dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

सोमवार, 21 मार्च 2011

Nothing is Impossible: Maithili Rachana

असंभव किछु नहि!!

देखै-सुनैमें कहियो दुषऽ जोगर नहि छल बचबा - गबितो छल बड मीठ आ दिमाग एहेन तेज छलैक जे कतहु अपन प्रखर-बुद्धिसँ अलग छाप छोड़ैमें माहिर छल। तखन नीक के संग किछु बेजाय बात - अवगुण सभ सेहो छलैक ओकरामें - जेना अनेरो बेसी बजनै जाहिसँ ओकरा लोक सभ खौझबैत छलैक फचैंड़ कहि-कहि!! पाइ चोरा-चोराके चाहके दोकानपर जाय आ पाँवरोटी डूबा-डूबाके चाहसंगे खाय। कने पैघ जखन भेल तऽ किछु संगत एहेन भेलैक जे स्कूलसँ लौटेत कालमें चौरी बाधके रखबाड़ि करयवाली बतहियासँ छुपि-छुपि बूटके तऽ केराव के तऽ खेसारियेके झांख छिम्मीके लोभमें उखाड़ि लैत छल। कहियो पकड़ा सेहो जैत छल आ तखन खूब मारि खैत छल बापक हाथे - कारण बतहिया ओकर शिकायत लऽ सीधा घरहि पर आबि जैत छलैक आ बाप एतेक टाइट आदमी छलखिन जे चोरीके नाम सुनैत देरी आगि भऽ जाथिन आ छौंकीसऽ सगर देह फोड़ि दैत छलखिन। लेकिन धिया-पुतामें मारि खेनै बुझू रुटीन बनैत छलैक। कबड्डी, चैत चिक्का, राजा कबड्डी, गुल्ली-डंडा आदि प्रमुख खेल सभ छलैक ओकर प्रिय आ माहिर छल हर खेल में। साँसो खूब देर रोकि सकैत छल कारण अभ्यास करैत छल प्रतिदिन पोखरिमें एक सऽ डेढ मिनट धरि दम धरैक पानिमें डूबकी लगाय - पानिक खेल सभ सेहो बहुत रास खेलाइत छल। एहेन कोनो दिन नहि छलैक जे हेलैत-हेलैत जाठिपर नहि जाय, अथाह पानिमें डूबकी लगाके माटि नहि निकालय - जखन दुनु आँखि लाल भऽ जाय आ हाथक आंगूर सभ सिज्झ भऽ जाय तखनहि पोखैरके चुभकीसँ मुक्ति पाबय... वा कहियो कि बापके कहि देलकनि तऽ बापो बचबाके पकड़ैके क्रममें पोखरिमें कूदिके पकड़िके बाहर निकालैत छलाह। गोलीके विभिन्न खेल ओकर पाइ कमाइके साधन बनि गेल छल... कारण जे गाममें थियेटर आयल छलैक तऽ सेकेण्ड क्लासमें देखय हेतु २ रुपैयाके टिकट लगैत छल... बाप तऽ मारिके फेकि दितथिन यदि हुनका इ पता टा चलितनि जे बचबा सुतय हेतु अवधेश काकाके दलानमें जाइत अछि आ मौका देखि थियेटर देखय बड़काके बिगड़ल बेटासभसंग जाइत छल। आब गोली पाँच पैसामें दु गो बिकैत रहैक आ ठोक्कामें ओकर निशाना सेहो बड अचूक रहैक... घुचोमें एगो तऽ कम से कम हर दानमें पिला लियऽ आ फेर दुखीके जूट आ तीन-चारि गोटे खेलेनहार - पुछै केकरी... कहै ओकरी आ बचबा समधानिके निशाना लगा ओकरीके फोड़ी उठा दैक। हाय रे बचपन आ बचपनमें प्रेमक अजीब रंग!!

