dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

सोमवार, 3 सितंबर 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                         || रमण दोहावली ||
                                       


    1. पाप किया है जतन से , फल से क्यो कतराय ।
       "रमण" जीवन पतित पे , कोउ न होत सहाय ।।
     
    2. कनक रत्न मणी मोती , मिट्टी में दियो डाल ।
        खोल तिज़ोरी बावला , रखा जिसे सम्भाल ।।

    3. गैया   काटे   कसाई   ,   मैया   काट   कपूत ।
       "रमण" काटि हे पाप को , नाहि दिखे यमदूत ।।

    4. मुझमे  तो  मकरंद  है , ना कर कुसुम बखान ।
        गुण अवगुण को जानि के , गावत सुयश सुजान ।।

    5. जाहि आँख पानी मुआ , मुआ विवेक विचार ।
        अधमहि संग ना साधिए , "रमण" बड़ा संसार ।।

    6. एक पख बढ़त,घटत एकहि,रहत न रूप हि समान ।
         "रमण"  काल के  चक्र  से , हो  निर्धन  धनवान ।।

    7. ग्रह  मंडल  नभ  एक - एक  ,  है   सारे  गतिमान ।
         उसके आगे काल गति , विधि का प्रबल विधान ।।

    8. मोक्ष - धाम  की  लालसा , राग  द्वेष  चित  माहि ।
         जतन  केतनो करि फिरे , धरम  मिले जो नाही ।।

                                   रचनाकार
                          रेवती रमण झा " रमण "
                                         

कोई टिप्पणी नहीं: