dahej mukt mithila

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मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

आखिर संघ क्यों चुप है ?

   ज -  मैं जब सुबह सुबह घूमने निकला, तो सामने से एक परिचित किन्तु पक्के कर्मकांडी हिन्दू महानुभाव भी साथ हो लिये ।


देश-विदेश की चर्चा एवं राजनीतिक चर्चा आजकल प्रिय विषय है ही तो वह बन्धु चर्चा करते करते कश्मीर से कैराना व केरल से बंगाल तक मानसिक व वाचालिक भ्रमण करने लगे ।

मैं चुप हो उनकी सुन रहा था 

तभी अचानक बोले -

वहां इन स्थानों पर हिन्दू परेशान है, आखिर संघ क्यों चुप है इस मामले में, आखिर संघ कर क्या रहा है ?*

अब तो मुझे जवाब देना ही पड़ा-

मैंने कहा-संघ क्या है ?

बोले-हिन्दुओं का संगठन ।

मैं बोला-तो आप हिन्दू हैं ?

वह बोले-कैसा प्रश्न है यह आपका, मैं कट्टर सनातन हिन्दू हूं ।

तब मैंने कहा-तो क्या आप जुड़े हैं संघ से

वह बोले.. नहीं तो ।

तब मैंने पूछा-आपका बेटा-पोता, नाती या परिवारीजन कोई रिश्तेदार जुड़ा है क्या? 

तब बोले-नहीं कोई नहीं ।

बेटा नौकरी पर है फुर्सत नहीं मिलती उसे ।

पोता-नाती विदेश में सैटल हो चुके हैं ।

रिश्तेदार बड़े व्यवसायी हैं, उसी में व्यस्त हैं व शेष घर पर ही रहते हैं और बच्चों को तो कोचिंग से फुर्सत नहीं मिलती ।

मैंने कहा-इसका मतलब यह हुआ कि संघ आपके व आपके परिवार व रिश्तेदारों को छोड़कर शेष अन्य हिन्दुओं का संगठन है ।

वह चिढ़कर बोले-

आज शर्मा जी,

क्या हुआ है आपको- 

कैसी बात कर रहे हो आप । अरे भाई ऐसी स्थिति मेरी अकेले की थोड़े है ? देश में 90% लोग ऐसे हैं-  जिनको अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती। तो यह आप केवल मुझ पर ही क्यों इशारा कर रहे हो आप? काम ही तो पूजा है, काम नहीं करेंगे तो देश कैसे चलेगा ?

मैंने फिर कहा- तो मतलब आपके हिसाब से संघ से केवल 10% हिन्दू लोग ही जुड़े हैं? 

वह बोले-जी नहीं साहब-मेरे वार्ड में रहते सारे हिन्दू ही हैं, कुल 10000 की जनसंख्या है वार्ड में हिन्दुओं की ।

पर सुबह सुबह देखता हूं, बस रोज तो उसमें से भी केवल 15-20 लोग ही नजर आते हैं संघ की शाखा में, 

बाकी कभी उत्सव त्योहार पर ही नजर आते हैं ।

मैंने पूछ लिया-कि कभी जाकर मिले उनसे? 

बोले-नहीं..

कभी उनकी कोई मदद की? 

बोले-नहीं ।

कभी उनके उत्सवों कार्यक्रमों में भागीदारी की ?

बोले-नहीं ।

तो फिर आप की संघ से यह सारी अपेक्षा क्यों ?

(मैं -भी तो खीझ गया था अन्दर से) आखिर बोल ही पड़ा-

तो ठेका लिया है संघ ने आप जैसे हिन्दुओं का ?

क्या वह संघ के सारे लोग बेरोजगार हैं ?

उनके पास अपना काम नहीं है या उनका अपना कोई परिवार नहीं है ?

आप तो अपने व्यवसाय व परिवार की चिन्ता करें बस 

और वह अपने व्यवसाय व परिवार की भी चिन्ता न करें व साथ में आप जैसे अकर्मण्य, एकाकी आत्मकेंद्रित हिन्दुओं की भी चिन्ता करें ?

यह केवल उनसे ही क्यों चाहते हैं आप ?

क्योंकि वह भारतमाता कि जय बोलते हैं, देश से प्यार करते हैं, 

वन्देमातरम् कहते हैं ।

क्या यह करना गुनाह है उनका? इसलिये उन से आप यह जजिया वसूलना चाहते हैं ।

जो आप सभी समर्थ होकर भी नहीं करना चाहते वह सब कुछ वह करें ।

वही कश्मीर, कैराना व बंगाल तथा आप जैसों की चिन्ता करें।

देश व समाज की हर तरह की आपदा व संकटों में वही अपना श्रम या धन व जीवन तक बलिदान करें ।

उनको क्यों आपकी तरह मूक या तटस्थ बने रहने का हक नहीं है ?

क्यों वही अपना घर, परिवार सब छोड़कर केवल आप जैसों के लिये ही जियें ?