बचबा मैट्रिकके परीक्षा फर्स्ट डिविजनसँ पास केलक - विद्यालयमें स्थान सेहो भेटलैक आ सभक प्रशंसा सेहो पेलक। बचबाके दिमागमें परिवर्तन आबि गेल जे आब ओहो पैघ भऽ गेल कारण मैट्रीकके परीक्षा पास कऽ गेल। आब कलेजमें नाम लिखेतै। मुदा आब बचबाके बाप सेहो बचबाके मार-पीट नहि करैथ, हुनको में अजीब माया प्रवेश कय गेलन्हि। ओ बचबाके एडमिशन लेल सोचय लगलाह। लेकिन अपन स्वाभिमानके आइ धरि ओ नहि छोड़ने छलाह, केकरा लग हाथ पसारता, एहेन काज एखन धरि नहि केने छलाह। यदि दु पैली आँटा सेहो घटल तऽ बचबाके माय मात्र अपन व्यवहार-कुशलतासँ इ सभ मेन्टेन कयलीह। मुदा आब तऽ आँटा - चाउर के बात नहि, नगद ३०० टाका के जरुरी रहैक बचबाके एडमिशन लेल। खैर बाप बेर-बेर कहथिन, देखिन भगवान्‌ कोनो न कोनो इन्तजाम करबे करथिन। अस्थीर न रह! ओम्हर बचबाके सभ मित्र सभक एडमिशन भऽ गेलैक आ बचबाके इ बुझा लगलैक जे ओ सभक पाछाँ छूटि गेल। ओकरा नहि पता जे ओकर बाप अपन दवाइ-दारु-सेवासऽ कोनो दिन ५ टाका तऽ कोनो दिन १० टाकाके रोजीना कमाइ सऽ एखन धरि परिवार चलेलखिन। आब जखन एकमुष्ट ३०० टाकाके जरुरी छैक तऽ हुनका लग एहेन कोनो कोसल नहि रहय जाहि सँ बचबाके एडमिशन हेतु पठायल जैतेक। बचबा अपन बाप सऽ मुँह लागि गेल... बड कानल-बाजल। मुदा बाप छलखिन जे कनेकबो झुकथिन नहि आ कहथिन जे लिखलहबा रहतौ तऽ पढबे करमें - मुदा हमरा लग कोनो गाछ अछि जे तो्ड़िके दऽ दियौक? आब माइये कोनो जोगार करतौ तऽ धीरे-धीरे २-४ कऽ के हम चुका देबैक। ओम्हर सऽ माय सेहो बिफरय लगलैक। एह - कतेक बेर एहेन २-४ क‍ऽ के अहाँ चुकेलहुँ। बेटीके बियाहमें लोक सभक पाइ लेलियै से आइ धरि चुकेलियैक? आह! बहुत दर्दनाक रहल ओ समय बचबाके लेल। पहिल बेर ओ अपन माय-बापके गरीबीके बुझलक। ओकरा अपन बचपनके बचपनापर बहुत पश्चाताप भेलैक। कतेक पाइ चोराके ओ चाह आ बिस्कुट आ थियेटरमें स्वयं लुटौने छल... ओकरा एहि तरहक भितरिया खोखलापनके ज्ञान कहाँ छलैक! जेना-तेना ओ तऽ अपना-आपके बड़के कऽ बेटा बुझैत रहल। मुदा आइ!! ओकर ज्ञानज्योति खुजि गेल। ओ हिंचुकि-हिंचुकि के कानय लागल आ एकदम मौन भऽ गेल। मोंनेमें शपथ सेहो खेलक जे आइन्दा आब अपन अति-स्वाभिमानी बापके हृदयके नहि कष्ट पहुँचायत एवं बहुत जल्दी अपन कुशाग्र बुद्धिसँ बाप-मायके सेहो सेवा करत। संध्याकाल मायके चुपके सँ कहलकै जे कतहु सऽ जल्दी ३०० टाका इन्तजाम कऽ दे, हम तोरा दु महीनामें लौटा देबौक। माय बचबाके आँखि फारि-फारि निहारय लगली। लेकिन प्रतिक्रियामें ओहो मौन रहि गेली। रातिये नौ बजे करीब ओकरा हाथ पर तीन सौ टाका देलखिन आ कहलखिन जे बेटा अपन गरीबी जे बुझि गेल से कहियो कतहु हारि नहि सकैछ। जो माय-बापके शान बन।

