" गजल "
जिन्दगी पीती रही , रोज सुबहोशाम तक ।
क्यो कदम रुकता हमेशा, चलते चलते जाम तक ।।
लोग कहते,वो शराबी, कहाँ पीके जा रहा
कुछ तो हँसता देखकर , कुछ तरस मुझ पे खारहा ।।
मयकसी की जिन्दगी,मुझे ले गई बेनाम तक ।।
क्यो ....
अश्क का हर घूँट पीकर, बेबसी में सो गया
अपनी मस्ती ,अपना आलम,में पाया कुछ खोगया
लड़खड़ाता हर कदम, हर कोशिसे नाकाम तक
क्यो ....
हर घड़ी , हर पल हमेशा , ठोकरे खाता रहा
बजह से , हर बेबजह में , हरकदम जाता रहा
मधुशाला का एक प्याला , बहुत है बदनाम तक
क्यो कदम रुकता.......
गीतकार
रेवती रमण झा "रमण"
जिन्दगी पीती रही , रोज सुबहोशाम तक ।
क्यो कदम रुकता हमेशा, चलते चलते जाम तक ।।
लोग कहते,वो शराबी, कहाँ पीके जा रहा
कुछ तो हँसता देखकर , कुछ तरस मुझ पे खारहा ।।
मयकसी की जिन्दगी,मुझे ले गई बेनाम तक ।।
क्यो ....
अश्क का हर घूँट पीकर, बेबसी में सो गया
अपनी मस्ती ,अपना आलम,में पाया कुछ खोगया
लड़खड़ाता हर कदम, हर कोशिसे नाकाम तक
क्यो ....
हर घड़ी , हर पल हमेशा , ठोकरे खाता रहा
बजह से , हर बेबजह में , हरकदम जाता रहा
मधुशाला का एक प्याला , बहुत है बदनाम तक
क्यो कदम रुकता.......
गीतकार
रेवती रमण झा "रमण"
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