कभी सोचा-

कि जब वह आप से चाहते हैं कि आप उनको बल दो, साथ दो, समर्थन दो उन्हें ऐसे 10% पर ही अकेला मत छोडो ।तब आप उनको निठल्ला-फालतू व पागल समझ कर उनकी उपेक्षा करते हो ।

और इतना ही नहीं उन्हें साम्प्रदायिक कह कर गाली देते हो, अपने को सेक्यूलर मानकर अपनी शेखी बघारते हो ।

केवल अपने घर-परिवार-व्यवसाय को प्राथमिकता देते हो तथा अपने बच्चों का भविष्य बनाने में ही जुटे रहते हो। 

अगर वह हिन्दू संगठन वाले हैं, तो आप जैसे भी तो सारे हिन्दू ही हैं ।

तो जो कर्तव्य उनका बनता है वह आपका क्यों नहीं बनता? बस जरा यह तो स्पष्ट करें, 

कि क्या वही हिन्दू हैं आप हिन्दू नहीं है सर? 

स्मरण करो- भगतसिंह को फांसी केवल इसलिये हुई थी एवं आजाद को भी इसीलिये अकेले लड़कर मौत को गले लगाना पड़ा था- क्योंकि

अगर यह आप जैसे शेष 90% हिन्दू *हमें क्या करना* कहकर सोये हुये ना होते - यह आप जैसे 90% हिन्दू आत्मकेन्द्रित हो हमें क्या फर्क पड़ता है कहकर न जी रहे होते 

उनके तब खुलकर समर्थन में आये होते, 

तो उनको फांसी देने या मार सकने जितनी हिम्मत या औकात तब भी अग्रेजों में थी नहीं ।

अगर तब यह 90 % हिन्दू आपकी तरह तमाशा ना देखते, कभी इकठ्ठे होकर केवल एक बार अयोध्या पहुंच कर  जय श्रीराम बोल देते

तो यूं राम मन्दिर के लिये 550 साल इन्तजार ही नहीं करना पडता ।

अगर आप जैसे हिन्दू 1947 के बंटवारे के खिलाफ जमकर लामबंद होते तो बंटवारा मान सके यह तो दूर की बात है चर्चा भी कर सकें इतनी दम नेहरू गांधी में थी ही नहीं । न ही महज 30000 अंग्रेज तब 30 करोड़ भारतीयों पर 200 साल तक राज कर सकते थे, ना हमें लूट सकते थे ।

ताजा उदाहरण देख लीजिये यूक्रेन का 

विश्व का बलशाली देश रूस, उन यूक्रेन वासियों की एकजुटता से पस्त है, सामरिक दृष्टि से अति कमजोर यूक्रेन को 3-4 घंटों में परास्त करने के रूस के सपने काफूर हो चुके हैं ।

33 दिन से झक मार रहा है । जन विध्वंस पर उतर आया है पर हरा न सका । 

जबकि कल तक का मसखरा वहां का राष्ट्रपति न योग्य है न अनुभवी । पर जन समाज एक जुट है तो परिणाम सामने है ।

भाई जी-आपकी बात से तो मैं एक बात समझा हूं-

कि देश में दो तरह के हिन्दू हैं-एक संघ वाले हिन्दू, दूसरे संघ की पूरी उपेक्षा या राजनैतिक कारणों से विरोध करने वाले हिन्दू, अपने काम व्यवसाय व लाभ  के लिये ही जुटे रहने वाले हिन्दू । और यह दूसरी तरह के हिन्दू ही आपकी ही तरह इतने बेशर्म हैं कि कभी भी पहली तरह के हिन्दुओं का कोई साथ देते नहीं न ही कोई अपने देश व समाज के प्रति कर्तव्य वहन करते हैं । पर जरूरत पड़ने पर संघ वाले हिन्दुओं से ऐसी अपेक्षा जरूर करते हैं ।

जैसे कि वह आपके जैसों के कोई जर खरीद या वेतन भोगी गुलाम हों । आपकी दया व सहायता पर ही वह पल बढ़ रहे हों ।

या कि जैसे देश की सारी समस्यायें उन्हीं ने पैदा की हो तो वही जाकर समाधान करें ।

क्या मतलब है आपका मिस्टर कर्मकांडी जी ?

संगठन किसी चिड़िया का नाम नहीं होता, 

समाज के सभी लोग एक विचार व व्यवहार के साथ इकट्ठे हों -इकठ्ठे होकर सोचें -इकठ्ठे होकर कर्म करें उसे संगठन कहते हैं -

त्याग तपस्या व बलिदान की भावना से ओतप्रोत होकर जन जन उस संगठन से जुड़ें-तब फिर उस समाज को उस संगठन से अपेक्षित परिणाम की आशा करनी चाहिये वर्ना नहीं ।

आज ऐसा न करके आप जैसे बेवकूफी तो कर ही रहे हैं, ऊपर से फिर कोस कोस कर तो अपना दिमागी दिवालियापन ही दिखा रहे हैं और केवल विरोधी ही नहीं- जिन पर सत्य को सबके सामने रखने की जिम्मेदारी है, वह मीडिया भी ऐसे शाब्दिक पाखंड से अछूता नहीं है ।

तो श्रीमान इसीलिये शान्त है संघ ।

किसी ने यह सही कहा है कि-

रहिमन तहां न बोलिये  , जहां हैं बहरे लोग ।

इस मछली बाजार में,   बिके ना मोहन भोग ।।

और वह मेरे भाई- कोई जवाब ना देकर अपने घर में घुस गये क्योंकि उनका तो फिर घर आ गया था! !

(अनुभव है- यह कल्पना नहीं-)

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