dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत क्रमांक-

                भगवती के गीत
 
अवलम्ब  अहीं  हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख  दूर    करू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान  और धन  सँ  कोष हमर भरपूर करू ||

अहाँ माता छी, हम शिशु अबोध, नहीं कोप अहाँ के, सहि पायब |
जौं   कष्ट   सतओत   मोन   हमर,   माँ,   अहीं   के   गोहरायब ||
रक्षक   बनि   रक्षा   करू   हमर,   नहिं   ऐना   कष्ट  सँ चूर करू |
अवलम्ब  अहीं   हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख   दूर   करू ||१ ||

बनि   बेटी   आँगन   में   खेलाउ, बनि  पुत्र  बनू  कुल  के गौरव |
जों   हाथ   अहाँ   के   माथ   रहत, संसार   व्यूह  के  हम तोड़व ||
माता  बनि  क  हे  जगजननी, जीवन   में   सौम्य - सुरूर   भरू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान  और   धन  सँ  कोष हमर भरपूर करू ||२ ||

कर्त्तव्य   धर्म   निर्वाह   करी, बनि   पुत्र   अहाँ   के   चरण  गही |
छाया   में   अहीं   के  जीवन - धन  के  भोगी, अहींक शरण रही ||
एहि  तरहक  सौम्य  स्वभाव दिअ, अभिमान  सँ  ने मगरूर करू |
अवलम्ब   अहीं   हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख   दूर   करू ||३ ||

संकट   सँ   हमर   उबार   करू,   दुर्गा    बनि   हमरो   दुर्ग   बनूँ |
जग के  अहाँ कारण - तारण  छी, अहीं नाव  के  अब पतवार बनूँ ||
अब  द्वार  कतय  हम  जाई  जतय, अहीं  हमरा  अब  मंजूर  करू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान   और   धन  सँ  कोष  हमर भरपूर करू ||४ ||

हम  थाकि  गेलौं, भटकैत- भटकैत,  जग के जंजाल - जाल में माँ |
नहिं   कोनो   साथी, संबंधी   अछि, हमर  अब  एहि हाल में, माँ ||
बड़  कष्ट  उठोलौं   हे  अम्बा, बस , और   ने   अब  मजबूर   करू |
अवलम्ब  अहीं   हे  जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख    दूर   करू ||५ ||

अवलम्ब  अहीं  हे जगदम्बा,  माँ,  संतानक   दुःख   दूर   करू |
बल,  बुद्धि,  विवेक,  ज्ञान  और धन  सँ  कोष हमर भरपूर करू ||



                       रचनाकार - अभय दीपराज
 

कोई टिप्पणी नहीं: