dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

 


मैथिली कवि कोकिल विद्यापति केर रचना में शिव पार्वती केर हास्य व्यंग्य केर चर्चा बेसी भेटैत अछि यथा "नित उठि गौरी शिव के मनावथि करू बीघा दूई खेत" अथवा "गौरी दौड़ि दौड़ि कहथिन हे मोरा भंगिया रूसल जाइ" इत्यादि अनेकों रचना लिखलाह।.                                                                एहि हास परिहास केर वातावरण एवं स्थान केर संदर्भ में मधुवनी जिला केर राज राजेश्वरी मन्दिर डोकहर (दुखहर) जे मधुबनी शहर सँ बारह किलोमीटर उत्तर में बरहन बेलाही गाम के निर्जन स्थान में बिन्दुसर पोखैर के कात में अवस्थित अछि। एहि स्थान के शिव पार्वती के रमणीय स्थली के रूप में सेहो जानल जाईत अछि ।एहि ठाम केर शिव पार्वती केर मूर्ति केर भाव भंगिमा आ युगल मुद्रा एहि बात केर प्रत्यक्ष प्रमाण दैत अछि। एहि कारण सँ एहि स्थान केर नामकरण दुखहर राखल गेल जे एहि बात केर परिचायक अछि जे जाहि ठाम स्वयं देवाधिदेव महादेव आ माता पार्वती केर विलास स्थान छैन्ह ओहिठाम कोनो दुःख केर स्थान कोना भेटि सकैत छैक। एहिठाम राज राजेश्वरी के परब्रम्ह के महाशक्ति केर रूप में आदि कालहि सँ पूजा होइत आयल अछि। ऐतिहासिक तथ्य केर अनुसार जखन बुद्ध धर्म केर प्रचार प्रसार ब्राम्हण धर्म सँ प्रतिशोध लेवाक लेल जोर पकड़लकै त मूर्ति केर क्षति पहुंचेवाक आशंका सँ मूर्ति के लग केर चन्द्रभागा नदी में नुका क राखि देल गेल रहैक जे बाद में किछु दिनुका बाद पुनः अपन यथा स्थान स्थापित कऽ देल गेलैक। आई ओ भव्य स्थान श्रद्धालु केर लेल सृष्टि केर प्रलय हारी, करूणामयी, श्रृंगारिक आ ओजस्वी रूप में दुखहर बनि कऽ बिराजमान छैथि आ सतत अपन भक्त केर आशीर्वाद दैत छथिन्ह ।जँ भक्त हिनक दरवार में सत्य आ निश्छल भाव सँ उपस्थित होइत छैथि त हुनकर समस्त दुःख केर अंत आ मनोकामना अवश्य पूर्ण होइत छैन्ह। जय राज राजेश्वरी .

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