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बुधवार, 26 सितंबर 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                        || रमण दोहावली ||
                                      


      1. "रमण" दूध मन जब फ़टे , बहुरि बने न बात ।
            एक तो आवत दाम से , एक मुए पे जात ।।

      2. चाकर नाही न मालिक , उस दरबार में एक ।
          ऊँच नींच नहि नींन्दिये , राखिए ज्ञान विवेक ।।

      3. गैया  मैया  एकहि  रे , किया  तुझे  बलवान ।
          खंजर  उस  पे  धर  दियो , है  कैसा  हैवान ।।

      4. आनी जानी लाग नहि , "रमण" न डोली सेज ।
          बाबुल एक उपकार कर , ऐसो पियु को भेज ।।

      5. बचपन  वीता  खेल  में , यौवन  मती  मतंग ।
          देख  बुढापा  रो  दिया , दो  दिन  का है जंग ।।

      6. धरम - धरम तो सब कहे , करे करम नहि कोय ।
         "रमण" जगत में बिन करम , धरम कहाँ से होय ।।

      7. राग  द्वेष  भ्रम  जाल  में , उलझ  नारे  अज्ञान ।
          छ्ण भंगुर जग जीव रे , "रमण" बना अनजान ।।

     8. लिख लिख के पोथी भई , लिया चित्त नहि ज्ञान ।
         मूरख  मन हरि भजन से , हो  गया ब्रह्म समान ।।

     9. निर्धनता  धन  चाह  वर , विद्वत  जन  बहू ज्ञान ।
         "रमण" राम रस पीवी हौ , पंडत को जजिमान ।।

                                  रचनाकार
                          रेवती रमण झा "रमण"
                          mob -9997313751       

        

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