dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

मंगलवार, 16 मई 2023

कलयुग के लक्षण

1. कुटुम्ब कम हुआ  ---

2 सम्बंध कम हुए ----

3. नींद कम हुई. ---

4. बाल कम हुए ----

5. प्रेम कम हुआ  ---

6. कपड़े कम हुए -----

7. शर्म कम हुई• ---

8 . लाज-लज्जा कम हुई---- 

9. मर्यादा कम हुई --

 10. बच्चे कम हुए ---

11. घर में खाना कम हुआ---

12. पुस्तक वाचन कम हुआ ---

13. भाई-भाई प्रेम कम हुआ---

 15. चलना कम हुआ ----

16. खुराक कम हुआ ---

17. घी-मक्खन कम हुआ---

 18. तांबे - पीतल के बर्तन कम हुए---

 19. सुख-चैन कम हुआ--- 

 20. मेहमान कम हुए---

 21. सत्य कम हुआ---

 22. सभ्यता कम हुई ----

23. मन-मिलाप कम हुआ

 24. समर्पण कम हुआ  --- इतियादी .

               संतान को दोष न दें...  -----

बालक या बालिका को 'इंग्लिश मीडियम' में पढ़ाया...

'अंग्रेजी' बोलना सिखाया... 

'बर्थ डे' और 'मैरिज एनिवर्सरी'

जैसे जीवन के 'शुभ प्रसंगों' को 'अंग्रेजी कल्चर' के अनुसार जीने को ही 'श्रेष्ठ' मानकर...

माता-पिता को 'मम्मा' और

'डैड' कहना सिखाया...

जब 'अंग्रेजी कल्चर' से परिपूर्ण बालक या बालिका बड़ा होकर, आपको 'समय' नहीं देता, आपकी 'भावनाओं' को नहीं समझता, आप को 'तुच्छ' मानकर 'जुबान लड़ाता' है और आप को बच्चों में कोई 'संस्कार' नजर नहीं आता है, 

तब घर के वातावरण को 'गमगीन किए बिना'... या...

'संतान को दोष दिए बिना'...

कहीं 'एकान्त' में जाकर 'रो लें'...

क्योंकि...-------

पुत्र या पुत्री की पहली वर्षगांठ से ही,

'भारतीय संस्कारों' के बजाय

'केक' कैसे काटा जाता है ? सिखाने वाले आप ही हैं...

'हवन कुण्ड में आहुति' कैसे डाली जाए... 

'मंदिर, मंत्र, पूजा-पाठ, आदर-सत्कार के संस्कार देने के बदले'...

केवल 'फर्राटेदार अंग्रेजी' बोलने को ही,

अपनी 'शान' समझने वाले आप...------

बच्चा जब पहली बार घर से बाहर निकला तो उसे

'प्रणाम-आशीर्वाद' के बदले

'बाय-बाय' कहना सिखाने वाले आप...

परीक्षा देने जाते समय ----

'इष्टदेव/बड़ों के पैर छूने' के बदले

'Best of Luck'

कह कर परीक्षा भवन तक छोड़ने वाले आप...

बालक या बालिका के 'सफल' होने पर, घर में परिवार के साथ बैठ कर 'खुशियाँ' मनाने के बदले...

'होटल में पार्टी मनाने' की 'प्रथा' को बढ़ावा देने वाले आप...

बालक या बालिका के विवाह के पश्चात्...

'कुल देवता / देव दर्शन' 

को भेजने से पहले... 

'हनीमून' के लिए 'फाॅरेन/टूरिस्ट स्पॉट' भेजने की तैयारी करने वाले आप...

ऐसी ही ढेर सारी 'अंग्रेजी कल्चर्स' को हमने जाने-अनजाने 'स्वीकार' कर लिया है...

अब तो बड़े-बुजुर्गों और श्रेष्ठों के 'पैर छूने' में भी 'शर्म' आती है...

गलती किसकी..? 

मात्र आपकी '(माँ-बाप की)'...

अंग्रेजी International 'भाषा' है... 

इसे 'सीखना' है...

इसकी 'संस्कृति' को,

'जीवन में उतारना' नहीं है...

मानो तो ठीक...

नहीं तो भगवान ने जिंदगी दी है...

चल रही है,चलती रहेगी...

आने वाली जनरेशन बहुत ही घातक सिद्द्ध होने वाली है, हमारी संस्कृति और सभ्यता विलुप्त होती जा रही है,बच्चे संस्कारहीन होते जा रहे हैं और इसमें मैं भी हूं,अंग्रेजी सभ्यता को अपना रहे 

सोच कर, विचार कर अपने और अपने बच्चे, परिवार, समाज, संस्कृति और देश को बचाने का प्रयास करें...

हिन्दी हमारी राष्ट्र और् मातृ भाषा है इसको बढ़ावा दें, बच्चों को जागरूक करें ताकि वो हमारी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ कर गौरवशाली महसूस करें..!!

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