मिथिलाक संस्कृति - भोरे आंगन कौआ कुचरय, पाहुन अओताह, गेल सभ जानि, बड़का फूलही लोटा राखल, दलान पर भरि कऽ पानि।. आंगन दलान सभ चिक्कन भेल अछि, साफ चादर चौकी पर ओछाओल, पाहुन के मिथिलाक संस्कृति में, अतिथि देवो भवऽ बनाओल।. मिथिला वासी मारि पीटि सँ, सदिखन रहैछ, कोसो दूर. भाला गरांस के के पूछैत अछि, पूरना लाठी ओहो में भूर।. भुल्ली बिलारि दूध के पाहि मे, घुमि रहल अछि भनसा घर, बौआक माय दूध औंटैत छैथि, नजरि रखने एम्हर ओम्हर।. करिया कुकूर आंगन आबि कऽ, आंठि कयलक अंइठारक बाटी, बौआक माय ओम्हर सँ बजलीह, हे ला तऽ ओम्हर सँ मोटका लाठी।. मिथिला संस्कृति में आदि काल सँ, अध्यात्म के बहुत पैघ स्थान, स्वयं महादेव उगना बनि कऽ, देलन्हि मिथिला वासी के वरदान।. मिथिलाक बेटी सीता सन गुणगर बाप जनक सन सज्जन आ संत। अयाची सन संतोषी, मंडन सन गुणवंत।. मिथिला में मुंडन, उपनयन, ब्याह संस्कारक नहि कोनो तोड़। प्रेम, स्नेह आओर विधि ब्यवहार, आन संस्कृति में लागय थोड़।. अपन संस्कृति सभ सँ उपर, एकरा नहिं कहियो बिसरू, आन संस्कृति के सेहो करू सम्मान, अपन सर्वोच्च मानि आगू ससरू।. कीर्ति कहैथि जँ अपन संस्कृति के, हमहीं नहि करव सम्मान, कोना हमर संस्कृति आगू बढत? करू सदिखन एकर सम्मान।🙏
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