बचबा दरभंगा पहुँचल आ सी एम साइंस कलेजके गेटपर जा सभ गप पता लगा अचानक हृदयके भीतरका द्वंद्व आ बापक ओ शब्द जे तुँ दरभंगामें रहि कोना पढि सकैत छ... एहि बातपर ओ खूब सोचि-बुझि अपन सिनियर मुदा बच्चहिसँ दोस्त कहैत आयल भाइ लग गेल आ कहलकै जे दोस्त हमरा कमर्समें एडमिशन करबा दिय। हम साइंस नहि पढब। इ फार्म भरि देने छी, २४० टाकामें एडमिशन हेतैक से लियऽ आ हम आब गाम जाइत छी। लौटयकाल बचबा किताबके दोकान पर सेकेण्ड हैण्ड पूरनका किताबक सेट ३० रुपैयामें किनलक आ टावर चौकपर जाय होमियोपैथिक दोकान सँ १३ रुपयाके १०० गोटी लूज डेसिल किनलक आ गाम आबि ८७ ई. के बाढिके प्रकोपसँ पीड़ित फ्लूके रोगीसभके ४ गोटी ४ टाकामें बेचिके ४-५ दिनमें सभटा १०० गोटी बेचि ८७ रुपैया नाफा कमयलक - एहि प्रकारे आब ओ हरेक सप्ताह दरभंगेसँ दवाई आनय लागल - जे संगी दरभंगामें रहिके पढैत छलाह हुनका लोकनिक नोट्स लय-लय तैयारी घरहि सऽ करय लागल। शायद कहियो कॅलेज नहि गेल मुदा ओ कोनो दोसर विद्यार्थीसँ कम नहि छल। ओ अपन मायके हाथ कैल कर्जा सेहो चुका देलक आ गाममें अपन कोर्सके पढाईके संग मैट्रीक तकके कोर्समें जतय फाँकी मारने छल तेकरो सभके रिविजन करय लागल। एहि प्रकारे गरीबीमें सेहो कर्मठतासँ पढाई संभव छैक एकर एक अविस्मरणीय उदाहरण पेश केलक बचबा।

मुदा हाय ईश्वरके लीला - सालो नहि बितलैक कि भूकंपमें बचबाके बाप के कोठरी छोड़ि बाकी समूचा घर ध्वस्त भऽ गेलैक जाहिमें दवाइके दोकान सेहो ध्वस्त भऽ गेल। आब? बचबाके सोझाँमें पैघ समस्या आबि गेल। मुदा ओ हारि मननिहार नहि छल। छोटका भाइ के अपन खुदरा दबाइके कारोबार सौंपि ओ दरभंगामें ट्युशन करब आ पढब से सोचि ५० रुपैयामें विद्यार्थी लजमें रहय लागल आ गामहिके मित्र सभ द्वारा ट्युशन तकैया कय कतहु ३० टाका तऽ कतहु ५० टाका आ कतहु एक संध्याके भोजन करैत अपन पढाई करय लागल। एम्हर बचबाके ओझाजी सेहो बचबाके मेहनत आ लगनसँ प्रभावित भऽ के परीक्षाके अन्तिम चारि महीना २०० टाका महीना पठाबय लगलाह। बचबा बहुत सुन्दर मार्क्स सऽ आइ-काम पास कयलक। गामक जतेक मित्र लगातार दरभंगामें रहि ट्युशन पढिके मार्क्स पयलाह तिनका सभसँ बहुत नीक बचबाके मार्क्स भेटलैक।

क्रमशः....

हरिः ॐ! हरिः हरः!!

1 टिप्पणी:

MADAN KUMAR THAKUR ने कहा…

bahut nik ego garaib gharak dukha -dard katha bastavik rupe sunelo , ek din hamaro jingi ehasan chhal ,jakahn apnek ee lekh padalo ankhi se nor bahai lagal , akhir jingi ekare kahait achhi