dahej mukt mithila

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सोमवार, 27 अगस्त 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                          || रमण दोहावली ||
                                       

1. अपने  ही  दुख  देत  है , नारी , संतति   यार ।
    अधिक ना प्रीत पसारिए , "रमण" मोह बेकार ।।

2. नारी  सती  तो ,  पति बढ़े पिता धरम से पूत ।
  "रमण" जहाँ दोनों अधम , उपजे वहाँ कपूत ।।

  3. उस भार्या से भागिहौं , जहाँ न भय अरु लाज ।
    वंश गिरे जा नरक में , "रमण" पैर सिर - ताज ।।

 4. तिरिया  बरगद  पूजती , काढ़  पिया  में  खोट ।
  "रमण" सुघट अमृत मिला , काहे मारत चोट ।।

   5. ना दूल्हा , ना दुल्हनियां , "रमण" व्याह का होय ।
     दोनों   नैन   मिले   जहाँ   उसी   याद   में   रोय ।।

 6. हाथ   नही   तो   पैर   से , पैर   नही   तो   हाथ ।
   "रमण"  आपनो  करम  कर , कोई  न  देवे  साथ ।।

7. ना   वैभव , ना   बाहुबल , नाहि  बने   बहुलोग ।
  "रमण"  भाग्य  आधीन  है , रोग  भोग  संयोग ।।

8. "रमण" प्रीत वही  कीजिए , जैसे चाँद  चकोर ।
  एक धरा , एक गगन पड़ो , फिर भी लागी डोर ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"

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