|| हम मूर्ख समाजक वाणी छी ||
हम मुर्ख समाजक वाणी छी |
ज्ञाता जन छथि सदय कलंकित
हमहीं टा बस ज्ञानी छी ||
हम मुर्ख --- ||
रामचंद्र के स्त्री सीता
तकरो कैल कलंकित |
कयलनि डर सं अग्नि परीक्षा
भेला ओहो शसंकित ||
एक्कहि ठामे गना दैत छी
सुर नर मुनि जे ज्ञानी |
हम कलंकित सब के कयलहुँ
देखू पलटि कहानी ||
बुद्धिक-बल तन हीन भेल
बस अपनौने सैतानी छी |
हम मुर्ख ---||
बेटा वी. ए. बैल हमर अछि
हम फुइल कय तुम्मा |
नै केकरो सँ हम बाजै छी
बाघ लगै छी गुम्मा ||
अनकर बेटा कतबो बनलै
रहलै त अधलाहे |
अगले दिन उरैलहुँ हमहीं
कतेक पैघ अफवाहे ||
अपनहि मोने,अपने उज्ज्वल
बस हम सब परानी छी |
हम मुर्ख --- ||
बाहर के कुकरो नञि पूछय
गामक सिंह कहाबी |
परक प्रशंसा पढ़ि पेपर में
मूँह अपन बिचकावी ||
सदय इनारक फुलल बेंग सन
रहलों एहन समाज |
आनक टेटर हेरि देखय लहुँ
अप्पन घोलहुँ लाज | |
अधम मंच पर बैसल हम सब
पंडित जन मन माणि छी |
हम मुर्ख --- ||
गामक हाथी के लुल्कारी
जहिना कुकर भुकय |
बाहर भले देखि कय हमर
प्रभुता पर में थुकय ||
अतय सुनैने हैत ज्ञाण की
बहिर छी कानक दुनू |
कोठी बिना अन्न केर बैसल
ओकर मुँह की मुनू ||
हम आलोचक पैघ सब सँ
हमहीं टा अनुमानी ||
हम मुर्ख --- ||
माली पैसथि पुष्प वाटिका
सिंचथि तरुवर मूल |
पंडित पैसथि पुष्प वाटिका
लोढथि सुन्दर फूल | |
लकरिहार जन लकड़ी लाबय
चूइल्ह जेमाबय गामें |
सूअर पैसय पुष्प वाटिका
विष्ठा पाबय ठामे ||
जे अछि इच्छु जकर तेहन से
दृष्टि ताहि पर डारय |
मूर्खक हाथ मणि अछि पाथर
ज्ञानी मुकुट सिधारय ||
"रमण " वसथु जे एहि समाज में
मर्दो बुझू जनानी छी |
हम मुर्ख समाजक वाणी छी
हम मुर्ख ---||
रचनाकार -:
रेवती रमन झा "रमण "
गाम- जोगियारा पतोंर दरभंगा ।
मो - 9997313751
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें