई दिसा
बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का
बरजोरी देखी मुस्की मारैतकाकी मारलखिन दू-चारि मुक्का।।
धिया-पूता हरियर पीयर रंग सॅं भिजौलकनिबड़की काकी
हॅसी क घिची देलखिन धोतीक देका पिचकारी
मे रंग भरने दौगलाह हमर कक्का
अछैर पिछैर के बान्हे पर खसलाह कक्का हमर उचक्का।।
होरी खेलबाक नएका ई बसंतीउमंग
ततेक गोटे रंग लगौलकनि मुॅंह भेलैन बदरंग
के देखैत मातर कक्का बजलाह आई
होरी खेलाएब हम अहींक संग।।
कक्का के देखैत मातर काकी निछोहे परेलीह
आ बजलीहहोरी ने खेलाएब हम कोनो
अनठीयाक संगजल्दी बाजू के छी अहॉं
नहि त मुॅंह छछारि देबघोरने छी आई हम करिक्का रंग।।
भाउजी हम छी अहॉक दुलरूआ दिअर
होरी खेला भेल छी हम लाल पिअरआई
त भैयओ नहि किछू बजताह जल्दी होरी
खेलाउएहेन मजा फेर भेटत नेक्सट ईअर।।
सुहर्दे मुॅंहे मानि जाउ यै भौजी
नहीं त करब हम कनि बरजोरीहोरी मे
त अहॉ जबान बुझाइत
छीलगैत छी सोलह सालक छाउंड़ी।।
आस्ते बाजू अहॉक भैया सुनि लेताह
कहता किशन भए गेल केहेनउचक्का
केम्हारो सॅ हरबड़ाएल धड़फराएल औताह
छिनी क फेक देताह हमर पिनी हुक्का।।
आई ने मानब हम यै भाउजी
फुॅसियाहिक नहि करू एक्को टा बहन्ना
आई दिउर के भाउजी लगैत अछि कुमारि छांउड़ी
रंगअबीर लगा भिजा देब हम अहॉक नएका चोली।।
ठीक छै रंग लगाउ होरी मे करू बरजोरी
आई बुरहबो लगैत छथि दुलरूआ डिअर
ई सुनि पुतहू के भाउजी बुझि होरी खेलाई लेल
बान्हे पर दौगल अएलाह कक्का हमर उचक्का।।
लेखक:- किशन कारीगर ।
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