मिथिला आदि कालहि सँ शिक्षा केर क्षेत्र में अपन अग्रणी भूमिका एहि भूमण्डल पर निवाहैत आयल अछि। कवि विद्यापति सँ मंडन मिश्र आदि अनेकों विद्या विशारद एहि धरा के गौरवशाली स्थान प्रदान करैत अयलाह अछि। एहि क्रम में पंडित भवनाथ मिश्र उर्फ अयाची मिश्र केर नाम अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक लेल जा सकैत अछि। चौदहम शताब्दी केर उत्तरार्द्ध में मिथिला केर पवित्र धरती पर सरिसबपाही गाम में हिनक जन्म भेल छल आ जीवन भरि ककरहु सँ किछु याचना नहिं केलखिन तें ई अयाची केर नाम सँ विख्यात भेलाह। हिनक विद्वता केर नाम सूनि क तत्कालीन मिथिला केर नरेश स्वयं हिनका ओहिठाम पहुंच गेलाह। मुदा राजा के देखि हिनका कोनो प्रकार केर व्यवहार में परिवर्तन नहि भेलैन। दोसर दिस महाराज हिनका सभ रूप सँ आर्थिक सहायता करय चाहैत छलखिन। ओ नीक गुरूकुल बना क आचार्य केर उच्च स्थान हुनका देवय चाहैत छलखिन मुदा पंडित जी सभ टा प्रस्ताव के अस्वीकार कय देलखिन कारण ओ भोतिक आ सांसारिक सुख-सुविधा सँ कोनो सम्बन्ध नहि रखैत छलाह। कतवो राजा हिनका स्वास्थ्य केर सुरक्षा हेतु गाय महिष इत्यादि केर देवाक प्रयास केलखिन मुदा पंडित जी मना क देलखिन आ कहलखिन जे हमरा तीन टा अनुपम सांसारिक वस्तु अछि पाँच कठ्ठा धानक खेत, धात्री केर गाछ आ तुलसी चौरा। दू चारि मोन धान भ जाइत अछि भरि साल खेवाक लेल। धात्री गाछ सँ नित्य चारि पाँच टा धात्री (आँवला) हम खाइत छी जाहि में छप्पन भोग भोजन केर स्वाद भेटैत अछि आ तुलसी गाछ में नारायण कें नित्य जल चढवैत छी आ चरणामृत प्राप्त करैत छी अकाल मृत्यु हरणम, सर्व व्याधि विनाशनम अर्थात हमरा कोनो प्रकार केर अकाल मृत्यु केर भय अथवा रोग नहिं होइत अछि। कखनो जँ कनेक मोन उननैस बीस होइत अछि त तुलसी केर काढा पीवि लैत छी पुनः अपन अध्यापन कार्य में लागि जाइत छी। भगवान सँ सदिखन मनवैत रहैत छी जे यावत धरि जीवैत छी सतत गरीब सँ गरीब छात्र के निःशुल्क शिक्षा दान करैत रही। हमरा छात्र लोकनि प्रतीक्षा क रहल छैथि तें आदेश देल जाऊ आ ई कहि पंडित जी पुनः अध्यापन कार्य में लागि गेलाह। ई थिक मिथिला केर स्वर्ण युग केर इतिहास। किछु लोक के इहो मान्यता छैक जे भगवान शिव स्वयं हिनक बालक शंकर के रूप में अवतार लेने रहैथि। आई मिथिला केर माटि एहन एहन महापुरुष के अपन कोखि सँ जन्म देने अछि आ अपन कोरा में खेलेने अछि...
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